Monday, 18 December 2017

त्यागें आदतों की आधीनता

सभ्यता का विकास हमारे सामाजिक जीवन में बदलते हुए तरीकों के समानांतर चलता है। हमारी वर्तमान जीवन पद्धति का एक आधुनिक पक्ष आरामपसंद और तात्कालिक लाभ प्राप्त करने का दृष्टिकोण अपनाता सा दिखता है, अतः ऐसी सभी वृत्तियों प्रवृत्तियों की तरफ हमारा तीव्र आकर्षण होता है, जो तत्काल आनंददायी हों किन्तु  इसके परिणाम के बारे में सोचने के लिए हमारे पास समय नहीं होता। इसकी तुलना आप नशे की आदत से कर सकते हैं जहां तत्काल संतुष्टि तो है किंतु कोई विचार नही। आदतें अक्सर हमारे जीवन में शांति और सुख की क्षणिक अनुभूति से सन्तुष्टि और  स्वतंत्रता का बोध तो कराती हैं जबकि ज़िंदगी व्यसन के साथ धीमी गति से आगे बढ़ने लगती है। दूसरे शब्दों में कहें तो आदते हमें उस वस्तु के आधीन कर रही होती हैं जिनमे हम खुशी तलाश रहे होते हैं। यद्यपि खुशी की चाहत सहज मानव व्यवहार है किन्तु इसे प्राप्त करने का मार्ग सहज नहीं यह संघर्ष से होकर गुजरता है जहां कुछ पीड़ा भी हो सकती है किन्तु सन्तुष्टि का भाव स्थायी होता है। जबकि क्षणिक सन्तुष्टि की अधिकतम प्राप्ति के लिए आदतें सदैव  अस्थिर आंतरिक मांग को पूरा करने के लिए ऐसा मानसिक संघर्ष पैदा करती है कि व्यक्ति न्यूनतम स्तर तक गिर जाता है। यह कैसा जीवन है ? जीवन तो दोनों सीमाओं के बीच एक संतुलन है,  अक्सर समग्रता में समझ के अभाव में हम एकल कारक पर निर्णय लेते हैं। राहत तत्काल एक पेलिएटिव मोड के रूप में आती है लेकिन बाद में बढ़ जाती है। इस तरह के आकर्षण का निरंतर तरीका हमें नशे की ओर ले जाता है। जो कि पहले उदाहरण पर राहत देता है, लेकिन बाद में अधिक समस्याएं बढ़ जाती है।
इसलिए चिंतन की आवश्यकता है जिससे स्वस्थ जीवन पद्धति को अपनाया जा सके और स्वस्थ मानस के समाज का निर्माण हो सके।

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
होम्योपैथी चिकित्सक
स्वास्थ्य सेवा प्रमुख-सेवा भारती अयोध्या महानगर

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