चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

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Saturday, 22 April 2017

रिश्ते और दूरियां

रिश्ते सभी करीब के अब दूर हो गए हैं,

कहते हैं लोग वक्त से मजबूर हो गए हैं।।

नमक का ढेर बन गए हैं सूखकर माँ के आंसू,

खामोशियों में उसके दर्द सब नासूर हो गए हैं।।

बरसों से नहीं देखी है शक्ल उसने बेटों की

पगभर के फासले अब पीढ़ियों से दूर हो गए हैं।।

आती नहीं थी नींद जिसे लोरियां सुने बिना

वो दवाओं के जोर , सोने को मजबूर हो गए हैं।।

और वो काटती है सारी रात जागती रोती आंखों में

जिसके सपने उसकी एक नज़र को चूर हो गए हैं।।

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी

Saturday, 15 April 2017

अपमान देश के बेटों के नही देश की माताओं का है

वे माताएं क्या सोचती होंगी जिन्होने राष्ट्रभक्तों की कहानियां सुनकर उनसे प्रेरणा लेकर अपने हृदय के टुकड़ों को मातृभूमि की रक्षा करते हुए देश की करोड़ो माताओं बहनों की रक्षा के संकल्प के साथ सेना में प्राण न्योछावर करने हेतु विदा करती होंगीं.... क्योंकि उसे ज्ञात होता है कि एक दिन या तो उसका बेटा विजय से ससम्मान वापस आएगा, या वीरगति को प्रप्त होकर उसके मस्तक को ऊंचा कर जाएगा...यह पीड़ा तो वह राष्ट्र को अपना परिवार मानकर सह जाती होगी, किन्तु जब उसी देश का उसका कथित कोई  "गुमराह नादान"  उसकी ममता पर ठोकर मरता है तो यह दुख और अपमान की पीड़ा वह कैसे सहन करती होगी..हमारे देश के जवानों को अपमानित करने वाले इस मातृभूमि की ऐसी संतानों पर किसी माता पिता या उनके गुरु तक को शर्म नहीं आती ...।

किन्तु यह दुस्साहस  यूँ ही नही पनपा होगा ..इसे भी कहीं से प्रेरणा मिली होगी...क्योंकि आजकल नकारात्मक विचारों वृत्तियों से प्रसिद्धि मिलना सहज जो हो गया है।निःसन्देह जब विद्या के प्रांगणों में राष्ट्र विरोध के गूंजते स्वरों को अभिव्यक्ति की आजादी कहकर घण्टो मंथन में उसे सिद्ध किया जाने लगे, जब परस्पर राजनैतिक लाभ की अभिलाषा पूर्ति मात्र के लिए मातृभूमि को अपशब्द कहने वालों को प्रसिद्धि मिलने लगे, जब भावनाओं को भड़काने वाले विचारों के व्यक्तित्वो के साक्षात्कार किये जाने लगें, जब सत्य को स्वीकार करने की प्रवृत्ति का ह्रास होने लगे व असत्य को महिमामण्डित और सम्मानित संरक्षित सुरक्षित किया जाने लगे तो पहले प्रयोग स्वरूप छोटे प्रयास की सफलता के आकलन के आधार पर ऐसे दुस्साहस के कृत्य सामने आ जाएं तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए।

इस नकारात्मक और कुपोषित मानसिकता का समय रहते उपचार न किया गया तो यह अपमान हीनता के स्वरूप में अवसाद का जनक न बन जाये। इसलिए दवा कितनी ही कड़वी क्यों न हो जख्म को नासूर बनने से बचाना है तो प्रयोग करना ही चाहिए।

#डॉउपेन्द्रमणित्रिपाठी

Monday, 3 April 2017

माँ बाप के क्लेश में बच्चे

माँ बाप के टकराव में अक्सर
बच्चों का यूँ बंटवारा होता है,
पास है उनके कि अधिकार है जिसका,
उसी से दूर होता है जिसे वो प्यारा होता है।।

#DrUpendraManiTriathi