चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

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Friday, 25 January 2019

चपेट में नहीं लोग मेरे दायरे में आ रहे हैं - डायबिटीज

(डायबिटीज के बारे में आम जन मानस की जिज्ञासाओं को ध्यान में रखते हुए इस आलेख मे तथ्यों को सुग्राही बनाने के लिए सरल भाषा मे साक्षात्कार के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है, जिसमें रोग के कारण , उद्भव, विकास ,बचाव एवं संभव उपचार को सम्मिलित किया गया है।)

प्रतिदिन की तरह जिज्ञासा अपने भाई समाधान (मेरा कम्पाउंडर) को रिसीव करने क्लिनिक में आई। आज क्लिनिक डायबिटीज मैडम थीं उन्ही से विमर्श चल रहा था। मैने जिज्ञासा का परिचय डायबिटीज से कराया। तो उसने कुछ जानने की  अनुमति मांगी।

जिज्ञासा-मैडम प्रणाम मैंने सुना है पहले आप अमीरों के घर मे ही रहती थीं,लेकिन अब अमीर, गरीब ,सभी उम्र के लोगों को अपना शिकार बना रही हैं ऐसा क्यों ?

डायबिटीज- बेटी मैं किसी को परेशान करने नही जाती । मुझे आधुनिकता पसन्द है सुख के साधनों के साथ फ्री गिफ्ट हूं इसलिए लोग खुद मेरे दायरे में आ जाते हैं। मेरा उसूल है एकबार जो मुझे अपना ले फिर चाहे वह किसी आयु या आय वर्ग का हो मैं न तो अंतर करती हूं न उसका साथ छोड़ती हूं।

जिज्ञासा - वह तो आपके व्यक्तिव से ही लग रहा है लोग गले मे कोई हार आदि पहनते है लेकिन आपने ये चाबी का लाकेट पहना है क्या लिखा है इस पर इंसुलिन ?

डायबिटीज -तुम्हारे लिए यह लाकेट लेकिन मेरी आत्मा है।इसके लिए मुझे बहुत जानकारी जुटानी पड़ी तो पता चला कि व्यक्ति जो भोजन ग्रहण करता है उसे शरीर , शर्करा या ग्लूकोज में परिवर्तित कर खून में भेजता है। इसी समय पैंक्रियाज के आइलेट्स ऑफ लंगरहंस की बीटा कोशिकाएं ,जो रक्त में ग्लूकोज के प्रति संवेदनशील होती हैं, तुरन्त इंसुलिन हार्मोन की आवश्यक मात्रा रक्त में छोड़ देती हैं। यह इंसुलिन शरीर की कोशिकाओं को खोलने का कार्य करता है,जिससे ग्लूकोज कोशिकाओं में प्रवेश करता है और उससे शरीर के कार्यों के लिए आवश्यक ऊर्जा का उत्पादन होता है। इसलिए मुझे लगा यदि इसी पर नियंत्रण कर लिया जाय तो बाकी सारे काम अपने आप हो जाएंगे।

जिज्ञासा - मतलब कोशिकाओं के लिए दरवाजा बन्द और डायबिटीज के लिए खुला।

होम्योपैथ - बिल्कुल सही क्योंकि इससे ऊर्जा उत्पादन की मेटाबॉलिक क्रिया बाधित हो जाती है, और शरीर की कोशिकाएं ग्लूकोज की कमी से कुपोषित होने लगती हैं। 

जिज्ञासा - अगर कोशिकाएं कुपोषित होने लगती हैं तो शरीर को ऊर्जा कैसे मिलती है ?

होम्योपैथ - दरअसल ग्लूकोज हमारे शरीर को तुरंत ऊर्जा देने वाला स्रोत है, इसलिए जब कोशिकाओं में इसकी कमी होती है तो तंत्रिका तंत्र भूख का एहसास कराता है, और यही मेटाबोलिक डिस्टर्बेंस है जिसकी अनुक्रिया में प्यास बढ़ती है जिससे मूत्र अधिक बनता है,क्योंकि शरीर वैकल्पिक ऊर्जा की पूर्ति एकत्र की गई वसा से करता है, इसिलए व्यक्ति दुर्बल होने लगता है,और फिर प्रोटीन भी टूटती है जिससे कीटो एसिडोसिस क्रिया बढ़ती है। वैसे तो इंसुलिन केवल ग्लूकोज के लिए जिम्मेदार है लेकिन होने वाले मेटाबॉलिक अवरोधों से खून में ग्लूकोज के साथ वसा, व प्रोटीन की मात्रा भी धीरे धीरे बढ़ने लगती है, और लंबे समय बाद यह मूत्र में भी आने लगती है जिससे अन्य दुष्परिणाम नजर आने लगते हैं। आंखों पर दबाव बढ़ता हैं, मोतिया बिंद या अंधापन,रक्तनलिका में अंदर की दीवार पर वसा की परत जमने का प्रभाव दो तरह से होता है एक तो यह इंसुलिन और रक्तनली की दीवार के बीच आकर अवरोध पैदा करता है जिसे इंसुलिन रेसिस्टेंस कहते हैं, और दूसरा धमनी कला काठिन्य होने से 

उनके संकरी होने पर, अतः रक्त का दबाव बढ़ता है तो ब्लड प्रेशर,स्ट्रोक,हृदयाघात,तंत्रिका तंत्र के नुकसान, किडनी फेल्योर, और व्यक्ति के कोमा में जाने का खतरा बढ़ जाता है।

जिज्ञासा - इंसुलिन को अपनी चाबी के रूप में कैसे इस्तेमाल करती हैं आप।

डायबिटीज- इसके लिए मेरे पास दो ही तरीके हैं, या तो यह चाभी बने ही न (उत्पादन) और बन जाये तो लगे न (क्षमता)।

उत्पादन को रोकने में शरीर के ही प्रतिरक्षा तंत्र के सिपाही श्वेत रक्त कणिकाओं को सहयोगी बना लेती हूं , जो अपने ही शरीर के विरुद्ध  पैनिक्रयाज में जमा होकर इंसुलिन स्रवित करने वाली आइलेट्स की बीटा सेल्स का भक्षण करने लगती हैं, इससे इंसुलिन का उत्पादन में कमी आने लगती है और 20 से 30 वर्ष कर आयुवर्ग में इसका प्रभाव दिखने लगता है। चिकित्सक शरीर के ऑटो इम्यून डिसॉर्डर को जुवेनाइल, अथवा टाइप 1 डायबिटीज भी कहते है। 

जिज्ञासा - यानी घर का भेदी लंका ढहावे, बड़ी मीठी छुरी हैं मैडम, यह तो आपका एक स्वरूप था अब जरा दूसरे स्वरूप के रहस्य से पर्दा उठा दीजिये ।

डायबिटीज- यदि इंसुलिन का उत्पादन ठीक है और प्रतिरक्षा तंत्र मेरा सहयोग नहीं करता तो दूसरा तरीका है कि उत्पादन की गुणवत्ता को प्रभावित कर दिया जाए जिससे चाभी (इंसुलिन) कोशिकाओं के द्वार न खोल सके। रिसर्च बताती हैं कि एक खनिज क्रोमियम ,इंसुलिन की क्षमता को बढ़ाता है, इसलिए यदि उसकी कमी हो जाय तो भी इंसुलिन सही कार्य नही कर पायेगा, और इस प्रकार मैं अपने उद्देश्य में सफल हो जाती हूँ। ज्यादातर लोगों पर मुझे यही तरीका अपनाना पड़ता है। 

जिज्ञासा - कोई व्यक्ति आपके प्रभाव में आ रहा है यह कैसे पता चलेगा, पहचान का कोई लक्षण या चिन्ह।

डायबिटीज - जब किसी को अत्यधिक भूख, प्यास और मूत्र विसर्जन होने लगे तो समझो मेरे दायरे में आ गया। इसके अलावा पैरों के तलवों में जलन,पिंडलियों में दर्द , शरीर के तमाम हिस्सो में खुजली, झुनझुनी, नपुंसकता आदि के जरिये भी मैं व्यक्ति को संभलने का संकेत करती हूं, जो समय पर इन्हें सुन लेते है अपनी जीवनशैली सुधार कर लेते है मेरे होने वाले कुप्रभाव से बच सकते हैं अन्यथा स्वभाव के अनुरूप व्यवहार मेरी विवशता है।

जिज्ञासा - ओह ! विष कुंभम पयो मुखम ...क्या बात कही आपका कोई दोष नहीं ...तो सारा दोष मनुष्यों का ही  है , क्यो मिस साइलेंट सुपारी किलर ?

डायबिटीज- साइलेंट किलर कहो या स्वीट पाइजन मुझ पर तंज कसने से प्रकृति का नियम नही बदल जायेगा । मैं वहीं जाती हूँ, जिनकी किसी पीढ़ी से मेरा रिश्ता रहा हो
आनुवंशिक, या
वे महिलाएं जिनका बार बार गर्भपात हुआ हो,
अधिक वजन के शिशु को जन्म दिया हो,अथवा
जो बार बार संक्रमण से पीड़ित हो,
टीबी, या
कोई पुराना अल्सर हो,
वसा का पाचन असन्तुलित हो जिनकी रक्त नलियों में जमने लगा हो,
ब्लड प्रेशर घटता बढ़ता रहता हो, 
कार्य की अधिकता का दबाव महसूस करते हों,
उनका ब्लड शुगर लेवल अचानक बढ़ता हो,
हृदय रोगी हों,
जिनका वजन अधिक (बीएमआई 25 से अधिक) हो, पेट अधिक बढ़ा हो ,
कमर कूल्हे का अनुपात पुरुषों में 0.95,व महिलाओं में 0.85 से अधिक हो,
लम्बे समय तक एलोपैथी दवाओं जैसे स्टेरॉइड, हार्मोन थेरेपी आदि पर निर्भरता रही हो,
ऐसे ही लोगों को मैं ज्यादा पसंद करती हूं।

जिज्ञासा - लोग मानते है ज्यादा मीठा खाने से सुगर हो जाती है, तो क्या मीठा खाना ही बन्द कर दें तो इससे बच सकते है ?

होम्योपैथ - ज्यादा मीठा ही नहीं ज्यादा नमक खाने वालों, और व्रत उपवास, या डायटिंग करने वालों को भी हो सकती है। 

रोग तो अनादि काल से होते रहे है और इनके कारण निवारण की खोज भी जारी रही। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, विज्ञान जिन्हें आज पुनः सिद्ध कर रहा है। 

उदाहरण के तौर पर रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास की कुछ चौपाइयां और उनके संकेत को समझने की जरूरत है।

मोह सकल व्याधिन्ह कर मूला।
तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला।।

विषय कुपथ्य पाइ अंकुरे।
मुनिहु हृदय लग नर वापुरे।।

विषय मनोरथ दुर्गम नाना।
ते सब सूल नाम को जाना।।

काम बात कफ लोभ अपारा।
क्रोध पित्त नित छाती जारा।।

प्रीति करहि जो तीनिउ भाई।
उपजइ सन्यपात दुखदायी।।

इनका सार यह है कि मोह , विषय, वासना, संगति, कुपथ्य, क्रोध , लोभ,यह सब मन की अवस्थायें हैं जो मनुष्य में विकारों को पैदा करती हैं।

किसी व्यक्ति में रोग या विकार पैदा होने के  कारणो के  भी तीन ही प्रकार हो सकते हैं एक वे जो जन्म के साथ विद्यमान रहते हैं, उन्हें
मूल कारण (Fundamental cause) कहते हैं,
दूसरे वे जो उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं उन्हें उत्प्रेरक कारण (Exciting cause) कहते हैं और तीसरे वे जो रोग को बनाये रखने में सहायक होते हैं उन्हें स्थायिकरक कारण (Maintaing cause) कहते हैं। 

डॉ हैनिमैन ने होम्योपैथी में रोगों की उत्पत्ति के लिए तीन मूल कारणों को मायज्म कहा और उन्हें सोरा , सिफ़िलिस, साइकोसिस कहा, जिसे आयुर्वेद में क्रमशः वात, पित्त, कफ कहा गया है और तुलसीदास ने इनके अनुरूप मनोवृत्ति को क्रमशः काम,क्रोध, और लोभ बताया,जो एक दूसरे के साथ व्यवहार में आने पर व्यक्ति में उन्माद पैदा करने की क्षमता रखते हैं ।

इसप्रकार स्थायी उपचार के लिए मूलकारण और उत्प्रेरक कारक की पहचान व उसे बनाये रखने में सहायक करको से परहेज जरूरी है।

जिज्ञासा -मतलब ये मायज्म ही पर्दे के पीछे के खिलाड़ी है जो नजर नही आते लेकिन पूरी फिल्म की स्क्रिप्ट यही लिखते है। बैक्टीरिया या वायरस क्या यह रोग नही पैदा करते ?

