चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

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Tuesday, 5 June 2018

होम्योदूत (आयुष दूत) :फार्मूला- फ्री में सेवा को तैयार तो वेतन पर क्यों खर्च करे सरकार

उत्तर प्रदेश में आमजन को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने कई नई घोषणाओं की खबरें आती रहती हैं , सरकार का दायित्व भी है। उन्ही में से एक योजना आयुष दूत की नियुक्ति भी है जिसके अंतर्गत कुछ जगहों पर पंजीकृत होम्योपैथी चिकित्सकों को होम्योदूत के रूप में स्वैच्छिक आवेदन के आधार पर जिला होम्योपैथिक अधिकारियों द्वारा नियुक्त किया जा सकता है। यह स्वैच्छिक सेवा है जिसके लिए कोई मानदेय या वेतन भत्ता आदि अभी तक देय नही है।
ध्यान देने की बात है कि होम्योपैथी के ही प्राइवेट कालेज के छात्रों को भी इंटर्नशिप भत्ता तक नहीं मिलता, और सेवा भी मुफ्त।

योजना के स्वरूप को स्वीकार करने से पूर्व दूतों ने अपने स्वाभिमान से तो समझौता कर ही लिया लेकिन पूरे होम्योपैथी जगत के सम्मान को चोटिल किया है। यह किस विद्वता की श्रेणी में होंगे कहने की आवश्यकता नहीं।  जिस देश मे सेवा के नाम पर न जाने कितना वेतन भत्ते और सुविधाएं बिना किसी आवश्यक योग्यता के मात्र जनमत से प्रदान की जाती हों वहां ऐसा प्रस्ताव और उसकी स्वीकृति दोनों समझ से परे हैं।
सरकारी योजनाएं नीतिगत निर्णय होते है ,इसलिए इनमे त्रुटि की अपेक्षा नही की जानी चाहिए, अर्थात पटल पर आने से पूर्व पूरा विमर्श हो चुका होता है फिर शासन की मंशा के रूप में इन्हें लागू किया जाता है। जैसे कुछ समय पूर्व सरकार की तरफ से कहा गया था सेवानिवृत एलोपैथी चिकित्सक मनचाहे वेतन पर  चिकित्सालयों में सेवा दे सकते है, किन्तु युवा चिकित्सकों के लिए सेवा के अवसर नहीं, वहीं दूसरी तरफ होम्योपैथी के चिकित्सक अब दूत बनकर निःशुल्क सेवा दें।
यह ढिठाई भी गजब है और करारा उपहास है विधा की मर्यादा का, मजाक है चिकित्सकों के बराबरी के अधिकार व सम्मान का।
लेकिन क्या कहिएगा उन बेचारे ,मजबूर ,विवश ,किन्तु सेवा भावी दूतों को जिन्होंने बड़े गर्व के साथ यह पदभार ग्रहण किया। यद्यपि "सेवा भावी दूत" स्वाभिमान के साथ यही निशुल्क सेवा अपनी क्लिनिक पर बतौर चिकित्सक भी दे सकते हैं, किन्तु शिक्षामित्रों की तरह यहाँ भी एक स्वार्थ भविष्य में स्थायी पदभार मिलने की अपेक्षा के पीछे छिपा है।

फार्मूला- फ्री के दूत मिलें तो चिकित्सकों को वेतन क्यों?

इस तरह के प्रयोग के पीछे क्या मंशा थी यह तो नही कहा जा सकता किन्तु विद्वान दूतों ने सरकार को बैठे बिठाए एक फार्मूला जरूर दे दिया, यदि दूत फ्री में सेवा देने को तैयार हैं तो बेवजह चिकित्सकों के वेतन पर सरकारी धन क्यों खर्च किया जाय उसे किन्ही अन्य मदों में खर्च किया जा सकता है। नए पद इन्ही दूतों से भर जाएंगे और पुराने स्वैच्छिक सेवा निवृत्ति ले लें तो सोने पे सुहागा ही हो जाये।

दक्षिणा देकर फ्री में स्थायी सेवा करने की उम्मीद

समाज के लिए दूत बनते तो सम्मान बढ़ता लेकिन जब बात स्वयं की आती है तो नियम कायदे कानून सब ताक पर पहले येन केन प्रकारेण प्रवेश मिल जाये फिर हटना कहां है, अरे भई जरूरत तो हमेशा रहेगी , अनुभव के आधार पर वरिष्ठता और योग्यता भी बढ़ेगी तो आज नही तो कल वेतन तो मिलेगा ही नहीं तो कोर्ट चले जाएंगे। बस यही भरोसा महीने भर की "दक्षिणा" बनकर "सत्यवादी राजा" को समर्पित हुआ तो "सत्यवादी राजा"ने आशीर्वाद दिया और अपना "देवदूत" बनाकर किसी चिकित्सालय में भेज दिया अब कीजिये सस्वार्थ सेवा।

सभी सेवाभावी देवदूतों को नमस्कार।

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
राष्ट्रीय महासचिव- होम्योपैथी महासंघ

