स्वस्थ जीवन में तीन महत्वपूर्ण बातें-
जीवन - शरीर मस्तिष्क और प्राण।
रोग - विचलन, कार्यिकी, और शल्य रोग।
रोगी अवस्था - एक्यूट, सब एक्यूट, क्रानिक।
उपचार- नियमन, औषधि, शल्य क्रिया।
तरीके - योग, होम्योपैथी और आयुर्वेद।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति को मातृभाव से देखा जाता है क्योंकि इसने अपने विभिन्न उपादानों में प्राणियो के पोषण के उपयुक्त पोषक तत्व डाल रखे हैं । अनादिकाल से हमारे ऋषि मुनि (वर्तमान में भी जो) योग और आयुर्वेद के माध्यम से इसके सहचर्य में रहे है आधुनिक जीवन शैली के रोग दोष से मुक्त हैं।
भारतीय दर्शन एवं विज्ञान में जीवन का चित्रण बड़ा सरल भी है और जटिल भी। इसके अनुसार शरीर, चेतना और मन सभी का आधार "प्राण" है । प्राण का तात्पर्य श्वास और श्वास का तात्पर्य प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन से है। अतः शरीर के प्रत्येक सूक्ष्मतम अवयव तक निष्पन्न होने वाले कार्यों को पूरी मात्रा में ऑक्सीजन या प्राण देकर शरीर के आंतरिक अवयवों को व्यायाम देने की पूर्णता ही प्राणायाम है।
स्वास्थ्य के लिए भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टि में स्पष्ट यह अंतर है कि एलोपैथी में जब रोगी आता है तो उसे हृदय रोगी,श्वास रोगी,उदर रोगी आदि की श्रेणियों में बाँट दिया जाता है क्योंकि आधुनिक चिकित्सा का सत्य क्लीनिकल कण्ट्रोल ट्रायल पर आधारित है जहां सत्य का अन्वेषण एक चुनौती भरा दायित्व है। ऐसेमें केवल योग आयुर्वेद और होम्योपैथी में ही स्वास्थ्य का विचार करते समय शरीर, विचार, भावना, जलवायु परिवेश , आदि को महत्वपूर्ण माना जाता है।
क्या है स्वास्थ्य
चरक के अनुसार जिसका त्रिदोष वात पित्त कफ़,व सप्तधातु मल प्रव्रत्ति आदि क्रियाएँ संतुलित अवस्था में हों साथ ही आत्मा इन्द्रिय एवं मन प्रसन्न में हो वही मनुष्य स्वस्थ कहलाता है।
होम्योपैथी में भी शरीर ,मस्तिष्क व जीवनी शक्ति (भारतीय अध्यात्म के अनुसार आत्मा) का सन्तुलन ही स्वास्थ्य है।
इनका असन्तुलन ही रोग का कारण है। भारतीय दर्शन के अनुसार रोग दो प्रकार के होते है
पहला आधि अर्थात मन के रोग
दूसरा व्याधि अर्थात शरीर के रोग ।
एक दृष्टान्त के अनुसार योग वशिष्ठ में रोगों का विश्लेषण करते हुए महर्षि वशिष्ठ श्री राम से रोग दो प्रकार के बताये एक आधीज जिसमे दुनिया के दैनिक व्यवहार करते समय उपन्न होने वाले तनाव के फलस्वरूप सामान्य रोग होते है जिनमे आरोग्य का साधन प्राकृतिक चिकित्सा अथवा योग ही हैं। अथवा सार अर्थात जन्म एवं मृत्यु जिनसे सभी को गुज़रना है।
दुसरे प्रकार का रोग जो आकस्मिक या वाह्य कारणों चोट संक्रमण आदि से उतपन्न हो सकते हैं ।
आधीज व्याधि में कैसे बदल जाती है ?
श्रीराम के इस प्रश्न के उत्तर में वशिष्ठ जी ने जो व्यख्या बताई होम्योपैथी उस कसौटी पर भी खरी उतरती दिखती है। महर्षि वशिष्ठ ने कहा " मनुष्य के मन में लालसाएं वासनाएं होती है उनकी पूर्ति न होने पर मन क्षुब्ध होता है, मन के क्षुब्ध होने से प्राण और क्षुब्धप्राण के नाड़ी तन्त्र में प्रवाहित होने से स्नायु मण्डल अव्यवस्थित हो जाता है और शरीर में कुजीर्णत्व अजीर्णत्व होता है इसी कारण कालान्तर में शरीर में खराबी आ जाती है इसे ही व्याधि कहते है।
भावना तथा विचार की शुद्धि व नियमन हेतु विशेष रूप से योग विज्ञान उपयोगी है।
शरीर के स्तर पर चिकित्सा हेतु आयुर्वेद व अन्य चिकत्सा पद्धतिया उपयोगी हो सकती हैं। स्वस्थ शरीर में रोग की उत्पत्ति और उसके निदान के विषय में योग आयुर्वेद एवम् होम्योपैथी में जो सैद्धांतिक एकरूपता दिखती है उसके अनुसार " मनुष्य तभी स्वस्थ है जब तक जीवनी शक्ति (आत्मा, जैविक ऊर्जा,प्राण) के नियंत्रण में शरीर व मस्तिष्क, तीनो सन्तुलन की अवस्था में हैं । मनुष्य में अदृष्य जीवनी शक्ति या प्राण में दैनिक जीवन के तनाव भावनाओं की चोट,विचार आदि से न्यूनता आती है और शरीर रोग के लिए प्रवृत हो जाता है।इस प्रकार रोग का कारण डायनामिक शक्तिया है जिनका नियमन डायनामिक औषधीय तरीकों से हो सकता है।"
योग द्वारा शरीर मन और चेतना तीनों में सन्तुलन स्थापित होता है जो स्वास्थ्य की प्रथम शर्त है।
अनेक असाध्य या दुःसाध्य प्रकार की श्रेणी में आने वाले रोगों के इलाज में व्यक्ति आधारित प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों में आयुर्वेद तो महत्वपूर्ण है ही किन्तु होम्योपैथी में आयुर्वेद के समः समे शमयति एवं मर्दनम गुण वर्धनम के सिद्धांत के अनुरूप विषैले एवं निष्क्रिय पदार्थों को औषधीय क्षमता में गुणात्मक वृद्धि कर सकने के तरीके में ऐसे सबसे अत्याधुनिक वैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति की अग्रपंक्ति में ला खड़ा करते हैं।
मन की तमाम स्थितयों हर्ष विषाद दुःख घृणा प्रेम उपेक्षा चिंता अवसाद तनाव आदि का जितना महत्व होम्योपैथी की औषधि चयन में है उतना ही महत्वपूर्ण योग का जीवन की इन मनः स्थितयों में संयम स्थापित करने में है। योग शरीर मन और चेतना में एकरूपता ला कर जीवन में ऊर्जा के संचार को नियंत्रित कर हमे मानसिक और शारीरिक रूपसे स्वस्थ बनाता है।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
राष्ट्रीय सचिव :होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन
HMA