होम्योपैथ - होम्योपैथी का मनोविज्ञान और दर्शन कहता है मनुष्य में जन्म से सारे मायज्म भिन्न प्रभाविता में सुप्तावस्था में विद्यमान रहते है जिनके अनुरूप उसके व्यक्तिव का विकास होता है। मन और विचार व्यक्ति को प्रदर्शित करते हैं, इसलिए इनकी गतियों का प्रभाव शरीर की क्रियाओं पर पड़ता है,मायज्म एकदूसरे में प्रवर्तित होते हैं,इसी प्रकार लंबे समय तक क्रियाएं भी मन व विचार को भी प्रभावित करती हैं। मन के इन्ही विकारों के कारण तमाम अन्य शारीरिक रोग उत्पन्न हो सकते हैं इन्हें ही डॉ हैनिमैन ने साइको सोमैटिक रोग (डायबिटीज भी साइको सोमैटिक रोग है )कहा।
अथवा
कोई पुराना शारीरिक रोग भी दब कर मानसिक लक्षण उत्पन्न कर सकता है जिसे डॉ हैनिमैन ने सोमैटो साइकिक रोग के रूप में वर्गीकृत किया है।

ऐसा नहीं कि विज्ञान गलत है किंतु सभी की अपनी सीमाएं और दृष्टि है।बैक्टीरिया, वायरस या अन्य परजीवी रोगाणुओं की वजह से ही कोई बीमारी होती है,ऐसा माना जाता है जबकि सत्य यह है कि हमारे शरीर की जीवनीशक्ति जिसे भारतीय चिकित्सा शास्त्र प्राणशक्ति कहता है, इसके संयम में हमारा शरीर रोगाणुओं के लिए बंजर भूमि की तरह व्यवहार करता है, किन्तु जब संयम बिगड़ता है तो मायज्म तेजी से बदलते हैं और प्राणशक्ति या जीवनीशक्ति में विकार आता है वह क्षीण होती है, और हमारे शरीर की सुरक्षा प्रणाली बाधित होती है जिससे इन रोगाणुओं के पनपने का पर्याप्त वातावरण तैयार हो जाता है तभी यह अपनी प्रकृति के अनुरूप रोगलक्षणो को प्रकट करते हैं।

जिज्ञासा - इसका अर्थ  डायबिटीज के लिए भी मायज्म ही जिम्मेदार हैं ।

होम्योपैथ - जी बिल्कुल। एक व्यक्ति के जीवन में तीनो मायज्म की अवस्थाएं समयानुसार आती हैं। इनके एक दूसरे में प्रवर्तन की अवस्था  रोगों के उद्भव के लिये अनुकूल परिस्थितयां होती हैं। जब व्यक्ति सोरा मायज्म की प्रभाविता में हो तो प्रवृत्ति के अनुरूप नियमित अंतराल पर कुछ लक्षणों जैसे रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ना आदि, की तीव्रता नजर आती है,यह जीवनशैली के संयमन से ठीक हो सकती है किन्तु जब इसके नियंत्रण के लिए एंटीडाईबेटिक ड्रग लेते हैं तो सोरा दबता है और सायकोटिक मायज्म समय से पहले ही प्रभावी होने लगता है, यह धोखेबाज दिखावटी मायज्म है, अपनी बुराई छिपाता है और अच्छाई दिखाता है। यह बीमारी की द्वितीयावस्था सोरो सायकोटिक अवस्था कही जा सकती है जिसमें लक्षणों के नियंत्रण करने में दवाओं की खुराक  बढ़ती है किंतु रोग अंदर अंदर बढ़ता रहता है, और इसके बाद तृतीय अवस्था मे जब सिफिलिस का प्रभाव दिखता है, रोग बढ़ता है तो यह ऑर्गेनिक मायज्म के रूप में शरीर के अंगों किडनी,आंख, हृदय,और मस्तिष्क, पर अपना अधिकार करने सक्षम हो जाती है। इस प्रकार लम्बे समय तक केवल रक्त में केवल सुगर को दवाओं के जरिये नियंत्रण को इलाज मानने के अंतराल में यह मायज्म शरीर की चयापचयी क्रियाओं (मुख्यरूप से वसा ) को पूर्णतः विकृत कर अन्यान्य लक्षणों को प्रकट करने लगतस है, जिसमे ब्लड प्रेशर या हाइपरटेंशन, कोलेस्ट्रॉल के  बढ़ने से धमनी कला काठिन्य (एथिरोस्क्लिरोसिस), आदि की संभावना बढ़ जाती है। इस आधार पर कह सकते हैं कि डायबिटीज़ दो प्रकार का हो सकता है पतले व्यक्तियो में सोरो सिफिलिटिक कारण से या मोटे लोगो में सोरो सायकोटिक वजह से।

