महामारी की लाचारी : फिर एक वायरस की बीमारी
कोझिकोड केरल में लाइलाज बीमारी एनआईवी की आहट और उससे हुई मौतों के साथ देश के अन्य हिस्सों में इसके फैलने का खतरा महसूस किया जाने लगा है। स्वास्थ्य विभाग सतर्क है तो आमजन में भय और जिज्ञासा है। निपाह हेनिपावायरस प्रजाति का आरएनए विषाणु है जो फलभक्षी प्रजाति के चमगादड़ से फैलता है। यह संक्रमण जानवरों से मनुष्यों के बीच प्रसारित हो सकता है। सुअर व पालतू जानवर मनुष्यों में बीमारी फैलने के बीच की कड़ी है।
क्या है इतिहास -
1998 में पहली बार मलेशिया के गांव सुंगयीं निपाह में इसके मामले प्रकाश में आये , इसलिए पहचान होने पर इस वायरस का नाम निपाह रख दिया गया। भारत में पहली बार 2001 में पश्चिम बंगाल व बांग्ला देश में हपाम ट्री से बनी शराब के पीने से फैलने की जानकारी है।संक्रमित मनुष्य के शरीर के स्राव से, चमगादड़ो की लार से संक्रमित कच्चे फल या सब्जियों के सेवन से एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में इसका प्रसारण तेजी से हो सकता है, और रोग लक्षणों की तीव्र आक्रामकता के कारण मृत्युदर 40 से 70% तक है।
क्या हैं लक्षण
यह वायरस सीधे फेफड़े व तंत्रिका तंत्र पर अटैक करता है।
संक्रमण के बाद 3-5 से 10-12 दिन की अवधि में वायरस से पीड़ित व्यक्ति में शुरुआती लक्षण प्रकट हो सकते है, जिसमे दिमागी बुखार जैसे तेज सिर दर्द, बुखार, और सांस लेने में कष्ट होता है, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित होता है । साथ ही पाचन सम्बन्धी लक्षण भी हो सकते हैं जैसे पेट में दर्द ,उबकाई आना या उल्टी, इसलिए शुरुआती दौर में ही चिकित्सालय में जाकर तुरन्त जांच करानी चाहिए और चिकित्सक की ही देखरेख में दवाएं लेनी चाहिए। इस वायरस की चपेट में आने के बाद बहुत से मरीजों को इलाज के दौरान आईसीयू व वेंटीलेटर की जरूरत पड़ती है।अधिकतर मरीजों की मौत फेफड़े की कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ने से होती है। इसके अलावा कुछ लोग इंसेफ्लाइटिस की चपेट में आ जाते हैं।लापरवाही जीवन के लिए संकट की स्थिति हो सकती है क्योंकि शुरुआती लक्षणों के प्रकट होने के एक दो दिन में ही रोग अपनी तीव्रता को प्राप्त कर लेता है और व्यक्ति में उनींदापन , आंखों से धुंधला दिखाई देना, विषाक्तता की वजह से मानसिक विभ्रम , प्रलाप या बड़बड़ाना,चक्कर हो सकता है रोगी गहरी नींद या कोमा में भी जा सकता है।
आवश्यक जांच एवं पुष्टि-
शुरुआती लक्षण दिखने पर ही रोगी के गले से स्राव लार,या म्यूकस का नमूना या सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सीएसएफ) से लिए गए नमूने की रीयल टाइम पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन की जांच से वायरस प्रोटीन का पता लगाया जाता है।
रोग की तीव्रता इतनी घातक है कि कई बार संक्रमित व्यक्ति के खून में एंटीबॉडी बनने से पूर्व ही उसकी मौत हो जाती है किंतु समय पर इलाज से रिकवर हो रहे लोगों में एलिसा टेस्ट, व एंटीबॉडीज का परीक्षण किया जा सकता है जिससे रोग की पुष्टि की जाती है। रोग के प्रभाव से मृतकों की सही संख्या जानने के लिए प्रभावित क्षेत्र में मृतकों के ऊतकों की इम्यूनोहिस्टोकैमिस्ट्री का परीक्षण व अध्ययन किया जा सकता है।
बचाव है उपचार से बेहतर उपाय -
प्रचलित चिकित्सा पद्धति में निपाह वायरस पर कोई असरकारक दवा उपलब्ध नहीं हैं इसलिए आमतौर पर केवल सहायक और जीवनरक्षक उपाय होते हैं। संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए संक्रमित व्यक्ति को एकांत स्वच्छ स्थान देना, संभावित क्षेत्र में यात्रा से बचना, कटे दूषित फल, सब्जियां न खाएं, ऐसी जगह खुले में न सोएं जहां चमगादड़ो की संभावना हो, दूषित मांस, खजूर व नारियल खाने से बचना चाहिए। बचाव के लिए सतर्कता, जागरूकता व स्वच्छता प्रमुख उपाय है।
होम्योपैथी में उपचार की संभावनाएं -
उपचार के लिए रोगी को यथाशीघ्र चिकित्सालय पहुचना आवश्यक है। होम्योपैथी में रोग के अनुसार कभी औषधि का चयन नही किया जा सकता यद्यपि विषाणु जनित रोगों में होम्योपैथी अद्वितीय है।इसलिए मरीज की अवस्था एवं लक्षणों की तीव्रता के आधार पर ही उचित प्रबंधन में कुशल होम्योपैथिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही चयनित होम्योपैथिक दवा का प्रयोग किया जाना चाहिए।वैसे इस तरह के लक्षणों की तीव्रता के लिए होम्योपैथी में एकोनाइट, बेल, जेल्सीमियम आदि समक्षणी औषधियां हैं किंतु व्यक्तिगत औषधि का चयन रोगी के परीक्षण के आधार पर ही किया जा सकता है।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
परामर्श होम्योपैथिक चिकित्सक
राष्ट्रीय महासचिव -HCVM
प्रातीय सदस्य- आरोग्य भारती
स्वास्थ्य प्रमुख-सेवा भारती अयोध्या महानगर










