स्वस्थ जीवन की प्रेरणा देते हैं हमारे त्यौहार
हमारे पूर्वज मनीषियों ने हमारे लिए वर्ष पर्यन्त समय समय पर अनेक व्रत एवं त्यौहार मनाने की परंपरा दी जिनपर आज भी तार्किक दृष्टि से विचार किया जाय तो यह सिद्ध होता है कि यह मात्र आयोजन नहीं वरन मनुष्य को प्रकृति से जोड़कर उसे स्वस्थ सुखी जीवन प्रदान करने का विधान है।
प्रकृति और मनुष्य दोनों पृथ्वी, जल,अग्नि,आकाश और वायु पंचतत्वों से मिलकर बनें है। इसलिए दोनों ही एकदूसरे के पूरक हैं और प्रकृति में किसी भी तरह का परिवर्तन मनुष्य को प्रभावित करता है, प्रकृति में ऋतुओं के परिवर्तन का समय संक्रमण काल कहलाता है और यही समय मनुष्यों के लिए भी संक्रामक रोगों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होता है। प्रकृति में ऊर्जा का स्रोत सूर्य हमारे शरीर मे भी अग्नितत्व का प्रतीक है। हमारे त्यौहार और उनकी विधियां स्वच्छता एवं पवित्रता के साथ सभी तत्वों में संतुलन स्थापित करने का सन्देश देते हैं। बरसात के बाद शक्ति उपासना का पर्व नवरात्रि जीवनीशक्ति को भी सन्तुलित करने का प्रतीक है।इसीप्रकार दीपावली में जलते दिए कीट पतंगों और तमाम रोगकारकों से मुक्ति एवं घर के अंदर की स्वच्छता और पवित्रता स्थापित करती है, इसीके छठे दिन सूर्य षष्ठी का तीन दिवसीय विधान घर के बाहर से नदियों तक के मार्ग को स्वच्छ करते हुए शक्ति के स्रोत सूर्य की साधना जहां प्रकृति को प्रदूषणमुक्त करते हुए सन्तुलित करता है वहीं यह विधान हमारे शरीर के अंदर भी ऋतु परिवर्तन के कारण सम्भावित प्रतिरोधक क्षमता की न्यूनता को साधने का कार्य करती हैं । यदि हमारा परिवेश स्वच्छ होगा तो हम कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों से बच सकेंगे। शीत ऋतु में अग्नितत्व का संतुलन हमारे शरीर मे भी मन्द पड़ती जठराग्नि को संतुलित कराने का संकेत है। चिकित्सीय दृष्टि से तुलनात्मक एवं तार्किक विश्लेषण करने पर हमें अपनी परम्पराओं के वैज्ञानिक होने पर गर्व होना चाहिए।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
चिकित्सक होम्योपैथ
महासचिव-HMA
सहसंपादक-होम्योमिरेकल