जिज्ञासा - डॉ साहब इस बात की पुष्टि कैसे हो कि कोई व्यक्ति डायबेटिक है या नहीं?

होम्योपैथ - इसकी पुष्टि कर लिए खून,व मूत्र में शर्करा की मात्रा की जांच के साथ व्यक्तिगत, पारिवारिक इतिहास और लक्षणों के वर्गीकरण के आधार पर डायबिटीज की पुष्टि की जाती है।
रक्त में शर्करा की सामान्य मात्रा 90-120 mg/100 ml या 6-5% होती है। 
लेकिन एक बात का ध्यान रखना चहिए कि केवल बढ़े हुए सुगर लेवल को ही डायबिटीज मान लेना उचित नहीं है , क्योंकि कई बार यह अनावश्यक तनाव या खानपान की गड़बड़ी से भी बढ़ कर जांच के समय खतरे का संकेत कर सकता है ।

जिज्ञासा - सर तो डायबिटीज की विश्वसनीय जांच कैसे हो सकती है?

 होम्योपैथ - हमारे रक्त में लाल रक्त कोशिकाएं होती है जो अपने जीवनकाल (120 दिन) में शरीर की सभी लसिका ग्रन्थियों से होकर गुजर पाती है। इसमें ऑक्सीजन को ले जाने वाला आयरन कंटेंट हीमोग्लोबिन पाया जाता है,जिसके बीटा-एन-1-डीओक्सी फ्रुक्टोसिल घटक को ग्लाइकेटेड हीमोग्लोबिन (HbA1c)कहते है। यह रक्त प्लाज्मा ग्लूकोज की हीमोग्लोबिन से क्रिया के फलस्वरूप उसकी मात्रा के अनुपात में उत्पन्न होता है, अर्थात प्लाज्मा ग्लूकोज की औसत मात्रा के समानुपात में बढ़ता है।

डायबिटीज का नियमित उपचार शुरू करने से पहले Hb1Ac जांच भी करवा लेनी चाहिये। यदि 7 (नए शोधकर्ताओं के अनुसार 8) से कम है तो आपको दवा की जरूरत नही केवल परहेज से ही आपका सुगर नियंत्रित हो जाएगा।

जिज्ञासा - प्रभावित व्यक्ति क्या खा सकते हैं और किससे परहेज करना चाहिए?

होम्योपैथ -वैदिक काल से ही उत्तम स्वास्थ्य के लिए सम्यक एवं पौष्टिक आहार,सम्यक परिश्रम, सम्यक नींद एवं शुद्ध विचार आज भी अपरिहार्य हैं।

 चिकित्सक व्यक्ति के आयु, लिंग,शारीरिक बनावट व लक्षणों आदि के परीक्षण के आधार पर शरीर के लिए पर्याप्त ऊर्जा और प्रोटीन की आवश्यकता का आकलन कर उचित खुराक तय कर सकते हैं जो व्यक्ति के वजन को नियंत्रित कर उसके लिए आवश्यक पर्याप्त ऊर्जा, प्रोटीन,विटामिन,खनिज लवण व संभावित एसिडोसिस या कीटोसिस से बचाव के लिए आवश्यक कार्बोहाइड्रेट की सन्तुलित मात्रा प्रदान कर सकती है।

कोई भी डायबेटिक व्यक्ति कच्ची सब्जियां, या उनसे बना सूप, सिरका, चटनी, बिना तेल का अचार,बिना चीनी के काली चाय, कॉफी, निम्बू पानी आदि ले सकते हैं।

ऐसे व्यक्तियों को चीनी, गुड़, शहद, मिठाईयां, आईसक्रीम, केक, पेस्ट्री, चॉकलेट,तलाभुना भोजन, शराब, कोल्डड्रिंक, फलों के जूस,फलियां और सूखे मेवे,आलू, अरवी, याम,आम,केला,अंगूर और मुर्गे आदि खाने से परहेज करना चाहिए।

(जिज्ञासा का भाई समाधान भी  आ गया और उसने मुझे डायबिटीज मैडम के लिए मंगाई गई दवाईयों की लिस्ट सौंप दी।)

जिज्ञासा - इसके उपचार या नियंत्रण की सही पद्धति क्या है, क्या होम्योपैथी में इसका स्थायी उपचार संभव है ?

होम्योपैथ - इतनी वार्ता के बाद हम इस निष्कर्ष तक पहुँच सकते है कि मधुमेह केवल रोग नहीं जिसका उपचार दवाओं से किया जा सके, अपितु यह हमारी  जीवनशैली का विकार है।
स्थायी स्वास्थ्य लाभ के लिए स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर इसे नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे प्राकृतिक चिकित्सा सिद्धांत पर आधारित औषधियों के प्रयोग से शरीर क्रिया में आये विकारों को दूर कर स्थायी लाभ की संभावना को बढ़ाया जा सकता है।

भारतीय जीवनशैली में घरेलू मसालों में उपयोग किये जाने वाला 
मेथीदाना  (250 ग्राम),
अजवायन (100ग्राम)व 
काली जीरा (50 ग्राम)
इन तीनों को इसी अनुपात में मिलाकर पीसकर चूर्ण बना ले और एक चम्मच रात में सोने से पहले गुनगुने पानी से लें।
सुबह कम से कम 3 किमी पैदल चलें।

इसके बाद सूर्यनमस्कार,कटि ऊष्ट्रासन, पवनमुक्तासन, मण्डूक आसन ,योगनिद्रा योगासन नियमित करें। इससे 7 से 15 दिनों में ही सुगर लेवल सामान्य होने लगता है।

होम्योपैथी में व्यक्ति के समग्र (शारीरिक, मानसिक , पारिवारिक इतिहास, प्रकृति, प्रवृत्ति ) लक्षणों के संकलन आंकलन, व उनका औषधियों से मिलान के आधार उपयुक्त कांस्टीट्यूशनल औषधि का चयन एवं शक्ति का निर्धारण कर प्रयोग करने से आशातीत लाभ मिलता है।

इस प्रकार चिकित्सक ही अपने मरीज के लिए उपचार का प्लान निश्चित करता है।

1. ऑर्गेनोस्पेसिफिक दवाएं - सीजीजियम जैम्बोलीनम, जिम्नेमा सिल्वेस्टर, सेफेलेण्ड्रा इंडिका, एब्रोमा, हेलोनियास, फेनुग्रीक,

2. युरेनियम नाइट्रिकम, इन्सुलीनम, पैंक्रिटिन।

3. आर्सेनिक, आर्स आयोड, आर्स ब्रोम, लैक्टिक एसिड,एसिड फास, काली बाइक्रोम।

4.कांस्टीट्यूशनल - नैट्रम सल्फ, फॉस्फोरस, ब्रायोनिया,

5.जटिलताओं के नियंत्रण हेतु - क्रेटेगस, अर्जुन, इल सीरम, एपिस, 

6. एन्टी मायजमैटिक - ट्यूबरक्यूलिनम,मेडोराइनम आदि।

डायबिटीज के उपचार में मैनेजमेंट का पक्ष बेहद महत्वपूर्ण है, और होम्योपैथी की विशेषता यह है कि इससे मायजमैटिक प्रगति को नियंत्रित डायबिटीज के दुष्प्रभावों को नियंत्रित किया जा सकता है,जिससे व्यक्ति को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलता है।

(समय हो चुका था  डायबिटीज मैडम अपनी दवाएं , जिज्ञासा अपने भाई समाधान और मैं सबके स्वास्थ्य की कामना लेकर अपने घर के लिए निकल चुके थे।)

डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
परामर्श चिकित्सक होम्योपैथ
राष्ट्रीय महासचिव-होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ (HCVM)

कृष्ण विहार कालोनी
रायबरेली रोड उसरू
अयोध्या 224001

मो-+91-8400093421