चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

This is default featured slide 4 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 5 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

Tuesday, 19 September 2017

जानें क्या है हेपेटाइटिस सी

क्या है हेपेटाइटिस सी ?

हेपेटाइटिस के भिन्न प्रकारों में से एक हेपेटाइटिस सी वायरस के कारण होता है, जो कि लिवर फेल्योर, क्रोनिक हैपेटाइटिस, लिवर सिरोसिस आदि जैसे कई गंभीर चिकित्सा स्थितियों में उत्पन्न हो सकता है।

हेपेटाइटिस सी संक्रमण की संभावनाएं-

ऐसे व्यक्ति जो लंबे समय से दवाओं का सेवन कर रहे हैं
रक्ताधान,
असुरक्षित एकाधिक यौन सम्बन्ध,  इंजेक्शन या खतना या शल्य क्रिया, टैटू बनवाना, कान छिंदवाना, माँ से शिशु में, रक्त दूषित औजारों से दाढ़ी बाल कटवाने से संक्रमित होने की सँभवनाये हो

एक्यूट हेपेटाइटिस सी

यह 6-12 सप्ताह में पता चल पाता है।लगभग 25%में पीलिया के लक्षण मिलते हैं लेकिन पीलिया वाले रोगियों को वायरस साफ करने की अधिक संभावना है।

क्रोनिक हैपेटाइटिस सी

ज्यादातर मामलों में क्लिनिक रूप से स्पष्ट पीलियाग्रस्त हेपेटाइटिस नहीं होता है।   60-85% रोगियों में सीरम एमीनोट्रांसफेरेज का स्तर असामान्य रहता है।
लगभग 10-20% मामलों में  लंबे समय लगभग 10 वर्षों में, धीरे धीरे प्रगतिशील लिवर सिरोसिस विकसित हो सकता है।
संक्रमण में अधिक उम्र, शराब का सेवन, एचआईवी संक्रमण या अन्य बीमारी बढ़ने वाली या सहकारक हो सकती हैं।

कैसे होती है पुष्टि

सीरम या यकृत ऊतक में हेपेटाइटिस सी आरएनए स्तर की उपस्थिति हेपेटाइटिस सी संक्रमण के निदान के लिए मानक है।

क्या है सम्भव होम्योपैथिक उपचार

उपचार मुख्य रूप से रोगी की चिकित्सा स्थिति पर निर्भर करता है।
होम्योपैथी दवा की सबसे लोकप्रिय समग्र प्रणालियों में से एक है। इसमें दवा का चयन लक्षणों की टोटेलिटी,  व्यक्तिगतकरण और लक्षणों की समानता के सिद्धांत पर आधारित है। यह एकमात्र तरीका है जिसके माध्यम से रोगी को पीड़ित सभी लक्षण और लक्षणों को हटाकर पूर्ण स्वास्थ्य की स्थिति वापस प्राप्त की जा सकती है। होम्योपैथी का उद्देश्य हेपेटाइटिस सी के इलाज के लिए ही नहीं है, बल्कि इसके अंतर्निहित कारण और व्यक्तिगत संवेदनशीलता को संबोधित करने के लिए है।

जहां तक ​​चिकित्सकीय दवा का संबंध है,व्यक्तिगत औषधि चयन और उपचार के लिए, मरीज को योग्य होम्योपैथिक डॉक्टर से व्यक्तिगत परामर्श लेना चाहिए।
होम्योपैथी में चेलिडोनियम, ब्रायोनिया, मयिरिका, कारडुआस, लाइको, पटेलिया,फ़ास्फ़रोसनक्स
मिरिका सेरीफेरा ,कॉर्नस सर्किनाटा आदि दवाएं उपयोगी हैं।

Sunday, 17 September 2017

होम्योपैथी केस टेकिंग : महत्वपूर्ण बिंदु

जब एक व्यक्ति होम्योपैथ के पास आता है तो उसकी समस्याओं से अवगत होते समय चिकित्सक के लिए जरूरी है कि वह ऑब्सर्व करे-

 1) एक मरीज़ कैसे आता/आती है?

 2) एक डॉक्टर से मिलने के लिए रोगी की क्या जरूरत है?

 3) क्या एक रोगी उसकी समस्या के बारे में सोच रहा है?

 4) समस्या कैसे जीवन को प्रभावित कर रही है?

 5) बचे स्थिति के दौरान टेम्परामेंट और मूड के बारे में पूछना

रोगी के अवलोकन के सात मुख्य तत्व-

1. परामर्श से पहले मरीज का क्या व्यवहार था? आप क्या वाइब्स प्राप्त किया; वह कितना बेताब था; वह तुम्हारे पास कैसे आए? वह उसके साथ एक निश्चित ऊर्जा लाता है

 2. परामर्श के दौरान आप उसकी गति, उसकी अभिव्यक्ति, कितनी सतर्क या सुस्त है, कैसे आरक्षित या एनिमेटेड, चुप या अभिव्यंजक कैसे ध्यान दें। लेकिन यह जानना महत्वपूर्ण है कि इसके पीछे क्या है। आपको यह देखना होगा कि उसके लिए बुनियादी क्या है ? कई बार यह परिस्थितियों से पैदा हुई बीमारियां हो सकती  है।आपको उन बुनियादी परिस्थितियों को जानना चाहिये।

 3. वह आपके साथ कैसे व्यवहार करता है और उसके और आपके बीच की बातचीत क्या है?
क्या वह गंभीर है?
क्या आपको उसके साथ संवेदनशील होना है?
क्या वह आपको आंखों में देख रहा है और संपर्क कर रहा है? वह कितना बुद्धि प्रदर्शित करता है; वह कितना तेज है?
क्या वह आपसे चिपका रहा है, वह स्वतंत्र है या क्या वह आपसे मार्गदर्शन चाहते हैं?
आपके साथ क्या रिश्ता है?
क्या वह संदिग्ध है या क्या वह आपको भरोसा करता है?
क्या वह विनम्र है, क्या वह आपके सम्मान का आदर करता है, क्या वह आप पर ध्यान करता है, या क्या वह आपको समान मानता है?
क्या वह बहुत संवेदनशील या मोटी-चमड़ी दिखता है या क्या वह अपने तथ्यों को बता रहा है?

4. क्या वह अव्यवस्थित या बहुत संरचित है?
वह कैसे बह रही है, या कितनी कठोर?

 5. क्या वह आकर्षक होने की कोशिश कर रही है, क्या वह आपका ध्यान खींचने की कोशिश कर रहा है, और क्या आपका ध्यान दूर हो जाने पर वह चिड़चिड़ा है?
या वह शर्मीली या शर्मिंदा, ध्यान के साथ असहज है?

6. वह उसे उसके साथ कौन लाता है और वह उस व्यक्ति से कैसे संबंधित है?
बच्चों के मामलों में अवलोकन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। क्या मां की गोद में बच्चा है?
क्या वह बेचैन है?
क्या वह विनाशकारी है?
क्या वह संपर्क कर रहा है?
क्या वह आरक्षित है?
क्या वह अवगत है या अनजान है?

7. क्या पहने व्यक्ति है और वह उसके साथ क्या लाते हैं?

Tuesday, 12 September 2017

ब्रूसेलोसिस : दूध गर्म करके ही पिएं : डॉ उपेन्द्र मणि

स्वास्थ्य एवं होम्योपैथी जागरूकता अभियान

यदि आपको शरीर मे दर्द के साथ बुखार आता है और आप कच्चे दूध का सेवन करते हैं तो आपको सचेत होने की आवश्यकता है, क्योंकि हो सकता है इस बुखार का कारण दूध में संक्रमण हो। इस समय फ्लू जैसे लक्षणों के साथ शुरुआती बुखार एवं शरीर में दर्द के रोगियों की संख्या में इजाफा हुआ है, यह मौसम परिवर्तन के कारण भी हो सकता है। कुछ समाचारों में स्वास्थ्य एलर्ट के तौर पर ब्रूसेलोसिस की वापसी के संकेत भी दिये गए है जिससे आमलोगों में इसे जानने की जिज्ञासा बढ़ी है।

कारण
माल्टा द्वीप में सर्वप्रथम बकरी के दूध में एक ग्राम नेगेटिव माईक्रोकॉकस मेलिटेनसिस जीवाणु , की खोज डेविड ब्रूस ने की , जिससे संक्रमित दूध पीने पर इंसान बुखार की चपेट में आ जाता है, इसीलिए इस बैक्टीरिया को ब्रूसेला और रोग को ब्रूसेलोसिस या माल्टा फीवर भी कहते हैं।
इसकी तमाम प्रजातियां अनेक प्रकार के दुधारू जानवरों बकरी, भेड़, सुअर, पिल्ले, ऊंट आदि में पाई जाती है, जो स्पर्श, सांस, वायु,घाव,रक्त,दूध व अन्य कच्चे डेयरी उत्पाद आदि के माध्यम से मनुष्यों को संक्रमित कर सकते हैं।

लक्षण
इसका खास लक्षण है कि लगभग एक सप्ताह तक बुखार शरीर में छिपा रहता है इसके बाद लगातार दो-तीन सप्ताह तक भी हो सकता है या दो-चार दिन में ठीक हो जाता है , लेकिन पुनः  रोगी में यह पांच-सात महीने तक लगातार बुखार के रूप में बना रहता है। 
ब्रुसेलोसिस किसी भी अंग या अंग प्रणाली को प्रभावित कर सकता है, किन्तु अधिकांश रोगियों में सिरदर्द, कमजोरी, हड्डियों में दर्द, अवसाद, वजन घटना, थकान , लिवर की कमजोरी,गंधयुक्त पसीना प्रमुख लक्षण हैं।

जटिलताएं

समय पर उचित इलाज न हो पाए तो यह जटिल रोग बन जाता है और व्यक्ति को गठिया, स्पॉन्डिलाइटिस, ऑस्टियोमाइलाइटिस, हेपटेमेगाली, नपुंसकता, ऑर्काइटिस और एपिडाइडाइसाइटिस, अवसाद, एंडोकार्टिटिस आदि जटिलताएं हो सकती है।

सवधनियाँ एवं उपचार

पीड़ित व्यक्ति  को कच्चा , बिना पाश्चुरीकृत या बकरी का दूध नहीं देना चाहिए। खुले में मल-मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए।
संक्रमित व्यक्तियों के रक्त दान स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।
पीड़ित होने पर चिकित्सक से जांच कराकर ही बुखार की दवाएं लेनी चाहिए। होम्योपैथी में लक्षणों के आधार पर उपयुक्त शक्ति की औषधि चयन से रोग से स्थायी लाभ मिल सकता है।
लक्षणों की समानता के आधार पर आर्स, जेल्स, बेलाडोना, ब्रायोनिया,नक्स, चायना , स्ट्रेप्टोकॉक्सीनम, रस्टॉक्स आदि दवाएं उपयोगी हो सकती हैं।

Monday, 4 September 2017

सत्य का संकल्प और स्वार्थ की सिद्धि

समाज सुधार के प्रयास कितने सफल

वृहत्तर परिदृश्य में यदि इस विषय का आकलन करें कि अनादि काल से ही समाज , राष्ट्र में सुधार को लेकर  जितनी सामाजिक संस्थाएं, समाजसेवी , धार्मिक, आध्यात्मिक गुरु, व्यक्ति, संगठन, राजनैतिक दल, आदि निरन्तर  इसी संकल्प की सिद्धि में लगे हुए हैं मनुष्य में मानवोचित गुणों संस्कारों परस्पर प्रेम, सदभाव आदि का विकास हो, किन्तु सेवा, काल और परिणाम का निष्पक्ष विश्लेषण करें तो प्राचीन और अत्याधुनिक वैज्ञानिक विकसित काल में संतोषजनक नही मिलता। चिंतन करने पर बहुत से प्रश्न खड़े होने लगते हैं , किन्तु मूल बात यही आती है कि यह सुधार आये क्यों नहीं?
विषय का विस्तृत है किंतु उत्तर हमारी निष्ठा और स्वीकार्यता पर आकर कहीं ठहर जाता है, हम वही समाज हैं जिसने चौदह वर्ष मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम की अग्निपरीक्षा से गुजर चुकी पत्नी माता सीता पर प्रश्रचिन्ह लगा दिया, जिसने सत्यधर्म के पालन में युधिष्ठिर को सपरिवार वनवास दिया, जिसने सदैव धर्म सत्य और ईमानदारी के आदर्शों पर जीने वाले प्रत्येक मनुष्य के जीवन को दुख ,उपेक्षा ,अभाव और तिरस्कार की कठिन परीक्षा में जीवन भर उलझाए रखा, सिर्फ इस भरोसे कि सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं, अंत में जीत सत्य की होती है...लेकिन यह वह अंत होता है जिसके बाद जीतनेवाले को पता ही नही होता कि वह जीता या हारा।
इतिहास या वर्तमान कभी ऐसे भी उदाहरण क्यों नहीं दे सकता कि किसी ईमानदार, सत्यधर्मी जीवन जीनेवाले की पहले जीत हो सके।
सम्भवतः यही इतिहास अनुभव बना होगा, समाज की प्रदर्शित स्वीकार्यता ही सुधार की सबसे बड़ी बाधा। इसीलिए इतिहास से लेकर वर्तमान तक आदर्श सिर्फ लेखनी और विचार के संकल्प तक सिमट गया जबकि असत्य, स्वार्थ ,बेईमानी अधर्म स्वीकार्यता में व्यवहारिक सिद्धि को प्राप्त करते रहे।

अब हमें अपने चुनाव पर विचार करना चाहिए कि हम किसे समर्थन देकर स्वीकृति दे रहे हैं, क्या सिर्फ सत्य को संकल्प तक सीमित रखकर स्वार्थ की सिद्धि नही कर रहे।

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी