Saturday, 16 December 2017

सेमिनार के लाभ : कितने शैक्षणिक या व्यवसायिक

सेमिनार शब्द का उल्लेख आते ही मस्तिष्क में एक चित्र उभरता है कि विद्वानों का ऐसा सानिध्य का अवसर जहां विषय से जुड़ी नवीन जानकारियां और अनुसंधान पर ज्ञानवर्धन होता हो ..वस्तुतः यही वास्तविक उद्देश्य भी होना चाहिए। उपयोगिता की दृष्टि से यदि आमजन की सहभागिता हो सकती हो तो यह अपने उद्देश्यों के साथ सामाजिक जागरूकता का भी साधन हो सकते हैं। होम्योपैथी का विद्यार्थी होने के नाते मेरे विचारों के केंद्र में होम्योपैथी जगत में आयोजित होने वाले सेमिनारों का विश्लेषण स्वाभाविक ही हो जाता है।

मैं होम्योपैथी में भी सेमिनार को आवश्यक मानता हूँ यदि यह भी उपरोक्त चित्रित मापदण्ड रखें तो छात्र , चिकित्सक और समाज सभी के लिए निसन्देह उपयोगी होने चाहिए, इससे जो सबसे अधिक लाभ होगा वह जनसामान्य से होम्योपैथी के प्रति भ्रांतिया और दुष्प्रचार है उन्हें दूर करते हुए जनविश्वास को बढ़ावा और मांग बढ़ेगी, इससे चिकित्सकों का सम्मान, मांग, तो बढ़ेगा ही स्वस्थ समाज के निर्माण की सामाजिक व नैतिक भूमिका निभाकर राष्ट्र निर्माण में चिकित्सकों का योगदान बढ़ सकता है, किन्तु इसका जो प्रायोजित और व्यवसायिक स्वरूप दिखाई देता उसका समर्थन कदापि नही किया जा सकता।

वर्तमान समय मे सेमिनार के आयोजन के लिए एक तय मानक गढ़ दिया गया है जिनका दो पृथक वर्गों में विश्लेषण करते है। जिसके प्रथम पक्ष के अंतर्गत इसकी प्राथमिक आवश्यकता और उसकी पूर्ति के लिए संभावनावों पर, एक चर्चित  संगठन का नाम , आयोजन स्थल, तय किया जाता है फिर उसे राष्ट्रीय नाम देने के लिए एक से अधिक प्रदेशों के चिकित्सकों छात्रों के एक दल का कार्ड छपवाना होता है, जिसमे प्रदर्शित नामों की सहमति या आयोजन में कोई भूमिका हो यह जरूरी नहीं।फिर उसीमें कई तरह की समितियां घोषित हो जाती हैं, जबकि आयोजन के केंद्रबिंदु में दो चार लोग ही पर्याप्त होते हैं।अब इसके बाद कुछ विशिष्ठ वक्ता,मंच की शोभा के लिए अतिथि, सम्मानित किए जाने के लिए कुछ प्रतिष्ठित नाम, और उपकृत किये जाने लिए एक मण्डल, एक न्यूनतम अपेक्षित संख्या, और उसकी उपलब्धि के लिए अधिकतम प्रचार ,कम से कम 2 या 3 माह की समयावधि।

इसे यूँ समझ लें कि एक पारिवारिक आयोजन को सामाजिक या शैक्षणिक लिबास पहना दिया जाए।अब इस आयोजन में श्रेष्ठतम प्रदर्शन के लिए न्यूनतम सम्भावित व्यय और अधिकतम सहभागिता सुनिश्चित करनी होती है ,इसलिए जो अंतर स्पष्ट होता है इतना कि यहाँ सम्मिलित होने का शुल्क पहले वसूल लिया जाता है जिसमे हम पर सम्भव समस्त व्यय जुड़े होते हैं, अर्थात हम उस आयोजन का हिस्सा है जिसमे कुछ आयोजन समिति के लिए कुछ अधिक शुल्क प्रदर्शित किया गया होता है। यदि यह इतने ही में निपट जाए तो कोई प्रश्न नहीं किया जाना चाहिए किन्तु हमसे शुल्क वसूलते समय एक लाभ और बताया जाता है और वह है इस निवेश के बदले मिलने वाला इतने ही मूल्य या इससे अधिक राशि का रिटर्न गिफ्ट...और यही वह पक्ष है जिसपर अधिक चर्चा नहीं की जाती।

कुशल व्यवसायी की तरह हमे इस निवेश के बदले , बड़े नामचीन लोंगो को सुनने उनसे सीखने , पर्यटन , रिटर्न गिफ्ट सबको जोड़कर उनका लाभ गिना दिया जाता है, और हम इसीमे सन्तोष कर लेते है ।
मुख्यबिन्दु की तरफ बढ़ने से पूर्व इसके दूसरे पक्ष पर भी दृष्टि डालनी चाहिए जहां इतने बड़े आयोजन का आकर्षण नीलाम किया जाता है, अर्थात भिन्न क्षेत्रों से आये  एक साथ इतने चिकित्सकों से कम्पनियों को सम्पर्क का अवसर सुलभ कराना और यह भी निशुल्क नहीं होता, सेमिनार की पत्रिका, पत्रक,सभागार के प्रमुख स्थल पर प्रचार के प्रदर्शन, व्यवस्थाओ में सहयोग, जलपान, भोजन, सभीकुछ प्रायोजित, इतना ही नहीं यदि संभव हुआ तो उपलब्ध योजनाओं से सरकारी अनुदान भी प्राप्त होते होंगे, और माननीयों की आगवानी, स्वागत, सम्मान सब प्रायोजित होता जाता है, और इसकी पुष्टि के लिए किसी का भी ब्रॉशर लें और ध्यान से पढ़ें।

अब इसके बाद थोड़ा सा श्रम और करें कि उसकी  गणना न्यूनतम में ही करें अनुमानित संख्या के अनुरूप अब अपेक्षित आय और इतनी ही व्यवस्था के लिए आवश्यक व्यय की राशि की तुलना करें।

सेमिनार में उपस्थित होने वाले चिकित्सकों के अतिरिक्त जुटने वाली भीड़ को देखें जिनमे अधिकतम छात्र सम्मिलित हैं, उनके कोर्स और उस विषय की तुलना करें क्या प्रथम द्वितीय या तृतीय वर्ष के छात्र प्रस्तुत किये गए विषयो के सापेक्ष व्यवहृत है।
अब जिस मूलबिदु पर हमें विचार करना चाहिए वह ये कि भोजन, जलपान, हाल के अंदर बाहर प्रचार, पत्रिका आदि सब प्रयोजित या विज्ञापित, तो
डेलिगेशन फीस की वसूली क्यों ?
मान लिया डेलिगेशन फीस भी जरूरी तो छात्रों से यह शुल्क क्यों..?

इस प्रश्न के पीछे का तर्क यह कि जब छात्र जीवन  में सीनियर अपने जूनियर से शुल्क नही लेने की संस्कृति अपनाते हैं...तो यहाँ वरिष्ठ होने के साथ कमाई कर रहे चिकित्सक अपने जूनियर या छात्रों का व्यय वहन क्यों नही कर सकते ?

अपेक्षित या उपस्थित संख्या, के अनुरूप आयोजन के व्यय का आकलन और उपरोक्त साधनों से होने वाली आय में इतना बड़ा अंतर क्यों, और इस राशि से होम्योपैथी का विकास कैसे किया जाता होगा.... सम्भवतः कोई होम्योपैथिक अस्पताल तो संचालित नही किया जाता होगा जहां एक भी चिकित्सक को नियुक्ति दी जा रही हो, या किसी गरीब छात्र की किसी तरह सहायता की जाती हो।

मौसम का लुत्फ उठाने की आज़ादी सभी को है , किन्तु ऐसी ही कोई उत्साहजनक एकता की भीड़ होम्योपैथ के हितों के लिए कटिबद्धता प्रदर्शित करती नही दिखती जितनी इन सेमिनारों में प्रतिबद्ध नजर आती है। इनकी स्वीकार्यता ही यह बताती है कि ऐसे ही प्रयोजनों को समर्थन खूब मिलते है भले ही हम उसे उपयोगी मानते हों या नहीं। वहां हम धन देकर उसका हिस्सा तो बनते हैं किंतु अपने हित का सवाल तक उठाने की हिम्मत नही कर सकते। प्रश्न वहां पूछते हैं जहां कोई आपसे धन नही समय और सहयोग मांगता हो... चिंतन का विषय यही है कि आपकी प्राथमिकता क्या है ...?

सेमिनार होम्योपैथी के लिए उद्देश्यपूर्ण तब होंगे जब वे छात्रों के लिए उपयोगी हों, उनके अनुरूप हों, उनकी प्रतिभागिता के प्रोत्साहन से युक्त हों, जनजागरूकता हेतु आमजन की उपस्थिति में हों, भ्रांतियों को जवाब देने वाले हों,जनविश्वास को स्थापित करने वाले हों, चिकित्सकों को नवीन जानकारियां उपलब्द्ध कराने वाले हों, तार्किक सत्य तथ्य पर आधारित हों।इनका आयोजन भिन्न महाविद्यालयों में भी न्यूनतम लागत या उपलब्द्ध संसाधनों में किया जा सकता है।

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
स्वास्थ्य प्रमुख-सेवा भारती अयोध्या महानगर
-होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ

1 comment:

  1. आपने बिल्कुल सही लिखा है। इसका कोई उपाय नही है। आगे बढ़ने की चाह स्टूडेंट्स को सेमिनारों में खींच कर ले जाती है। लेकिन confusion के अलावा कुछ विशेष प्राप्त नही होता ।

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