चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

This is default featured slide 4 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 5 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

Sunday, 29 January 2017

सफ़ेद सत्य : वो सौ बार कहता है झूठ ...सच तो हम मान लेते हैं

एक व्यक्ति मंदिर में जूता चुराते पकड़ा गया, लोगों ने जब कारण पूछा तो उसने अपना जूता चोरी चले जाने का बहाना के साथ परेशान होने के बनावटी भाव कुछ इस तरह चेहरे पर तैरने लगे कि कुछ लोग उसे मासूम समझ छोड़ देने की सलाह भी देने लगे। मगर एक मित्र ने उससे जेल भेजवाने का भय दिखाया तो उसने सब स्वीकार करना शुरू कर दिया...कि वह इस तरह के कार्य अपने नशे के शौक को पूरा करने के लिए करता है, उसे इस बात से कोई मतलब नहीं कि किसका जूता कितना मंहगा या सस्ता है ...उसकी जरूरत के सौ दो सौ मिल जाएं यही पर्याप्त है । उसने निकालकर कुछ दवाईयां भी दिखायीं जो उसे आस पास के ही मेडिकल स्टोर्स पर मिल जाया करती थीं...हम तो चले आये किन्तु लगता है उसकी शारीरिक और मनः स्थिति के प्रदर्शित भाव से आखिर लोगों का दिल पसीज गया होगा और डाँट डपट कर उसे छोड़ दिया गया होगा।

किन्तु बाद में मेरे दिलो दिमाग में कई विचार उठने लगे आखिर नशे के शौक ने उसे किस स्तर तक गिरा दिया , उसे इसबात से कोई मतलब नही किसी का क्या नुकसान कर रहा है..उसका पकड़ा जाना या आडम्बर कर या कहीं कहीं मार खाकर फिर छूट जाना भी कोई पहली बार नही रहा होगा , अपितु उसे ऐसी परिस्थितियों का सामना करने का अच्छाखासा अनुभव होगा। किन्तु इस दशा में क्या केवल वही दोषी है ? जब इस नजरिए से सोंचता हूँ तो एक साथ कई चेहरों की कल्पना कर बैठता हूँ एक वो जिसने उसे कभी ये शौक दिखाया होगा, जिसने उसका रास्ता बताया होगा, जिसने साथ निभाया होगा और फिर वो भी जो उसे ये दवाएं बेचते होंगे, वो भी जो इसके चुराए जूते खरीदते होंगे...वो जो पकड़ते होंगे कभी दो चार हाथ साफ करते होंगे, तो कभी उससे कुछ लेकर या उसके भोलेपन पे तरस खाकर छोड़ देते होंगे...लेकिन किसी ने उसे नशे की गिरफ्त से छुड़ाने के लिए उचित संसथान तक पहुँचाने की पहल नही की होगी । चाहे वह उससे पीड़ित रहा हो मगर हमारा बच गया बस इतने से संतोष कर लिया कल किसी और का जायेगा तो वो जाने...।

अब इसे ही जरा देश की वर्तमान राजनीति से नजरिये से देखा जाये तो यहां भी तो कोई चतुर व्यक्ति है जो रोज किसी का कुछ चुराता है...अपना लाभ लेता है किसी और को लाभ पहुँचा कर उसे खुश करता है...झूठ की सफेदी ओढ़े जब कभी पकड़ा भी जाता है तो कुछ ले दे कर, डरा धमका कर, धौंस दिखा कर तो कभी मासूमियत से या तो तुम्हारी भावुकता का या सरलता का लाभ उठाकर बच निकलता है, फिर कहीं और अपना हित साधने को स्वतंत्र बच निकलता है।
दोनों ही परिस्थितियों में दोषी कोई एक ही नहीं ...इस पर हमे विचार भी करना चाहिए और निदान भी खोजना चाहिए...जागरूक होना और अपनी जिम्मेदारी तय करना समय की जरूरत है।

"वो सौ बार ही कहता है झूठ,
उसकी  तो चलो फितरत है,
मगर हमारा क्या ...
जो उसे सच मान लेते हैं।"

डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी

Sunday, 22 January 2017

सफ़ेद सत्य -हम क्यों मतदान करें

मतदान जनता के मापदंड पर योग्यता के चयन का जरिया बने

राजनीति के गिरते हुए स्तर पर बेबाक टिप्पणी के नाम पर दिन रात राजनीति को कोसने वाली जनता में आखिर वह जनता कौन है जो यह जानती है...सब समझती है...जनार्दन है...? गजब की बात है शिक्षा , योग्यता, जागरूकता का प्रतिशत अकड़ा बढ़ गया ..मगर...जनार्दन कही जाने वाली जनता में आज भी लहर कोई और बनाता है ...मतदान जनता करती है...मगर उसकी समस्याएं , अवश्यक्तायें और उनका समाधान कोई और तय करता है ...कोई और तय करता है कि उनके मुद्दे क्या हैं ...कोई और बताता है कि उसका हीरो कौन है...आंख कान बन्द किये हुए जनार्दन उसी की छवि में अपना आराध्य ढूंढ लेते है...जय जय कार करती भीड़ जिस प्रतिमान का समर्थन करने जाती है ... अकेले में स्वयं को उसी से शोषित बताती है ...तो उसके स्वाभाव का अंदाजा होता है। कुछ भद्र लोग प्रयोग के तौर पर कोई स्वांग उछालते हैं...कोई कुछ बयान उछलता है...कोई गिफ्ट दे जाता है...कोई हमदर्दी...उसपर कथित विद्वानों के टीके लगते है..सब जानने समझने वाली जनता भी कुछ चटकारे लेती है लेकिन फिर उसे स्वीकार लेती है...बस यूँ बन जाते हैं आपके मुद्दे...उनके घोषणापत्र..आपकी आवाज...उनके वादे... आपकी आस...उनका न पूरा होने वाला विश्वास..आपकी तलाश में उनके दिखावे के अपनेपन पर सन्तुष्टि....आपका मूक समर्थन ...और उनकी सरकार...आप फिर चर्चा के शिकार ...।
जनता में शामिल होने वाले समझदार शिक्षित लोगों ...जब तक आप अपने हित के लिए दूसरों के तय किये गए मापदण्डों को समर्थन देकर समाधान पाने की उम्मीद रखेंगे...राजनीति में यूँ ही गिरावट जारी रहेगी...अपने मापदण्ड, आवश्यकताएं , समस्याएं और उनके समाधान स्वयं खोजिये और उनके लिए अपने मापदण्डों पर योग्य जवाबदेह नेतृत्व का चयन कीजिये ।
लोकतंत्र की इस परीक्षा में आप ही प्रश्नपत्र तैयार करें आप ही परीक्षक बनें ...और मतदान तो आपके मूल्यांकन और समर्थन का जरिया है, इसलिए अपने लिए योग्य नेतृत्व का चयन करना आपकी ही जिम्मेदारी है।

डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी

Thursday, 19 January 2017

ब्रेन स्ट्रोक : सर्दियों में सावधान

(स्वास्थ्य एवं होम्योपैथी जागरूकता अभियान के तहत)

आमतौर पर सर्दियों में लोगों में स्वास्थ्य को लेकर एक निश्चिंतता का भाव दिखाई पड़ता है क्योंकि ज्यादातर का मानना है कि इस समय कुछ भी खाओ पियो सब हजम हो जायेगा, और इसी विश्वास के चलते उनका खान पान अनियमित या असन्तुलित हो जाता है। इसी निश्चिन्तता के चलते कई बार हम स्वास्थ्य की हल्की फुल्की समस्याओं को नजरंदाज कर जाते है जो कभी कभी किसी गम्भीर स्थिति का संकेत हो सकती हैं। सर्दियों मे ताप नियंत्रण के लिए खून कुछ गाढ़ा हो जाता है और रक्तचाप भी बढ़ जाता है। साथ ही तन्दुरुस्ती बढ़ाने के लिए अधिक वसा व कैलोरी युक्त भोजन लेने से कॉलेस्ट्रॉल काफी तेजी से बढ सक़ता है, जो रक्त प्रवाह में अवरोध उत्पन्न कर सकता है।

कब हो जाएं सजग

  यदि आपको ऐसा लगे कि अचानक कुछ देर के लिए आपके शरीर का कोई अंग सुन्न या कमजोर हो गया , तेज चक्कर या सिरदर्द आ गया, आंखों के सामने अँधेरा सा छा गया ,अथवा बोलने में आवाज लड़खड़ा गयी, या चेहरे का एक हिस्सा टेढ़ा सा हो गया, और ये सारी या इनमे से कोई भी लक्षण एक दो मिनट के लिए नज़र आते है फिर सब सामान्य लगने लगे तो इन्हे बिलकुल नज़रअंदाज नही करना चाहिए, क्योंकि यह दिमाग के किसी हिस्से की हलचल का संकेत हो सकते हैं, तुरन्त चिकित्सकीय परामर्श लेना चाहिए। 

क्या है ब्रेन स्ट्रोक
  हमारे मस्तिष्क की किसी खून की नलिका में थक्का बन जाये या उस हिस्से में खून का संचार कम हो जाये  तो उससे जुड़े शरीर के भागों के काम प्रभावित होने लगते हैं। इसे चिकित्सकीय भाषा में ब्रेन स्ट्रोक कहते हैं जिससे सर्दियों में गर्मियों की अपेक्षा अधिक लोग प्रभावित होते हैं।जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि ब्रेन स्ट्रोक अर्थात "मस्तिष्क पर प्रहार" किन्तु यह मस्तिष्क के अंदर ही खून की नलियों में हुए परिवर्तनों का प्रभाव होता है न कि बाहरी कोई चोट या दुर्घटना, और इसीलिए अक्सर जानकारी के आभाव में इसके संकेतों को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

क्या हो सकती है समस्याएं
व्यक्ति को शरीर के किसी एक ओर के हिस्से में लकवा जैसी स्थिति होना, स्ट्रोक आने के बाद मरीज विकलांग हो सकते है या 70 प्रतिशत रोगी तो देखने सुनने की क्षमता खो देते है। मधुमेह और  हृदय रोगियों को खास सावधानी रखनी चाहिए।समय पर चिकित्सा न होने पर यह स्थायी विकलांगता या जीवन के लिए बड़े खतरे का कारण बन सकता है।

कैसे हो जाता है ब्रेन स्ट्रोक

वसा की अधिक मात्रा खून की नलियों की अंदर दीवार पर जमा होने से वहां खून के प्रवाह रुकावट पैदा कर दे तो ईशचिमिक , या ब्लड प्रेशर बढ़ने से ब्रेन के अन्दर ही नलिकाओं में लिकेज आ जाने से ब्रेन हेमरेज हो सकता है। 

क्या करना चाहिए

दोनों ही स्थितियों में व्यक्ति को एक घण्टे के भीतर ही अस्पताल पहुंचाना, और ब्लड टेस्ट, सी टी स्कैन  ,एम आर आई , जाँच जरूरी है जिससे उसे होने वाले अधिक नुकसान से प्रभावी तरीके से बचाया जा सके। ऐसे मरीजों को 2 से 3 दिन तक नियमित चिकित्सकीय देखरेख बहुत जरूरी है।

जानकारी के आभाव में लोग इसे हृदयाघात जैसी गम्भीरता से नही लेते जबकि यह उससे अधिक गम्भीर समस्या है।
अध्ययनों में पाया गया है कि हर छठे सेकंड में एक व्यक्ति की मौत स्ट्रोक से होती है। और भारत में हर साल लगभग 16 लाख लोग इसका शिकार होते हैं। 

क्या बरतें सावधानियां 

हाई ब्लड प्रेशर, डायबीटीज, हाई कोलेस्ट्रॉल वाले मरीजों को नियमित जांच कराते रहनी चाहिए ।
तनाव मुक्त रहे, सही व संतुलित आहार में हरी पत्तेदार सब्जियां लें, नियमित व्यायाम से शारीरिक सक्रियता बनाएं रखें।
सिगरेट-तंबाकू , शराब या अन्य नशे की आदत से दूर रहें।भोजन में अधिक तली भुनी व संतृप्त वसा जैसे वनस्पति घी , डालडा आदि का उपयोग न करें।
पानी पर्याप्त मात्रा में पीते रहें, सर्दियों में गुनगुना पानी भी लिया जा सकता है।
बन्द कमरे में अंगीठी जलाकर न सोएं, इससे आक्सीजन कम हो जाती है और कार्बन मोनोऑक्साइड गैस की प्रचुरता हो जाती है, जो न्यूरोलॉजिकल लक्षण उत्पन्न कर सकती है।
अधिक सर्दी या सुबह सुबह टहलने से बचें हल्की धुप हो जाये तो निकलें, कान को ढक कर रखें, क्योंकि नाक और कान से सर्दी का असर सीधा होता है।
नहाने में हल्का गर्म पानी ही प्रयोग करे बहुत अधिक ठंडा या गर्म दोनों ही तरह के जल से स्नान के ठीक बाद शरीर ताप नियंत्रण में कुछ समय लगता है।
युवाओं को अधिक वजन उठाने वाले व्यायाम, या गर्दन पर जोर से मालिश से बचना चाहिए इससे कैरोटिड आर्टरी डिस्ट्रैक्शन होने से भी लकवा हो सकता है।

डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी

होम्योपैथिक परामर्श एवं चिकित्सा सेवा

रा.सचिव -एचएमए

द प्रतिष्ठा होम्योपैथी फैज़ाबाद

Wednesday, 18 January 2017

होम्योपैथी का साथ....जब तक है साँस....

गाने में जो बोल हैं..."साँस आती है साँस जाती है..." विज्ञान में इसे ही श्वसन कहते हैं और इसे पूरा करने में सहायक अंगों को मिलाकर श्वसन तंत्र बनता है।
जिसका मूल कार्य वातावरण से प्राणवायु (आॅक्सीजन) को ग्रहण करके मानव शरीर के विभिन्न अंगों की कोशिकाओं को भेजना एवं शारीरिक क्रियाओं के चलाने के लिए इन कोशिकाओं में सम्पन्न रसायनिक प्रक्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न कार्बन-डाई-आक्साइड व अन्य अशु़द्ध गैसों को रक्त से श्वसन क्रिया द्वारा बाहर निकालना है। श्वसन प्रक्रिया के दौरान वायुमण्डल से आक्सीजनयुक्त ताजा हवा को नाक, गले कण्ठनी व अन्य श्वांस नलियों (नैजल कैविटी, फेरिंग्स, लेरिंस, ट्रेकिया, ब्रोंकाई एवं ब्रोन्कियोलस) के जरिये श्वांस कोशिकाओं (एलवियोलाई) तक पहुँचाया जाता है, जहां इनकी दीवारों के सहारे सूक्ष्म रक्तवाहिनियों (केपीलेरीज) में मौजूद रक्त द्वारा ऑक्सीजन ग्रहण करके अशुद्ध रक्त द्वारा लाई गई कार्बनडाईआक्साइड को श्वांस कोशिकाओं में छोड़ दी जाती है जंहा से यह अशुद्ध वायु श्वांस निकालने की प्रक्रिया (एक्सपीरेशन) के जरिये फेफड़ों से बाहर वातावरण में छोड़ दी जाती है।

श्वसन तंत्र की संरचना-

इस कार्य को सम्पन्न करने के लिए हमारे श्वसन तंत्र को तीन भागों में विभक्त किया जाता है।
1. नाक, मुंह, गला (नेजो फेरिंग्स)
2. श्वांस नली (ट्रेकिया, ब्रोन्काई, एवं ब्रोन्क्योल)
3. श्वसन ईकाई क्षेत्र (पल्मोनरी रीजन)

श्वसन तंत्र से जुडी महत्वपूर्ण बातें -

हमारे दोनों फेफड़े बड़े हल्के स्पंजी एवं इलास्टिक होते हैं, और पसलियों से बने कटघरे में सुरक्षित रहते हैं।

जन्म के समय फेफड़ों का रंग हल्का गुलाबी होता है जो आयु के साथ साथ प्रदूषित वायु में उपस्थित कार्बन के जमने से काला पड़ जाता है।

सामान्यतया एक स्वस्थ व्यस्क में प्रतिदिन लगभग 1000 लीटर खून का फेफड़ों में शुद्धिकरण होता है यह प्रक्रिया जीवन प्रयन्त निरंतर चलती रहती है।

एक स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट में 10 से 20 बार सांस अन्दर लेकर बाहर निकालता है।

हर सांस में तकरीबन 250 से 450 मि.ली. वायु का आदान प्रदान होता है। 
छोटे बच्चों में बड़ों के मुकाबले श्वास गति तेज होती है।नवजात शिशुओं (30 से 40 प्रति मिनट)

अन्दर जाने वाली वायु में नाईट्रोजन 78 प्रतिशत, आक्सीजन 21 प्रतिशत के अलावा गैसे एवं भाप आदि मौजूद रहते है।

सांस बाहर निकालने की प्रक्रिया में बाहर निकाली गई वायु में कार्बनडाई आक्साइड 4 से 5 प्रतिशत बढ जाती है व आक्सीजन 4 से 5 प्रतिशत कम हो जाती है।

रोगों के सामान्य कारण-
शराब, तम्बाकू, धूम्रपान, धूल, धुंआ, आनुवंशिक, या पारिवारिक कारण, मोटापा, डायबिटीज, पुराने गुर्दे के रोग, हृदय रोग, एलर्जी आदि।

रोगोत्पत्ति की सामान्य पैथोलॉजी-

व्यक्ति में कुछ विशेष वाह्य प्रोटीन्स (धूल, धुएं, सुगन्ध,या सूक्ष्म संक्रमण आदि) के प्रति  एंटीजन एंटीबॉडी की प्रतिक्रिया के फलस्वरुप अस्वीकृति के रूप प्रदर्शन होता है जिसे एलर्जिक रिएक्शन कहते है।
कुछ ऐसे ही वाह्य कारक एरिटेंट कहलाते है। किसी वाह्य संक्रामक कारक या ताप अथवा वातावरणीय कारकों से नाक की अंतः झिल्लियों में सबसे पहले हल्की सूजन आती है जिसे इंफ्लामेशन कहते है इसके कारण स्रावण बढ़ जाता है, यदि श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में यही सूजन रहती है तो सामान्य सर्दी, जुकाम,नाक बहना आदि के लक्षण मिलते है, यदि यह सूजन गले तक बढ़ती है तो गला बैठना (लैरिंजाइटिस) , या साँस लेने में कष्ट, दमा, खांसी आदि के लक्षण दिख सकते है, और जब फेफड़ों में जाए तो प्लूरिसी या प्लुरल एफ़्यूसन आदि के लक्षण मिलते हैं। यदि समय पर उपचार न मिले और कोई संक्रमण फेफड़ो के किसी भाग में रुक जाए तो हीलिंग अवस्था में वहाँ फाइब्रोसिस हो सकती है, बाद में यही अवस्था फोड़ा बन सकता है, पस बन सकती है या कैंसर,में भी बदल सकता है।

श्वसन तंत्र के सामान्य रोग -

सामान्य सर्दी जुकाम, गला बैठना, ब्रोंकाइटिस, इन्फ़्लुएन्ज़ा, न्यूमोनिया, फोड़ा, टी.बी., दमा, एम्फाइसिमा,  सी.ओ.पी.डी., कैंसर, प्लुरल एफ्यूजन, रेस्पिरेटरी फेल्योर, एम्पाईमा आदि व अन्य सन्क्रमणजनित रोग।

सामान्य लक्षण-
फेफड़ों की संरचना बिगड़ने एवं कार्यप्रणाली प्रभावित होने से खांसी;सूखी या बलगम सहित, खून आना, साँस लेते समय सीने में दर्द, साँस लेने में कठिनाई, लेटने पर तकलीफ बढ़ जाना, साँस के साथ सीटी सी आवाज आना,  सांस फूलना, शरीर का नीला पड़ना (सायनोसिस), बलगम आना,आदि लक्षण श्वसन तंत्र के अनेक कष्टदायक एवं जान लेवा परिस्थितियों का संकेत करते हैं, जिनके निदान हेतु तुरन्त चिकित्सकीय परामर्श लेना आवश्यक है।

सामान्य जांचे-
थूक या बलगम कल्चर, खून की जाँच, सेरोलॉजिकल टेस्ट, ब्रोंकोस्कोपी, रेडियोलॉजिकल जांचे, एक्स रे, पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट , बायोप्सी, सी टी स्कैन, आदि जाँच एवं चिकित्सक के परीक्षण के जरिये श्वसन तंत्र की बीमारी का कारण या पहचान की जाती है।

होम्योपैथिक औषधियां
आर्स, बेल, जेल्स, एपिस, एंटीम टार्ट, पोथॉस, ब्लाटा, कोका, कैल्केरिया, ब्रायोनिया, स्टिक्टा पल्मो, युपेटोरियम, एलियम, बॉलसेमम, आदि।

क्या बरतें सावधानियां-

रोगी व्यक्ति को मानसिक परेशानी, तनाव, क्रोध तथा लड़ाई-झगड़ों से बचना चाहिए।

सादा भोजन करना चाहिए।इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के क्षारधर्मी आहार नमकीन, खारा, तीखा तथा चरपरा आलू, साग-सब्जी, सूखे मेवे, चोकर समेत आटे की रोटी, और सलाद आदि का सेवन करना चाहिए।

रोगी को सूखी खांसी हो तो उसे दिन में कई बार गर्म पानी पीना चाहिए और गरम पानी की भाप को नाक तथा मुंह द्वारा खींचना चाहिए।

रोगी व्यक्ति को सुबह प्राणायाम करना चाहिए ,खुली हवा में टहलना चाहिए

लाभदायी आसन करें - योगमुद्रासन, मकरासन, शलभासन, अश्वस्थासन, ताड़ासन, उत्तान कूर्मासन, नाड़ीशोधन, कपालभांति, बिना कुम्भक के प्राणायाम, उड्डीयान बंध, महामुद्रा, श्वास-प्रश्वास, गोमुखासन, मत्स्यासन, उत्तानमन्डूकासन, धनुरासन तथा भुजांगासन आदि।

सप्ताह में कम से कम 2 बार पानी में नमक मिलाकर उस पानी से स्नान करना लेना चाहिए।

पीड़ित रोगी की रीढ़ की हड्डी पर मालिश,कमर पर सिंकाई , और छाती पर गर्म पट्टी से सेकने से रोगी को आराम मिलता है और उसका रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को ध्रूमपान, लेसदार पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए ।

दमा

जब किसी व्यक्ति की सूक्ष्म श्वास नलियों में कोई रोग उत्पन्न हो जाता है तो उस व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है जिसके कारण उसे खांसी होने लगती है। इस स्थिति को दमा रोग कहते हैं।

दमा रोग होने का कारण -

औषधियों का अधिक प्रयोग करने के कारण कफ सूख जाने ,खान-पान के गलत तरीके ,मानसिक तनाव, क्रोध तथा अधिक भय से,नशीले पदार्थों का अधिक सेवन , खांसी, जुकाम तथा नजला रोग, नजला रोग होने के समय में संभोग क्रिया करने, भूख से अधिक भोजन खाने से, मिर्च-मसाले, तले-भुने खाद्य पदार्थों तथा गरिष्ठ भोजन करने ,फेफड़ों में कमजोरी, हृदय में कमजोरी, गुर्दों में कमजोरी, आंतों में कमजोरी तथा स्नायुमण्डल में कमजोरी हो जाने के कारण दमा रोग हो जाता है।

दमा रोग के लक्षण-

दमा रोग से पीड़ित रोगी को रोग के शुरुआती समय में खांसी, सरसराहट और सांस उखड़ने के दौरे पड़ने लगते हैं।दमा रोग से पीड़ित रोगी को वैसे तो दौरे कभी भी पड़ सकते हैं लेकिन रात के समय में लगभग 2 बजे के बाद दौरे अधिक पड़ते हैं।दमा रोग से पीड़ित रोगी को कफ सख्त, बदबूदार तथा डोरीदार निकलता है।दमा रोग से पीड़ित रोगी को सांस लेने में बहुत अधिक कठिनाई होती है।सांस लेते समय अधिक जोर लगाने पर रोगी का चेहरा लाल हो जाता है।

स्मृति आधारित स्वानुभूत केस -

होम्योपैथी रोग की चिकित्सा नहीं की जाती व्यक्ति को रोग में तलाशने का विज्ञान है, यहाँ कुछ केस प्रस्तुत कर रहा हूँ जिनके पूर्ण विवरण के स्थान पर केवल उन लक्षणों को उल्लिखित कर रहा हूँ जिन्होंने दवाओं के चयन में उचित मार्गदर्शन किया।

केस 1
नेशनल एकेडमी ऑफ होम्योपैथी में डा आदिल चिंथानवाला सर के पास एक 65 वर्षीय महिला जिसे साँस लेने में बहुत तकलीफ थी, सुनने पर घड़ घड़ की आवाज सुनाई देती थी, उसे एंटीम टार्ट 200 की 4 बूँद से डिस्टिल वाटर के साथ नोबुलाइजेशन विधि का प्रयोग किया गया, और यह हमारे लिए बेहद सुखद आश्चर्य था कि कुछ ही समय में महिला स्वस्थ हो गयी थी। होम्योपैथी में औषधि का आकस्मिक स्थिति में ऐसे प्रयोग और उसके प्रभाब का यह अनूठा प्रदर्शन था।

केस दो-
लगभग 3 वर्ष पूर्व एक 72 वर्षीय बृद्ध को दमे की शिकायत थी, लगभग सभी लक्षण रोग के ही थे, काफी देर बाद उसने बताया उसे लेटने पर आराम मिलता है, यह लक्षण दमे के रोगियों के लिए असामान्य है, किन्तु होम्योपैथी के लिए महत्वपूर्ण। उसे सोरिनम 200 की तीन खुराक और 15 दिन के लिए प्लेसेबो दी गयी। फिर एक दिन वह पता पूछते हुए जब हमारी क्लिनिक पर आया तो अपने साथ हमारे लिए ढेरों आशीष और दुआएं लाया था।

केस 3- सूरत में साड़ी की रँगाई करने वाले 45 वर्षीय एक पुरुष जिसे बीड़ी पीने की आदत थी, साँस लेने में पसलियों के पास चुभन का दर्द होता था और मेहनत करने पर साँस फूलने लगती थी, कभी कभी हल्का बुखार आ जाता था, प्यास नहीँ लगती थी। लक्षणों के आधार पर उसे एपिस 30 चार बूँद 5 दिन के लिए दी गयी, दुसरे ही दिन से उसे लाभ होने शुरू हो गया था।
केस 4- एक छात्र 19 वर्षीय जिसे वर्षो से नाक से पनीला स्राव होता रहता था, जाँच में इस्नोफील नम्बर बढ़ गया था, धूल, धुएं में लगातार छींक आती थी, आर्सेनिक 200 की एक खुराक के 3 दिन बाद 7 दिनों के लिए एलियम सिपा 30 चार बूँद दिया गया। अब भी जब कभी उसे जुकाम आदि होता है तो एक्यूट मेडिसिन से आराम हो जाता है, किन्तु पुरानी समस्या एक वर्ष से दोबारा नही आई।

केस 5- एक मंदिर के पुजारी जिन्हें ठंडक में यात्रा करने से स्वरभंग की समस्या होगयी थी, एलोपैथिक दवाओं के बाद कोई लाभ न हुआ तो त्वरित लाभ हेतु कोका मदर टिंक्चर 10 -10 बूँद 15 मिनट के अंतर पर 3 बार दिया गया और संतोषजनक बात रही कि आधे पौन घण्टे में उनकी आवाज पुनः वापस आ गयी।

डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
होम्योपैथिक चिकित्सा सेवा
द प्रतिष्ठा होम्योपैथी
फैज़ाबाद

Sunday, 15 January 2017

होम्योपैथी हित के लिए कुछ नारे

होम्योपैथ से क्या थी तकरार
या ये युवा बनाते नहीं सरकार।।

जनसेवा को तत्पर होम्योपैथ तैयार
खाली पद पर सोई रही सरकार
होम्योपैथी जन जन ने मांगी कितनी बार
जन जन से क्यों दूर रहा उसके जीवन का अधिकार।।

होम्योपैथी का हर एक चिकित्सक यूथ है
एक यूथ चिकित्सक खुद में पूरा बूथ है।।

नियुक्ति में कितना खेल रचाया
चुन चुन कर अपनों को बैठाया
बेंची सीट सिफारिश पर
और कुछ नोटों की बारिश पर
मजबूर हुए मासूम फंसे पैसे देकर
खूब लुटे ठेके पर नौकरियां लेकर।।

कैरियर बचाने को अपना तुमने
जो युवा जोश  दिखलाया है
बस उसी से अभिप्रेरित होकर
हर युवा होश में आया है।।

उस वक्त युवा अब तुमको होश में लाएगा
जब अपने हित में वोट करेगा 
या नोटा का बटन दबायेगा।।

मीठी गोली बोली वालों से
सरकार कभी न मीठा बोली
जनता की जो जेब काटते
बस उनके लिए बाहें खोली
युवाओं तुम भी अब प्रण
लेकर अपने हित का संधान करो
जो बात करे अब होम्योपैथ की
बस उसको ही मतदान करो।।

177 युवा बेकार गया
आंकड़ा 500 पार गया
आजिज आकर जनता बोली
सरकार ने छीनी मीठी गोली
कुछ उम्र की सीमा पार गये
तुम्हरी जिद से कुछ हार गए
ऐसे कितने सवालों का तुमको जवाब देना होगा
होम्योपैथ को क्या दिया इसका हिसाब देना होगा।।

डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी