रिश्ते सभी करीब के अब दूर हो गए हैं,
कहते हैं लोग वक्त से मजबूर हो गए हैं।।
नमक का ढेर बन गए हैं सूखकर माँ के आंसू,
खामोशियों में उसके दर्द सब नासूर हो गए हैं।।
बरसों से नहीं देखी है शक्ल उसने बेटों की
पगभर के फासले अब पीढ़ियों से दूर हो गए हैं।।
आती नहीं थी नींद जिसे लोरियां सुने बिना
वो दवाओं के जोर , सोने को मजबूर हो गए हैं।।
और वो काटती है सारी रात जागती रोती आंखों में
जिसके सपने उसकी एक नज़र को चूर हो गए हैं।।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी










