चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

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Thursday, 23 February 2017

सफ़ेद सत्य- अयोध्या : .मैं विवाद से अधिक राजनीति की शिकार हूँ...

मैं निर्विवादित रूप से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मभूमि हूँ और उन्ही की पहचान से जानी जाती हूँ। श्रीराम  भारतीय जनमानस , जीवन व आस्था से जुड़े है यही कारण है कि देश और प्रदेश की राजनीति का कोई भी रास्ता मुझसे होकर जरूर गुजरता है। राजनीति के केंद्र में आकर मैने तो राजनीति एवं राजनेताओं को तो भरपूर दिया किन्तु उसी राजनीति में मैं स्वयं किसी नीति या निधि से वंचित ही रही। ख्याति के अनुरूप मेरेे आकर्षण की जो काल्पनिक  तस्वीर किसी भी मन में उभरती होगी, यहां आकर वह सोंचने पर मजबूर जरूर होता होगा कहीं वह गलत पते पर तो नहीं पहुँच गया।

धर्म ,आध्यात्म, पौराणिक महत्व एवं आस्था की नगरी कही जाती हूँ पर मेरी पहचान आज भी जुड़वा शहर फैज़ाबाद के ही नाम से करायी जाती है,। मुझ तक पहुचने के लिए कहने को तो रेल, सड़क और वायुमार्ग तीनो सुविधाएँ हैं किंतु रेलमार्ग, रेलवे स्टेशन,  बस स्टेशन , व हवाई पट्टी तीनो ही सुविधाएं खानापूर्ति जैसी ही हैं।

मेरा बस स्टैंड भी निष्प्रयोज्य ही नज़र आता है। मेरे प्रवेश द्वार पर नेताओं के होर्डिंग तो दिख जायेंगे  पर जिनसे मेरी पहचान है वही राम नहीं दिखेंगे। चाहते तो श्रीराम की भव्य मूर्ति का स्मारक बनवाया जा सकता है।

पहुंचने के बाद पर्यटकों को ठहरने, या आवागमन के साधन की समस्या होती है,। धार्मिक नगरी होने के नाते हजारों की संख्या में मंदिर, घाट कुंड सरोवर, अन्य पौराणिक महत्व के स्थल भरत कुण्ड, सूर्यकुण्ड, दशरथ कुण्ड आदि, ऐतिहासिक भवन आदि हैं किंतु उनकी जानकारी उपलब्ध कराने की कोई व्यवस्था नहीं।
वर्ष भर धार्मिक मेले, त्यौहार या आयोजनों में देश , प्रदेश ,जनपद, या आसपास के जिलों से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, उन्हें नियोजित करने की कोई व्यवस्था नहीं।समय समय पर यह व्यवस्था स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारी होती है।

लोग मंदिरों में धर्मशालाओं में शरण लेते हैं। श्रीराम की इस अयोध्या में विवादित स्थल केवल श्रीराम जन्मभूमि है किंतु शेष अयोध्या को जिस विकास की आवश्यकता और आस थी उसे भी नज़रअंदाज किया गया।

श्रद्धालुओं के ठहरने, भोजन, प्रसाधन, पार्किंग , स्नानागार, आदि की शासन की तरफ से कोई स्थायी व्यवस्था नहीं, समय समय पर अस्थायी संसाधनों को जुटाने में जो समय व धन खर्च किया जाता है  इसका स्थायी समाधान खोज लिया जाता तो तस्वीर बेहतर होती। मेला नियंत्रण बोर्ड स्थापित कर इन सारी व्यवस्थाओं को नियंत्रित कर आने वाले श्रद्धालुओं को सस्ते किराये पर ठहरने के लिए कमरे, रसोई, या कैंटीन, स्नानागार, पार्किंग, प्रसाधन, सड़क, नाली, प्रकाश, आदि की सुविधाएँ दी जा सकती हैं, मगर ऐसा होता नहीं। यदि ऐसा होता तो सड़क पर सोने की विवशता में श्रद्धालुओं को हादसों का शिकार न होना पड़ता। घाटों सहित सभी प्रमुख स्थलों की साफ सफाई , जल निकासी, राम पैड़ी का जल प्रवाह, आदि समस्याओं का निरकरण करवाया जा सकता था। सुविधाएँ, सौंदर्यीकरण, प्रकाश, एवं सहज आवागमन के साधन बढ़ाकर अयोध्या में पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता था, इससे यहां के स्थानीय व्यापारियों , युवाओं के लिए भी रोजगार के अवसर बढ़ सकते थे। किंतु राजनीति न जाने कौन सी दिशा में कैसा विकास दिखाना चाहती है।

डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी