गर्भपात की प्रवृत्ति दूर करने और आसान प्रसव में मददगार है हॉम्योपैथी : डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
मातृत्व का सुख प्राप्त करना स्त्री को उसकी पूर्णता का अहसास करने वाला होता है। गर्भधारण के दिन से बच्चे को जन्म देने तक नौ माह के दिनों में गर्भवती को बहुत से शारीरिक मानसिक परिवर्तनों से गुजरना होता है जिसके चलते उसके स्वास्थ्य की उचित देखभाल व सावधानी की जरूरत होती है। इसलिए निकट के स्वास्थ्य केंद्र पर महिला चिकित्सक से नियमित परामर्श लेते रहना चाहिए। आधुनिक चिकित्सा पद्धति जहां किसी भी आकस्मिक परिस्थिति में लाभदायी है वहीं हानिरहित होम्योपैथी का प्रयोग किसी भी आकस्मिक स्थिति अथवा गर्भपात की प्रवृत्ति से बचाते हुए सरल सुरक्षित प्रसव करा पाने में भी सहायक है। होम्योपैथी को लेकर आम जनता में तमाम तरह की भ्रांतियां अभी भी व्याप्त हैं अतैव ऐसे सम्मेलन शिविर अथवा प्रकाशन सामग्रियाँ बहुत सीमा तक एक नए विश्वास को आयाम देती हैं। आईये संक्षेप में गर्भकाल में होने वाली परेशानियों के होम्योपैथिक उपायों के बारे में जानें।
गर्भधारण में कठिनाई एवं गर्भपात की प्रवृत्ति-
गर्भधारण की समस्या के लिए स्त्रीपुरुष दोनों जिम्मेदार हो सकते है । विषयांतर्गत यदि स्त्री में गर्भधारण में कठिनाई के कारणों की गहनता से जाँच की जाये तो मनःस्थिति , मासिक अनियमितता, हार्मोन , अंडाशय, जरायु आदि के कारण संभव हो सकते है। कुछ महिलाओं में गर्भधारण के बाद दुसरे , तीसरे, पांचवे, या सातवें माह में गर्भपात की प्रबृत्ति भी देखने को मिलती है। इन समस्याओं के निराकरण में होम्योपैथी अन्य समकालीन पद्धतियों से अधिक कारगर सरल और सुविधाजनक है।
होम्योपैथी -
एकोन, एपिस, सिमिसिफ्यूगा, वाईबर्नम, सिपिया, बोरेक्स आदि।
सिर में दर्द-
गर्भावधि में कभी भी रक्त का संचरण सर की तरफ अधिक होने से, वात ,अर्जीण के कारण सिर में रुक-रुककर आने वाले ,टपक की तरह का सिरदर्द और इसके साथ ही आंखें और मुंह का लाल होना तथा कान में अजीब-अजीब सी आवाजें गूंजना जैसे कुत्ते की आवाज , सिर में चिलक उठने की तरह के दर्द की शिकायत हो सकती है।
होम्योपैथी
एको, नक्स बेल चायना इग्ने, वालेरियाना दी जा सकती हैं।
मानसिक परेशानियां
किसी डर, सदमे या दुख ,दिल की क्रिया धीरे होने, खून आदि निकलने, स्नायविक कमजोरी , नींद में , या उठने के बाद, चोट से,अथवा हिस्टीरिया रोग के कारण बेहोशी आ सकती है।
प्रायः देखने में आता है कि जिन स्त्रियों में गैस बनने की प्रवृत्ति ज्यादा होती है उनमें हिस्टीरिया की सम्भावना अधिक होती है।अतः शरीर में अकड़न हो जाने से गर्भपात का भी खतरा हो सकता है। अकड़न आने से पहले रोगी स्त्री को ऐसा लगता है जैसे कि उसके गले में कोई चीज अटक रही है, रोगी स्त्री फूट-फूटकर रोती है, गले को पकड़ लेती है, होश में रहते हुए भी बोल नहीं पाती, डकारें आती है या मूत्र निकल जाता है और शांत होने की अवस्था में रोगी स्त्री बार-बार चिल्लाती है, आंसू बहाती है।
इसी से मिलते जुलते मिर्गी की पहचान माथे में दर्द , सुस्ती, चक्कर, , नींद में बेचैनी , दिल की धड़कन, मितली, उल्टी , चेहरे के लाल हो जाने जैसे लक्षणों से की जा सकती है ।
होम्योपैथी- ऐगारिकस, बेल, कास्टि, साइक्यू, क्यूप्रम, हायोस , मस्कस, लाइको, एसिड फॉस, चायना ,डिजिटेलिस, इग्ने, अर्निका, नक्स, प्लैटिना और बैलेरियाना औषधियों का प्रयोग किया जा सकता है।
कुछ गर्भवती स्त्रियों में तेजसिर दर्द के साथ उल्टी एवं गहरी मूर्छा आ जाती है और वह जमीन पर गिर जाती है , नाक से गहरी सी आवाजें, चेहरा लाल और आंखें स्थिर हो का जाने जैसे लक्षण मिल सकते हैं।
होम्योपैथी -
ऐकोन, बेल, काक्युलस, लैकेसिस, नक्स या ओपि औषधि का प्रयोग किया जा सकता है।
गर्भावस्था में अन्य कई तरह की मानसिक परेशानियां जैसे अपने आप ही गुस्सा , छोटी-छोटी बातों पर रोना, भावी प्रसव के दर्द से बेचैन, चिड़चिड़ापन , बच्चे को जन्म देने का डर , गहरी चिंता ,सदमे या शोक , गुस्से आदि के लक्षण मिल सकते हैं।
होम्योपैथी-
सिमिसिफ्युगा, इग्नेशिया, कैमोमिला ऐकोनाइट, पल्स का प्रयोग करना चाहिए।
श्वसन सम्बन्धी -
गर्भवती स्त्री को ज्यादा घूमने,सूखी खांसी , अर्जीण या स्नायविक दुर्बलता आदि कारणों से सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
होम्योपैथी-
ऐमोन, आर्स, इपि, मस्कस, फास, ब्रायो ,डिजिटेलिस, नक्स, बेल , सल्फर, स्ट्रोफैन्थस आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
स्तनों के रोग-
गर्भावस्था में कभी कभी सूजन आने के कारण स्तनों के बड़े होने पर कई तरह की परेशानी जैसे स्तनों में चोट लगने ,जलन होने या निप्पलों पर जख्म या दर्द हो सकता है।
सलाह-
स्तनों पर ठण्डे पानी की पट्टी लगाना भी लाभकारी रहता है लेकिन अगर गर्भवती स्त्रियों को स्तनों में आक्षेपवाली परेशानी होती है तो ऐसे में स्तनों पर गर्म पानी की पट्टी लगाना लाभकारी रहती है।
होम्योपैथी-
बेलेडोना, ब्रायोनिया,या कोनायम औषधि दी जा सकती हैं।
पाचन सम्बन्धी -
दांत में दर्द-
गर्भवती स्त्री को बुखार ,स्नायविक उत्तेजना या अर्जीण रोग के कारण दांत में दर्द हो सकता है।
होम्योपैथी-
एकोन, नक्स, और मर्क , कैमोमिला, या क्रियोजोट दी जा सकती है।
रुचि विकार-
गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में रुचि-विकार होना भी एक लक्षण है जिसमे स्त्री को अजीब-अजीब सी चीजें खाने का मन करता हैं जैसे जली हुई मिट्टी, खड़िया मिट्टी, नमक ,खाने वाली चीजों से अरुचि होना, इस वजह से उसमे सुस्ती, कुछ खाते ही उल्टी, जीभ, होठ और मुंह में स्राव, लार आना, जीभ में जख्म जैसी जलन , जी मिचलाना, उल्टी होना और मुंह में पानी भर जाना जैसे लक्षणों का सुबह के समय बढ़ जाना जो कुछ दिनों तक रहते हैं और फिर अपने आप ही कम हो जाते हैं।
गर्भ में बच्चे के बढ़ने की क्रिया चलती रहती है जिसके कारण से शिराएं, धमनियां और स्नायु आदि भी बढ़ते हैं। इसी वजह से गर्भवती स्त्री के पेट में खिंचाव पड़ता है, ऐसा महसूस होता है जैसे कि पेट में बहुत सारा खून जमा हो गया हो ,पेट में चबाने की तरह का दर्द होने पर गर्भवती स्त्री पीछे की ओर झुक जाती है गर्भवती स्त्री के पेट में खिंचाव सा पड़ना जो भोजन करने के बाद बढ़ जाता है, जी मिचलाना, पेट में कब्ज, पेट में सुई चुभाने जैसा दर्द होता है। नाड़ी आदि पर बच्चे का दबाव पड़ने से पेट में कब्ज बनना , दस्त की हाजत , गैस, एसिडिटी होने के कारण सीने में जलन ,गर्भाशय बढ़ने की वजह से पित्त वहन करने वाली नस पर दबाव पड़ने से पीलिया भी हो सकता है।
पेट बढ़ना-
गर्भावस्था में पेट ज्यादा बाहर निकलने के कारण पेट की त्वचा चरचराती हो और स्तनों में दर्द होता है।
सलाह-
थोड़े से नारियल के तेल को लेकर उसके पेट और स्तनों पर मालिश कर सकते हैं।
ढीली त्वचा वाली स्त्रियों का पेट गर्भावस्था के दौरान अक्सर लटक जाने से उन्हे बहुत परेशानी हो सकती है ।
सलाह-
ऐसे में गर्भवती स्त्री के पेट को किसी कपड़े से बांध कर सहारा दिया जाए तो उसकी परेशानी धीरे-धीरे कम होती रहती है।
होम्योपैथी -
आर्स ,सल्फर, पल्स, नेट्रम, मर्क कार्बो, कैल्केरिया, काक्यूलस , नाइट्रिक-एसिड ,नक्स, सिम्फोनिकारपस, क्रियोजोट, सिपिया ,कालिन्सोनिया, नक्स, ब्रायो, ,ओपियम, प्लम्बम, ऐल्यूमिना, पोडोफाइलम ,या चेलिडोनियम का प्रयोग लाभदायक है।
पीठ में दर्द-
स्त्री का गर्भ जब 4-5 महीने का हो जाता है तो उस दौरान गर्भवती के उरु, पीठ, कमर और पैरों में ऐंठन या अकड़न होने जैसा दर्द होने लगता है।
गर्भवती स्त्री के तलपेट में बच्चे को जन्म देने की तरह का दर्द या ज्यादा मेहनत करने के कारण होने वाले पीठ दर्द भी हो सकता है।
होम्योपपैथी- आर्निका, कैल्के-कार्ब और कास्टिकम ,कैमोमिला , पल्स, ऐकोन देनी चाहिए।
जननांगों से सम्बंधित
गर्भवती स्त्री की बाहरी जननेन्द्रिय में खुजली होने पर दिन में 2-3 बार पानी में सोहागा मिलाकर अच्छी तरह से धोना चाहिए।
कुछ गर्भवती स्त्रियाँ योनि में से दूध की तरह सफेद या पीले रंग का अथवा पानी की तरह पतला धातु (स्राव) निकलने से कमजोरी महसूस करती है।
गर्भावस्था के दौरान बढ़ते हुए गर्भाशय के दबाव से भग और योनि तथा दूसरे अंगों की नसें फूलकर गांठ जैसी हो जाने से उनमें दर्द भी होता है। या खून के दौरे में रुकावट पैदा होने से भी पैर और योनि आदि में सूजन आ जाती है।
उपाय
पैरों की नसों के फूलने पर स्थिति-स्थापक मोजा पहनना चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान भी कभी कभी मासिकस्राव आ सकता है
होम्योपैथी-
आर्सेनिक , बोरेक्स,अम्ब्रा ,चायना , सीपिया कैन्थेरिस, सल्फर, ब्रायोनिया,फेरम ,हैमेंमेलिस , फॉस, फ्लोरिक एसिड, पल्स औषधि से लाभ मिलता है।
नींद-
गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त नींद आवश्यक है , कभी कभी स्त्री को रात के पहले पहर में नींद आ जाती है लेकिन रात के समाप्त होते-होते नींद बिल्कुल नही आती,या इसके साथ बुखार अथवा पैर में अकड़न या दर्द हो सकता है।
उपाय-
रात को सोने से पहले थोड़े से गर्म पानी में नमक मिलाकर उसमे तौलिया भिगोकर अपने पूरे शरीर को उस तौलिए से पोंछ लें तों अच्छी नींद आ जाएगी।
होम्योपैथी-
कैमोमिला काफ़िया, या विरेट्रम औषधि से लाभ मिलता है।
मूत्र त्याग
स्त्री के गर्भ में बच्चा जैसे जैसे बढ़ता है वैसे ही उसके मूत्रनलियों पर दबाव बढ़ता है जिसके कारण मूत्र की मात्रा कम हो जाती है या बिल्कुल ही बंद हो सकती है।
उपाय-
कच्चा दूध और पानी बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह और शाम पिलाने से मूत्र त्याग में आसानी होती है।गर्म पानी से नहाने से भी लाभ होता है। कुछ में स्वतः मूत्र त्याग का लक्षण भी मिलता है ।
होम्योपैथी-
कैम्फर का रस, कास्टिकम, कैन्थरिस, एपिस, एसिड-फास , स्पाइजिलिया या स्टैफिसाइग्रिया औषधि असरदायी हैं।
रक्ताल्पता या एनीमिया
पोषण के अभाव या अन्य कारणों से खून में हीमोग्लोबिन या लाल रक्त कणिकाओं में कमी के चलते भी कमजोरी के लक्षण उत्प्नन होते है।
उपाय-
नियमित समयानुसार पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार लेना जरूरी।
होम्योपैथी-
लेसिथिन, वैनेडियम, कैल्केरिया, फेरम आदि।
आम धारणा है कि माता या पिता के रोग जैसे गंडमाला, पूर्वजों में पहले किसी को टी.बी , चर्मरोग या हडि्डयों का रोग आदि होने वाले बच्चे को भी हो सकते हैं ।ऐसे मामलों में भी गर्भवती स्त्री को लक्षणों के अनुसार होम्योपैथिक औषधियों का नियमित रूप से सेवन कराया जाये तो उसकी संतान रोगमुक्त और सेहतमंद पैदा होती है।
होम्योपैथी - कैल्केरिया , बैसिलिनम, सोरिनम, सिलिका , मेडोरीनम आदि का प्रयोग कराते हैं।
अंतिम माह में सामान्य एवं आसान प्रसव के लिए भी होम्योपैथी की औषधियां जैसे कालोफिलम, काली फॉस, पल्स, पिट्यूटरी आदि बेहद कारगर हैं।
गर्भकाल में रखें इन बातों का भी ख़याल
अनावश्यक तनाव, कठिन व्यायाम, अत्यधिक श्रम, गरिष्ठ भोजन, लम्बी यात्रा, थकान ,नकारात्मक दूषित विचार व्यवहारआदि से बचें। सात्विक संतुलित पौष्टिक आहार , सकारात्मक आध्यात्मिक विचार,अध्ययन करें, नियमित स्वास्थ्य जाँच कराएं, प्रसन्न चित रहें और आवश्यकतानुसार ही चिकित्सक के परामर्श के बाद ही उचित औषधियों का सेवन करना चाहिए।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
रा.सचिव HMA
सह सम्पादक होम्यो मिरेकल