चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

This is default featured slide 4 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 5 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

Monday, 22 May 2017

होम्योपैथी : तन मन जीवन की हर चोट का मरहम


चोट (injury) लिखने पढ़ने और बोलने में दो अक्षर का छोटा सा शब्द किंतु असर पीड़ा देने से प्राण लेने तक की सीमा तक करती है। सामान्य जीवन मे अचानक होने वाली यह दुर्घटना का परिणाम होती है इसलिए चिकित्सकीय दृष्टि से इसे इमरजेंसी या आकस्मिक चिकित्सा में रखा गया है, परीक्षण के आधार पर इसे सामान्य या गम्भीर माना जाता है और तदनुरूप उपचार का तरीका निश्चित किया जा सकता है। प्रचारित किये गए विश्वास के अनुसार दुर्घटना या चोट की आकस्मिक स्थितियों में होम्योपैथी का कोई लाभ नहीं क्योंकि यह देर से असर करती है, या मामूली चोट लगने पर भी पहले टिटनेस का टीका लगवाना जरूरी है फिर चाहे होम्योपैथी कर सकते हैं। यथार्थ तो यह है कि सभी पद्धतियों की अपनी क्षमताएं और सीमाएं है किन्तु होम्योपैथी के विषय मे यह अवधारणा जनमानस में इसलिए है क्योंकि जागरूकता के अभाव में जरूरी चिकित्सकीय मैनेजमेंट को भी वह एलोपैथी से ही जोड़कर समझता है। जबकि उचित प्रबंधन में सही समय पर सही होम्योपैथिक दवा के प्रयोग से भी आकस्मिक चोट मोच की स्थितियों में रोगी को लाभ दिया जा सकता है और उसकी जान बचाई जा सकती है। आमतौर पर ऐसे समय प्राथमिक उपचार की सामान्य विधियों की जानकारी यदि जनसामान्य को हो तो वह रोगी को चिकित्सक तक पहुचाने में सहयोगी हो सकता है। एक कारण यह भी है कि होम्योपैथिक क्लिनिक या सरकारी डिस्पेंसरीज में भी इस तरह के केसेज के लिए जरूरी प्रबंधन संसाधनों के अभाव में भी चिकित्सक मरीजो को पूरे विश्वास से रोक नहीं सकते, यह कुछ व्यवस्था की व्यवहारिक अक्षमताएं हो सकती हैं किंतु होम्योपैथी का सदुपयोग सामान्य इमरजेंसी मानी जाने वाली सामान्य चोट, मोच, रक्तस्राव, छिल या हल्का कट जाने,अचानक उत्पन्न दर्द, या संक्रमण अथवा गम्भीर इमरजेंसी समझे जाने वाले जलने, दुर्घटना में किसी अंग की हड्डी टूटने, लू लग जाने, मानसिक आघात आदि में भी सम्भव है।
सुविधा की दृष्टि से चोट की गम्भीरता के आधार पर विषय को सन्दर्भित किया जाए तो
सामान्य चोट -
बच्चों के खेलते समय किसी चीज से टकरा जाना, गिर जाना, झगड़े मारपीट में प्रहार ,या वाहन दुर्घटना, हल्का फुल्का कट जाने, छिल जाने से रक्तस्राव आदि की ऐसी सामान्य चोट जिसमें गम्भीर नुकसान की संभावना नही दिखती, इस दशा में होम्योपैथी की अर्निका, हैपेरिकम,कैलेंडुला, हैमेमेलिस, मिलीफोलियं, रस टॉक्स लीडम, आदि दवाएं प्रयोग की जाती हैं।
एक सामान्य तरीके के अनुसार कुचले हुए दर्द के लिए अर्निका सर्वोत्तम औषधि है , यह एंटीसेप्टीक का कार्य करती है और अंदरूनी भाग में खून जमने नही पाता और दर्द सूजन भी कम हो जाती है।
चोट : मोच-
दैनिक कार्य के दौरान गलत तरीके से व्यायाम, फिसलने,  कुछ वजन उठा लेने ,आदि से शरीर के जोड़ वाले भागों कलाई, कमर, पैर, आदि में मोच के कारण सूजन दर्द आ जाती है ऐसे में भी होम्योपैथी की रूटा, रस टॉक्स शानदार कार्य करती हैं।
चोट और रक्तस्राव-
