चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

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Wednesday, 31 August 2016

प्रजनन चक्र का उत्पाद है अंडा -डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी

अंडा शाकाहार है या मांसाहार इस बात पर विद्वानों के अलग अलग तर्क हैं किन्तु ज्यादातर इसे दूध के समान पोषण से भरपूर सम्पूर्ण आहार मानते हैं। इस विषय को समझने के लिए अंडे के उत्पादन की प्रक्रिया को समझना अत्यंत आवश्यक है। शरीर क्रिया विज्ञान के अनुसार विकास के क्रम में पक्षी वर्ग और स्तनपायी मादा में प्रजनन अंगो ,की क्रियाविधि में  समानताएं होती हैं जो एक निश्चित समय पर शुरू होती है सामान्य रूप से इसे प्रजनन चक्र कह सकते हैं। मनुष्यों में यह एक मासिक प्रक्रिया होती है जिसमें एक युवती में प्रत्येक माह (28दिन) , उसकी दो ओवरी में से किसी एक से अण्डोत्सर्ग होता है और साथ ही गर्भाशय की दीवारें रक्तनलियों से पूरित होते हुए कुशन जैसी तैयार होती हैं जो उत्सर्जित अंडे के निषेचित हो जाने पर उसके गर्भाशय में 9 माह तक रुकने के लिए आरामदायक बिस्तर की तरह काम करती हैं अथवा अनिषेचित अंडे के साथ गर्भाशय अपना यह कुशन तोड़ देता है और फलस्वरूप माह के अंत में रक्तिम तरल माहवारी की घटना होती है।

इसी प्रकार पक्षियों या, मुर्गियों में भी अंडोत्सर्जन  प्रजनन चक्र का उत्पाद होता है अंतर केवल इतना है की वह तरल रूप में ना हो कर ठोस अण्डे के रूप में बाहर आता है अर्थात अंडा मुर्गी की माहवारी है किन्तु यह 28 दिन की जगह वर्ष के कुछ खास महीनो में लगभग प्रतिदिन(28घण्टों  में) एक प्रजनन चक्र में पूरा होता है।
मुर्गी के प्रजनन अंगो को दो भागों में बांटा गया है ओवरी और ओविडक्ट।
मुर्गियों में सामान्यतः केवल बायीं ओवरी (कभी अपवाद स्वरूप् दायीं) ही विकसित होती है।
मुर्गी के प्रजनन चक्र में प्रकाश की  महत्वपूर्ण भूमिका है इसीलिए यह प्रातः से अपराह्न 3 बजे के बीच ही अंडे देती है। अंधेरे या प्रकाश की कमी अंडे देने की दर कम कर देती है।
इसका कारण बताया कि ओवरी से अण्डोत्सर्ग (पीला यॉक या अंडे की ज़र्दी ) के बाद  ओविडक्ट के अलग अलग भागों में पहले 3.5घण्टे इसमे अंडे की सफेदी (एल्ब्यूमिन) चढ़ती है फिर 1.5घण्टे में  इसके चारो तरफ आवरक झिल्ली का निर्माण होता है और इसके बाद इसपर मुर्गी के ही हड्डियों से (लगभग 47%)प्राप्त कैल्सियम कार्बोनेट का कठोर खोल का निर्माण गर्भाशय में होता है।
अंडे के बनने के इसी बीच यदि इसे संकरित कराया जाये तो ओवरी से निकलने के बाद ही यॉक निषेचित हो सकता है। 
क्या होता है अंडे में -

पक्षियों में भ्रूण का विकास निषेचित अंडे में शरीर से बाहर होना होता है इसलिए इसमे ग्रोथ हार्मोन , नर व मादा हार्मोन फाईटोएस्ट्रोजन ,सभी जरूरी पोषक तत्व जैसे प्रोटीन, कोलीन (मस्तिष्क विकास के लिए ), आँख के लिए लुकोसीन ज़िया जाइन्थिन ,हड्डी व दांतो के लिए जरूरी विटामिन डी आदि उचित मात्रा में पाये जाते है।
जिस प्रकार अंडे का सेवन बढ़ा है उसने मुर्गी पालन के व्यवसाय को जन्म दिया जहां प्रजनन चक्र को नियंत्रित कर एक मुर्गी से एक दिन में एक से पांच या अधिक अंडे प्राप्त किये जा सकते हैं।
ज्यादा पैसे कमाने के लिए आधुनिक तकनीक का प्रयोग कर आजकल मुर्गियों को भारत में निषेधित ड्रग ओक्सिटोसिन का इंजेक्शन लगाया जाता है जिससे मुर्गियाँ लगातार अनिषेचित अण्डे देती है।
कैसे स्वास्थ्य को प्रभावित  कर सकता है अंडा ?
मुर्गियों में भोजन से प्राप्त वसा में घुलनशील जैंथोफील के कारण गहरा रंग आता है, जैसे यदि मुर्गी को पीला मक्का खिलाया जाए तो यॉक गहरा पीला और यदि गेहूं, ज्वॉर या अन्य अनाज खिलाये जाएँ तो हल्का पीला रंग होता है।
अर्थात यहां एक बात और पुष्ट होती है कि मुर्गियों का आहार  अंडे के पोषक गुणों को भी प्रभावित करता है।
ऑहियो स्टेट की जन्तु विज्ञानी प्रोफेसर एम मोनिका गिउस्ति ने 2009 में एक अध्ययन में पाया कि एक प्रकार का सोयाबीन खाने वाली मुर्गियों के अन्डो में आईसोफ्लेवेन्स की प्रचुरता वाले फाइटो एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा पायी गयी। इसमे उपस्थित सॉय प्रोटीन तमाम स्वास्थ्य सम्बन्धी दिक्कते पैदा कर सकता है। अंडे से एलर्जी की शिकायत दरअसल इसी प्रोटीन के कारण होती है।
आकलन पर आधारित सम्भावना व्यक्त की जा सकती है  कि  कृत्रिम विधि के प्रयोग से उत्पन्न  अन्डो के सेवन से  पुरुषों में कई रोग उत्पन्न हो सकते है जैसे के वीर्य में शुक्राणुओ की कमी ,नपुंसकता और स्तनों का उगना, हार्मोन असंतुलन के कारण डिप्रेशन , हाइपोथायरायडिज्म, आदि ,वही स्त्रियों में अनियमित मासिक , शीघ्र मासिक की शुरुआत,
बन्ध्यत्व , गर्भाशय कैंसर आदि रोग हो सकते है ।
अन्डो के अंदर का पीला भाग लगभग 70 % कोलेस्ट्रोल है जो रक्त वाहिकाओं की भीतरी दीवार पर जम सकता है और  हृदय रोग का मुख्य कारण है ,हालांकि इस बारे में भी भिन्न मत हैं।
होम्योपैथिक मनोविज्ञान एवं दर्शन के भी अनुसार व्यावसायिक उत्पादन के लिए मुर्गियों को जिस तरह पिंजरे में रखा जाता है , उनके पंजो के नख और पर कुतर दिए जाते है.. उड़ने की आजादी छीन ली जाती है , ये स्थितियां मुर्गियों में भी बेहद पीड़ादायी, तनाव ग्रस्त और जीवन के प्रति निरन्तर भय के भाव भर देती होंगी और उसकी यही नकारात्मक ऊर्जा भी निषेचित या अनिषेचित अंडे में प्रतिस्थापित होती होगी ....जैसा कि धर्म ग्रन्थों में भी उद्धरण मिलता है । कहने का सांकेतिक भाव ये है कि बहुत सम्भव है कि अंडे में इस मूक जीव की पीड़ा का भी समावेश उसी प्रकार होता होगा....जैसे कि आहार से अन्य पोषक तत्वों का या सैल्मोनेला के संक्रमण का सम्भव है,अतः इसके सेवन से ये सभी नकारात्मक भाव मनुष्यों में भी स्थानांतरित होते होंगे।
धार्मिक शास्त्रों में माहवारी के समय महिला को जैसे अपवित्र माना जाता है उसी प्रकार पक्षियों के प्रजनन चक्र के उत्पाद अर्थात अन्डो को खाना धर्म और शास्त्रों के विरुद्ध अप्राकृतिक और अपवित्र है।
विकल्प के तौर पर केला आधा पीस कर उसपर सेब की चटनी या काली सेम फली पर टमाटर की चटनी (सॉस) प्रयोग कर सकते हैं।
होम्योपैथी में अंडे से होने वाली एलर्जी के लिए या इसके द्वारा तमाम मासिक धर्म सम्बन्धी विकारों का इलाज सम्भव है।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
रा सचिव एच एम ए

Wednesday, 24 August 2016

सफ़ेद सत्य -..तो अब आदमी की पूँछ नही रही

टी वी, अख़बार, सोसल मीडिया, समाचार, हर जगह जहां देखिये समाज को टुकड़ों में बंटते देख कभी कभी मन बड़ा खिन्न होने लगता है..तो सोंचा आज गांव ही चलते हैं । बाबा की चौपाल भी पक्की हो गयी थी उसपर सीमेंट की चादर ढकी थी ... लालटेन की जगह अब एलईडी जल रही थी ...तख़त पर बाबा जी का बिस्तर लगा था सामने बेंच और कुर्सियों पर गांव के बुजुर्ग बैठे मक्के का लावा (जिसे हमलोग पॉपकॉर्न कहते हैं) चबा रहे थे । हम लोग भी खेत खलिहान का चक्कर लगाकर आये और हाथ मुँह धोकर सबको पैलगी (प्रणाम) कर बैठ गए ,एक मुट्ठी लावा को एक एक दो दो कर खाने लगे। ठेकेदार बाबा बोले " डा भैया जब हमरे दादा डरेबर तोहरे हिंया रहत रहे तो दिन में एक मौनी लावा चबात रहे औ 8 मोटी बेसन कै रोटी...और अब तोहरे सब मूठी भै उहो दाना दाना चबात हौ। मुंशी भाई के दांत गिरे  तौ 30 -35 साल होय गा लगवायिन नाय लेकिन देखो केस चबाथे।"
पहलवान ने उनकी बात में सुर मिलाया "अरे तौ इन्ही के हिंया चना के बखार भरा रहत रहा और गेहूं कै रोटी बनत रही... बड़मनयिन कै भोज रही ई सब अब तौ सब खाय कमाय लागे। हमने कहा हाँ तब और बात थी ..लेकिन यह सब सुनने जानने का मौका किसके पास है आज ...अब तो इसे पॉपकॉर्न कहते हैं और वही बेसन की रोटी बड़े आदमी होने की पहचान बन गयी है।
सल्ले बोला भैया लेकिन एक बात तो है पहले देखो अपने गांव में ही शादी ब्याह में टेंट , जाजिम, बिस्तर , पलंग, कड़ाह, दोना , पत्तल, कुज्जा सब एक दुसरे के सहयोग से होय जात रहा ,अब तो केहू का केहू से मतलब नाय रहिगा , सब पैसा से मजदूरी से होय लगा..अब सबके यहां हलवाई लगते हैं। अब मुंशी बाबा से न रहा गया वे बोल उठे .."अरे तो अब के केकरे सुख दुःख में कामै आवतहै , न त्यौहार जनाय पड़त है ,न कौनो प्रयोजन ... बस उहे बड़ा बड़ा साउंड लगाय के बोतल चढ़ाय के लरिका मेहरारू मर्द सब नाचें...अंगरेज बन गए सब।" सल्ले की आदत कुछ हंसी करते रहने की थी वह बाबा को छेड़ते हुए बोला दादा सुनेन कि एक जने पण्डित  और भुजवा कै पतोह ये सब सही मा अंगरेज बन गए और रुपयो पाये हैं अब परसाद नाय लेते कहूँ ..कथा में.... न जांय। पहलवान बाबा ने कुछ तीखे अंदाज में कहा "अरे तो वसे का भा.. वै बदल गए.. कि उनके पुरखै तर गए ...कि लरिकै कलक्टर बन गए.. रहीहैं यही धरतिया पै..उहे अनाज, रोटी ,पानी, धुप गर्मी ,बरसात उनहुँ के मिले जौन अब तक रहा , जहां रुपयवा चुके ,अक्ल आय जाये ...मरिहैं तो उहे मनयवै कन्धा देईहैं। बहुत नहाये , क्रीम लगाये, करिया मनई गोर होय जाते तो केहू अमीर करिया होबे न करत।"
...और का ..सही कह्यो भाई हम अपने नाम के आगे कुछू और लगाय लेब तो रहब उहै...जानै वाले जनिहैं जे न जानत रहे उहे माने ...ठेकेदार ने अपनी बात जोड़ी । हमने कहा अरे अब विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है ..हर हाथ मोबाइल ..सेकेंडो में आप दुनिया से जुड़ सकते है , सारी जानकारी मिल जाती है । ठेकेदार  ने मुंशी बाबा की तरफ समर्थन लेने की उम्मीद के साथ कहा भैया हो इहै मोबइलिए एतना अगियो लगाये है..झूठै कहूँ बहसी बहसा भै.. उड़ाय दिहिन होय गा बवाल... भावना भड़क गय...औ दुसरयो जगह लड़ मरि गए सब। टीवी खोलो तो दिन भय मार काट ,चोरी चकारी ,जाति बिरादरी ,धरम ,इहै सब...का तू नाय देखत्यो कि जे बड़ मनई है ,उनके हिंया कौन धरम, जात देख के शादी बियाह होत है , कि केहू खाय खवावै में जात देखत है...ई सब यस समय आय गा है कि केहू केहू से कम नाय ना .....अरे जौ अपने बाप दादा कय ही इज्जत नाय करते तो बाकी कौन उम्मीद करबो...का मुंशी भैया ठीक नाय कहेन..।..
पायलागि भाय...अरे प्रिंसिपल साहब ..आओ आओ मास्टर का कहां छोड़ आयो..। हम सबने प्रिंसिपल साहब को प्रणाम किया वे हमारे गांव के ही मिडिल स्कूल में थे। मुंशी भैया जब तक आप हौ ई चौपार कै शोभा है ....क्यों भाई पहलवान क्या चर्चा हो रही है...बाबा बोल पड़े अरे प्रिंसिपल कौन चर्चा ऐसे बतकही होत रही ....जमाना बहुत आगे भाग गवा है ..अच्छा तू तौ पढ़ावत हौ एक सवाल कै जवाब देबो...? प्रिंसिपल साहब कुछ अचकचाए , कौन गोला दागने वाले हो मुंशी ....अच्छा दागो। ई बताओ हमरे बगिया में सबसे ज्यादा केकै पेड़ है ?..बाबा ने पूछा ..तो प्रिंसिपल साहब हंसते हुए कहने लगे -क्या मुंशी भाई ! आम अमरुद की बात करते हो , बूढ़े हो गए दांत गिर गए मगर जीभ का स्वाद नहीँ गया। इस बात पर सब लोग हंस दिए लेकिन बाबा ने आगे कहा तो अब ई बताओ वह आम अमरुद के पेड़ में जौन लकड़ी, पत्ती, तना,जड़,फल होत है वका वही कै कहा जा थै तो वहमे आम या अमरुद काव है ? सल्ले फिर चुटकी ले गया बाबा जौने रूख कै बोकला वही में लगे...लेकिन प्रिंसिपल साहब गम्भीर मुद्रा में आ गए ...मुंशी भाई आप तो गहरी बात कह गए ... सही है कि अलग अलग हिस्सों या उससे बनी वस्तुओं के नाम तो गिनाते हैं उसकी मूल पहचान नहीँ करते ...हम .....दरअसल यही उसका तत्व है , जिसे हम मानते हैं ,लेकिन जानते नहीं । हाँ प्रिंसपल  कह सकत हौ भगवान यही रूप में उसमे रहता है ...बस इहै वके जाति है धरम है यही लिए कहा गवा है जाति जात जात नहि जात...। अरे गर्भ धारण करै से लैके बच्चा जनै तक सब एकै जैसे होत हैं लकिन पैदा भये के बाद दुनिया भर की पहचान ...  लेकिन आज आदमी अपनी पहचान का गाली समझै लाग। अरे बनना है तो अच्छा कर्म करौ अच्छा इंसान बनो। प्रिंसिपल साहब ने जोड़ा वाह भाई क्या तर्क दिए हो लाजवाब....ठेकेदार भी कह उठे "ऐसे थोरे इनका हम सब मुंशी कहीथै।".. नाही हो ठेकेदार  तुहीं सोंचो जैसे भगवान मनई (मानव) बनाये वैसे तो हमरे पूर्वजै कै साल में समाज बनाये होइहैं ...कहो प्रिंसिपल? हाँ कबीले कुनबों से संस्कृति के विकास और समाज की स्थापना में हजारों वर्ष और सदियाँ लग गयीं। अच्छा तो एक बात और बताओ अगर केहू कै हाथ गोड़ (पैर) या सरीर कै कौनो अंग ठीक से काम न करे या न होय तो वका काव कहबो..? प्रिंसिपल साहब बोले अब कौन नया ग्रन्थ पढ़ाओगे भाई यह परपंच से मुक्ति देव हमें ...चली.. औरो काम है ...तुहे तो बस बतकही लेव। अरे नहीँ दादा सही तो कहत हैं सल्ले बोला वका मनई लूल लंगड़ कहत है । कभी शुद्ध बात भी करना सीख लो अब तो सरकार ने उन्हें नया नाम दिया है "दिव्यांग"... पहले विकलांग कहते थे।  पहलवान खीझ गए अरे तौ का वै सब ठीक होय गए....नांवें बदले क है ..तो जेतना अमीर हैं , उनका गरीब नाम दय दो , और गरीबन का अमीर ..होय जाय देश से गरीबी खतम...बन जाये देस दुनिया कै सबसे अमीर ....महराज नांव बदले से किस्मत न बदले।
मैं सोच रहा था यह भारत में बसने वाले आम आदमी की सोंच है जो अक्सर इन्ही चौपारों में सिमट जाती है।
बाबा ने कहा प्रिंसिपल सोच के बताओ तोहरे हमारे सरीर में जौन अंग जहां है और जौन वकै काम है उसे अलग कय के देखो.... जेकरे नाय बा ऊ सीख के कैस्यो काम चलावत है , लेकिन का सबही वैसे कय सकत है ..पहिले मनई के पूँछ रही अब नाय है काहे ?  प्रिंसिपल साहब कहने लगे हम चल रहे हैं आप भी खाओ पियो और आराम करो... सही कह्यो "पहले पूंछ थी अब नही रही..." आपकी हमारी बातें लाख सही हों तार्किक हों लेकिन कुतर्कों के आगे बूढ़े पैरों पे दौड़ा न जा सकेगा मुंशी...वर्तमान जैसा है हमे तुम्हे तो कन्धे मिल जायेंगे लेकिन आने वाले जमाने में अंतिम यात्रा या तो एक कन्धे पर हो या केवल गाड़ियों में होगी और रोने वाला कोई नहीँ...मुंशी भाई ...कुछ न कहो...आजकल लोगों की भावनाएं न जाने किस बात पर भड़क जाएँ...कहते कहते प्रिंसिपल साहब का स्वर भारी हो गया ...उन्होंने अपनी सायकिल उठाई और चल दिए । बाकी लोग भी चले गए , लेकिन बाबा क़ी बात मेरे दिमाग में गूँज रही थी ...जैसे यदि मेरे हाथों की जगह पैर हों और पैरों की जगह हाथ , कान की जगह आँख हो और आँखों की जगह कान तो कैसा दिखूँगा मैं... या प्रयास करूँ तो मै हाथों के बल चलने में निपुण हो सकता हूँ मेरे इस हुनर से मुझे पहचान भी मिल सकती है...किन्तु प्रकृति की व्यवस्था में जिस चीज का उपयोग नहीँ वह समय के साथ लुप्त हो सकती है किन्तु उसकी आदर्श स्थिति बदल नही सकती.....वह भले हमे स्वीकार हो या नहीँ...। समाज का निर्माण हमसे ही होता है इसलिए प्रकृति का यही सिद्धांत समाज के संघटन में भी लागू होता हो...जिसे हम स्वीकार भी नही सकते और बदलने भी नहीँ ....हालांकि कोशिश जरूर करते रहते हैं ।
डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
परामर्श होम्योपैथिक फिजिशियन
सह संपादक होम्यो मिरेकल
रा. सचिव- HMA

Wednesday, 10 August 2016

पूर्व सूचना देकर ही आते है तमाम जटिल रोग


( "स्वास्थ्य एवं होम्योपैथी जागरूकता अभियान" )
कई बार आपने डॉक्टरों को कहते सुना होगा कि "...अच्छा किया जो आप समय पर आ गए हैं थोडा और विलम्ब करते तो मुश्किल हो सकती थी" । इसका अर्थ यह है कि अक्सर हमारी छोटी मोटी तकलीफों को नज़रअंदाज़ करने की आदतें ही अक्सर गम्भीर बीमारी के रूप में हमे परेशान कर सकती हैं। जैसे यदि आपको अक्सर पिंडलियों में दर्द सूजन थकान महसूस होती है और ज्यादा नींद आती है तो आपको गुर्दे की बीमारी हो सकती है जिन्हें नज़रअंदाज़ करने पर किंडनी फेलियर भी हो सकती है।
गुर्दे हमारे शरीर के उत्सर्जी तन्त्र का महत्वपूर्ण अंग हैं जो रक्त को छानकर तमाम विषाक्त पदार्थों को निकलने और मूत्र निर्माण करते हैं। गलत दवाओं का लम्बे समय तक प्रयोग या बीमारी के चलते किडनी की कार्यिकी प्रभावित हो सकती है।जिसके चलते दैनिक जीवन में सामान्य लक्षणों में अन्तर को पहचान सकें और समय पर चिकित्सकीय सलाह लेने से रोग की गम्भीरता से बचा जा सकता है।
क्या हैं दैनिक जीवन में सांकेतिक लक्षण
यदि आपको रात में भी बार बार पेशाब जाना पड़ता हो , पेशाब की मात्रा कम या ज्यादा हो,  रंग गहरा, फेन या बुलबुले बनना, मूत्र त्याग की हाजत बने रहना आदि गुर्दे की बीमारी के संकेत हैं।ऐसे में चिकित्सक के परामर्श से खून व पेशाब की जाँच करा लेनी चाहिए।
रोगी अक्सर सुस्त पड़ा रहता है , रात में नींद नही आती, पैरों की पिंडलियों में सूजन दर्द के साथ बाल झड़ने की भी शिकायत करता है।
क्या हैं खास लक्षण
किडनी की पुरानी बीमारी में रोगी के मूत्र में उपरोक्त परिवर्तनों के साथ शरीर के विभिन्न हिस्सों विशेषकर चेहरे पैरों की पिंडलियों में सूजन , अत्यधिक थकान,सुस्ती ,उनींदापन, मुंह का मिटैलिक स्वाद, मितली ,उलटी, त्वचा पर उद्भेद, खुजली,  साँस लेने में तकलीफ या जल्दी जल्दी साँस लेना हो सकते हैं।
कितने महत्वपूर्ण है गुर्दे हमारे शरीर में
गुर्दे रक्त को छानकर मूत्रनिर्माण के साथ करते हैं । इनमे एरिथ्रोपोइटिन नाम का एक हार्मोन पाया जाता है ऑक्सीजन सप्लाई में सहायक लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में मदद करता है, इसकी कमी होने पर ही एनीमिया, के साथ सुस्ती थकान आदि महत्वपूर्ण लक्षण पैदा होते हैं।इसी प्रकार अनावशयक द्रवों का निष्पादन न हो पाने से शरीर के तमाम हिस्सों में सूजन व दर्द हो सकता है।
होम्योपैथी में क्या है संभावित उपचार ?
किडनी में होने वाले कई रोगों के उपचार में होम्योपैथी की दवाओं को खासा यश प्राप्त है ! कई दवाएं डायलिसिस तक से बचा सकती हैं। होम्योपैथी की लायकोपोडियम, सरसापरिला,कैन्थेरिस, एपिस, बर्बरिस वुल्गारिस, कैल्केरिया ,ओस्सिमम आदि औषधियां कारगर उपचार में मददगार हैं।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
राष्ट्रीय सचिव :होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन

सफेद सत्य : सड़क से साक्षात्कार

उखड़ती राहों में विकास की गति
बस क्लीनिक बन्द करने ही जा रहा था कि चार पांच लोग एक माता जी को लेकर अंदर दाखिल हुए । एक आदमी बोला डॉ साहब कई जगह दिखाया लेकिन कोई आराम नही डॉ तो कहते है इम्प्रूवमेंट हो रहा है मगर ये कहती हैं इनका दर्द बढ़ता ही जा रहा है,कई लोगो से सुना है आपकी दवाई का कोई दुष्परिणाम नही होता धीरे धीरे लाभ हो जाता है।मैंने कहा अच्छी बात है बैठें ,नाम बताएं ,बोलीं जो मर्जी रख लो बेटा मेरा क्या जगह के हिसाब से बदलता रहता है बचपन में पगडण्डी फिर राह अब लोग सड़क कहने लगे हैं। उम्र ,...अंदाज लो ...पता, न मेरा पता  है न मुझपर गुज़र जाने वाले का...  जो चाहे लिख लो ...|
उसका जवाब देने का अंदाज़ उसके अंतर्मन की पीड़ा का चित्रण मालूम होता था। कहाँ तकलीफ है माता जी मैंने पूछा तो उसने कहा जोड़ जोड़ दर्द दास्ताँ है   कुछ दिन पहले हमारे इलाके के डॉ ने बताया था कुपोषण है कैल्सियम की कमी है  ,त्वचा की चमक गायब जगह जगह फोड़े फुंसी घाव हो जाते है और काम ऐसा कि चोट खरोच लगते रहने से ये जख्म नासूर बन गए है उसने बोला सर्जरी करनी पड़ेगी, ।
मेरी तो पूरी काया जर्जर हो गयी है , और दिन ब दिन बढ़ता काम का दबाव मेरी जैसे कमर ही तोड़ देगा । मैंने उसकी पीड़ा.. जी ..कब से है यह तकलीफ और कब घटती बढ़ती है ? देखिये डॉ साहब  जबसे मेरा जन्म हुआ तभी से कभी घोड़ो की टापों ने रौंदा तो कभी हाथियों ऊँटो के पैरो तले कुचली गयी तब मेरे घाव मिटटी से भर दिए जाते थे वक्त के साथ मेरा जिस्म पथरीला होता गया लेकिन अब तो बड़े बड़े ट्रक बस ट्रैक्टर न जाने कितनी और कैसी कैसी गाड़ियां मुझे रौंद जाती है इतना शोर कि मेरी कराह और चीख उनके हार्न में दब जाती है, मेरी तकलीफ कभी कम नही हुयी.... हाँ जब थोडा मरम्मत हो जाती है कुछ दिन आराम मिल जाता है तब तक मौसम बदल जाता है और फिर जगह जगह जख्म उभर आते हैं गन्दा पानी जमा हो जाता है । कई जगह बाईपास करवाया लेकिन इतना दबाव कि वहाँ भी दबा दी जाती हूँ मैं । मैंने बीच में टोंकते हुए पूछा बायपास तो एक्सपर्ट करते हैं फिर कैसे ...? हाँ मगर मेरे खर्चे से सर्जन से लेकर लैब और वार्डबॉय तक का कमीशन भी तो निकलता है ...ऐसा न हो तो सालों लाइन में नम्बर लगा रहता है डॉ की ड्यूटी बदल जाती है पर मेरा नम्बर नही लगता।
कोई पुरानी बीमारी.....?.. नहीँ डॉ साहब सर्दी जुकाम तो मुझे कभी हुआ नहीँ हाँ चोट मोच एक्सीडेंट फ्रैक्चर कई बार हुआ ।बारिश में घाव उभर आते हैं ।
फिर मैंने उनके साथ आये लोगों से उनके स्वभाव आदि के बारे में जानना चाहा तो एक ने बताया साहब बढ़ती उम्र के कारण थोडा चिड़चिड़ापन है लेकिन दिल से बहुत भावुक है किसी का दर्द बर्दाश्त नही कर पाती ।
भविष्य की चिंता में तरह तरह की कल्पनाशील बातें करती है , कहती हैं अगर ईमानदारी से इनका इलाज हुआ होता तो इतनी जल्दी बुढ़ापा न आता । दुर्गन्ध और गन्दगी इन्हे बर्दाश्त नही होती लेकिन कुछ बद्दिमाग लोग अँधेरे का फायदा उठा कर लाशें तक सड़ने के लिए , जमा कूड़ा करकट खुली नालियां आस पास लगे पेड़ भी लोग काट देते है इन सबसे इन्हे बहुत कष्ट होता है लेकिन किसी से कुछ कह नही पाती। अभी कुछ दिन पहले मंत्री जी हाल चाल लेने आये थे तो इनको बड़ी उम्मीद जगी कि अब जल्दी इनका इलाज हो सकेगा लेकिन फॉर्मेलिटीज़ इतना समय लेगी इसका अंदाज नही था । तभी साथ आये दूसरे आदमी ने सर मैं विकास हूँ ऑटोरिक्शा चलाता हूँ पर माता जी की बिगड़ी तबियत के चलते कम ही चल पाता हूँ इससे रोज एक चक्कर कम लगता है रुक रुक कर चलने से पेट्रोल भी ज्यादा खर्च और जल्दी जल्दी सर्विसिंग  करानी पड़ती है इसलिए बचत कम और खर्च से हालत खस्ताहाल बनी रहती है ।मेरा साथी एम्बुलेंस चलाता है कई बार मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देता है, कहीं आग लग जाये तो पहुचने में देर समय जैसे रुक सा जाता है । इन सब बातों का ज़िक्र करती रहती है इतना दुखी हो जाती हैं कि इनकी साँस उखड़ने लगती है। क्या क्या बताएं साहब आप खुद ही जाँच कर देखिये आप क्या कर सकते हैं।
केस तो बड़ा पेचीदा लग रहा था फिर भी मैंने परीक्षण में पाया कि सड़क जी के जिस्म में जगह जगह बड़े बड़े घाव (गड्ढे) हो चुके थे ,ऑस्टियोपोरोसिस जैसा कुछ लग रहा था ...तारकोल गिट्टियों का अनुपात बिखर चुका था ...धूल का उड़ता गुबार धुंध बना देता आँखों के सामने  । उसमे कार्यिक असन्तुलन ही नहीँ संरचनात्मक विकार उतपन्न हो चुके थे इसलिए सर्जरी की आवश्यक्ता है इसके साथ या बाद में ही होम- यो -पैथी (मेक इन इंडिया) का कारगर ,सरल,शीघ्र व दुष्परिणाम रहित लाभ लिया जा सकता है।परहेज़ के लिए कार्य में अनावश्यक लापरवाही लेट लतीफी से बचें, अतिरिक्त दबाव या तनाव से बचें, संक्रमण (अतिक्रमण) से बचाव के लिए आस पास गन्दगी व पानी जमा न होने दें नियमित सफाई स्वच्छता बेहतर स्वास्थ्य की सञ्जीवनी है।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
रा सचिव एच एम ए

दृढ़ सन्कल्पशक्ति व होम्योपैथी से छूट सकती है तम्बाकू की आदत


तम्बाकू के सेवन से हृदय रोग, अस्थमा, नपुंसकता, और कैसर जैसे हो सकते हैं प्राण घातक रोग
आदतें अक्सर शौक की शक्ल में  मिलती हैं और फिर मरते दम तक  पीछा नही छोड़ती एक तरह से आदमी इनका गुलाम सा बन जाता है। ऐसा ही एक शौक जो आजकल युवापीढ़ी को अपनी गिरफ्त में लिए जा रहा है वो है तम्बाकू का सेवन जो गुटखे,सिगरेट बीड़ी हुक्के कई रूपों में नशे के लिए प्रयोग किया जाता है।
अक्सर तनाव या मानसिक दबाव कम करने के लिए लोग नशे का सेवन पहले शौकिया तौर पर करते है फिर वह उनकी मज़बूरी व कमजोरी बन जाता है। ऐसे लोगों में इच्छाशक्ति, आत्मविश्वास ,निर्णय लेने की क्षमता में कमी आदि व्यहारिक परिवर्तनों के साथ दीर्घकाल में कैंसर जैसे प्राणघातक  रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
तम्बाकू की सूखी पत्तियों में निकोटीन, पायरीडीन, पिकोलिन, तथा कालीडीन पाया जाता है। ये सभी तम्बाकू के विभिन्न उत्पादों के सेवन के दौरान फेफड़ों पर हानिकारक असर डालते हैं। तम्बाकू के धुएं में हानिकारक तत्वों से अलग बेंज़ीन तथा रेडियोएक्टिव लेड विद्यमान होता है जिसकी अधिक मात्रा ल्यूकीमिया का कारण बनती है।

आजकल महिलाओं में भी धूम्रपान की आदत बढ रही है जिसके चलते जन्मे बच्चे अधिक बीमार पड़ते हैं और उनमे आकस्मिक मृत्यु का खतरा बना रहता है। ये महिलाएं अपने बच्चों को कैंसर के तत्व जन्म के साथ तोहफे में दे देती हैं।
लन्दन के डॉ क्लीव वैट्स ने पाया कि धूम्रपान पुरुषों में लिंगोत्थान की क्षमता को भी विकृत करता है और रक्तवाहिकाओं को क्षति पहुंचकर हृदय पर भी प्रभाव डालता है।
तम्बाकू के सेवन से व्यक्ति में घबराहट ,बेचैनी, अनिद्रा,  तनाव, सुस्ती ,आलस्य,अवसाद , स्नायुशूल, तीव्र धड़कन,उच्च रक्तचाप, कब्ज़,अपचन रोग ,आँखों में अंधापन, या मद्ध्यम रौशनी, बल्ब या दिए की रौशनी से घबराहट के साथ हृदय रोगों की सम्भावना बढ़ जाती है जिसे टोबैको हार्ट भी कहते हैं।
सिगरेट पीने वालों में गले की जीर्ण दुखन के साथ प्रातः खांसी व कुछ दानेदार कफ आ सकता है। धूम्रपान से अस्थमा व नपुंसकता भी आती है।
गुटखे का सेवन करने वालों में फाइब्रोसिस के कारण मुंह का खुलना कम हो जाता है और संवेदनशीलता बढ़ जाती है तो मसालेदार या गर्म भोजन खाने में तकलीफ होती है। कई बार मुख या गले का कैसर हो जाने से व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है।
होम्योपैथी की दवाओ से धूम्रपान या तम्बाकू सेवन की आदत से छुटकारा पाया जा सकता है किन्तु इसके लिए व्यक्ति की इच्छाशक्ति दृढ होनी चाहिए केवल दवाओं के सहारे कुछ नही हो सकता। नियमित व्यायाम योग मेडिटेशन का भी सहारा लिया जा सकता है।
कई बार तीव्र इच्छा हो तो कपूर की छोटी गोलियां मुह में रखें। होम्योपैथी में रोगी को लक्षणों के मिलान के आधार पर आर्स, नक्स, कैम्फर, प्लांटगो, स्टैफिस, कैलेडियम,  फोस्फोरस,इग्नेशिया, स्पाइगेलिया आदि दवाओं का सेवन चिकित्सक की सलाह के अनुसार नियमित करना चाहिए।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
राष्ट्रीय सचिव :होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन

त्रिदोष नाशक है योग ,आयुर्वेद एवं होम्योपैथी


स्वस्थ जीवन में तीन महत्वपूर्ण बातें-
जीवन - शरीर मस्तिष्क और प्राण।
रोग - विचलन, कार्यिकी, और शल्य रोग।
रोगी अवस्था - एक्यूट, सब एक्यूट, क्रानिक।
उपचार- नियमन, औषधि, शल्य क्रिया।
तरीके - योग, होम्योपैथी और आयुर्वेद।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति को मातृभाव से देखा जाता है क्योंकि इसने अपने विभिन्न उपादानों में प्राणियो के पोषण के उपयुक्त पोषक तत्व डाल रखे हैं । अनादिकाल से हमारे ऋषि मुनि (वर्तमान में भी जो) योग और आयुर्वेद के माध्यम से इसके सहचर्य में रहे है आधुनिक जीवन शैली के रोग दोष से मुक्त हैं।
भारतीय दर्शन एवं विज्ञान में जीवन का चित्रण बड़ा सरल भी है और जटिल भी। इसके अनुसार शरीर, चेतना और मन सभी का आधार "प्राण" है । प्राण का तात्पर्य श्वास और श्वास का तात्पर्य प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन से है। अतः शरीर के प्रत्येक सूक्ष्मतम अवयव तक निष्पन्न होने वाले कार्यों को पूरी मात्रा में ऑक्सीजन या प्राण देकर शरीर के आंतरिक अवयवों को व्यायाम देने की पूर्णता ही प्राणायाम है।
स्वास्थ्य के लिए भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टि में स्पष्ट यह अंतर है कि एलोपैथी में जब रोगी आता है तो उसे हृदय रोगी,श्वास रोगी,उदर रोगी आदि की श्रेणियों में बाँट दिया जाता है क्योंकि आधुनिक चिकित्सा का सत्य क्लीनिकल कण्ट्रोल ट्रायल पर आधारित है जहां सत्य का अन्वेषण एक चुनौती भरा दायित्व है। ऐसेमें केवल योग आयुर्वेद और होम्योपैथी में ही स्वास्थ्य का विचार करते समय शरीर, विचार, भावना, जलवायु परिवेश , आदि को महत्वपूर्ण माना जाता है।
क्या है स्वास्थ्य
चरक के अनुसार जिसका त्रिदोष वात पित्त कफ़,व सप्तधातु मल प्रव्रत्ति आदि क्रियाएँ  संतुलित अवस्था में हों साथ ही आत्मा इन्द्रिय एवं मन प्रसन्न  में हो वही मनुष्य स्वस्थ कहलाता है।
होम्योपैथी में भी शरीर ,मस्तिष्क व जीवनी शक्ति (भारतीय अध्यात्म के अनुसार आत्मा) का सन्तुलन ही स्वास्थ्य   है।
इनका असन्तुलन ही रोग का कारण  है। भारतीय दर्शन के अनुसार रोग दो प्रकार के होते है
पहला आधि अर्थात मन के रोग
दूसरा व्याधि अर्थात शरीर के रोग ।
एक दृष्टान्त के अनुसार योग वशिष्ठ में रोगों का विश्लेषण करते हुए महर्षि वशिष्ठ श्री राम से रोग दो प्रकार के बताये एक आधीज जिसमे दुनिया के दैनिक व्यवहार करते समय उपन्न होने वाले तनाव के फलस्वरूप सामान्य रोग होते है जिनमे आरोग्य का साधन प्राकृतिक चिकित्सा अथवा योग ही हैं। अथवा सार अर्थात जन्म एवं मृत्यु जिनसे सभी को गुज़रना है।
दुसरे प्रकार का रोग जो आकस्मिक या वाह्य कारणों चोट संक्रमण आदि से उतपन्न हो सकते हैं ।
आधीज व्याधि में कैसे बदल जाती है ? श्रीराम के इस प्रश्न के उत्तर में वशिष्ठ जी ने जो व्यख्या बताई होम्योपैथी उस कसौटी पर भी खरी उतरती दिखती  है। महर्षि वशिष्ठ ने कहा " मनुष्य के मन में लालसाएं वासनाएं होती है उनकी पूर्ति न होने पर मन क्षुब्ध होता है, मन के क्षुब्ध होने से प्राण और क्षुब्धप्राण के नाड़ी तन्त्र में प्रवाहित होने से स्नायु मण्डल अव्यवस्थित हो जाता है और शरीर में कुजीर्णत्व अजीर्णत्व होता है इसी कारण कालान्तर में शरीर में खराबी आ जाती है इसे ही व्याधि कहते है।
भावना तथा विचार की शुद्धि व नियमन हेतु विशेष रूप से योग विज्ञान उपयोगी है।
शरीर के स्तर पर चिकित्सा हेतु आयुर्वेद व अन्य चिकत्सा पद्धतिया उपयोगी हो सकती हैं। स्वस्थ शरीर में रोग की उत्पत्ति और उसके निदान के विषय में योग आयुर्वेद एवम् होम्योपैथी में जो सैद्धांतिक एकरूपता दिखती है उसके अनुसार " मनुष्य तभी स्वस्थ है जब तक  जीवनी शक्ति (आत्मा, जैविक ऊर्जा,प्राण) के नियंत्रण में शरीर व मस्तिष्क, तीनो सन्तुलन की अवस्था में हैं । मनुष्य में अदृष्य जीवनी शक्ति या प्राण  में  दैनिक जीवन के तनाव भावनाओं की चोट,विचार आदि से न्यूनता आती है और शरीर रोग के लिए प्रवृत हो जाता है।इस प्रकार रोग का कारण डायनामिक शक्तिया है जिनका नियमन डायनामिक औषधीय तरीकों से हो सकता है।"
योग द्वारा शरीर मन और चेतना तीनों में सन्तुलन स्थापित होता है जो स्वास्थ्य की प्रथम शर्त है।
अनेक असाध्य या दुःसाध्य प्रकार की श्रेणी में आने वाले रोगों के इलाज में व्यक्ति आधारित प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में आयुर्वेद तो महत्वपूर्ण है ही किन्तु होम्योपैथी में आयुर्वेद के समः समे शमयति एवं मर्दनम गुण वर्धनम के सिद्धांत के अनुरूप विषैले एवं निष्क्रिय पदार्थों को औषधीय क्षमता में गुणात्मक वृद्धि कर सकने के तरीके में ऐसे सबसे अत्याधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति की अग्रपंक्ति में ला खड़ा करते हैं।
मन की तमाम स्थितयों हर्ष विषाद दुःख घृणा प्रेम उपेक्षा चिंता अवसाद तनाव आदि का जितना महत्व होम्योपैथी की औषधि चयन में है उतना ही महत्वपूर्ण योग का जीवन की इन मनः स्थितयों में संयम स्थापित करने में है। योग शरीर मन और चेतना में एकरूपता ला कर जीवन में ऊर्जा के संचार को नियंत्रित कर हमे मानसिक और शारीरिक रूपसे स्वस्थ बनाता है।
सादर
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
राष्ट्रीय सचिव :होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन
HMA

Monday, 8 August 2016

सफेद सत्य : वो विद्वान थे.... हम डिग्रीवाले

गोस्वामी तुलसीदास, कबीर, सूरदास कभी किसी विश्वविद्यालय के शोध छात्र नहीं रहे ...किसी कानून की पढ़ाई न की होगी मगर जो कुछ लिख गए वह उनकी दूर दृष्टि ही रही होगी ....जो वर्तमान में सत्य प्रतीत होती दिख रही है । विकास, अनुसन्धान और आधुनिकता में स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति में स्वच्छन्दता में परिपक्वता का जो स्तर दिखाई देता है ....उससे भारत के विश्वगुरु बनने की उम्मीद कैसे रखी जा सकती है।
राजनीति में अधर्मी रावण ने सीता के हरण के बाद यातनाएं दीं... उनके सम्मान में कमी न आने दी...शिशुपाल ने कृष्ण को भरी सभा में गालियां दीं...हिरण्यकश्यपु ने स्वयं को भगवान घोषित कर भगवान भक्त अपने पुत्र को अपने अनुचरों सैनिको से प्रताड़नाएं दीं.....महाभारत के युद्ध में भी परिवार लड़े किन्तु सूर्यास्त के बाद भीष्म से उन्ही के वध का तरीका पूछने पहुँचे अर्जुन को आशीर्वाद भी मिला...ऐसे न जाने कितने उदाहरणों से इतिहास भरा पड़ा है...किन्तु हमने कभी कुछ नहीँ सीखा....।
जिस तरह का प्रदर्शन देखने को मिल रहा है और उसपर गलती को स्वीकार कर उसे मिटाने की बजाय बेशर्मी से उसे पुष्ट करने के लिए मतलब समझाये जा रहे हैं ....जनता यदि जनार्दन का रूप है तो स्वयं सही गलत का निर्णय करे और समय पर जवाब दे....ऐसे लोग यदि आपका नेतृत्व करते हैं तो छवि आपकी भी खराब होती है।
डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी

Saturday, 6 August 2016

हमारा सामाजिक बोध कैसा हो

"मैंने तो "राम -राम" कहा ,
तुम जिसे "मरा" समझे,
मैंने जो विनोद किया तो
उसे मशविरा समझे
दिल से जो सच्ची बात कही
तो तुम ही उसे मुहावरा समझे।।"(डा उपेन्द्र)
आये दिन मीडिया के विभिन्न माध्यमों में नए नए मुद्दों पर चर्चा होती रहती है फिर कुछ दिनों तक उसी की लहर चलती है और उसके शांत होने तक एक नई लहर बन जाती है ... जनमानस में इन लहरों का क्या होता है असर ?....कैसे इसका प्रयोग करते होंगे राजनीती के खिलाड़ी ....  जनमानस में द्वन्द सा पैदा होता ये "चक्रवात"..... किसी मस्तिष्क की व्यूह रचना से बनाया गया "चक्रव्यूह "तो नही। आईये समझते है इस चक्रव्यूह की कितनी परते मनोविज्ञान खोल पाता है--
यदि आपसे कोई कहे , रुको मत भागो...या ...लड़ो मत प्रेम से रहो... तो कुछ लोग इसका अर्थ निकालेंगे रुको,मत भागो अथवा लड़ो, मत प्रेम से रहो.., या दुसरे लोग समझ सकते हैं कि  रुको मत, भागो अथवा लड़ो मत, प्रेम से रहो।और कहने वाला कहता है कि "मैं सिर्फ उसका जिम्मेदार हूँ जो मैंने कहा उस बात का हरगिज़ नहीँ जो आपने समझा"।
अर्थात यहाँ संशय का जो मूल कारण समझ में आता है वह है हमारी "समझ का फेर" । यह इस बात पर ज्यादा निर्भर करता है कि किसी सन्दर्भ को देखने का हमारा दृष्टिकोण कैसा है इसी कारण भारतीय परम्परा में विवाह गीतों के माध्यम से प्रेम से सुनाई जाने वाली गलियां भी प्रिय लगती हैं किन्तु क्रोध से दिया जाने वाला आशीर्वाद भी अप्रिय।
विचार किया जाए तो व्यक्तिगत से लेकर वृहद सामाजिक सन्दर्भों में इस "समझ के फेर" से तथ्यों में सामन्जस्य स्थापित न हो पाने से कई बार अनपेक्षित मुश्किलें हो जाया करती हैं।
दरअसल हमारे प्रतिक्रिया देने के पीछे कोई क्रिया प्रेरणा के तौर पर कार्य करती है यह दृश्य भौतिक वस्तु व्यक्ति या अदृश्यरूप में विचार कल्पना कुछ भी हो सकते हैं । हमारा मन मष्तिस्क दृश्य अदृश्य सभी आवेगों के प्रति उनकी तीव्रता या उनके प्रति हमारे आकर्षण के अनुरूप लिए प्राकृतिक तौर पर संवेदनशीलता व्यक्त करते हुए उन्हें ग्रहण करता है और उसके पश्चात ही प्रतिक्रिया देता है। अर्थात यहाँ तीन प्रमुख अवस्थाएं है पहली आवेग या प्रेरक वस्तु विचार अथवा उद्दीपन, दूसरा उसकी सुग्राह्यता, और तीसरा उसपर प्रतिक्रिया।
सम्मिलित रूप से ये मानसिक क्रियाएँ हैं जिन्हें यूँ समझ सकते हैं
उद्दीपन - कोई दृश्य ,विचार या व्यवहार (भौतिक या डायनामिक)हो सकता है जिसे प्रेषित किया जा रहा हो। इनमे अपना आवेग, आवृति ,और आकर्षण होता है।
सुग्राह्यता- संवेदनशील मस्तिष्क इंद्रियों के माध्यम से सन्देशों को ग्रहण करता है।इस क्रिया में हमारे ध्यान मनोयोग रुचियों अभिरुचियों का विशेष महत्व है।
समान्य तौर पर प्रतिक्रिया का आधार सुग्राह्यता ही होती है क्योंकि उम्र के साथ मानसिक विकास के क्रम में बोध अनुभव अथवा ज्ञान का विकास होता जाता है । इसमें मुद्रा या ठवन, स्मृति, बुद्धि , विचार , विश्लेषण, तर्क, सामन्जस्य, सक्रियता, अनवेंषण, कल्पना, रचना, भावना आदि क्रियाएँ जुड़ती जाती हैं जिनसे गुज़रने के बाद ही व्यवहार के रूप में प्रतिक्रिया प्रदर्शित होती है।
प्रतिक्रिया या व्यवहार- उद्दीपनो के बोधनुरूप  ही व्यवहार किया जाता है ।
इस तथ्य को बालमन की निर्मलता पुष्ट करती है इसीलिए उन्हें अबोध निर्मल मन एवं सच्चे बच्चे कहते है क्योंकि वह किसी भी दृश्य अदृश्य अनुभूति की प्रतिक्रिया वैसी ही व्यक्त करते है। उनकी भाषा तोतली हो सकती है किन्तु भाव निस्वार्थ और व्यवहार निर्मल सरल ही होता है।
इस मन मस्तिष्क में संस्कारों का सृजन पोषण शिक्षा के ज़रिये ही हो सकता है जिसके माध्यम से व्यक्ति में ज्ञान और "बोध " का सही विकास होता है। बोध अनुभव आधारित तथ्यों के तर्कसंगत आत्मविश्लेषण, चिंतन, मनन से ही होता है। यूँ तो स्वयं तय किये गए मानकों पर हर व्यक्ति सही होता है किन्तु वर्तमान परिदृश्य में जीवन की जटिलताओं एवं संघर्ष ने परस्पर प्रतिस्पर्धा को जो गति दी है उससे सामन्जस्य स्थापित कर पाने के लिए  जो आत्मसंयम चाहिए कहीं उसकी कमी हो तो नकारात्मक विचारों का घेरा  उसके आत्मविश्वास को ही कमजोर करने लगता है ऐसे में जीवन के लक्ष्य निर्धारण स्थायित्व पारिवारिक सामाजिक आर्थिक प्रतिष्ठा की चिंता, अवसाद उसे घेर लेते हैं।
ऐसे में किसी भी सम्भावना में अतिउदासीनता या सक्रियता में उचित अनुचित का भेद कठिन हो जाता है।
हमारे मन में स्वयं को सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करने की उद्विग्नता भावनाओं से मिलकर उद्वेलित होती है और जो लोग इस बात को समझते हैं वे अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इसे साधन के तौर पर इस्तेमाल कर सकते है अथवा किसी भी सन्देश का विश्लेषण इतनी चतुराई से प्रस्तुत किया जाता है कि वह सन्देश की मूलभावना को ही बदल देता है।वस्तुतः मतभेद, विवाद, संघर्ष, इन्ही आधारों पर होते होंगे।
जैसे द्रोणाचार्य को उनके पुत्र की मृत्यु का झूठा समाचार देने के साथ युधिष्ठिर के सत्यधर्मपालन के लिए श्रीकृष्ण ने आधे वाक्य (अश्वत्थामा हन्ति...)में ही शंख बजा दिया जिससे द्रोणा्चार्य का वध किया जा सका।
जबकि यधिष्ठिर ने सत्य ही कहा था- "अश्वत्थामा हन्ति नरो वा हस्तिनो वा"। 
हमारे जीवन में भीे ऐसे कई उदाहरण होंगे जबकि  अभिव्यक्ति के भाव और सुनने वाले की प्रतिक्रिया विपरीत या अनपेक्षित भावार्थ की मिलती होगी।
ज्यादातर लोग मन और मस्तिष्क को एक जैसा ही मानते है लेकिन मेरे विचार से दोनों में एक सूक्ष्म अंतर बिलकुल वैसा ही प्रतीत होता है जैसे बुद्धि और विवेक का।बुद्धि मन की तरह चंचल और अस्थिर है , इसी लिए मन में विचारों का "चक्रवात " उठता ही रहता है जबकि विवेक मस्तिष्क में पूर्वस्थित स्मृतियो, अनुभवों के आधार पर तार्किक विश्लेषण के बाद ही किसी निष्कर्ष पर पहुंच कर प्रतिक्रिया देता है।मस्तिष्क में विचारों के "चक्रवात " को नियंत्रित और पूर्व अनुभवों के आधार पर विश्लेषण कर भविष्य के निहित लक्ष्य को प्राप्त करने की स्पष्ट योजना अर्थात चक्रव्यूह बना सकने की क्षमता होती है। कह सकते हैं कि बुद्धि तात्कालिक किन्तु विवेक दूरदृष्टि को प्रदर्शित करती है।
अर्थात यदि हमारा बोध सुस्पष्ट है तो हम विषयों के सही भावार्थ को समझने में सक्षम होंगे । यदि इसी बिंदु को ही समझा जाए तो विषयवस्तु का सही बोध न कर पाने से भ्रम या धोखे जैसी स्थिति बन जाती है , जैसे कोई रस्सी को सांप समझ ले । ऐसे ही मान लीजिये चिकित्सक होने के नाते हम अपने किसी रिश्तेदार की जाँच परख के बाद उसे सब ठीक है बताते हुए खुश रहने के लिए कहें और मिठाई खाने से मना कर दें , और इसी बात से नाराज़ हो जाये। व्यक्तिगत जीवन में यही छोटी बातें वृहद रूप में समाज के बड़े वर्ग या समूह पर भी लागू हो सकती हैं क्योकि हमारा समाज भी तो  हम और हमारे जैसे लोगो से ही मिलकर बना है सभी की अपनी चिंताएं , समस्याएं , भावनाएं और समझने के तरीके हैं।इसलिए हमे बोलने से पहले यह परख लेना चाहिए कि विषय की गम्भीरता क्या है? और शब्दों के भाव क्या हो सकते हैं? अभिव्यक्ति की भंगिमा कैसी है? दूसरों के समझने के आयाम क्या हो सकते हैं? और ठीक इसी प्रकार बोलने वाले के सन्दर्भ के साथ उसके व्यक्तित्व भाव संकेत को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए लेकिन इसमे ज्यादातर हमे सकारात्मक पहलू पर ही ध्यान देना चाहिए इससे यदि कोई व्यक्ति अपनी बात को नकारात्मक उद्देश्य की पूर्ती के लिए माध्यम बनाना चाहता भी है तो उसे महत्वहीन बनाकर सिर्फ उसके सकारात्मक पक्ष को समाज राष्ट्र हित में महत्व दें अन्यथा उसे पूरी तरह नकार दें। ऐसा करने से ऐसी मंशा रखने वाले लोगों पर स्वयं अंकुश लग सकता है। क्योंकि स्वस्थ समाज की कल्पना के लिए मानसिक स्वास्थ्य को भी ध्यान में रखना बेहद जरूरी है और यह तभी सम्भव है जब
"सार सार को गहि रहे थोथा देय उड़ाय......."
डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी

गर्भावस्था की दिक्कतें और होम्योपैथी

गर्भपात की प्रवृत्ति दूर करने और आसान प्रसव में मददगार है हॉम्योपैथी : डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
मातृत्व का सुख प्राप्त करना स्त्री को उसकी पूर्णता का अहसास करने वाला होता है। गर्भधारण के दिन से बच्चे को जन्म देने तक नौ माह के दिनों में गर्भवती को बहुत से शारीरिक मानसिक परिवर्तनों से गुजरना होता  है जिसके चलते उसके स्वास्थ्य की उचित देखभाल व सावधानी की जरूरत होती है। इसलिए निकट के स्वास्थ्य केंद्र पर महिला चिकित्सक से नियमित परामर्श लेते रहना चाहिए। आधुनिक चिकित्सा पद्धति जहां किसी भी आकस्मिक परिस्थिति में लाभदायी है वहीं हानिरहित होम्योपैथी का प्रयोग किसी भी आकस्मिक स्थिति अथवा गर्भपात की प्रवृत्ति से बचाते हुए सरल सुरक्षित प्रसव करा पाने में भी सहायक है। होम्योपैथी को लेकर आम जनता में तमाम तरह की भ्रांतियां अभी भी व्याप्त  हैं अतैव ऐसे सम्मेलन शिविर अथवा प्रकाशन सामग्रियाँ बहुत सीमा तक एक नए विश्वास को आयाम देती हैं। आईये संक्षेप में गर्भकाल में होने वाली परेशानियों के होम्योपैथिक उपायों के बारे में जानें।
गर्भधारण में कठिनाई एवं गर्भपात की प्रवृत्ति-
गर्भधारण की समस्या के लिए स्त्रीपुरुष दोनों जिम्मेदार हो सकते है । विषयांतर्गत यदि स्त्री में गर्भधारण में कठिनाई के कारणों की गहनता से जाँच की जाये तो मनःस्थिति , मासिक अनियमितता, हार्मोन , अंडाशय, जरायु आदि के कारण संभव हो सकते है। कुछ महिलाओं में गर्भधारण के बाद दुसरे , तीसरे, पांचवे, या सातवें माह में गर्भपात की प्रबृत्ति भी देखने को मिलती है। इन समस्याओं के निराकरण में होम्योपैथी अन्य समकालीन पद्धतियों से अधिक कारगर सरल और सुविधाजनक है।
होम्योपैथी -
एकोन, एपिस, सिमिसिफ्यूगा, वाईबर्नम, सिपिया, बोरेक्स आदि।
सिर में दर्द-
गर्भावधि में कभी भी रक्त का संचरण सर की तरफ अधिक होने से, वात ,अर्जीण के कारण सिर में रुक-रुककर आने वाले ,टपक की तरह का सिरदर्द और इसके साथ ही आंखें और मुंह का लाल होना तथा कान में अजीब-अजीब सी आवाजें गूंजना जैसे कुत्ते की आवाज , सिर में चिलक उठने की तरह के दर्द की शिकायत हो सकती है।
होम्योपैथी
एको, नक्स बेल चायना इग्ने, वालेरियाना दी जा सकती हैं।
मानसिक परेशानियां
किसी डर, सदमे या दुख ,दिल की क्रिया धीरे होने, खून आदि निकलने, स्नायविक कमजोरी , नींद में , या उठने के बाद, चोट से,अथवा हिस्टीरिया रोग के कारण बेहोशी आ सकती है।
प्रायः देखने में आता है कि जिन स्त्रियों  में गैस बनने की प्रवृत्ति ज्यादा होती  है उनमें  हिस्टीरिया की सम्भावना अधिक होती  है।अतः  शरीर में अकड़न हो जाने से गर्भपात का  भी खतरा हो सकता है। अकड़न आने से पहले रोगी स्त्री को ऐसा लगता है जैसे कि उसके गले में कोई चीज अटक रही है, रोगी स्त्री फूट-फूटकर रोती है, गले को  पकड़ लेती है,  होश में रहते हुए भी बोल नहीं पाती, डकारें आती है या मूत्र निकल जाता है और शांत होने की अवस्था में रोगी स्त्री बार-बार चिल्लाती है, आंसू बहाती है।
इसी से मिलते जुलते मिर्गी की पहचान  माथे में दर्द , सुस्ती, चक्कर, , नींद में बेचैनी , दिल की धड़कन, मितली, उल्टी , चेहरे के लाल हो जाने जैसे  लक्षणों से की जा सकती है ।
होम्योपैथी-  ऐगारिकस, बेल, कास्टि, साइक्यू, क्यूप्रम, हायोस , मस्कस, लाइको, एसिड फॉस, चायना ,डिजिटेलिस, इग्ने, अर्निका, नक्स, प्लैटिना और बैलेरियाना औषधियों  का प्रयोग किया जा सकता है।
कुछ गर्भवती स्त्रियों में  तेजसिर दर्द के साथ उल्टी एवं गहरी मूर्छा आ जाती है और वह जमीन पर गिर जाती है , नाक से गहरी सी आवाजें, चेहरा लाल और आंखें स्थिर हो का जाने जैसे  लक्षण मिल सकते हैं।
होम्योपैथी -
ऐकोन, बेल, काक्युलस, लैकेसिस, नक्स या ओपि औषधि का प्रयोग किया जा सकता है।
गर्भावस्था में  अन्य कई तरह की मानसिक परेशानियां जैसे अपने आप ही गुस्सा , छोटी-छोटी बातों पर रोना, भावी प्रसव के दर्द से बेचैन, चिड़चिड़ापन , बच्चे को जन्म देने का डर , गहरी चिंता ,सदमे या शोक , गुस्से आदि के लक्षण मिल सकते हैं।
होम्योपैथी-
सिमिसिफ्युगा, इग्नेशिया, कैमोमिला  ऐकोनाइट,   पल्स का प्रयोग करना चाहिए।
श्वसन सम्बन्धी -
  गर्भवती स्त्री को ज्यादा घूमने,सूखी खांसी , अर्जीण या स्नायविक दुर्बलता आदि कारणों से सांस लेने में परेशानी  हो सकती है।
होम्योपैथी-
ऐमोन, आर्स, इपि, मस्कस, फास,  ब्रायो ,डिजिटेलिस, नक्स, बेल , सल्फर, स्ट्रोफैन्थस   आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
 
स्तनों के रोग-
गर्भावस्था में कभी कभी सूजन आने के कारण स्तनों के बड़े होने पर कई तरह की परेशानी जैसे स्तनों में  चोट लगने ,जलन होने या निप्पलों पर जख्म या दर्द हो सकता है।
सलाह-
स्तनों पर ठण्डे पानी की पट्टी लगाना भी लाभकारी रहता है लेकिन अगर गर्भवती स्त्रियों को स्तनों में आक्षेपवाली परेशानी होती है तो ऐसे में स्तनों पर गर्म पानी की पट्टी लगाना लाभकारी रहती है।
होम्योपैथी-
बेलेडोना, ब्रायोनिया,या कोनायम औषधि दी जा सकती हैं।
पाचन सम्बन्धी -
दांत में दर्द-
गर्भवती स्त्री को बुखार ,स्नायविक उत्तेजना या अर्जीण रोग के कारण दांत में दर्द हो सकता है।
होम्योपैथी-
एकोन, नक्स, और मर्क , कैमोमिला,  या क्रियोजोट  दी जा सकती है।
रुचि विकार-
गर्भावस्था के शुरूआती दिनों में रुचि-विकार होना भी एक लक्षण है जिसमे स्त्री को अजीब-अजीब सी चीजें खाने का मन करता हैं जैसे जली हुई मिट्टी, खड़िया मिट्टी, नमक ,खाने वाली चीजों से अरुचि होना, इस वजह से उसमे  सुस्ती, कुछ खाते ही उल्टी,  जीभ, होठ और मुंह में स्राव,  लार आना, जीभ में जख्म जैसी जलन , जी मिचलाना, उल्टी होना और मुंह में पानी भर जाना जैसे लक्षणों का सुबह के समय बढ़ जाना जो कुछ दिनों तक रहते हैं और फिर अपने आप ही कम हो जाते हैं।  
गर्भ में बच्चे के बढ़ने की क्रिया चलती रहती है जिसके कारण से शिराएं, धमनियां और स्नायु आदि भी बढ़ते हैं। इसी वजह से गर्भवती स्त्री के पेट में खिंचाव पड़ता है, ऐसा महसूस होता है जैसे कि पेट में बहुत सारा खून जमा हो गया हो  ,पेट में चबाने की तरह का दर्द होने पर गर्भवती स्त्री पीछे की ओर झुक जाती है गर्भवती स्त्री के पेट में खिंचाव सा पड़ना जो भोजन करने के बाद बढ़ जाता है, जी मिचलाना, पेट में कब्ज, पेट में सुई चुभाने जैसा दर्द होता है। नाड़ी आदि पर बच्चे का दबाव पड़ने से पेट में कब्ज बनना , दस्त की हाजत , गैस, एसिडिटी होने के कारण सीने में जलन ,गर्भाशय बढ़ने की वजह से पित्त वहन करने वाली नस पर दबाव पड़ने से पीलिया भी  हो सकता है।
पेट बढ़ना-
 गर्भावस्था में पेट ज्यादा बाहर निकलने के कारण पेट की त्वचा चरचराती हो और स्तनों में दर्द होता है।
सलाह-
थोड़े से नारियल के तेल को लेकर उसके पेट और स्तनों पर मालिश कर सकते हैं।
 ढीली त्वचा वाली स्त्रियों का पेट गर्भावस्था के दौरान अक्सर लटक जाने से उन्हे बहुत परेशानी हो सकती है ।
सलाह- 
ऐसे में गर्भवती स्त्री के पेट को किसी कपड़े से बांध कर सहारा दिया जाए तो उसकी परेशानी धीरे-धीरे कम होती रहती है।
होम्योपैथी -
आर्स ,सल्फर, पल्स, नेट्रम, मर्क कार्बो, कैल्केरिया, काक्यूलस , नाइट्रिक-एसिड ,नक्स, सिम्फोनिकारपस, क्रियोजोट, सिपिया ,कालिन्सोनिया, नक्स, ब्रायो, ,ओपियम, प्लम्बम, ऐल्यूमिना, पोडोफाइलम ,या चेलिडोनियम  का प्रयोग लाभदायक है।
पीठ में दर्द-
स्त्री का गर्भ जब 4-5 महीने का हो जाता है तो उस दौरान गर्भवती के उरु, पीठ, कमर और पैरों में ऐंठन या अकड़न होने जैसा दर्द होने लगता है।
गर्भवती स्त्री के तलपेट में बच्चे को जन्म देने की तरह का दर्द या ज्यादा मेहनत करने के कारण होने वाले पीठ दर्द भी हो सकता है।
होम्योपपैथी- आर्निका, कैल्के-कार्ब और कास्टिकम ,कैमोमिला , पल्स,  ऐकोन देनी चाहिए।
जननांगों से सम्बंधित
गर्भवती स्त्री की बाहरी जननेन्द्रिय में खुजली होने पर दिन में 2-3 बार पानी में सोहागा मिलाकर अच्छी तरह से धोना चाहिए।
कुछ गर्भवती स्त्रियाँ योनि में से दूध की तरह सफेद या पीले रंग का अथवा पानी की तरह पतला धातु (स्राव) निकलने से कमजोरी महसूस करती है।
गर्भावस्था के दौरान बढ़ते हुए गर्भाशय के दबाव से भग और योनि तथा दूसरे अंगों की नसें फूलकर गांठ जैसी हो जाने से  उनमें दर्द  भी होता है। या  खून के दौरे में रुकावट पैदा होने से भी पैर और योनि आदि में सूजन आ जाती है।
उपाय
पैरों की नसों के फूलने पर स्थिति-स्थापक मोजा पहनना चाहिए।
गर्भावस्था के दौरान भी कभी कभी मासिकस्राव  आ सकता है
होम्योपैथी-
आर्सेनिक , बोरेक्स,अम्ब्रा ,चायना , सीपिया कैन्थेरिस, सल्फर, ब्रायोनिया,फेरम  ,हैमेंमेलिस , फॉस, फ्लोरिक एसिड, पल्स औषधि से लाभ मिलता है।
नींद-
गर्भावस्था के दौरान पर्याप्त नींद आवश्यक है , कभी कभी स्त्री को रात के पहले पहर में नींद आ जाती है लेकिन रात के समाप्त होते-होते नींद बिल्कुल नही आती,या इसके साथ बुखार अथवा पैर में अकड़न या दर्द हो सकता है।

उपाय-
रात को सोने से पहले थोड़े से गर्म पानी में नमक मिलाकर उसमे तौलिया भिगोकर अपने पूरे शरीर को उस तौलिए से पोंछ लें तों अच्छी नींद आ जाएगी।
होम्योपैथी-
कैमोमिला काफ़िया, या विरेट्रम औषधि से लाभ मिलता है।
मूत्र त्याग
   स्त्री के गर्भ में बच्चा जैसे जैसे बढ़ता है वैसे ही उसके मूत्रनलियों पर दबाव बढ़ता है जिसके कारण मूत्र की मात्रा कम हो जाती है या बिल्कुल ही बंद हो सकती है। 
उपाय-
कच्चा दूध और पानी बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह और शाम पिलाने से मूत्र त्याग में आसानी होती है।गर्म पानी से नहाने से भी लाभ होता है। कुछ में  स्वतः मूत्र त्याग का लक्षण भी मिलता है ।
होम्योपैथी-
कैम्फर का रस, कास्टिकम, कैन्थरिस, एपिस, एसिड-फास , स्पाइजिलिया या स्टैफिसाइग्रिया औषधि  असरदायी हैं।
रक्ताल्पता या एनीमिया
पोषण के अभाव या अन्य कारणों से खून में हीमोग्लोबिन या लाल रक्त कणिकाओं में कमी के चलते भी कमजोरी के लक्षण उत्प्नन होते है।
उपाय-
नियमित समयानुसार पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार लेना जरूरी।
होम्योपैथी-
लेसिथिन, वैनेडियम, कैल्केरिया, फेरम आदि।
आम धारणा है कि माता या पिता के रोग जैसे गंडमाला, पूर्वजों में पहले किसी को टी.बी , चर्मरोग या हडि्डयों का रोग आदि होने वाले बच्चे को भी हो सकते हैं ।ऐसे मामलों में भी गर्भवती स्त्री को लक्षणों के अनुसार होम्योपैथिक  औषधियों का नियमित रूप से सेवन कराया जाये तो उसकी संतान रोगमुक्त और सेहतमंद पैदा होती है।
होम्योपैथी - कैल्केरिया , बैसिलिनम, सोरिनम, सिलिका , मेडोरीनम आदि का प्रयोग कराते हैं।

अंतिम माह में सामान्य एवं आसान प्रसव के लिए भी होम्योपैथी की औषधियां  जैसे कालोफिलम, काली फॉस, पल्स, पिट्यूटरी आदि बेहद कारगर हैं।
गर्भकाल में रखें इन बातों का भी ख़याल
अनावश्यक तनाव, कठिन व्यायाम, अत्यधिक श्रम, गरिष्ठ भोजन, लम्बी यात्रा, थकान ,नकारात्मक दूषित विचार व्यवहारआदि से बचें। सात्विक संतुलित पौष्टिक आहार , सकारात्मक आध्यात्मिक विचार,अध्ययन करें, नियमित स्वास्थ्य जाँच कराएं, प्रसन्न चित रहें और आवश्यकतानुसार ही चिकित्सक के परामर्श के बाद ही उचित औषधियों का सेवन करना चाहिए।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
रा.सचिव HMA
सह सम्पादक होम्यो मिरेकल

मातृत्व का गौरव है दुग्धपान

शिशु के स्वास्थ्य और संस्कार को पोषित करता है माँ का दुग्धपान
दुग्ध विकार को दूर कर रिश्ते में मिठास घोलती होम्योपैथी की गोलियां - डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
"...अगर अपनी माँ का दूध पिया है तो....." बीसवीं सदी के भारतीय सिनेमा में अक्सर ऐसे डायलॉग सुनने को मिलते थे जिनमें लड़ाई तो नायक खलनायक में होती थी किन्तु नायक की जीत में मर्यादा और महत्व माँ का स्थापित होता था सम्भवतः इसलिए कि यह चुनौती ही शारीरिक बल से क्षीण हुए नायक में इतने आत्मबल का संचार कर देती थी कि वह सब पर भारी पड़ता था। इतना ही नहीँ "दूध का कर्ज" जैसे सिनेमा ने तो मातृत्व की महत्ता से कैसे संस्कारों का बीजारोपण उसका संवर्धन व पोषण होता है और समाज के हर प्राणी में प्रेम का मजबूत रिश्ता स्थापित होता है इसे चित्रित करते हुए  श्रीराम, कृष्ण के पौराणिक उदाहरण हैं जिन्होंने एक से अधिक माताओं का दूध पिया तो "दूध का कर्ज " जैसे सिनेमा का भी निर्माण हुआ जिसमें सर्प जैसी प्रजाति को भी मनुष्यता के श्रेष्ठतम उदाहरण प्रस्तुत करते दिखाया गया।
भारतीय सनातन संस्कृति में माँ को भगवान से भी उच्चस्थान प्राप्त है और नवजात शिशु के लिए माँ का दुग्धपान ही उसमें जीवन के साथ , नैतिक ,आध्यात्मिक एवं मानवता के सभी आदर्शों की उन्नति के संस्कारों का समग्र पोषण होता है।

क्यों है सम्पूर्ण आहार
माँ के दूध को बच्चे के लिये सम्पूर्ण आहार का दर्जा दिया गया है क्योंकि यह उसके शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक या स्पिरिचुअल विकास के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्वों के सन्तुलित अनुपात और मात्रा से भरपूर होता है जो बच्चे की बढ़ती उम्र के साथ होने वाले परिवर्तन की आवश्यक्ताओं के अनुरूप ही परिवर्तित भी होता रहता है।
माँ के दूध में शर्करा ,वसा, प्रोटीन,विटामिन, लवण, एंजाइम आदि सभी उचित मात्रा में होते हैं। जन्म के आधे घण्टे के अंदर के प्रथम दूध को कॉलेस्ट्रम कहते हैं जो नवजात में एंटीबॉडीज व प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाला होता है।
स्तनपान से बच्चे को फायदे
बच्चे को कम से कम छः माह तक माँ का दूध ही पिलाना चाहिए जिससे उसमे तमाम रोगों जैसे साँस के संक्रमण , मध्य कर्ण शोथ,बड़ी आंत की शोथ, एलर्जी आदि से लड़ने की क्षमता का विकास तो होता ही है ,  माँ और उसकी संतान के बीच भावनात्मक रिश्ते को भी मजबूती मिलती है।
स्तनपान कराने से माँ को फायदे
माँ के स्तनों में दूध उसकी संतान के लिए ही उत्पन्न होता है , यह संतान के लिए अमृततुल्य तो मातृत्वसुख के लिए सर्वोच्च गौरव सम्मान की बात होती है , जो महिला को स्त्रीत्व की पूर्णता का अभिमान देता है।
अपनी संतान को स्तनपान कराने वाली महिलाओं में मानसिक शांति, स्नेह, व प्राकृतिक सौंदर्य की बृद्धि होती है , साथ ही हार्मोन्स में संतुलन स्थापित होने से प्राकृतिक रूप से परिवार नियोजन , वजन नियंत्रण एवं गर्भाशय को पुष्ट करने में भी मदद मिलती है।
कृत्रिम आहार से नुकसान
कृत्रिम आहार में मौजूद कृत्रिम विटामिन , व दुग्ध शर्करा लैक्टोज की अधिकता से उसमे एलर्जी या वसा की कमी की संभावना बढ़ जाती है। इससे गैस अपच आदि की दिक्कतें हो सकती हैं।
क्या करें जब दुग्धपान से बच्चों में हो अरुचि
स्तनपान कराने वाली माताओं को बच्चे को गोद में लेकर समयानुसार ही स्तनपान कराना चाहिए , अधिक स्तनपान कराने से भी बच्चों में चिड़चिड़ापन व दुग्धपान से अरुचि पैदा होने लगती है क्योंकि अधिक दुग्ध शर्करा का बड़ी आंत में सूक्ष्मजीवों द्वारा फर्मेंटेशन किये जाने से गैस बनती है और अम्लता बढ़ती है, इस कारण बच्चों में पेट दर्द या पनीला या आंव मिला अथवा हरा दस्त हो सकता है। इसे लैक्टोज इंटॉलरेंस कहते है।
बच्चे में दुग्धपान से अरुचि का कारण माँ के दूध का स्वाद नमकीन होना, गाढ़ा होना, बहुत कम होना, या अधिक होना भी हो सकता है।
होम्योपैथी घोल सकती है रिश्ते में मिठास
चराचर जगत में संतान के जीवन में आते ही  माँ से सर्वोच्च और नैसर्गिक  और  पिता से सर्वोच्च विश्वास का रिश्ता होना प्रकृति का नियम है , किन्तु जहां कहीं किसी भी कारण आये विकारों से यह मातृ शिशु सम्बल कुपोषित होने की सम्भावना हो वहां होम्योपैथी की मीठी गोलियां आशातीत लाभ पहुचाकर इसे ममत्व से भरपूर कर देती हैं। होम्योपैथी में बोरेक्स, कैल्केरिया, सिना, रिसिनस, एग्नस, अर्टिका, एथ्यूज, कैमोमिला, सिपिया, नेट्रम कार्ब आदि दवाएं बेहद कारगर हैं। गर्भकाल से ही यदि कुशल प्रशिक्षित होम्योपैथ के मार्गदर्शन में दवाओं का सेवन किया जाये तो सामान्य प्रसव अर्जित कर स्वस्थ शिशु की किलकारियों से आपका घर आँगन गूंजता रहेगा।
डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
चिकित्सक - हनुमानगढ़ी नाका फैज़ाबाद

Tuesday, 2 August 2016

डेंगू की दस्तक से रहें सावधान

जनस्वास्थ्य के लिए चुनौतियों से निपटने में रखनी होगी समग्र दृष्टि : डा उपेन्द्र मणि
डेंगू के दंश किसी को भी पीड़ित कर सकता है, जरा सी भी असावधानी जीवन के लिए संकट बन सकता है।ऐसे में आमजनता को भी सतर्क और जागरूक रहना होगा। स्वास्थ्य के लिए स्वच्छता का महत्व बरसात के दिनों में और भी बढ़ जाता है क्योंकि जगह जगह एकत्र होने वाले गन्दे या साफ पानी में मच्छरों के प्रजनन और उत्पत्ति की दर बढ़ जाती है।जिनसे कई तरह के बेहद संक्रामक रोग मनुष्यों को चपेट में ले सकते हैं। खासकर मलेरिया, चिकनगुनिया, जे ई और डेंगू। डेंगू एक प्रकार के वायरस से होने वाला रोग है किन्तु यह घरों में इकट्ठा होने वाले साफ पानी जैसे कूलर , टैंक, ड्रम,रुका हुआ पानी आदि में पनपने वाले काली सफेद धारीदार मच्छर की प्रजाति,  जिसे एडीज कहते हैं , के काटने से मनुष्यों में फैलता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे बाघ मच्छर भी कहते हैं।
रोग की पहचान व लक्षण
डेंगू बुखार की दो प्रमुख अवस्थाएं होती हैं पहली जिसमे संक्रमित व्यक्ति को तेज बुखार के साथ सिर दर्द, बदन दर्द, पीठ दर्द, उबकाई, सुस्ती, आँखों में जलनयुक्त लाली, चेहरे पर सूजन आ सकती है।ठीक तरह से उपचार के अभाव में यह अवस्था पांच से सात दिन तक रह सकती है इसके बाद संक्रमित व्यक्ति में तेज बुखार व लिवर की कार्यक्षमता प्रभावित होने से रक्त कणिकाएं भी टूटने लगती हैं और कमजोरी बढ़ती जाती है जिससे उल्टी, पेट दर्द, जोड़ो में दर्द, त्वचा के नीचे, नाक, मसूड़ो,आदि से रक्तस्राव, प्लेटलेट की संख्या में कमी होते रहने से खून का न जमना आदि लक्षण दिखने लगते हैं।
यह आकस्मिक स्थिति हो सकती है रोगी को तुरन्त अस्पताल पहुचाना आवश्यक है। रक्त नमूने की प्रयोगशाला में जाँच के बाद पुष्टि एवं प्लेटलेट्स की संख्या में गिरावट रोग की गम्भीरता का सूचक है।
सावधानियां
रोग की गम्भीरता को देखते हुए आम लोगों के लिए जरूरी है कि पहले से ही सावधानी बरतें ,इस मौसम में बुखार को किसी भी स्थिति में नज़रअंदाज न करें , बिना चिकित्सकीय जाँच व परामर्श के मेडिकल से दवा लेने की प्रवृत्ति से बचें। घर या आस पास सफाई रखें , पानी एकत्र न होने दें, समय समय पर मिटटी का तेल,या कीटनाशक का छीडकाव करें, नीम का धुँआ भी कर सकते हैं , मच्छरदानी में ही सोएं।
बचाव एवं उपचार
वायरस से होने वाले रोगों में प्रचलित पद्धति में जहां संभावनाएँ सीमित हैं किन्तु जीवन रक्षक उपाय बेहतर हैं, वहीँ होम्योपैथी में औषधीय उपचार बेहद कारगर हैं। अध्ययनों में होम्योपैथिक औषधि युपेटोरियं पर्फ को बचाव के लिए उपयोगी पाया गया है। उपचार के दौरान भी क्रोटेलस, इपिकाक, अर्स, जेल्स, बेल, ब्रायो, रास टॉक्स, फेरम मेट, लैकेसिस आदि औषधियों के लक्षणानुसार अच्छे परिणाम मिलते हैं। जनस्वास्थ्य के लिए चुनौती बन रहे ऐसे मामलो में अब समग्र दृष्टि अपनानी चाहिए जिससे कम समय में अधिक सुविधाजनक तरीके से एक साथ अधिक लाभ जनता को दिया जा सके।
डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी

पाला न मार जाये ....

ठण्ड बढ़ने के साथ गर्म कपड़े तो सबने निकाल ही लिए होंगे । इस मौसम में जरा सी असावधानी आपके स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है। सामान्य बोलचाल की भाषा में अक्सर सुनते होंगे सर्दी हो गयी,... ठण्ड लग गयी या पाला मार गया...सुनने में तो तीनो का मतलब एक ही निकलता है लेकिन असर के हिसाब से तीनों में अंतर स्पष्ट होता है। 
हल्की फ़ुल्की सर्दी होने पर छींक आना, नाक बहना, जुकाम, खाँसी या बदन दर्द के साथ हल्का बुखार महसूस हो सकता है।
ठण्ड लगने पर सीने में भारीपन, सांस लेने में कष्ट, पेट में मरोड़ के साथ तेज दर्द, पतले या आंव मिले दस्त , कंपकपी आदि लक्षण मिल सकते हैं।

लेकिन पाला मारने पर  शरीर का प्रभावित अंग ठण्डा, कड़ा, सफेद सा,त्वचा में नीलापन, सुन्नता, संवेदनहीनता का लक्षण मिलता है जहां  दर्द के साथ सूजन हो सकती है अथवा शरीर पर फफोले से पड़ जाते हैं।

कैसे मार जाता है पाला-

हल्की सर्दी में शरीर की भीतरी सतह में सूजन आने से छींक या जुकाम होता है , जब यही सूजन निचले श्वसन तन्त्र की तरफ फेफड़ो तक पहुंचती है तो खाँसी , बलगम, बुखार या पाचन तन्त्र के अंगो में होने पर पेटदर्द या दस्त जैसे लक्षण मिलते हैं।

इसी प्रकार बहुत अधिक ठण्डी में खून की नलियों में सिकुड़न आ जाती है जिससे हमारे खुले अंगो जैसे हाथ-पैरों, चेहरे की ओर का खून का प्रवाह कम हो जाता है। कभी कभी तो शरीर के ऊतकों में बर्फ के क्रिस्टल तक बन सकते हैं जिसके कारण कोशिकाओं में पानी का तत्व घट सकता है और कोशिकाऐं मर सकती हैं।

क्या बरतें सावधानी-

पाला मारने जैसे लक्षण दिखने पर व्यक्ति को सबसे पहले ठण्ड से दूर बिल्कुल सूखा रखें और उसे कोई गर्म पेय या चाय आदि पिलायें। 
इसके लिए उसे गर्म कपड़े या कंबल उढ़ाया जा सकता है। रोगी के शरीर के रोगग्रस्त भाग को दबाना और रगड़ना नहीं चाहिए।किसी भी फफोले को फोड़ना नहीं चाहिए और न ही उस पर किसी तरह की मलहम आदि लगानी चाहिए।रोगग्रस्त भाग पर गर्म भाप नहीं लगने देनी चाहिए।शरीर में जिस जगह पर पाला मारने का रोग हुआ हो उस भाग के पंजे और उंगलियों के बीच में साफ और सूखा कपड़ा रख देना चाहिए।

पाला लगने पर कोशिकाओं के जीवित या मृत होने का पता लगने में 2से 3 सप्ताह और  ठीक होने में कम से कम 6 से 12 महीने का समय लग सकता है।

क्या हैं घरेलू उपाय

सर्दियों में अपने भोजन में बाजरा, बादाम,  मूंगफली, शहद, हरी सब्जियां और तिल को शामिल कर अपने प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत बना सकते हैं।

बाजरे मे दूसरे आवश्यक तत्व जैसे प्रोटीन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, मैग्नीज, ट्रिप्टोफेन, फाइबर, विटामिन- बी, एंटीऑक्सीडेंट आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।

बादाम  में विटामिन ई प्रचुर मात्रा में होता है। इसका नियमित सेवन याददाश्त बढाने के साथ कई रोगों  जैसे कब्ज की समस्या दूर हो सकती है, डायबिटीज को निंयत्रित करने का गुण होता है।

अदरक बहुत सी छोटी-बड़ी बीमारियों से बचने और पाचन को दुरुस्त करता है। 

शहद पाचन क्रिया में दुरुस्त कर और इम्यून सिस्टम को मजबूत कर शरीर को स्वस्थ, निरोग और उर्जावान बनाता है।
मूंगफली में मौजूद प्रोटीन, फैट्स, मिनरल्स, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थाइमिन, फोलिक एसिड, एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन, आदि तत्व इसे बेहद फायदेमंद बनाते हैं।

सर्दियों के दिनों में मेथी, गाजर, चुकंदर, पालक, लहसुन बथुआ आदि के  सेवन से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है।

तिल और मिश्री का काढ़ा बनाकर खांसी में पीने से जमा हुआ कफ निकल जाता है।

क्या हैं होम्योपैथी में उपचार

होम्योपैथी में लक्षणों की पूर्णता और समानता के आधार पर औषधियों का चयन किसी प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा ही किया जा सकता  है। सामान्यतः एकोनाइट, आर्स, बेल, इपिकाक, नैट्रम , स्पोंजिया, संगुनेरिया, सपोनेरिया,फॉस्फोरस, ऐण्टिम, आदि दवाओं से शीघ्र और सरल लाभ रोगी को मिलता है।

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
सह सम्पादक - होम्यो मिरेकल
रा सचिव- होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन