कभी परामर्श भी दवा से अधिक जरूरी व कारगर उपाय है
मित्रों आपने लोगों को अक्सर कहते सुना होगा " इसके पेट में कोई बात पचती नहीं" ... इस कहावत का विज्ञान से कोई सरोकार नहीं, लेकिन इसमें जो बात है वह तर्क के रास्ते दर्शन की दृष्टि से जिस मनोविज्ञान की तरफ इशारा करती है वह जरूर महत्वपूर्ण हो जाता है। इस विषय पर अंत में विचार करेंगे अभी जिस पाचन की बात की गयी है पहले उस तन्त्र को सरल रूप में समझने का प्रयास करते हैं-
हमारा पाचन तंत्र एक आहर नाल जिसमें मुख, मुखगुहा, ग्रसनी, ग्रसिका, आमाशय, क्षुद्रांत्र, वृहदांत्र, मलाशय और मलद्वार व सहायक पाचन ग्रंथियों लार ग्रंथि, यकृत , पित्ताशय और अग्नाशय (पैंक्रियास) से मिलकर पूर्ण होता है ।
कैसे होता है पाचन -
मुख में दांतो से भोजन को पीसा जाता है, और स्वाद की पहचान करने वाली जीभ इसे लार के साथ मिलाकर निगलने में सुगम बनाती है। लार में उपस्थित एंजाइम, एमिलेज स्टार्च या मांड को पचाकर डाइसैकेराइड में बदल देती हैं। इसके बाद भोजन ग्रसनी से होकर बोलस के रूप में ग्रसिका में प्रवेश करता है,
और पेरिस्टलटिक या क्रमाकुंचन गति से आमाशय (stomach) तक अाता है जहां प्रोटीन, सरल शर्कराओं, अल्कोहल और दवाओं का पाचन होता है। अब तक पचे हुये भोजन को काइम कहते हैं जो क्षुद्रांत्र (small intestine) के ग्रहणी (duodenum) भाग में प्रवेश करता है जहाँ अग्नाशयी रस (pancreatic juice), पित्त और अंत में आंत्र रस के एंजाइमों द्वारा कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और वसा का पाचन पूरा होता है। जिसके बाद भोजन छोटी आँत के जेजुनम और इलियम भाग में जाता है।पाचन की इस क्रिया में कार्बोहाइड्रट का मोनोसैकेराइड , प्रोटीन का ऐमीनो अम्लों तथा वसा का वसीय अम्लों व ग्लिसेराल के रूप में आंत की उपकला द्वारा अवशोषण कर लिया जाता है। इस प्रकार भोजन के जटिल स्वरुप को तोड़कर सरलतम रूप में पाचन और तत्वों के अवशोषण की क्रिया पूर्ण होती है।
इस क्रम में बचा हुआ पदार्थ त्याज्य होता है और उसे इलियोसीकल कपाट द्वारा बड़ी आंत की सीकम (caecum) में भेज दिया जाता है जहां से यह वापस नहीं अा सकता। बड़ी आँत में जल का अवशोषण होता है। इस तरह से अपचित भोजन अर्ध ठोस हो अपशिष्ट के रूप में मलाशय और गुदा नाल में पहुंचता है और अंतत: गुदा द्वारा त्याग दिया जाता है।
केस टेकिंग में महत्वपूर्ण लक्षण जिन्हें परखना जरूरी मानते हैं चिकित्सक
पेट में दर्द-
समय पर भोजन न करने वाले व्यक्तियों में सुबह के समय पेट के ऊपरी हिस्से में जलनयुक्त दर्द हो सकता है जो पीठ की तरफ भी बढ़ता है, अथवा अधिक खाने की आदत से जलन दर्द या सीने में जलन की शिकायत हो सकती है।
दर्द का स्थान, फैलाव या भ्रमण-
गुर्दे का दर्द निचले पेट तक फैलता है, पैंक्रियाज, स्प्लीन, व गाल ब्लैडर का दर्द अपने स्थान से पीठ की तरफ बढ़ता है।
सांकेतिक सामान्य लक्षण -
मुखगुहा में स्टोमेटाइटिस, भूख कम या न लगना, ज्यादा खाने की आदत, मितली, उल्टी, निगलने में दिक्कत, अधिक दस्त, या कब्ज़, खून की उल्टी, या दस्त के साथ खून आना आदि।
समझे रोग की भाषा : लक्षण
गले में किसी संक्रमण या बीमारी के कारण कोई सूजन आदि से मार्ग के संकरा हो जाने के कारण भोजन निगलने में तकलीफ को डिस्फेजिया कहते हैं।
एसोफैगस के निचले भाग के ठीक से न खुल पाने से निगले भोजन के आमाशय में जा पाने में दिक्कत या निगलने के बाद भोजन वापस आ जाता है इसे कार्डियो स्पाज्म या इसमें सूजन होने पर एसोफैजाइटिस कहते है।
आमाशय (stomach) के अंदर की आवरकझिल्ली (mucous membrane)की सूजन को गैस्ट्राइटिस कहते हैं, जो लम्बे समय तक बनी रहे तो या अम्लता निरन्तर रह जाये तो कोशिकाएं मृत होने लगती हैं या वहां कुछ स्तर हट सकता है जो हल्के या गहरे घाव जैसा हो सकता है, इसे सामान्य तौर पर अल्सर कहते हैं जो भिन्न भागों में पाया जा सकता है, इसी में से पहले तो म्युकस का स्रावण, फिर खून भी आ सकता है, यदि उक्त पैथोलॉजी ऊपरी हिस्से में है तो वमन में या निचले हिस्से में है तो दस्त में खून आ सकता है।
आमाशय (stomach) में इकट्ठा पदार्थों का मुख से बाहर निकलने की प्रतिवर्ती क्रिया उल्टी या वमन मेडुला में स्थित केंद्र से नियंत्रित होती है। इससे पहले जो बेचैनी की अनुभूति होती है वही मितली (nausea) है।
आंत्र की अपसामान्य गति की बारंबारता और मल का अत्यधिक पतला हो जाना प्रवाहिका (Diarrhoea) कहलाता है। इसमें भोजन अवशोषण की क्रिया घट जाती है।
कब्ज में, मलाशय में मल रुक जाता है और आंत्र की गतिशीलता अनियमित हो जाती है।
एंजाइमों के स्राव में कमी, व्यग्रता, खाद्य विषाक्तता, अधिक मात्रा एवं मसालेदार भोजन करने से वह पूरी तरह नहीं पचता है और पेट भरा-भरा महसूस होता है तो इसे अपच या indigestion कहते हैं।
बड़ी आंत से जुड़ा एक छोटी ट्यूब सा अंग जिसे एपेंडिक्स कहते हैं इसके अंदर रुकावट के कारण दबाव और सूजन होती है जिसे एपेंडिसाइटिस कहते हैं।
इरिटेबल बावेल सिंड्रोम या अनियमित मलत्याग।
अचानक पेट में दर्द होना या खाने के बाद भीषण दर्द होना यह पैंक्रियाज में सूजन के कारण हो सकता है। यह सूजन पैंक्रियाटाइटिस कहलाती है।
उपरोक्त विवरण को स्पष्ट करते हुए संक्षेप में कुछ सम्बंधित केस के उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं जिन्होंने होम्योपैथी में रोगी का विश्वास पुख्ता किया।
केस 1 अल्सर, महिला ,उम्र 30 वर्ष,
द प्रतिष्ठा होम्योपैथी फैज़ाबाद-
इस महिला का 4 महीने पूर्व बच्चेदानी का आपरेशन हुआ था , किन्तु मेरे पास बेहद कमजोरी की अवस्था में आई, उसने बताया ,-" सर , साँस फूलती है, चलने की हिम्मत नही, बहुत कमजोरी है, पेट गैस से फूला हुआ लगता है, भारीपन ,जलन हर समय हल्का हल्का दर्द बना रहता है लेकिन कुछ खाते बढ़ जाता है, पीने पर कुछ आराम मिलता है। कभी कभी तो बहुत तेज दर्द होने लगता है दवाई खाने पर भी कोई आराम नहीं होता । उल्टी तक हो जाती है। कमजोरी से हालत खराब हो जाती है सीने पर भी भारीपन सा महसूस होने लगता है, बहुत घबराहट होती है, छोटे बच्चे है सोचती हूँ मुझे कुछ हो गया तो इनका क्या होगा।" जाँच के दौरान दर्द वाली जगह पर दबाने से उसे काफी पीड़ा हुई |
उसके पति भी साथ में थे, उनसे मिली जानकारी के अनुसार " साहब यै जौन मन कहत है खात पीयथी, हमसे भी जो बन पड़ता है पूरा करे का प्रयास करते हैं लेकिन इनके दवाई में ही तबाह हावय जात हैं, जे जौन बतावत है सब उपाय दवाई करते हैं। अम्मा बाबू के साथ नाय रहित कि जेस ये हैइन सब ठीक है लेकिन इनका पता नाय काहे लागत है कि ये ठीक नाय हैइन।"
उसका हीमोग्लोबिन 6.5 था।
इसलिए लक्षणों के आधार पर उसे आर्सेनिक की तीन खुराकें, लेसिथिन दो टैबलेट तीन बार देकर 7 दिन बाद बुलाया गया।
उत्सुकतावश उसने स्वयं ही खून की जाँच करवाई तो पैथोलॉजी रिपोर्ट पर उसे भी भरोसा नही हुआ, दोबारा जाँच करवाई और दोनों ही रिपोर्ट में उसका हीमोग्लोबिन 12.5 हो चूका था। साथ ही अब वह पहले से बहुत ठीक दिख रही थी पेट में दर्द भी यदा कदा होता था पर कम था।बाद में काली बाईक्रोम, की कुछ खुराकें भी दी गयीं।
इस केस में महिला के लक्षणों से स्पष्ट था कि उसे अल्सर की शिकायत हो सकती है, जो कि एन्डोस्कोपी से स्पष्ट हुयी भी, इस आधार पर उसकी सन्तुष्टि ही हो सकती थी, किन्तु होम्योपैथिक दृष्टि से आकलन करने पर महत्वपूर्ण था उसका भावनात्मक स्तर , जो उसके पति ने संकेत किया था जिससे स्पष्ट होता है कि उसके अंतर में स्वयं की खूबसूरती या उपेक्षा को लेकर एक हीन भाव सा झलकता था, यह मनःस्थिति भी अल्सर जैसे रोग लक्षणों का कारण हो सकती है।
विशेष - O ब्लड ग्रुप वालों को पेप्टिक, व A ब्लड ग्रुप वालों को डुओडिनल अल्सर की सम्भावना अधिक रहती है।
केस 2 एसिडिटी - मिस्टर वी दुबे, पुरुष 42 वर्ष, व्यवसाय-नेटवर्क मार्केटिंग,
आरोग्यनिलयम् भरतकुंड, फैज़ाबाद।वर्ष 2014
मरीज के शब्दों में - "पेट, सीने में जलन, कभी कभी मुंह में तीखापन, मतली, डकार आती है ,खाने पीने का न समय निश्चित है और न ज्यादा मन ही करता है, सुबह आधी कप चाय पीकर निकल जाता हूँ दिन में चाय से ही गुज़र जाता है या कहीं भुना चना, फल आदि ले लेता हूँ।
रात में कुछ खट्टापन लगता है, पेट भी साफ नही होता, कुछ बायीं तरफ भारी सा लगता है।"
कुछ महीनो पहले तक उसे एक चिकत्सक ने टी बी की दवा खिलानी शुरू की थी, किन्तु जब वह कमजोर महसूस करने लगा तो उसने स्वयं बन्द कर दी, जबकि उसे टी बी नही थी।
दुबे जी के अनुसार "परिवार की परिस्थितयों से गुस्सा भी आता है, लेकिन जिम्मेदारियों को छोड़ भी नही सकते जॉब ऐसा कि सब कुछ अनिश्चित सा है , पैसे का तनाव तो नही लेकिन दिमाग फ्री भी नहीं क्या करें।"
इन्हे नक्स की एक खुराक रात व सल्फर की एक खुराक सुबह लेकर 10 दिन के लिए iris ver दिया गया।
मरीज के अनुसार उसे पिछले कई महीनो में पहली बार इतना लाभ महसूस हुआ, । इसके बाद उसे कुछ दिनों तक प्लेसेबो दिया जाता रहा, और नियमित रूप से परामर्श के दौरान उसकी तमाम जिज्ञासाओं का समाधान किया जाता रहा, इन्ही वार्ताओं के निश्कर्ष में यह प्रतीत हुआ कि इन्हे लाइको की आवश्यकता है इसलिए लाइकोपोडियम की तीन खुराक भी दी गयी।
तबसे लेकर आज तक वह अपने पूरे परिवार के लिए केवल होम्योपैथी ही प्रयोग करते हैं।
केस 3- इरिटेबल बावेल सिंड्रोम
श्री ए के पाण्डेय, उम्र 54 वर्ष, व्यवसाय, मुनीम
आरोग्यनिलयम् भरतकुंड फैज़ाबाद।
बकौल मरीज -"कुछ भी खाते पीते हैं थोड़ी देर में लैट्रीन जाना पड़ता है औ पेट में मरोड़ भी होती है, गुड़ गुड़ करता है, लेकिन सफा नही होता, हमको लगता है जो खाते हैं हजम नही होता..सावधानी बहुत रखते हैं, सलाद जरूर लेते हैं, ...कुछ दिन पहले हमारा एक आपरेशन हुआ था तो कमर में इंजेक्शन लगा दिया डॉक्टर, हमको लगता है कही उसी की वजह से न हो, ।
बात चीत से और भी समझने का प्रयास किया गया सभी अन्य लक्षण सामान्य ही थे जो महत्वपूर्ण मनःस्थितियां दिखी उनके अनुसार व्यक्ति बहुत आशावादी, किन्तु हालात के सामने बौना महसूस करता है, जिसके लिए जो फर्ज है उतना निभा देने का आदर्श, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर, वेश भूषा नजरिया आदि उसमे सल्फर का व्यक्तित्व दर्शा रहे थे।
इसलिए उन्हें सल्फर की एक खुराक सुबह खाली पेट खाने को दी गयी और प्रतिदिन आकर दवा पीने व रिपोर्ट करने को कहा गया।
4 दिन बाद उन्होंने कुछ आराम की बात कही लेकिन साथ में यह भी कहा की सर पैसा चाहे जितना लगे, हमको फायदा चाहिए..और अंत में कहते सर कुछ सम्भल कर दवा दीजियेगा कही नुकसान न हो उन्हें हैड्रेस्त्रिस मदर टिंचर की 15 दिन के लिए दिया गया ।आराम की रिपोर्ट की लेकिन पेट न साफ होने की कुछ शिकायत बनी रही। अतः 7 दिन के लिये उन्हें एलुमिना दी गयी, कुछ आराम फिर उन्होंने लगभग दो माह बाद सम्पर्क किया तो उन्हें पुनः एलुमिना 3 दिन खाकर बताने को कहा गया, तीसरे ही दिन उन्होंने कहा साहब ये दवा तो सबसे कारगर है यही वाली एक महीना के लिए बनाय देव। फ़िलहाल 2 महीने से जरूरी परहेज के साथ प्लेसेबो पर है ।
केस 4 इसी तरह का एक केस एक छात्र का था जिसे भोजन के तुरन्त बाद मरोड़ के साथ दस्त जाना ही पड़ता था साथ में म्युकस आती थी और वह पसीना पसीना हो जाता था। एलोस के प्रयोग से 3 महीने में अब एक वर्ष से पूर्णतः स्वस्थ है।
रोग के कारण और होम्योपैथी
सामान्यतः विज्ञान की मान्यतानुसार दूषित जल, जीवाणु, विषाणु, या परजीवी का संक्रमण या विषाक्तता ही रोग का कारण मानी जाती है। इससे इंकार न किया जाए तो उपर्युक्त केस प्रचलित पद्धतिं से ठीक हो जाने चाहिए थे, किन्तु सभी उनसे निराश होकर ही होम्योपैथी की शरण में आये।
होम्योपैथी में उपचार के लिए रोग में "व्यक्ति "को खोजा जाता है कि उसके शरीर की जो भाषा लक्षणों में प्रकट हो रही है उसकी भूमिका आखिर लिख कौन रहा है, और यह बात व्यक्ति के दैनिक जीवन से निकालना ही होम्योपैथी की कला है, जिसमे जितनी निपुणता होगी उसे सफलता उतना अधिक मिलेगी।
उपचार में कई बार दैनिकचर्या नियमन या उचित परमर्श ही रोगी के लिए दवा से अधिक जरूरी और कारगर उपाय हो सकता है।
अध्ययनों में पाया गया है कि अत्यधिक तनाव, दबाव, क्रोध आदि दबकर व्यक्ति के पाचन को बिगाड़ देते हैं।
आप स्वयं भी आंकलन करें तो पाएंगे जिन व्यक्तियों को अस्वीकार किये जाने का डर, स्वयं से प्रेम या विश्वास का अभाव, होता है उनकी भूख सबसे पहले कम हो जाती है या नही लगती,।
जो किसी परिस्थिति को छोड़ कर जाना नहीं चाहता, उसकी पाचन क्रिया अनियमित होनी ही है,
इसी प्रकार जो क्रोध बर्दाश्त नही कर पाता उसमे जलन के लक्षण,
किसी चीज या व्यक्ति से दूर चले जाने का भाव से डायरिया ,कोई छिपा हुआ तथ्य concern रखता है तो गैस, यदि उसे लगता है वह जीवन की धारा के साथ नही चल सकता तो कब्ज़, किसी वर्तमान पूर्व या भविष्य की चिंता से अपच,अथवा कुपोषित महसूस करता है तो पेट सम्बन्धी विकार, या रोगिणी को लगता है देखने में बहुत खूबसूरत , आकर्षक या प्रभावी नहीं है तो अल्सर जैसे रोग लक्षणों की सम्भावनाएं बढ़ जाती हैं।
होम्योपैथी में कांस्टिट्यूशनल दवाओ के अलावा थेराप्यूटिक आधार पर हाईडेस्त्रिस, ईगलफालिया, कैस्केरा, कैरिका पपाया, मैरिका, चपारो, एलो, नक्स, सल्फ, चाइना, लाइको, कार्बो, सीपिया,काली बाई, रैफेनस, असफोटिडा,कैम्फर, अर्जेन्टम,आर्सेनिक आदि दवाये बहुतायत प्रयोग की जाती हैं।
बरतें सावधानी और अपनाएं ये घरेलू उपाय -
नारियल पानी का सेवन अधिक करे।
भोजन के बाद थोडे से गुड की डली मुहं में रखकर चूसें, सुबह उठकर २-३ गिलास पानी पीयें।
तुलसी के पत्ते, आंवला,पुदिने का रस,फ़लों खासकर केला,तरबूज,ककडी और पपीता , दूध और दूध से बने पदार्थ अम्लता नाशक माने गये हैं।
अचार,सिरका,तला हुआ भोजन,मिर्च-मसालेदार चीजें, चाय,काफ़ी , बीडी, सिगरेट का परहेज करें।
डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
रा सचिव-एच एम ए
द प्रतिष्ठा होम्योपैथी
कृष्ण विहार कालोनी राय बरेली रोड उसरु
फैज़ाबाद
मोबाइल न-08400003421