माता पिता बच्चों के व्यवहार परिवर्तन को न करें नजरअंदाज
यूं तो बर्दाश्त नही होती यार शरारत किसी की
मगर बचपन की हो तो बहुत प्यार आता है...
बच्चों की नटखट ,शरारती, चंचलता पूरे परिवार के तनाव को बिना किसी दवा के दूर कर हंसी खुशी का ऐसा स्वस्थ वातावरण बना देती है जो किसी दवा से नहीं मिल सकता..जीवनशैली के बहुत से रोग स्वतः ही उस घर आंगन की चौखट के अंदर नही जा सकते जहां बच्चों की किलकारियां गूंजती हों। सम्भवतः हमारी सनातन संस्कृति में ऋषियों ने अनुसन्धानपूर्वक परिवार की व्यवस्था और उसकी संरचना का जो वैज्ञानिक स्वरूप दिया उसके पीछे व्यक्ति परिवार पीढ़ी और उससे बनने वाले समाज व राष्ट्र में इसी धारा के अविरलभाव प्रवाह का मंत्र बना वसुधैव कुटुम्बकम।
बच्चों को कच्ची मिट्टी के बर्तन की संज्ञा दी गयी है जिसे परिवार में परिवारीजन और इसके बाहर विद्यालय में शिक्षक फिर समाज की संगत जैसा चाहे स्वरूप दे सकती है।
कबीर ने दो ही पंक्तियों में व्यक्तित्व के विकास का पूरा मनोविज्ञान कह दिया-
गुरु कुम्हार सिख कुम्भ है
गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट
भीतर हाथ संभारि दै
बाहर बाहे चोट।।
बच्चों का मनुहार और मर्यादित व्यवहार सभी का मन मोह लेता है, किन्तु कभी कभी कुछ बच्चों का व्यवहार हमारी अपेक्षा के विपरीत अमर्यादित श्रेणी का होता है जिसे सहज स्वीकार नही किया जा सकता उदाहरण के लिए अनपेक्षित क्रोध, जिद, चिड़चिड़ापन,आज्ञा पालन न करना या उसके विपरीत की करना, अपने से बड़ों, भाई बहनों, या समान उम्र के अन्य बच्चों से परस्पर ईर्ष्यालुतापूर्ण या शत्रुतापूर्ण , झगड़ालू व्यवहार,आदि।
माता पिता समय पर पहचानें व्यवहारिक परिवर्तनों के संकेत -
यदि उपरोक्त कथन सत्य है तो बच्चों की परवरिश के साथ संगत का असर भी मर्यादित करना चाहिए, आपको यह तय करना होगा कि आपका बच्चा ज्यादातर समय किस संगति में गुजरता है, उसके चंचल मन की जिज्ञासाओं को समर्थन और समाधान मिलता है या वह तटस्थ और फिर धीरेधीरे एकल जीवन के अनुभवों की तरफ बढ़ रहा है। बच्चे की सही परवरिश और देखभाल में पूरे परिवार का योगदान रहता है। भारतवर्ष में इसीलिए संयुक्त परिवार को प्राथमिकता दी गयी है जिससे बच्चे आचरण को देखकर अनुशासन और जीवन कौशल की आदतें सीख सकें।
माता पिता को बहुत छोटी आदतों जिनकी पुनरावृत्ति बच्चे के लिए आनन्दमयी हो उनपर ध्यान देना चाहिए क्योंकि यही परिवर्तन आपके लिए संकेत होते हैं।
देखना चाहिए कहीं आपका बच्चा झूठ तो नहीं बोलना शुरू कर रहा या उसे चीजों को छुपाकर दूसरों को परेशान करने में मजा आता है, वह अक्सर आक्रामक और क्रोधित होता है, लगातार तर्क करता है, चीजों को तोड़ता या कीमती वस्तुओं को नुकसान पहुचाता है, परिवार के कुछ खास वर्ग के बड़े सदस्यों से शत्रुतापूर्ण तरीके से अपमानजनक भाषा का प्रयोग करता है, अथवा उनको नुकसान पहुँचाने का प्रयास करता है जानबूझकर घर के पालतू पशुओं या परिवार के सदस्यों को कष्ट पहुँचाने की तरकीबें करता है, अथवा उम्र के सापेक्ष वयस्क क्रीड़ा व्यवहार करता है तो आपको तुरंत सचेत हो जाना चाहिए।
स्वयं भी इनके कारणों की तलाश करनी चाहिए और किसी कुशल चिकित्सक का मार्गदर्शन प्राप्त कर समय पर आवश्यक उपाय करना चाहिए।
खोजिये क्या हैं कारण
इस तरह के विहैवियर डिसऑर्डर के लिए अनेक भौतिक, मनोवैज्ञानिक, और सामाजिक कारण संयुक्तरूप से जिम्मेदार हो सकते हैं जिनकी पहचान निरपेक्ष रूप से चिकित्सक ही कर सकता है। लेकिन जो प्रमुख कारण अध्ययनों में पाए गए उनमें आनुवंशिक भेद्यता, कोई मस्तिष्क क्षति, बाल शोषण, स्कूल की असफलता,जीवन मे कोई दर्दनाक या दुर्घटना का अनुभव,माता की अस्वीकृति,माता पिता से अलगाव, अल्पबुद्धि माता पिता, अथवा माता पिता या परिवार में निरन्तर घरेलू कलह,क्लेश, हिंसा,वाद विवाद,का वातावरण आदि की भूमिका आपके बच्चे की मनःस्थिति को गहराई से प्रभावित करते हैं जिससे उसका मानसिक व शारीरिक विकास प्रभावित होता है बस उसी का प्रदर्शन बचपन के व्यवहार में परिवर्तन का ऐसा बीजारोपण कर देता है जिसका समय पर परिष्कार नही किया गया तो जीवन भर उन्हें सुधारा नही जा सकता है।
सामान्य जीवन मे जिन्हें हम उसका बचपना या आदत का हिस्सा मानकर नजरअंदाज अथवा बड़े होने पर सुधर जाने की उम्मीद में संतोष कर समय पर अपेक्षित जिम्मेदारी नही निभाते तो धीरे धीरे वही बीजांकुर उस बच्चे के विकसित होते व्यक्तित्व की शाखाओं का परिचय बन जाते हैं।
हमारी अनभिज्ञता या अज्ञानता ,अत्यधिक स्नेह, दुलार प्यार अथवा सुविधा ,संसाधन उपलब्ध कराने की आर्थिक आपूर्ति में पूरित जिम्मेदारी का हमारा आत्मसंतोष ,उपेक्षित बालमन को समझने और उसे उसके अनुरूप महसूस करने से वंचित कर जाता है।
जानने की कोशिश करे बालमन क्या महसूस करता है ?
बच्चे सरल हृदय होते हैं ,जो अभिव्यक्ति की भाषा आचरण से सीख रहे होते है, उनके मन की यह सरलता, सरल ,स्नेहिल व्यवहार के साथ ही सहजता महसूस कर सम्बद्धता स्थापित कर पाती है।यदि ऐसा न हुआ तो उनका मन पढ़ाई के विषयों से जुड़ने में कठिनाई महसूस करता है, अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों, हॉस्टल के पालक या विद्यालय के साथियों के साथ , सहज सम्बद्धता स्थापित नही कर पाता, मन का द्वंद कुंठा में तब्दील हो सहपाठियों में आपस के झगड़े करवाता है, बार बार चोट की चपेट में आते हैं, नियम विरुद्ध आचरण की प्रबृत्ति बढ़ती है ,जिसके लिए बार बार दण्डित किये जाने पर ,भी निरंकुशता का विरोधी भाव प्रबल होने लगता है।
यदि बाल्यकाल में ही इन प्रवृत्तियों की पहचान कर इनपर अंकुश नही लगाया गया तो बड़े होने पर परिवार ,समाज ,में जीवन सम्बन्धी नियम, प्रदेश ,देश के कानून ,संविधान विरुद्ध कार्य में संलिप्तता इन्हें अनुचित नही लगेगी और ऐसे ही लोगों का कोई भी नकारात्मक उद्देश्यों की पूर्ति में आसानी से प्रयोग कर सकता है। वस्तुतः असामाजिक अनैतिक उद्देश्य भी एक विकृत प्रवृत्ति है जिसे समान प्रवृत्ति से साधना आसान होता है, इसलिए नकारात्मक मानसिकता के लोग अपनी जैसी मानसिकता को सहज पहचान लेते हैं और उनके सम्बन्ध भी परस्पर स्वार्थपूर्ति की भावना से भरे अर्थ आधारित होते है, इसलिए जल्दी प्रगाढ़ हो सकते है ,आसान शब्दों में इसे ही ब्रेन वाश करना कहते हैं ।
इसलिए माता पिता को अपने बच्चों पर समय स्नेह और ध्यान देना आवश्यक है।
माता पिता क्या करें, क्या न करें ?
बच्चों के सही मानसिक विकास के लिए माता पिता का सक्रिय सहयोग अतिआवश्यक है।
अपने बच्चों के साथ घनिष्टता, से खुले मन व खुले दिल से बात करें, उनकी ज्यादा से ज्यादा सुनें उनकी जरूरतों को समझें और तदनुरूप उन्हें उचित अनुचित का परिचय कराते रहें।
उनके अच्छे व्यवहार पर प्रशंसा अवश्य करें, कभी किसी अच्छे कार्य के लिए इनाम दें।
बात बात पर दण्डित करने से बचें, बहुत आवश्यक होने पर उन्हें घर की किसी चीज जैसे बुरे व्यवहार पर टीवी नही देखनी, मिठाई नही मिलेगी ऐसे छोटे दण्ड को टास्क जैसे देंगे और अच्छे व्यवहार पर घूमने ले जाने का पुरस्कार देने जैसा प्रयोग करेंगे तो उनपर प्रतिस्पर्धा में अच्छा आचरण सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से बढ़ेगी।
इसके साथ ही नियमित रूप से चिकित्सकीय मार्गदर्शन घर मे या विद्यालय में भी व्यवस्था करवाने की योजना हो सके तो परिणाम बेहतर मिलेंगे।
कैसे करें विहेवियर डिसऑर्डर का प्रबन्धन ?
विहेवियर डिसऑर्डर में समुचित प्रबन्धन के लिए बच्चे के शारीरिक मानसिक वातावरणीय कारणों के आधार पर चयनित होम्योपैथी औषधियों का प्रयोग निश्चित रूप से लाभदायी है क्योंकि इन दवाओं की प्रूविंग और इलाज के लिए सैद्धान्तिक प्रायोगिक रूप से इन्ही लक्षणों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी है। किंतु औषधीय उपचार प्रारम्भ करने से पूर्व बच्चे को परिवार का स्वस्थ वातावरण प्रदान करते हुए कलहपूर्ण परिस्थितियों को दूर करना आवश्यक है क्योंकि यह पहले तो उत्प्रेरक कारक की तरह और बाद में मेंटेनिंग कारण की तरह अवरोध का कार्य करती हैं।
इस प्रकार आप कह सकते हैं कि परिवार, होम्योपैथ और व्यवहार मनोवैज्ञानिक का संयुक्त प्रयास आपके बच्चे के विकार को अपेक्षित सामान्य व्यवहार में निश्चित ही वापास ला सकता है। व्यवहार विज्ञानी बच्चे को व्यक्तिगत और माता पिता को भी समुचित प्रबन्धन के कुशल तरीके का मार्गदर्शन कर सकते है।
ऐसे मामलों में कुशल होम्योपैथ भी आपका सहयोगी हो सकता है जो उक्त मार्गदर्शन के साथ आवश्यक लक्षणों के मूल्यांकलन के आधार पर आपके बच्चे के लिए वैयक्तिक औषधि चयन कर सकता है। सामान्यतः चोरी , झूठ, क्रोध, आवेश, निर्दयता क्रूरतापूर्ण आचरण, तोड़फोड़, अवज्ञा, स्वयं को या दूसरों को नुकसान पहुँचाने अथवा अल्पायु में यौन क्रियाओं में संलिप्तता आदि के व्यवहार के लिए होम्योपैथी में एब्सिन्थिनम,ओपियम, कैमोमिला,नाइट्रिक एसिड,स्टैफिसैग्रिया,टैरेन्टुला, औरम मेट, बुफो राना आदि औषधियों का प्रयोग करते हैं।किंतु होम्योपैथी दवाओं का चयन ही इस पद्धति की विशेषता है इसलिए महज कहीं पढ़कर या सुनकर दवाओं का प्रयोग कदापि नहीं करना चाहिए,वांछित लाभ के लिए विश्वास सहित सदैव कुशल,प्रशिक्षित चिकित्सक के निर्देशन में ही दवाओं का प्रयोग करना चाहिए।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
परामर्श चिकित्सक होम्योपैथ
अयोध्या