Friday, 1 June 2018

तम्बाकू : दवा बनकर जहर से बचाती है होम्योपैथी

पहले शौक और फिर लत लग जाने वाले नशे की गिरफ्त में आये लोगो से यदि पूछा जाय कि वे इसे छोड़ क्यों नही देते तो बड़ा मासूम सा जवाब देते है " आदत पड़ गयी है अब साथ ही जाएगी" । इस जवाब को क्या समझेंगे मासूमियत ,बेबसी, कमजोरी, या रोग ..जो भी हो मगर चिकित्सको का मानना है कि एडिक्शन भी एक तरह का मनोरोग है जिसकी चिकित्सा की जा सकती है किंतु इसमे रोगी को स्वयं भी भाग लेना होता है।

क्या हैं कारण

वर्तमान में युवाओ के नशे की गिरफ्त में आने के प्रमुख कारण संस्कारयुक्त और चरित्र निर्माण करने वाली शिक्षा का अभाव, परिवार के किसी सदस्य की देखादेखी, आर्थिक तंगी या अधिक जेब खर्च मिलने एवं आनन्द प्राप्ति की आजादी, कुछ नया करने की अभिलाषा,अभिलाषित क्षेत्र में अपेक्षित प्रदर्शन न कर पाने से तनाव, अकेलापन, घरेलु कलह, फिर बेरोजगारी, गलत संगति, जागरुकता का अभाव आदि हो सकते हैं जो अलग अलग तरीके मनोदशा को प्रभावित कर समस्या के समाधान खोजने की बजाय उससे बचने की प्रवृत्ति के अनुरूप इस गलत चयन का शिकार हो जाते हैं।

मस्तिष्क में डोपामीन और सेरोटोनिन का स्तर जब प्रभावित होता है तो व्यक्ति में आनन्द और स्फूर्ति या आलस्य आता है, निकोटिन या अन्य प्रकार के नशे में व्यक्ति की संतुष्टि का स्तर उसकी मनोदशा के अनुकूल रहने लगती है इसलिए उसे बार बार नशे की जरूरत बनने लगती है।

होम्योपैथी में व्यक्ति के मानसिक लक्षणों पर अधिक ध्यान दिया जाता है और इसके मनोविज्ञान के अनुसार नशे के रोगियो का इलाज करते समय  मानसिक,शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक सभी आयामो को समग्र रूप से अध्ययन किया जाता है।इसलिए चिकित्सक अपने रोगी से मित्रवत  काउंसलिंग, वार्तालाप, शिक्षाप्रद सामग्री द्वारा पहले नशे को छोड़ने के लिए  व्यक्ति मनोदशा को मजबूत करने का प्रयास करते है जिससे वह दवाओं का सेवन करने को तैयार हो सकें। उनकी दिनचर्या में सुधार, खेलकूद,या अन्य गतिविधियों में सहभागिता आदि जिनमे परिवार मित्र सभी की कुछ न कुछ भूमिका होती है निर्धारित कर सकते है। यह व्यक्ति में विश्वास जगाने वाली दीर्घकालिक किन्तु प्रभावी तरकीब है। 

कभी भी अचानक कोई आदत नही छूट सकती, अक्सर देखा गया है यदि नशे के आदी व्यक्ति को खुराक न मिले तो उसमें अजीब सी बेचैनी,धड़कन,या उदासी,बनी रहती है,जम्हाई, आंख नाक से पानी, मांसपेशियों में ऐंठन, सिर पेट मे दर्द, व्यवहार में चिड़चिड़ाहट और उग्रता, प्यास,अनिद्रा, उल्टी, आदि कई सारे लक्षण प्रकट होने लगते हैं किंतु धीरे धीरे यह 8 -10 दिन में सामान्य होने लगते हैं।

होम्योपैथी से इसका कारण व्यक्ति पर सिफिलिटिक मायाज्म की प्रभाविता से सोरा या सायकोटिक का दूषित होते जाना है इसलिए तेजी से रसायनिक परिवर्तनों में विभ्रम हो सकता है किंतु कुशल होम्योपैथ व्यक्ति की मनोदशा को समझकर यदि तत्सम व्यवहार कर रोगी का उपचार करते हैं तो संभव है कि रोगी जल्दी ही स्वयं का आत्मबल मजबूत पाता है और इसी संकल्पशक्ति के साथ जब वह दवाईयों का सेवन करता है तो लाभ प्राप्त करता है।

तम्बाकू भी प्रकृति का उत्पाद है इसलिए इसमें भी औषधीय गुण है किंतु लोग इसका और इसके जैसे कई अन्य का सेवन नशे के लिए करते हैं जो धीमे जहर की तरह उनके जीवन के लिए घातक होती है किंतु इन्ही की न्यूनतम मात्रा का उपयोग औषधि की तरह कार्य करता है। तम्बाकू से बनी होम्योपैथी की दवा हृदयरोगों सहित तमाम रोगों की महत्वपूर्ण दवा है।तम्बाकू, सिगरेट की लत छुड़ाने के लिए चिकित्सक के मार्गदर्शन में होम्योपैथी की डैफने इंडिका, कैलेडियं, स्टेफीसैगरिया, टैबेकम, या अन्य कांस्टीट्यूशनल दवाएं उपयोगी हैं।