यह किसी प्रकार की बाहरी या अंदरूनी चोट के कारण हो सकता है, अथवा नकसीर,मासिक का, या किडनी में पथरी का आदि। इसके लिए होम्योपैथी में हैमेमेलिस सामान्यतः वेनस ब्लड के लिए, मिलफोलियं- आरटेरियल ब्लड, क्रोटेलस पेरिफेरल या टॉक्सिकेशन के कारण रक्तस्राव के लिए उयोगी दवाएं हैं।
चोट आदि के कारण यदि कहीं से खून बहने लगे तो तुरंत उस स्थान पर हैमामेलिस वरजिनिका मदर टिंक्चर वहां रूई से लगा दें और इसकी 10-12 बूंद आधा कप पानी में डालकर पिला दीजिये, जल्दी ही खून बन्द हो जाता है।
*************************
चोट में होम्योपैथी-
यहां एक तथ्य बताना और समीचीन होगा कि चोट का असर यदि गहरी मांसपेशियों तक है तो बेलिस पर, हड्डियों के आवरण तक है तो रूटा, नसों तक है तो हाईपेरिकम, धारदार हथियार से कटने से स्टैफिसग्रेया, नुकीली चीज से है तो लीडम, और संक्रमण से बचने या घाव आदि की पट्टी करने के लिए कैलेंडुला मदर टिंक्चर व सूखने के लिए गन पावडर , इसी तरह हड्डी के टूटने पर सिफाइटम, रूटा, कैल्केरिया फॉस, कैल्केरिया फ्लोर, आदि का प्रयोग सामान्यतः चोट की अधिकांश समस्याओं का उचित प्रबंधन में संतोषजनक उपचार कर देता है।
************************
किसी दुर्घटना के कारण बेहोशी आदि हो रही हो तो रेस्क्यू 30 दे सकते हैं, आंख की पुतली में चोट लगने पर भी आर्निका, फेरमफास, आर्टिमिसिया वल्गैरिस प्रमुख दवाएं हैं।आर्टिमिसिया वल्गैरिस और सिम्फाइटम आंख की चोट की बहुत कारगर दवाईयां हैं जो चोट लगने पर दूसरी परेशानियों को भी दूर करती है.
लोहे की जंग लगी वस्तुओं से टिटनेस का भय और भविष्य में बचाव की दृष्टि से भी होम्योपैथी की लीडम, व हाईपेरिकम दवाएं सर्वोत्तम हैं। यद्यपि यह गम्भीर इमरजेंसी की अवस्था मे हो सकती है, इसके साथ ही कई बार घरेलू कार्यों के दौरान महिलाएं रसोईघर में कार्य करते समय किसी गर्म चीज से जल जाती है, अथवा तेज धूप, भाप, आग आदि से जलने पर भी तुरन्त कैंथेरिस मदर टिंचर का बाहरी प्रयोग किया जाए तो बहुत आराम दिया जा सकता है।अर्तिका युरेन्स, काली म्यूर भी कारगर दवाएं हैं। मैने स्वयं कई केसेज में इनका प्रयोग किया है और अब तो मेरे आस पास के लोग सामान्य जलने कटने पर होम्योपैथी प्रयोग करने लगे हैं।
चोट : डंक का दंश
किसी को घर में या बाहर खेलते घूमते कहीं  चूहा काट ले अथवा ततैया, मधुमक्खी, आदि शरीर में कहीं यदि डंक मार दे तो उस स्थान पर सूजन के साथ तेज दर्द होता है। इस समय लिडम पैलस्टर व एपिस मेल आपकी मित्र हो सकती हैं। डंक वाले स्थान पर लिडम पैलस्टर  क्यू की कुछ बूंद रूई से लगाने से आराम मिलता है।
कहते हैं न कि शरीर पर लगी चोट और उसके दर्द के इलाज के लिए दुनिया मे हजारों मरहम मिलते है मगर कुछ चोटें और कुछ दर्द ऐसे भी होते हैं जिनका कोई मरहम इस दुनिया के बाजार में नहीं मिलता...मगर होम्योपैथी दिखावे की दुनिया का बाजार नहीं यह तो आपके अंतर्मन को टटोलने वाली विधा है इसीलिए यह ऐसा विज्ञान है जिसका प्रयोग करना किसी साधना से कम नहीं,।
वस्तुओं से लगने वाली चोट सतही हो सकती है गम्भीरता होने पर प्राण ले सकती है किंतु मन मस्तिष्क पर लगी शब्दो की चोट,किसी के विश्वासघात, किसी के अपमान, किसी अपेक्षा, किसी उपेक्षा, की चोट इतने अंदर तक चोटिल करती है कि इसका असर इंसान के व्यक्तित्व पर दिखता है ।
इंसान की असीमित महत्वकाक्षायें , दिल टूटना चाहे वह किसी प्रिय स्वजन की मृत्यु के रुप मे हो, या उसके विछोह ,  प्रेम,या व्यपार मे असफ़लता के कारण,या अपने लक्ष्य की पूर्ति न होने पर ,इन सब का अंतिम परिणाम मानसिक लक्षणॊं के उभरने पर ही मालूम होता है । उस बच्चे के अन्दर झांक कर देखें जिसके माता -पिता का पूरा कन्ट्रोल उसके व्यक्तित्व को पूरी तरह से ग्रसित कर जाता है, या उस अबला से जिसकी अस्मिता का शिकार कुछ हवशियों द्वारा किया जा चुका हो और पूरी जिदंगी वह उन सदमों से उबर पाने मे अपने को लाचार पाती हो, बेटों से उपेक्षित बृद्ध मां बाप, भाईयों से प्रताड़ित भाई, पति पत्नी के क्लेश, तलाक या अलगाव के दंश झेलते बच्चों का मानसिक विकास जिस वातावरण में होता है वह निरन्तर न दिखने वाली ऐसी चोट से चोटिल होते रहते हैं जिसका परिणाम उनके युवा मन के भ्रमित विकृत व्यवहार में देखने को मिलता है।
जो हो चुका है उसकी भरपाई करना असंभव है लेकिन हाँ , इन न दिखने वाली मानसिक चोट की भरपाई हम होम्योपैथिक औषधियों से अन्य पद्दतियों की अपेक्षा अधिक सुगमता और दवा बन्द होने के बाद बगैर दवा पर आश्रित रह कर कर सकते हैं ।
रोगी परीक्षण के दौरान व्यक्तिगत या परिवारिक पृष्ठभूमि का आकलन करते हुए ऐसे लक्षणों को रोगी स्वयं कहता है,-" डॉ साहब जबसे अमुक घटना हुई बस उसके बाद से ही धीरे धीरे यह सब होता गया ...."आदि, इसे रिपर्टरी में "AILMENTS From," या " NEVER WELL SINCE". रुब्रिक के अंतर्गत चयनित किया जा सकता है।
सम्बंधित कुछ उदाहरण निम्न हैं-
NEVER WELL SINCE-Grief or death of beloved one : Nat Mur , Aur Met ( if suicidal , feels like life is gone), Ignatia.
NEVER WELL SINCE- broken heart : Natrum Mur, Ignatia, Lachesis.
NEVER WELL SINCE – business failure-Ambra G , Aur. calc. Cimic. coloc. Hyos. ign. kali-br. kali-p. nat-m. nux-v. ph-ac. puls. rhus-t. sep. sulph. verat.
NEVER WELL SINCE –Domination , children dominated by parents: CARC,Nat Mur, Staph.
AILMENTS FROM – abused; after being – sexually-ACON. am-m. ambr. anac. androc. ARN. ars. aur-m. bapt. bell-p-sp. berb. calc-p. cann-i. CARC. caust. croc. cupr. cur. cycl. falco-pe. foll. hyos. IGN. kreos. lac-c. lac-f. lyc. lyss. Med. Melis. nat-c. Nat-f. NAT-M. nux-v. OP.Orig. oxyg. petr-ra. Plat. SEP. STAPH. stram. thuj. toxi. tub. ust. xanth. ;
AILMENTS FROM – abused; after being – sexually – rape-aster. Carc.
किन्तु अफसोस की बात यह कि जनजागरूकता की कमी, समुचित प्रचार प्रसार, सरकारी तंत्र की उपेक्षा, संसाधनों के अभाव के कारण ऐसे मामलों में रोगी होम्योपैथ के पास उस अवस्था मे जाते हैं जब वह पूरी तरह निराश हो चुके होते हैं, और जीवन के बहाने के तौर पर स्वयं को संतोष देने के लिए इलाज करते रहना चाहते हैं। समय के साथ ये अदृश्य चोट गहरी हो चुकी होती है और उपयुक्त स्थान बना लेती है, यद्यपि यदि पूरे आत्मविश्वास के साथ प्रशिक्षित होम्योपैथी चिकित्सक से परामर्श लिया जाय तो आशातीत लाभ की सम्भवना हो सकती है।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
परामर्श होम्योपैथ
फैज़ाबाद
8400003421
 

Friday, 19 May 2017

बुखार : उपचार से पहले जानें प्रकार

आज कल गर्मी का मौसम तपन वैसे ही बढाये हुए है इस मौसम में लू लगना, फोड़े फुन्सी , दस्त ,डायरिया आदि की संभावना तो बनी ही रहती है जिनसे बचाव बेहद जरूरी है, किन्तु छोटे बच्चों में बुखार के मामले भी देखने को मिल रहे है। बुखार स्वयं कोई रोग नही बल्कि किसी रोग का संकेत या लक्षण होता है जो किसी प्रकार के संक्रमण विष के कारण शरीर के बढ़े ताप के रूप में प्रदर्शित होता है।

जरूरी है सम्भावित कारणों की पहचान-

बुखार के तमाम कारणों पर ध्यान दिया जाना चाहिए जैसे अत्यधिक श्रम, मासिकधर्म तथा डिम्ब क्षरण के समय, उच्चतापमान के वातावरण से, बैक्टीरिया, वायरस या फंगस का संक्रमण,अथवा अन्य किसी रोग जैसे- कैंसर, आमवात, हारमोन में वृद्धि, थायराइड रोग, लू, चोट आदि।

बुखार से जुड़े सामान्य लक्षण

रोगी की जांच के समय बुखार होने के साथ, सिर में दर्द, कमजोरी महसूस होना, मांसपेशियों , कमर में दर्द होना, सर्दी लगना, बेहोशीपन महसूस होना या कभी-कभी बेहोश हो जाना, या बेहोशी में बुदबुदाना, त्वचा पर कई प्रकार की फुंसियां निकलना, पसीना आदि लक्षण मिल सकते हैं।

बुखार के प्रकार

साधारण  बुखार सर्दी लगने, भीगने, कब्ज , अपच, धूप, डर, या अधिक श्रम से हो सकता है, जो आराम करने या एक्यूट रेमेडीज से ठीक हो जाता है।

रेमेटेंट ,अविराम या कांटीन्युअस अथवा टाइफायड फीवर भी कहते हैं क्योंकि यह सीढी की तरह घटता बढ़ता है और जल्दी ठीक नहीं होता है।
इस रोग के होने पर रोगी को हल्की कंपकंपी होकर बुखार, कभी ठण्ड तो कभी गर्मी महसूस  , त्वचा सूखी,  बेचैनी प्यास, जीभ सूखी और सफेद , सांस व  नाड़ी तेज,  पेशाब कम, लाल सी, कमर और पीठ में दर्द होता है। कभी कब्ज कभी  दस्त,  सिर में दर्द होता है।
        

  पारी देकर आने के कारण इनटरमिटेन्ट फीवर या सविराम ज्वर को मलेरिया बुखार  भी कहते हैं , साथ ही रोगी को तेज ठण्ड फिर तेज बुखार फिर खूब पसीना  और प्यास का लक्षण मिलता है।

स्त्री को प्रसव होने के बाद सफाई आदि न होने से, स्तनों में दूध आ जाने के बाद होने वाले बुखार को प्रसूतिक बुखार कहते है।

तपेदिक , क्षय,या  टीबी रोग से पीड़ित व्यक्ति के बुखार को  हेक्टिक या हैबिचुअल फीवर कहते हैं।

माल्टा फीवर माल्टा द्वीप पर पहले पाये जाने के कारण इसी नाम से जाने जाने वाले पांचवे प्रकार के बुख़ार का कारण है बकरी का दूध ।
क्योक़ि इसमें मिलने वाले  माईक्रोकॉकस मेलिटेनसिस जीवाणु के कारण दूध सेवन करने से संक्रमित व्यक्ति बुखार से पीड़ित हो जाता है, इसका खास लक्षण है कि लगभग एक सप्ताह तक बुखार शरीर में छिपा रहता है इसके बाद लगातार दो-तीन सप्ताह तक भी हो सकता है या दो-चार दिन में ठीक हो जाता है , लेकिन पुनः  रोगी में यह पांच-सात महीने तक लगातार बुखार के रूप में बना रहता है।
बुखार के साथ रोगी को कब्ज, स्नायु , हडि्डयों, जोड़ों पर दर्द होता है। कभी-कभी तो कई वषों तक यह रोग ठीक नहीं होता है।

पीड़ित व्यक्ति  को बकरी का दूध नहीं देना चाहिए।खुले में मल-मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए, हल्के गरम पानी से उसे स्नान कराना चाहिए।

क्या बरतें सवधनियाँ-

बुखार में आराम करें, शारीरिक और मानसिक श्रम से बचें, तरल पदार्थों का सेवन, मसूर दाल की खिचड़ी का सेवन करना चाहिए।

रोगी को कार्बोनिक पेय, ठण्डे रस व फल जैसे ककड़ी, खीरे और केले का सेवन नहीं करना चाहिए।बुखार को कम करने के लिए माथे पर ठण्डी पटि्टयां लगानी चाहिए।अधिक बुखार होने पर पूरे शरीर को गीले कपड़े में लपेटने से लाभ मिलता है।

होम्योपैथिक उपचार-
होम्योपैथी में औषधियों का निर्वाचन रोगी के व्यक्तिगत लक्षणों, शारीरिक बनावट, मानसिक अवस्थाओं पर निर्भर होता है इसलिए दवाओं का सेवन बिना किसी प्रशिक्षित चिकित्सक की सलाह के केवल पढ़ लिख कर या देख सुनकर नही किया जाना चाहिए। होम्योपैथी की एकोनाइट, बेल, ब्रायो, आर्स, जेल्स, ग्लोनायन, बैप्टीसिया, चायना, चिनियं, अर्निका, युपेटोरियम, पैरोजेन,एपिकक,नक्स, लाइको, कार्बो, नेट्रम आदि दवाएं बेहद कारगर होती हैं।

Tuesday, 2 May 2017

होम्योपैथी- कारणों के उपचार एवं बचाव से दमा का करे दमन

दमा : स्वच्छ वायु स्वच्छ सांस




गेहूं की कटाई से उड़ता भूसा, सड़क पर हवा से उड़ती धूल, और ठंडा पानी पीने के बाद जुकाम या एलर्जी के साथ सांस लेने में तकलीफ, जकड़न, या नाक बंद लगे तो यह संकेत सांस की बीमारी के हो सकते हैं आपको तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेनी चाहिए, क्योंकि दम फूलने की इसी बीमारी को हम दमा और डॉक्टर अस्थमा बताते हैं।

लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से 1998 से हर साल मई के प्रथम  मंगलवार को पूरे विश्‍व अस्‍थमा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष इसकी थीम है स्वच्छ वायु स्वच्छ श्वांस।

 पहले तो यह रोग बुजुर्गों में होता था किंतु अब बच्चों को भी अपनी चपेट में लेने लगा है।इसमें  भिन्न कारणों जैसे एलर्जी, मौसम परिवर्तन आदि से श्वास नलियों में सूजन आ जाती है तथा उनमें कभी कभी म्यूकस का श्रवण भी होने लगता है, इस कारण सांस लेने में तो कोई खास दिक्कत नहीं होती लेकिन सांस निकलने में तकलीफ जरूर होती है।

 यूँ तो एलर्जी,  वायु प्रदूषण, धूम्रपान और तंबाकू, संक्रमण, अधिक या अनुचित उपचार, या दवा के दुष्परिणाम ,आनुवांशिक, मोटापा,तनाव या मौसम परिवर्तन को अस्थमा का कारण माना जाता है, किन्तु होम्योपैथी सिद्धांतो से व्यक्ति में रोग के कारण और प्रदर्शन अलग हो सकते हैं।इस तरह यह केवल रोग के उत्प्रेरक या स्थायिकारक कारण हो सकते है जबकि मूल कारण व्यक्ति में सोरा, साइकोसिस मियाज्म होते हैं।

 इसी आधार पर उपस्थित लक्षण जैसे साँस निकालने में तकलीफ, सीने में जकड़न या दर्द, खाँसी, घरघराहट, लगातार सर्दी और , नींद में बेचैनी, थकान आदि रोग के सामान्य प्रदर्शन की भाषा या लक्षण हैं।

उपचार से बेहतर बचाव

अस्थमा से पीडि़त व्यक्ति को उचित दवा की आवश्यकता तो है किंतु उसके रोग आक्रमण को बढ़ाने वाले कारणों से बचाव बेहद जरूरी है ।इसलिए धूल, धूल -कण , तेज सुगन्ध, पुष्प पराग, तेज मसालेदार भोजन, आदि एवं अधिक बाल वाले पालतू कुत्ते, बिल्‍ली आदि से बचना चाहिए। और प्रातः नियमित स्वच्छ हवा में खुले में टहलना चाहिए।

इसके साथ कुछ घरेलू उपाय भी आपकी तकलीफ कम कर सकते है जैसे गुनगुने सरसों तेल में कपूर मिला कर छाती पर रोजाना मलें, या

सोने से पहले एक चम्मच शहद और आधा चम्मच दालचीनी पाउडर पानी के साथ लें एवं अपने आहार में अधिक ताजा फल और सब्जियों को शामिल करें।

आजकल प्रयोग किया जाने वाला इन्हेलर दरअसल होम्योपैथी के औषधि की न्यूनता के सिद्धांत पर विकसित तरीका है जिसे अपनाया तो जाता है किंतु विरोध के नाम पर होम्योपैथी पर लोग प्रश्नचिन्ह लगाना नहीं भूलते। उपचार के समय रोगी के पारिवारिक, व्यवसायिक, व्यक्तिगत ,व मानसिक अवस्थाओं का आकलन कर मूलकारणों का निर्धारण व तत्सम औषधि से ही उपचार किया जाता है। होम्योपैथी में केवल कुछ लक्षणों पर दवा से वांछित लाभ सम्भव नही इसलिए चिकित्सक की सलाह से ही दवाओं का सेवन करना उचित रहता है।