चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

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Friday, 29 July 2016

परिवार से फैमिली और समाज से सोसाइटी में सिमटते रिश्ते

पग भर की दूरियों में पीढ़ियों के फासले

आधुनिकता , विज्ञान और विकास के मापदण्डों पर हम दुनिया के बाकी देशों से तुलना कर आकड़ों के खेल में वजयी सन्तुष्टि से सुखी समृद्ध जीवन की कल्पना भले कर रहे हों किन्तु भावनाओं में रत रहने वाले भारतीय मन की भावनाओं में अब अस्थिरता और व्याकुलता अधिक दिखने लगी है। यूँ लगता है ख्वाहिशें मंगल ग्रह पर पहुंचने के बाद जमीन पर नहीँ आना चाहतीं। प्रगति के नाम पर गिनाने की अंतहीन सूची है जिसके बाद जीवन में आवशयक्ता के सुख की कमी होने की कल्पना नही की जानी चाहिए ....तो फिर क्यों आज हमारा मन अशांत है, चित्त व्याकुल है, भावनाएं आहत हैं, स्वास्थ्य के लिए भोजन से अधिक दवाओं पर निर्भरता है, हर तरफ असुरक्षा , चिंता, अवसाद, बढ़ रहा है ? जिसे हम त्यागते जा रहे हैं उसी इतिहास को फिर क्यों गौरवशाली मानकर कभी कभी गर्व कर लेते है किन्तु चल पड़ते है अपने अनिश्चित भविष्य की ओर.... वास्तविकता में देखा जाये तो
परिवार कहने के लिए एक छोटा सा शब्द किन्तु जीने के लिए पूरा संसार समेटे हुए भारतीय जीवन संस्कृति की एक ऐसी समृद्ध विरासत है जो बीते कुछ वर्षों में अपने अस्तित्व के संकट से जूझ रही है। एक ऐसा शब्द जिसका विस्तार "वसुधैव कुटुम्बकं " तक हुआ करता था , जहां एक व्यक्ति का जुड़ाव दुसरे से माता, पिता, चाचा, चाची, ताया , ताई, बुआ, दादी, दादा,भाई , बहन के बिना अधूरा इसके साथ छोटे बड़े मिलकर संयुक्त परिवार बन जाते थे और सबसे बड़ा या बुजुर्ग सदस्य उस परिवार का मुखिया कहलाता था, सभी उसकी इज्जत करते, आचरण की मर्यादा और संस्कारों का ऐसा आच्छादन हुआ करता था सब एक दूसरे के बिना अधूरे से लगते थे , प्रेम, समर्पण, निष्ठा, कर्तव्य, शिष्ठता, श्रेष्ठतम का ज्येष्ठतम आदर्श परिवार की शांति, सम्पन्नता, सम्पन्नता, समृद्धि, प्रतिष्ठा का गौरव प्रतीक हुआ करता था। फिर इससे जुड़े निकटम से नाते रिश्ते फूफा, नाना, नानी, मामा, मामी, मौसा, मौसी, देवर,देवरानी, भाभी, जेठ, जिठानी, ननद, ननदोई आदि रिश्तों की ऐसी अदृश्य प्रेमाश्रित और इतनी मजबूत डोर से व्यक्ति इनसे जुड़ा हुआ था कि उम्र के कई पड़ावों में उसपर स्वयं इन्हे निभाने की जिम्मेदारी हुआ करती थी , । और सम्भवतः इसी लिए आर्थिक संकट होते हुए भी हर तरफ शांति, प्रेम, मिलाप,विश्वास, भाईचारा, न्याय, सुरक्षा का अहसास था। उक्त आदर्शों पर स्थापित संयुक्त परिवार का यही गौरव समय के साथ टूटता गया सम्भवतः हमने अपने आदर्शों की एक एक कर महत्ता आवश्यक्ता और अर्थ के सापेक्ष परखनी शुरू कर दी और धीरे धीरे उन्हें  अर्थहीन मानकर त्यागना शुरू कर दिया। इसका प्रारम्भ तो बता पाना मुश्किल है किन्तु तेजी जरूर पराधीनता के वर्षों में आई होगी जब भारत के लोगों को पश्चिमी लोगों के आकर्षण ने प्रभावित किया होगा।

संयुक्त परिवार की अवधारणा ने एक समय में जो प्रतिष्ठा प्राप्त की उसके उदाहरण लोग आज भी देते हैं और समाज में आज भी उन परिवारों को सम्मान प्राप्त होता है जो एकता प्रेम सौहार्द का सन्देश देते हुए एक हैं। आधुनिक और भौतिकवादी दृष्टि में संयुक्त परिवार की गिनाई जा सकने वाली जितनी जटिलताएं है उससे कहीं अधिक अनगिनत फायदे भी हैं।

अर्थ की महत्वाकांक्षा में हो रहा अनर्थ

तर्क दिया जाता है कि किसी जमाने में जब संसाधन इतने सुलभ न थे आजीविका का साधन खेती हुआ करता था । शिक्षा का अभाव और आर्थिक विपन्नता ने पांव पसार रखे थे परिवार में कोई एक कमाता था सब खाते थे । मगर सत्य केवल इतना ही न था लोगों में सहयोगी भाव के साथ कर्तव्यनिष्ठा भी इतनी थी कि गांव में किसी की भी बहन बेटी महिला को कुदृष्टि का शिकार नही होना पड़ता था, किसी भूले भटके को बेसहारा नही होना पड़ता था , किसी बीमार को इलाज की कमी हो सकती थी मगर तीमारदार कम न थे। आमदनी कम थी लेकिन बाहर जाकर कमाने वाला गांव आता तो घर परिवार और गांव, सबके लिए कुछ न कुछ लेकर आता था ,सब उससे मिलने और विदा करने जाते थे। साधन न थे ,सड़कें न थी लेकिन रिश्ते निभाने आते थे ।  अनुभव की श्रेष्ठता का सम्मान हुआ करता था , बुजुर्गों की सेवा और उनका सम्मान हुआ करता था , कोई आत्मग्लानि या अकेलेपन का शिकार होकर अवसाद में नहीँ जाता था। लेकिन न जाने देश में ही कैसे परदेस ने करवट ली कि व्यक्ति धीरे धीरे स्वार्थी होने लगा ....अब शायद कच्ची दीवारें कुछ मोटी होने लगीं और कमाने वाले के मन में संग्रह ने संकीर्णता लानी शुरू कर दी...जिसका घर चमका उसने गांव में ही दूसरों को छोटा समझना शुरू कर दिया फिर घर में भी भाई भाई ने हिस्सेदारी कर ली एक चहारदीवारी में एक से अधिक चूल्हे जलने लगे .... मोटी दीवारों से आई दूरी जब पक्की ईंट की दीवार से खड़ी हुयी तो भाई भाई का परिवार हो गया और माँ बाप अपनी ही विरासत में आश्रय के सहारे। फिर वक्त बहुत तेज गति से चला चिट्ठी की जगह फोन और फोन के बाद मोबाइल के जमाने में प्रवेश तक इंसान पक्के घर से पक्के मकान में आ चुका है अब यहां उसका परिवार नहीं उसकी फैमिली रहती है जिसमें उसकी पत्नी और बच्चे हैं बस। घर का बंटवारा दीवारों से नहीँ पीढ़ियों से होने लगा है ....जिंदगी ने वक्त के साथ जो रफ़्तार शुरू की थी वह उससे आगे निकल जाने को बेताब है... इसलिए अपने लिए ज्यादा से ज्यादा बनाने में किसी का हित जाता है तो जाये...। आधुनिक शिक्षा ने संस्कार के जो बीज रोप उनसे तैयार फसल को पुराने विचार दकियानूसी लगने लगे, आधुनिकता के खुमार ने स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति को इतना स्वच्छन्द बना दिया कि उसे मर्यादाएं बन्धन लगने लगीं जिन्हें तोडना ही उनकी योग्यता की कसौटी बन गया।

आज के सभ्य समाज में शहरीकरण के साथ शिक्षित और अमीर बन रहे लोगों में खुशियाँ बाँटने के तौर तरीके बदल गए , क्योंकि पैसा तो पर्याप्त होता गया किन्तु समय कम होता गया..कपड़ों की क्रीज और आँखों पर रंगीन चश्में के साथ एक ऐसी अकड़न आती गयी जो माँ बाप से भी पैर छूने में शर्मा सकती है। पढ़े लिखे स्वावलम्बी महिलाएं पुरुष बुजुर्गों की सेवा या उनके सम्मान को नौकर की श्रेणी का बताते समय शायद...यह भूल जाते हैं कि कभी उनके माँ बाप ने ही उन्हें पाल पोस कर सेवा की थी लेकिन ऐसा इसलिए है क्योंकि कामकाजी  आधुनिक माता पिता  बच्चे के पालन पोषण के लिए "आया" फिर "प्ले स्कूल" फिर "बोर्डिंग स्कूल" और फिर हॉस्टल में सुविधा जुटाकर अपना कर्तव्य पूरा समझ लेते है । यहां कही बच्चे को परिवार के रिश्तों ने नहीँ पैसों के वजन ने पाला...और शायद इसीलिए अब सभी रिश्ते अर्थहीन होते जा रहे है...अर्थ से जुड़ते जा रहे है। व्यक्ति "मेम्बर" परिवार फैमिली गांव या समाज सोसाइटी और दुनिया बाजार बनती जा रही है...जहां कोख से लेकर मातम तक सब बिकने को तैयार हो रहा है।
मगर ... भारतीय संस्कृति की जड़े इतनी भी कमजोर नहीँ कि ये सब बदल ही जायेगा... भारत आज भी गाँवो में वैसे ही बसता है जैसे युगों  पहले था...विविधताओं से भरे इस देश में सब तरह के उदाहरण मिलेंगे। देर सबेर जब ये चकाचौंध प्रकृति की लक्ष्मण रेखा पर रुकेगी तो सत्य का बोध कर पायेगी । किसी ने सच ही कहा है परिवार से अलग हुए व्यक्ति की दशा किसी बृक्ष से टूटे हुए पत्ते की तरह ही होती है ।
ये परिवारों के टूटने के ही परिणाम हैं कि एक ही अपर्टमेंट में रह रहे लोग एक दुसरे से अपरिचित से रहते हैं कोई किसी के सुख दुःख का साथी नहीँ .... पैसे दुनिया की हर सुख सुविधा तो जुटा सकते हैं लेकिन जीवन में सुख शांति प्रेम संतोष आनन्द विश्वास कभी नही ला सकते। ये सब तो माता पिता और बुजुर्गों की छाँव में ही मिल सकता है।
मैं जानता हूँ  खुद को विद्वान साबित करने के लिए लोग इसमे तारतम्यता की कमी विचारों का बिखराव एक सीमित दायरे की सोंच कुछ भी कह सकते हैं , किन्तु बिना पढ़े या पढ़कर छोड़ देने की बजाय यदि भाव को ग्रहण किया जाये तो शायद सही सन्देश लिया जा सकता है।

डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
परामर्श होम्योपैथिक फिजिशियन
सह सम्पादक- होम्यो मिरेकल
रा सचिव -HMA
चिकित्सक- नाका हनुमान गढ़ी फैज़ाबा

Thursday, 28 July 2016

अकारण वायरल हो रहे बुखार का संभव है होम्योपैथी उपचार

तापमान में अचानक हो रहे परिवर्तन और उमस भरे नम मौसम में इन दिनों अचानक तेज बुखार से पीड़ित होने वालों की संख्या बढ़ रही है जिसकी चपेट में बच्चे , बुजुर्ग महिलाएं , युवा सभी हैं। कई बार चिकित्सक इसे "पैरेक्सिआ ड्यू टू अननोन ओरिजिन" बताते हैं या लक्षणों के आधार पर वायरल फीवर आदि की भी पहचान होती है।
जुकाम,बुखार या दस्त यह सभी छह माह अथवा वर्ष में एक दो बार हों तो ही बेहतर हैं क्योंकि यह शरीर की सुरक्षा प्रणाली को विषाक्तता से मुक्त कर मजबूत करने का प्राकृतिक तरीका भी हैं। बुखार की तीव्रता ही शरीर में होने वाले रोग की गम्भीरता का सूचक हो सकती है। जिस प्रकार का मौसम इन दिनों है , इसमे होने वाले बुखार कई प्रकार से हो सकते हैं इसलिए बुखार को नज़रअंदाज करना बिलकुल भी उचित नहीँ। सही कारणों की स्पष्ट पहचान न हो पाने पर ही बुखार को "पैरेक्सिआ ड्यू टू अननोन ओरिजिन" कहा जाता है। वैसे इन दिनों बरसात के कारण जगह जगह एकत्र गन्दगी पानी आदि के कारण मच्छर पनपने लगे हैं, धान के खेती वाले इलाकों में मच्छरो के काटने से बच्चों में जे ई या मस्तिष्क ज्वर की सम्भावनाएं प्रबल हो सकती हैं। इसमे तेज बुखार, सिरदर्द, ऐंठन, गर्दन में अकड़न जैसे प्रमुख लक्षण मिलते हैं। इसी प्रकार मच्छरों के काटने से अन्य बुखार जैसे चिकनगुनिया, डेंगू, मलेरिया या एगु फीवर भी पांव पसार सकते हैं।गन्दे या दूषित पानी से टायफायड अथवा आंत्रिक ज्वर या आंतों का बुखार होना भी सामान्य बात है इन दिनों जिसमें ठीक से उपचारित न हुए पुराने टायफायड या नए मामलों में उतरने चढ़ने वाला बुखार पेट में दर्द, कब्ज़ या दस्त, मितली या उलटी आदि लक्षण मिल सकते है।
इन सबके साथ इनदिनों मौसमी ताप व वातावरण में परिवर्तनों के कारण अचानक हो रहे छींक, सर्दी, जुकाम के बाद तेज सिरदर्द, जोड़ों , मांसपेशियों, पूरे बदन में टूटने या कुचले जाने सा होने वाला दर्द के साथ तेज रहने वाला बुखार भी लोगों की पीड़ा का कारण बन रहा है।ऐसे लक्षणों के साथ यह वायरल फीवर या विषाणुओं से होने वाला बुखार हो सकता है, जो एक एक कर परिवार के अन्य सदस्यों को प्रभावित कर सकता है क्योंक संक्रमण छींक की बूंदों से भी फैलता है।
बुखार के साथ कभी कभी मितली उल्टी और बाद में मुंह के आस पास छाले भी निकल सकते हैं जिन्हें फीवर ब्लिस्टर कहते है।

सावधानी

एसी कूलर के बाद तुरन्त धुप में न निकलें और न गर्मी के बाद कोल्ड ड्रिंक या फ्रिज का ठण्डा पानी पियें। साफ या उबालकर ठंडा किया हुआ पानी पियें। बरसाती हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन न करें।मच्छरदानी में सोएं, व घर में या आसपास गन्दा पानी एकत्र न होने दें , समय समय पर उसमे कीटनाशक अथवा मिटटी के तेल का छिड़काव करें । बीमारी के लक्षण दिखने पर मेडिकल स्टोर से दवा लेने की बजाय चिकित्सक से परामर्श व जाँच करवा कर ही दवाओं का सेवन करें।

*होम्योपैथिक उपचार*
जहां विषाणुजनित रोगों में अन्य पद्धतियोँ में न्यूनतम सम्भावनाएं हैं वहीँ प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों और होम्योपैथी में इसके रामबाण इलाज हैं। होम्योपैथी की दवाएं उचित निर्देशन एवं समय पर लेने से डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, जे ई, वायरल फीवर, स्वाइन फ्लू जैसे लक्षणों वाले रोगों से बचाव व उपचार दोनों में सहायक है। युपेटोरियं, बेल, अर्स, जेल्स, इंफ्लुइंजिनम, जे ई , रस टॅक्स, नेट्रम आदि दवाईयों का लक्षणों के अनुसार प्रयोग बेहद कारगर है।

डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
परामर्श होम्योपैथिक फिजिशियन
नाका हनुमान गढ़ी फैज़ाबाद
सह संपादक - होम्यो मिरेकल
8400003421

Tuesday, 26 July 2016

व्यंग -चौपारी की अनकही अनसुनी बतकही


सरकार माने 'सर' के बल जनता 'कार' चले नेता
पिछली बैठक में कुछ सवाल रह गए थे दिलो दिमाग में तो आज फिर बाबा के अहाते की चौपारी में जाने का मन हुआ, बुजुर्गों का सानिध्य मिलना बड़ा सौभाग्य होता है...खैर आज  मैंने पहले ही तपते के लिए लकड़ियाँ बैठने के लिए पुआल का बीड़ा लगा दिया था ।कभी हमारे खेतों मे काम करने वाले गांव के दो सबसे पुराने बुजर्ग "पहलवान" और "ठेकेदार" हमारे आने की खबर सुनते ही चले आये उन्हें कुछ दवा आदि चाहिए थी। बोले "भैया पायलागि, मुंशी भैया नाय ना का.. आप आय गयो तो तनी हमहू का दर दवाई दय के जायो बुढ़ापा आय गा है अब पहले  जेतना जोर नाय रहा। "
इधर हाल चाल हो रहा था उधर बाबा भी आ गए नल पर लोटा हाथ पैर धोकर संध्या पूजन कर रहे थे । ठेकेदार बोले "परधनियो गड़बडाय गय तनिकै भय चूक से कुछ फर्जियो काम होय गा वहमा"। पहलवान से न रहा गया "अरे जौ गाँवे वाले बिक गए औ एक दुई प्रत्याशी भी तो का करबो भैया"। हमने बात कुछ बदलने के लहजे से पूछा सरकार तो बड़े दावे करती है कि जनता के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं चल रही हैं सड़के बन रही हैं गाँव गाँव बिजली, पानी, पेंशन, रोजगार, भत्ता, एम्बुलेन्स आदि । ठेकेदार कुछ तीखे लहजे में बोले "हाँ ठीक कह्यो भैया....  तेरह रुपया में हम सब अमीर होय के सब टैक्स औ पूरा हर्जा खर्चा भरी... लेकिन चुनाव जीत के मंत्री विधायक होय जाओ तौ ...आना, जाना ,खाना सब फ्री ,तनखाह ,रौब ,वी आई पी व्यवस्था सब अलग...."। बाबा सन्ध्या पूजन से उठकर आते हुए पूछ रहे थे " मास्टर नाय आये अबही का हो ठेकेदार "? और उधर से मास्टर जी और सद्दीक चाचा ठहाके लेते हुए कहते हुए चले आ रहे थे "चली गय परधानी ..अब का करिहौ ..रोटी दाल तोहरे मनहि न भावै ...उड़ायो बिरयानी ....अब का करिहौ...."!
पायलागी दादा..." ।बाबा आशीर्वाद देते हुए बोले जियो खुश रहौ मास्टर... सद्दीक का हो दुयनो जने साथै । सद्दीक चाचा ने कहा मुंशी दादा सुन्यो संसद नाय चली कब्भौ और वेतन दुय गुना होय वाला बा ... हमे तो लागत है सब्सिडी छोड़ाय के और खाता खोलाय के इहै किहिन ... लरिकन का देय कि ताईं नौकरी और तनख़ाह नाय ना लेकिन एकरे लिए ...।"
मास्टर साहब ने चुटकी लेते हुए कहा "मियां तु का जानो इ सरकार माने ... "सरकार" माने "सर" के बल चले जनता और "कार" से चले नेता...हा हा हा...सद्दीक चाचा ने भी सुर में सुर मिलाया "...हा हा हा तब तो इ सरकार नही सरकाट होय का चाही...हा हा हा...।
मुंशी भैया आप बताओ बेचारा गरीब अपनी ही जमीन पर घर गिर जाये तो नही बनवा सकता, अभी अख़बार में देखा एक विधवा अपने मकान के लिए अनुमति पाने के बाद भी नही बनवा पा रही अपना मकान ...मेरी तरफ मुखातिब मास्टर जी कह रहे थे बेटा..तुम्हारे परिचय में कोई नेता, अधिकारी हो तो बात करो। हमने जवाब दिया बाबा हमने कोशिश की ये लोग आश्वासन तो देते हैं लेकिन सबकी इच्छाशक्ति दौलत के आधीन है ... ऐसा लगता है। मुंशी बाबा अब बोले मास्टर अब उ दिन भी लद गए लागतहै जब गरीब की आह से लोग डेरात रहे भगवानौ अब गरीबन के मदद नाय करते। कुछ देर चुप फिर कठोर होते हुए बोलने लगे "औ कैसे करें जौन कहियो गरीब रहा उ अगर नेता बनि गा तो दुइये चार साल मा एस अमीर होय जात है जैसे लक्ष्मी उहि के घरे बरसत होंय, इ पता नाय कौन किरपा पाय जात हैं और हमरे सबकै लरिकै पढ़ै लिखै तब्बो जोरि गांठ के जौन इकट्ठा भा होय वका दह्यो पय नौकरी कै आसा नाय ... शिक्षा का व्यापार बनाय दिहिन डिग्री लइके न वै खेती किसानी कय पावैं न नौकरी.... ,ठेकेदार बीच में बोल पड़े मुंशी भैया सुनेन अब  तौ कुछ  नौकरी मा परीक्षा न लिखी जाये औ न कौनो कौनो में इंटरवू होये ....आग से शकरकन्द निकाल कर नमक मिर्च की चटनी में मिलाकर सबको देकर खुद खाते हुए मास्टर ने फिर चुटकी ली अरे तभी तो आपन आपन जुगाड़ फिट होये इसको कहते हैं लकी ड्रा...हा हा हा...। मुंशी बाबा ने मास्टर साहब की हंसी पर प्रहार सा करते हुए बोलना फिर शुरू किया "मास्टर हम लोग बड़ी बड़ी बात तो नाय समझित लेकिन इतना जरूर देखात है कि सब सुविधा पावै के बाद भी जनता की सेवा करे के लिए जे चुना गय वकै तनखाह भत्ता पेंशन सब दोय गुना चाही और जे पूरा खर्चा देय वहिके ऊपर और कर्जा धय देव ... वके लरिकै दर दर भटकें फारम भरें इंतज़ार करें और बड़े लोगन के सब राजपाट सौप दीन जात है। बुन्देलखण्ड के गावन में गरीबै घास के रोटी खाय और सरकारें दूसर देस का बसाय के वाहवाही लूटें.......अरे पहलवान... ये सब जेस जनता का जनार्दन कहत हैं न वैसे ही परसाद में छप्पन भोग लगाय के अपनै मा बांट लेत हैं।" मास्टर साहब सी सी कर रहे थे उन्हें शायद तीखी मिर्ची लग गयी थी। मैं सोच रहा था आज भी बाबा की बात में क्या जोडूं क्या कहूँ उन्होंने तो बहुत कुछ कह दिया मैं क्या समझूँ ....जो उनकी अनकही थी उसे या जो मेरे लिए अनसुनी थी उसे कहूँ....।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
सह संपादक : होम्यो मिरेकल

Monday, 18 July 2016

वर्षा ऋतु : मानव और प्रकृति का संक्रमण काल

भारतीय परम्पराओं की वैज्ञानिक दृष्टि
अब तक जलाने वाली तेज धूप गर्मी फिर बरसात से मौसम में नमी किन्तु साथ ही होने वाली उमस और पसीने की जलन , कई तरह के संक्रामक रोगों के खतरे का भी संकेत देते हैं। इस मौसम में जरा सी लापरवाही आपके स्वास्थ्य के लिए भारी पड़ सकती है। पृथ्वी पर भारत ही ऐसी धन्य भूमि है जहां प्रकृति की छः ऋतुओं का आनन्द लिया जा सकता है ।यह मौसम धान्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सनातनी धर्म की मान्यतानुसार चातुर्मास का प्रारम्भ होने के साथ जीवन शैली के जो नियम बताये गए हैं वह वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद उपयोगी हैं।
सावन की रिमझिम फुहारों के साथ जगह जगह जल भराव एवं उचित प्रबन्धन न होने पर गन्दगी एकत्र होने लगती है और उसके कारण जिस तरह तमाम उपयोगी अनुपयोगी वनस्पतियां पनपने लगती हैं ठीक वैसे ही शरीर में रोगों के पनपने की सम्भावना बढ़ जाती है। अतः इस काल को शरीर और प्रकृति दोनों का संक्रमण काल कह सकते हैं।
मौसम की नमी, उमस और चिपचिपा पसीना यह तीनो कई प्रकार के जीवाणुओं ,फंगस,आदि के पनपने और रोग पैदा कर सकने के लिए सबसे मुफ़ीद वातावरण तैयार कर देते हैं। इस ऋतु में साँस, पाचन,त्वचा, एवं जोड़ो के रोगों में खासी बृद्धि हो सकती है।
पाचन रोग- पल पल बदलते वातावरण के ताप के अनुरूप शरीर को ढलने में समय लगता है इसलिए व्यक्ति की जठराग्नि अपेक्षाकृत मन्द पड़ जाने से अपच, गैस, कब्ज़, दस्त, अतिसार, पेचिश, फ़ूड पॉयजनिंग आदि रोग हो सकते हैं। बासी रखा हुआ या संक्रमित भोजन करने के 2-4घण्टे के भीतर ही व्यक्ति को पेट में मरोड़ व उल्टियाँ हो सकती हैं।
श्वांस रोग-घरों में छतों पर या आस पास एकत्र पानी के कारण होने वाली सीलन साँस के रोगियों की तकलीफ बढ़ा सकती है, जिसमें दमा के रोगियों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। इस समय होने वाले सर्दी, जुकाम, खांसी में जकड़न बढ़ने की सम्भावना  बढ़ जाती है।
त्वचा रोग-त्वचा शरीर का सुरक्षा कवच है , साफ स्वच्छ स्वस्थ त्वचा हमारे उत्तम स्वास्थ्य और सौंदर्य का भी पैमाना है किन्तु बरसात में गन्दे पानी के कारण होने वाले संक्रमण से दाने, फुंसी,फोड़े, त्वचा मोड़ पर होने वाली गीली या सूखी दाद, खाज, खुजली, पीबदार मुंहासे, जलन वाले छाले, घमौरियां, आदि हो सकती हैं। इस मौसम में कुछ बच्चों में नकसीर फूटने की भी शिकायत मिलती है।
बरसात में जहरीले जीव जन्तुओ के डंक या दंश का खतरा भी बना रहता है। कई बार रक्त दूषित होने से कई एलर्जिक लक्षण मिलते है जिनमे पहले हल्की खुजली के बाद त्वचा लाल हो जाती है फिर उभर आती है ऐसा रक्त में मास्ट सेल के बढ़ जाने से होता है इसे पित्ती या अर्टिकेरिया कहते हैं।
संक्रामक रोग- जगह जगह गन्दगी व पानी एकत्र होने के कारण मच्छरों मख्खियों की संख्या उनसे होने वाले संक्रामक रोगों की सम्भावना बढ़ जाती है। जिसमें पीलिया, टायफायड, डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया रोग आदि प्रमुख हैं।
जोड़ों के दर्द  -नमी के चलते पुरानी चोट मोच या वात रोगों में भी बृद्धि के कारण जोड़ो के दर्द उभर आते हैं।
क्या बरतें सावधानियां
भारतीय सनातन धर्म में सावन महीने में भगवान शिव के अभिषेक का विधान समय, प्रकृति, जीवन, स्वास्थ्य आध्यात्म की दृष्टि से वैज्ञानिक प्रतीत होता है , सावन में होने वाली वनस्पतियां , शाक आदि प्रदूषित और कुछ सीमा तक विषाक्त हो सकती हैं जिन्हें खाने के बाद दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुओं का दूध भी स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत उत्तम नही माना जाता इसीलिए मदार, भांग, गांजा, धतूरा आदि विषैली प्रकृति की वनस्पतियों के साथ दूध से भी भगवान शिव का अभिषेक किया जाना तर्कसंगत लगता है क्योंकि शिव में ही विषपान कर सकने की शक्ति की मान्यता है। 

बहरहाल स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इस ऋतु में हरी पत्तेदार शाक सब्जियों का सेवन नहीँ करना चाहिए। स्वच्छ सादे रंग के सूती और ढीले वस्त्र पहने , सिंथेटिक, नायलान,टेरीकॉट, चटख रंगीन और कसे वस्त्रों के प्रयोग से बचें। प्रतिदिन स्नान करें और त्वचा , बालों ,शरीर के अंगों की सफाई का ध्यान रखेँ और उन्हें सूखा रखें। गीले वस्त्र देर तक न पहनें। गरिष्ठ ,तेल ,मसालेदार, बाजार की टिकिया, चाट , बर्गर व अन्य जंक फ़ूड का सेवन न करें। भोजन में नीबू, तुलसी, अदरक, शहद, जामुन का प्रयोग करें। इससे प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है एवं मधुमेह के रोगियों को भी लाभ मिलता है। मच्छरदानी में सोएं और घर व आस पास नाली आदि जगहों पर पानी न इकट्ठा होने दें। यदि ऐसा हो भी तो उसमे समय समय पर मिट्टी का तेल या कीटनाशक का छिड़काव कराते रहें। फल सब्जियां अच्छी तरह धोकर ही खाएं।
क्या है होम्योपैथी में उपचार-
होम्योपैथी स्वयं प्रकृति के चिकित्सा नियम पर आधारित पद्धति है, इस समय प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हो रहे तमाम औषधीय पौधे मनुष्य को संजीवनी भी प्रदान करते हैं। स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता , उचित सावधानी , नियमित दिनचर्या, संतुलित खानपान से हम अनेक प्रकार के संक्रामक रोगों, परजीवियों से होने वाले रोगों, विषैले कीटों के डंक आदि से स्वयं को अस्वस्थ होने से बचा सकते हैं अथवा किसी भी अपरिहार्य स्थिति में कुशल प्रशिक्षित होम्योपैथ के मार्गदर्शन में उचित औषधियों का सेवन कर स्वास्थ्यलाभ प्राप्त कर सकते हैं। वर्षा ऋतु की ज्यादातर समस्याओं के लिए होम्योपैथी की रसटाक्स, डल्कामारा, नेट्रम सल्फ,  आर्सेनिक, बेल, युपेटोरियम, जेल्स, ग्लोनीयन, सल्फ, फॉस, लिडम, एपिस, ब्रायोनिया, नाजा, चायना , आदि दवाईयां कारगर होती हैं। औषधियों का चयन चिकित्सक ही कर सकते हैं सुन या पढ़ कर उचित औषधि का चयन नही हो सकता।
डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
होम्योपैथिक परामर्श चिकित्सक
द प्रतिष्ठा होम्योपैथी
कृष्ण विहार कालोनी रायबरेली रोड
फैज़ाबाद
रा.सचिव - HMA
सह संपादक - होम्यो मिरेकल
चिकित्सक- नाका हनुमानगढ़ी फैज़ाबाद
राष्ट्रीय सेवा भारती साकेत

Friday, 15 July 2016

समाज में चिकित्सकों की भूमिका और दायित्व रेखांकित कर गए थे डा हैनिमैन

10 अप्रैल : विश्व होम्योपैथी दिवस (विशेष)

"जन जन जाने होम्योपैथी  , जन मन मांगे होम्योपैथी "
व्यक्ति की चिकित्सा के साथ समाज व राष्ट्र के स्वास्थ्य रक्षक की भूमिका के लिए तैयार रहें होम्योपैथ : डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
"प्रयोगः शमयेदव्याधिमं यो$न्य नमुदोरयेत्।
नासौ विशुद्धः शुद्धन्तु शमयेद् यो न कोपयेत्।। "
(सूत्रस्थानत् चरक संहिता)
चरक संहिता में आरोग्य को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि चिकित्सा की वह विधा जो शरीर में उपस्थित व्याधि के लक्षण समूहों को तो समाप्त कर दे किन्तु एक नए लक्षण समूह को उत्पन्न कर दे , वह आरोग्य नही प्रदान कर सकती वरन् बिना कोई नया लक्षण समूह उत्पन्न किये उपस्थित व्याधि को समूल नाश कर सकने वाली विधा ही आरोग्य प्रदान कर सकती है। होम्योपैथी में इसे ही "आयडियल क्योर " कहा गया है।
होम्योपैथ होने के नाते हम सभी होम्योपैथी के सिद्धांतो से भलीभांति परिचित हैं इसीलिए इस आलेख में इसके सिद्धांतो को जनमानस की कसौटी पर परखने का प्रयास करता हूँ।
त्रेता युग में असुर रावण (वाह्य डायनामिक फ़ोर्स) की कैद से सीता (spirit या वाइटल फ़ोर्स में न्यूनता) को मुक्त कराने के लिए चल रहे युद्ध में  श्रीराम (चेतन मस्तिष्क) के जरा से विचलन के कारण , मेघनाद के शक्ति प्रहार (बाहरी संक्रामक शक्तियां) से उनके प्रिय अनुज लक्ष्मण (अचेत भौतिक शरीर) को प्राणों का संकट आन पड़ने पर सुषेण वैद्य के परामर्श पर हनुमान जी हिमालय से सञ्जीवनी बूटी के लिए पूरा पर्वत उठा लाए थे और उन्हें स्वस्थ किया था। जैसे श्रीराम के इस कार्य की सिद्धि में सबसे महत्वपूर्ण योगदान केशरी - अंजना पुत्र हनुमान जी को दिया गया वैसा ही इतिहास शायद आज से 261 वर्ष पहले पुनः दोहराये जाने की प्रस्तावना तय हुयी,  जब जर्मनी के मेसन शहर में एल्बो नदी के किनारे ड्रेसडेन के निकट मिट्टी के बर्तनों पर चित्रकारी के व्यवसायी क्रिश्चियन फ्रेडरिक की दूसरी पत्नी जोहाना को दस अप्रैल 1755 को तीसरी सन्तान के रूप में एक पुत्र की प्राप्ति हुई , जिसे माँ बाप ने नाम दिया सैमुएल हैनिमैन। 
बचपन में ही प्राकृतिक विज्ञानी होने का दिया संकेत -
गरीब पिता से संस्कारों में मिली शिक्षा "कर्म करते रहो और जो सर्वश्रेष्ठ हो उसे ही चुनो" को जीवन का सूत्र वाक्य बना  प्रखर मेधा का  धनी बालक दिन में पिता के पुस्तैनी काम में हाथ बंटाता और रात में पढ़ाई के दौरान दिए में तेल खत्म हो जाने से दुखी होता। किन्तु निराश होने की जगह बालक हैनिमैन ने सबसे पहले अपने लिए मिट्टी का ऐसा दिया बनाया जिसमे तेल की खपत कम से कम हो और प्रकाश अधिक , देखा जाय तो यही बालक के भविष्य का प्रथम संकेत था।
इसके बाद जब बालक की प्राथमिक शिक्षा पूरी हुई तो विद्यालय की रीति के अनुसार निबन्ध के लिए चुने गए विषय "द वन्डरफुल कन्स्ट्रक्शन ऑफ़ ह्यूमन हैण्ड" से हैनिमैन के प्रकृति प्रेम का दूसरा उदाहरण और भविष्य का स्पष्ट संकेत मिलता है।
घर से मिले पिता के आशीर्वाद, संस्कार, सीख और बीस थैलर की जमापूंजी के साथ हैनिमैन अपनी आगे की पढ़ाई के लिए लिपज़िग और फिर वियना आ गए। जहां उन्होंने एक दर्जन से अधिक भाषाओं में प्रवीणता हासिल कर ग्रंथो ,पुस्तको के अनुवाद और ट्यूशन को अपने अध्ययन  व आजीविका का जरिया बनाकर अपनी चिकित्सा की उपाधि पूरी की। उन्हें एक चिकित्सक, केमिस्ट , अनुवादक के रूप में संतुष्टि नही मिली । आखिर एक दिन डा हैनिमैन को कुलेन (जैसे सुषेण वैद्य) की औषधि विज्ञान की पुस्तक के अनुवाद के समय सिनकोना (संजीवनी बूटी/विद्या) के उदाहरण से मानव को स्वास्थ्य प्रदान कर सकने का ज्ञान प्राप्त हो सका जिसकी खोज ही शायद उनके जीवन का नियत उद्देश्य थी। इस प्रकार डा हैनिमैन ने हनुमान की तरह  होम्योपैथी मानवताके लिए प्रदान करने का पुण्य कार्य किया।
चिकित्सा के क्षेत्र में डा हैनिमैन का योगदान -
1. प्रकृति के चिकित्सा नियमो पर आधारित पूर्ण सैद्धांतिक व वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति का विकास।
2. औषधियों का मनुष्यों पर सिद्धि परीक्षण।
3. शक्तिकरण के सिद्धांत के प्रायोग से विषाक्त एवं निष्क्रिय पदार्थों के औषधीय गुणों का विकास कर जटिलतम दुःसाध्य रोगों का सरलतम उपचार संभव बनाया।
4. व्यक्ति में रोग की बजाय रोग में व्यक्ति के आधार पर औषधि चयन से चिकित्सक मरीज के मानवीय दृष्टिकोण को सम्बल प्रदान किया।
5.तत्कालीन समय से वर्तमान तक प्रचलित सिद्धांतहीन चिकित्सा विधा को "एलोपैथी" नाम दिया।
6. डा हैनिमैन के सोरा, सिफलिस, साइकोसिस मायज़्म की व्याख्या के आधार पर सूक्ष्मतम जीवों से संक्रमण के प्रसार का तथ्य वर्षों बाद सूक्ष्मदर्शी यन्त्र से जीवाणुओं की खोज के रूप में सत्य सिद्ध हुआ।
चिकत्सक के गुण धर्म कर्तव्य को परिभाषित किया :
भारत में अनादि काल से चिकित्सा को सेवा माना जाता रहा है किन्तु पश्चिमी देशों में यह एक व्यवसाय की तरह ही था डा हैनिमैन ने सबसे पहले  अपनी पुस्तक "आर्गेनन ऑफ़ मेडिसिन" में सबसे पहले सूत्र में ही रोगी को सरलतम तरीके से बिना किसी पीड़ा के उसके स्वास्थ्य की अवस्था में वापस लाना ही चिकित्सक का मूल उद्देश्य" बताया है। उनका मनना था कि इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक है कि वह पूर्वाग्रह से बचें। इतना ही नहीँ चिकित्सक के सामाजिक नैतिक दायित्वों को उद्धृत करते हुए डा हैनिमैन ने इसी पुस्तक के चौथे सूत्र में लिखा क्योंकि चिकित्सक को यह ज्ञान होता है कि कौन सी परिस्थितियां , कारक अथवा कारण व्यक्ति को रोगी बना सकते हैं अस्तु वे जनजागरूकता के ज़रिये  "समाज के स्वास्थ्य रक्षक" की भूमिका निभा सकते हैं ।
"He is like wise a preserver of health if he knows the things that derange health & causes disease, & how to remove them from person in health."(apho -4, Organon of medicine).
बहुप्रचलित चिकित्सा पद्धति में जहां अधिकांश रोगों के कारण अज्ञात हैं वहीं 90% से अधिक रोगों का कारण स्ट्रेस यानी तनाव है। डा हैनिमैन के बाद भी डा केंट ने सफल केस टेकिंग को "50% आरोग्य" माना था।
होम्योपैथी में रोग में व्यक्ति का निर्धारण कर तत्सम औषधि चयन किया जाता है। किन्तु औषधि चयन की यह प्रक्रिया व्यक्ति से जुडी सभी मानसिक, भावनात्मक, व्यक्तिगत,व्यवसायिक,पारिवारिक, सामाजिक , जानकारियों के मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन विधि पर  आधारित है जिसमें चिकित्सक रोग में ग्रसित व्यक्ति के मूल कारण (Fundamental cause), प्रेरक कारण (exciting cause), या स्थायीकारक कारण (maintaining cause) की भी खोज करता है, जो व्यक्ति के आरोग्य के लिए संदर्भित परामर्श का अहम हिस्सा माना जाता है।
यदि होम्योपैथ को "रोग में व्यक्ति " की खोज कर उसे 50% आरोग्य बिना औषधि दे सकने में सक्षम माना जा सकता है तो उसकी इसी भूमिका को विस्तार दिए जाने की आवश्यक्ता है, क्योंकि व्यक्ति ही समाज एवं राष्ट्र निर्माण की इकाई है।
विरोध व प्रहारों से अधिक विश्वस्त और विस्तृत होती गयी होम्योपैथी -
डा हैनिमैन के जीवनकाल से ही होम्योपैथी के प्रभाव व स्वीकार्यता से उस समय के बौद्धिक चिकित्सा व्यवसायियों में भविष्य का अंदेशा हो गया था तभी से इसपर अवैज्ञानिक और भ्रामक होने के आरोप से दुष्प्रचार व प्रहार किये जाते रहे हैं जो आज तक बदस्तूर जारी हैं किन्तु अपने प्रभावों के चलते होम्योपैथी अपने जन्मस्थान जर्मनी की सीमायें पार कर विश्व में स्वीकार्य होती गयी । आज भारत वर्ष में यह सबसे अधिक विकसित और तेजी अपनायी जा रही चिकित्सा विधा है जबकि तमाम समकालीन अन्य चिकित्सा विधाएँ उनके जनक के जीवनकाल में ही कालातीत होती गयीं।  नोबल पुरस्कार विजेता (2004) स्व. डॉ जैक्स वैन्वेस्टि और डॉ मोंटेगनियर (2008) ने होम्योपैथी पर और अधिक शोध की सनभवनाओं का समर्थन किया , तो आई आई टी मुम्बई के छात्रों होम्योपैथी की दवाओं की पुष्टि कर विरोधियों को निरुत्तर करने का कार्य भी किया साथ ही डब्ल्यू एच ओ की एक रिपोर्ट में इसे विश्व की दूसरी सबसे अधिक विश्वसनीय चिकित्सा विधा माना है।
अव्यक्त रूप से विज्ञान स्वीकारने लगा है होम्योपैथी के सिद्धांत -
निरन्तर शोध एवं अध्ययनों में दवाओं की अधिक व स्थूल मात्रा से मनुष्यों की रोगप्रतिरोधक क्षमता में आ रही कमी ने वैज्ञानिकों के माथे पर बल ला दिया है ।अंदेशा है कि निकट भविष्य में प्रचलित ज्यादातर एंटीबायोटिक्स बेअसर साबित हो सकती हैं।इसी लिए अब वैज्ञानिक भी अव्यक्त भाव से होम्योपैथी के "एक व्यक्ति एक औषधि की न्यूनतम मात्रा और हानिरहित अधिकतम स्वास्थ्यलाभ " के सिद्धांत को स्वीकारने लगे हैं। मीडिया से मिल रही जानकारी के अनुसार करीब चार साल पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने फिक्स डोज कांबिनेशन ड्रग्स के स्वास्थ्य पर असर के अध्ययन के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया। कमेटी ने लंबे अध्ययन के बाद सिफारिश की है कि ये दवाएं स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती हैं।इनके विकल्प में सुरक्षित दवाइयां पहले से ही उपलब्ध हैं, लिहाजा इन्हें प्रतिबंधित किया जाए। कमेटी की सिफारिश पर दो दिन पहले भारत सरकार ने करीब 347 फिक्स डोज कांबिनेशन ड्रग्ज की बिक्री और उत्पादन पर रोक लगा दी है। इनमें खांसी-जुकाम की 150, डायबिटीज की 50 दवाओं के अतिरिक्त एंटीबायोटिक व कुछ अन्य दवाइयां शामिल हैं।
जनस्वास्थ्य में स्पष्ट होने लगी है होम्योपैथी की भूमिका -
भारत में बहुसंख्य आबादी आज भी गरीब है और स्वास्थ्य से जुडी समस्याओं के समाधान के लिए अप्रशिक्षित चिकित्सा व्यवसायियों पर निर्भर है जिसका प्रमुख कारण सुविधाओं के अभाव में योग्य व कुशल चिकित्सकों की जनसंख्या के अनुपात में कमी व उनका गाँवो से दूरी बनाये रखना है। एलोपैथी सरीखी मंहगी व दुष्परिणामो वाली पद्धति के अनुचित प्रयोग से सावधान करने के साथ समाज में जनस्वास्थ्य की चुनौतियों में प्राकृतिक चिकित्सा प्रणालियों को अपनाने के लिए जागरूक करने में विभिन्न कार्यक्रमों व आधुनिक मीडिया के जरिये अपने नैतिक दायित्वों का निर्वहन कर रहे तमाम सुधी चिकित्सकों का योगदान बेहद महत्वपूर्ण माना जाना चाहिए। जिसके चलते वर्तमान सरकारों ने इन पद्धतियों के महत्व को स्वीकारा और इन्हे अपनी स्वास्थ्य नीति में शामिल किया। हालांकि अभी पर्याप्त संभावनाएं शेष हैं किन्तु कहा जा सकता है कि शुरुआत हो चुकी है। स्वयं प्रधानमन्त्री ने अपने सम्बोधनों में होम्योपैथी के महत्व को स्वीकार किया। होम्योपैथी के विकास प्रसार से शोध आदि की सम्भावनाओं से सम्बंधित अनेक सुझाव व मांगें होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन (एचएमए) व अनेक वरिष्ठ चिकित्सकों की तरफ से समय समय पर भेजे। संभवतः इन तमाम प्रयासों का परिणाम है कि राष्ट्रीय आयुष मिशन का गठन, आयुष ग्राम, एम्स जैसे आयुष संस्थान की स्थापना, आदि विषयों के लागू होने की शुरुआत हुई है इसका फायदा निश्चित रूप से जनता को मिलेगा।
जनस्वास्थ्य की चुनौतियों से सरकार व होम्योपैथ की सहभागिता के आधार पर निबटने का सुझाव -
पीड़ित मानवता की सेवा से जुड़े चिकित्सा कार्य में लगे चिकित्सकों के बेहतर जीवन के लिए वर्तमान में अल्प समय में संसाधनों की उपलब्द्धि थोडा सा कठिन कार्य है। इसलिए होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन की तरफ से सरकार को "होम्योपैथ व सरकार की सहभागिता" का मन्त्र सुझाया है जिसके तहत आवश्यक्तानुरूप ग्रामीण या शहरी क्षेत्रों में योग्य प्रशिक्षित व पंजिकृत होम्योपैथ  को चिकित्सालय खोलने में सरकारी मदद (जमीन /भवन) उपलब्द्ध करायी जानी चाहिए या उनकी निजी क्लीनिक में अनुबन्ध के आधार पर दिन में ओ पी डी के समय में सरकारी स्वास्थ्य सेवा उपलब्द्ध करायी जाने की पहल की जानी चाहिए। इस हेतु उन्हें सम्मानजनक मानदेय दिया जाना चाहिए जिसे प्रदर्शन के आंकलन के आधार पर नियमित किया जा सकता है।
इस तरह से भ्रष्टाचार की संभावना पर अंकुश लगाते हुए कौशल के अवसर प्रदान करने की दिशा में बेहतर प्रयास किया जा सकता है जिससे देश की आमजनता को झोलाछाप चिकित्सकों से मुक्ति मिल सकती है।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
रा.सचिव HMA
सह सम्पादक होम्यो मिरेकल

शीघ्र स्वास्थ्यलाभ के लिए होम्योपैथी में महत्वपूर्ण है परहेज

(स्वास्थ्य एवं होम्योपैथी जागरूकता अभियान के तहत प्रकाशित आलेख)

प्रचलित चिकित्सा पद्धति में एंटीबायोटिक्स स्टेरॉइड्स और पेनकिलर कम्बीनेशन्स के घातक दुष्परिणामो के चलते आमजन भी होलिस्टिक अप्रोच की और हानिरहित चिकित्सा प्रणालियों को तेजी से अपना रहा है।इनमें आयुर्वेद होम्योपैथी योग नैचुरोपैथी आदि प्रमुख हैं। किन्तु सस्ती सुलभ और हानिरहित असरकारक होने के नाते होम्योपैथी पहली पसन्द बनती जा रही है सम्भवतः यही कारण है कि इसे विश्व की दूसरी सबसे अधिक विश्वसनीय अपनायी जाने वाली चिकित्सा विधा का श्रेय प्राप्त है। आमतौर पर लोगों का मनना है कि होम्योपैथी से उपचार के दौरान बहुत परहेज करना पड़ता है। होम्योपैथी में दवा के प्रयोग के समय किसी भी अन्य ऐसे खाद्य या पेय पदार्थ का सेवन वर्जित है जिसमे उसका कोई औषधीय गुण हो क्योंकि वह दवा के असर को प्रभावित कर सकता है। ये शक्तिकृत औषधियां होती हैं अतः इन्हे तेज गर्मी या सुगन्ध , दुर्गन्ध अथवा सीधे सूर्य की रौशनी से बचाना आवश्यक है। दवा के सेवन के समय से कम से कम आधे घण्टे पहले या बाद भी सम्भव हो तो पान, मसाला , चाय कॉफी आदि कुछ न लें।

इलाज के दौरान होम्योपैथी के निर्देशों के अनुसार प्राकृतिक रूप से पके हुए फल जैसे- चेरी, सेब,नाशपाती, अंगूर, रसभरी, तरबूज, मुसम्मी जूस, अनानास, खजूर, अखरोट , सब्जियां जैसे- आलू ,गोभी, सेम, फली वाली हरी सब्जियां, शलजम, मूंगफली, गाजर, मूली मिलावट रहित बिना मसाले के आटे की पकी हुयी चपाती, उबला हुआ मलाई रहित दूध, मक्खन, मट्ठा, ताज़ा पनीर, या बिना मसाले के ठीक से पका हुआ मांस खा सकते हैं। पीने के लिए उबालकर ठण्डा किया हुआ पानी पियें , बादाम मिल्क शेक, ले सकते हैं।कॉफी की आदत वाले भुनी हुयी गाजर जौ या गेहूं बाल का प्रयोग कर सकते हैं।दांतो की सफाई के लिए शुद्ध चारकोल पाउडर का प्रयोग करना चाहिए। इसके साथ ही वातावरण के अनुरूप आरामदायक वस्त्र पहनें खुली हवा में रहें हल्का योग, व्यायाम, करें, पर्याप्त नींद, भोजन,पानी ले समयानुसार मन मस्तिष्क को सन्तुलित रखें।

मांसाहार करने वालों को खास ध्यान देना चाहिए कि मोटे जानवरों ,बतख ,गाय , खरगोश,सूअर आदि के मांस का सेवन नहीँ करना चाहिए।अधपका , बहुत तेल मसाले में भूना हुआ मांस न ले और मछली का साथ में सेवन न करें और शाम को तो मछली न ही खाएं। बहुत उबला  हुआ अंडा या भुने हुए अंडे के साथ अन्य पदार्थ न लें। 

इलाज के दौरान अधपके या कृत्रिम रूप से पकाये गए फल कच्ची सब्जियो,पुराने शहद, बासी पनीर, मशरूम, प्याज, तेज मसाले, केक, टॉफी, चॉकलेट, कच्चा दूध, क्रीम, पुराना दही, शराब, कॉफ़ी, चाय, एसिड, सिरका, कद्दू, का सेवन न करें। तम्बाकू, बीड़ी, माउथ वाश, सुंघनी, सुगन्धित तेल,लोशन, साबुन आदि का प्रयोग नही करना चाहिए। चुस्त कपड़े जीन्स,भारी धातु की ज्वेलरी, काले रंग से डाई किये हुए कपड़े, कपूर ,सेंटआदि के प्रयोग से बचना चाहिए। अत्यधिक चिंता भय तनाव क्रोध दुःख आदि से भी बचने का यथासम्भव प्रयास करना चाहिए।

संतुलित दिनचर्या विश्वास एवं कुशल प्रशिक्षित होम्योपैथ के परामर्श के अनुसार होम्योपैथी अपना कर शीघ्र सरल व स्थायी स्वास्थ्यलाभ प्राप्त किया जा सकता है।

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
रा.सचिव HMA
सह सम्पादक होम्यो मिरेकल

गर्मी की तकलीफों में सेहत की साथी है होम्योपैथी

इस बार सूर्य देव अपने प्रचण्ड रूप में दिखाई दे रहे हैं एक ओर जहाँ प्रकृति निर्जलीकरण के सन्ताप से पीड़ित है वहीँ दूसरी ओर बच्चे बूढ़े युवा सभी के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कते बढ़ रही हैं। ऐसे में कुछ खास बातो का ख्याल रखकर आप परेशानियो से बच सकते है। होम्योपैथी गर्मी में होने वाले तमाम रोगों में आपकी सेहत की साथी व संरक्षक हो सकती है यदि आप स्वयं भी कुछ सावधानियां बरतें।

गर्मी में क्या हो सकते हैं रोग ?

गर्मी के मौसम में कुछ लोगों की पुरानी समस्याएं जैसे दमा, दस्त, भिन्न त्वचा रोग,व मानसिक समस्याएं आदि , पुनः उभर आते हैं। तो तेज धूप , गर्मी में लापरवाही बरते जाने पर शरीर से निर्जलीकरण की प्रक्रिया तेज हो जाती है, लू लगना, हीट स्ट्रोक, मानसिक बेचैनी, घबराहट, अनिद्रा , सुस्ती, उनींदापन,  अवसाद, चक्कर, ऐंठन, कम्पन, झटके, सिरदर्द, आँख आना, या उनमे लालिमा, जलन, चुभन, आवाज बैठना, या गले में खराश, इंटेरो कोलाइटिस , पेट में दर्द, मितली, उल्टी, डायरिया, पेचिश, अपच, कब्ज़, गैस, दांत दर्द, तलवों में जलन, एलर्जी, नकसीर, त्वचा पर अत्यधिक पसीने से संक्रमण, घमौरी, त्वचा का सुर्ख होना, चकत्ते बन जाना, मुंहासे, बुखार, पीलिया आदि रोगों के लक्षण सम्भावित हो सकते हैं।

बीमारियों के  क्या हैं प्रमुख कारण ?

अक्सर लापरवाही के चलते लोग तेज धूप में भी नंगे बदन  ,बिना सर ढके,  नंगे पाँव काम करने निकल पड़ते हैं ,या तेज गर्मी के बाद तुरन्त बर्फीला ठण्डा पेय पी लेते है या एसी कूलर से निकल कर तुरंत धूप में जाने , सिंथेटिक और कसे हुए कपडे पहनने आदि कारण गर्मी से होने वाले तरह तरह के रोगों की सम्भावना बढ़ जाती है। अचानक बदलने वाले तापमान के साथ शरीर अंगो तंत्रो की क्रियाओं में सामन्जस्य नही बैठ पाने से ये रोग लक्षण प्रकट होते है।जैसे बाहर का तापमान अधिक होने से शरीर के ताप नियंत्रण केंद्र की सक्रियता में अधिक भोजन कर लेने के बाद अपेक्षाकृत मन्द पड़ी जठराग्नि के कारण अपच गैस या दस्त की शिकायतें बढ़ जाती हैं। इसी तरह त्वचा के रोमछिद्रों के खुल जाने से व पसीने की नमी कई तरह के संक्रामक जीवों के लिए उपयुक्त वतावरण तैयार करके देते हैं जिससे त्वचा सम्बन्धी रोग मुंहासे फोड़े दाद आदि हो सकते हैं।

गर्मी के रोगों  से बचाव में क्या करें उपाय ?

गर्मी में हल्का ताजा ,मधुर, शीतल,व तरल खान-पान हितकर होता है।

घर  से  कुछ खा पी कर ही निकले, खाली पेट नहीं।

हल्के रंग के सूती कपडे पहने,
चेहरा और सर  ढक कर निकलें ।

प्रतिदिन कम से कम 4 से 5 लीटर स्वच्छ व ताजा पानी पियें और बाजार  की बजाय घर की बनी ठंडी चीजों जैसे आम (केरी) का पना,  खस, चन्दन गुलाब फालसा संतरा  का सरबत, ठंडाई सत्तू, दही की लस्सी, मट्ठा, गुलकंद या लोकी, ककड़ी, खीरा, तोरे, पालक, पुदीना, नीबू, तरबूज आदि का सेवन अधिक करना चाहिये।
शरीर में शीतलता का संचार के लिए योगाभ्यास जैसे सीत्कारी, शीतली तथा चन्द्र भेदन प्राणायाम  एवं शवासन भी किया जा सकता है।

क्या है होम्योपैथी में उपचार

निर्जलीकरण से बचने के लिए ओ आर एस या घर पर नमक चीनी पानी का घोल लेना जरूरी है। साथ ही उचित समय पर कुशल चिकित्सक की परामर्श के अनुसार होम्योपैथिक औषधियों का सेवन बिना कोई नुकसान पहुचाये आपको शीघ्र स्वस्थ कर देता है।
गर्मी के मौसम की तकलीफों में होम्योपैथी की आर्सेनिक, एलोस, कैम्फर,चायना, मर्क सॉल, कोकस कैटाई, जेल्स, ब्रायो, फोस्फोरस,अर्जेन्टम , एथूजा, नैट्रम कार्ब, आदि दवाईयां बेहतर परिणामों के लिए

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
रा.सचिव HMA
सह सम्पादक होम्यो मिरेकल