सजग रहकर चमकी से लाल की जिंदगी के अंधेरे से लड़ें अभिभावक
पड़ोसी राज्य बिहार में चमकी बुखार ने आकड़ो के मुताबिक अब तक 130 से अधिक बच्चों की मृत्यु ने इन परिवारों की खुशियां छीन लीं। बीमारी के मूलकारण और निश्चित इलाज के बारे में चिकित्सकों भी लाचार नजर आते हैं। प्रभावित रोगियों से जुटाई गई जानकारियों के आधार पर मीडिया रिपोर्ट्स लीची को इस बुखार का कारण बताया जा रहा है। बच्चों के लिए खतरा बने इस बुखार के विषय मे चिकित्सा जगत में भी अध्ययन का दौर जारी है।
चमकी या दिमागी बुखार का कारण क्या है
आम तौर पर बच्चों में होने वाले दिमागी बुखार के कारणों में अनेक संक्रमण जैसे बैक्टीरिया, टाइफस, डेंगी, मम्प्स, मिजल्स, निपाह, जिका , जेई वायरस ,फंगस के विष के कारण भी हो सकता है।
चमकी बुखार भी एक तरह का दिमागी बुखार है जिसमे दिमाग की झिल्ली में सूजन से अचानक तेज बुखार, हाथ पैर मे अकड़न, बेहोशी, शरीर में कम्पन आदि के लक्षण दिखने लगते है जिन्हें सम्मिलित रूप से एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम कहा जाता है। प्रभावित बच्चे की त्वचा में हल्की लालिमा लिए चमक ,या चकत्ता दिख सकती है इसीलिए इसे आम भाषा मे चमकी बुखार कहा जाता है।
जीवन के लिए खतरा क्यों है एईएस
कुछ विद्वानों का कहना है एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस ) का कारण शरीर में सोडियम की कमी और हाइपोग्लाइसीमिया है। हाइपोग्लाइसीमिया कुपोषण और पौष्टिक आहार की कमी के कारण भी होता है इसलिए यह दिमागी बुखार का संकेत है।
इसीप्रकार कम पानी पीने या देर तक भूखे रहने से गर्मी के मौसम में शरीर मे ग्लूकोज व सोडियम की कमी हो सकती है।
पहचान के लक्षण क्या हो सकते है
बच्चे में चिड़चिड़ापन बढ़ जाये, उन्माद की तरह व्यवहार, अव्यवस्थित प्रलाप, बेसिर पैर की बातें करने लगे, सिर के बाल नोचने लगे, आस पास लोगों को चुटकी काटे, सिर बिस्तर पर रगड़ने लगे, सिर दर्द, उल्टी की शिकायत करे, मानसिक शारीरिक बेचैनी बढ़े, हाथ पैर गर्दन मुह में अकड़न या ऐंठन के लक्षण दिखें, बुखार कम या बहुत तेज हो जाये, दर्द, जगह बदलता हो या सिर में शिकायत करे,फिर सुस्त पड़ा रहे, प्यास बहुत कम या अधिक हो,तो सतर्क हो चिकित्सक को तुरंत दिखाना चाहिए।
लीची से क्या है चमकी का रिश्ता
गर्मी के दिनों में मिलने वाली लींची में पर्याप्त मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन्स, मैग्नीशियम, तांबा, आयरन, फाइबर, पौटेशियम पाये जाने से यह डायबिटीज, अस्थमा, ब्लड प्रेशर, मोटापा, पाचन संबंधी समस्याओं में भी उपयोगी है।
इसलिए यदि लीची को ही चमकी बुखार का कारण मान लिया जाय तो सेवन करने वाले सभी आयुवर्ग के व्यक्तियों को प्रभावित होना चाहिए किन्तु आंकड़ों के अध्ययन में कुछ विशेष परिस्थितियों में ही इसकी विषाक्तता कही जा सकती है।
साल 2014 में एक रिसर्च पेपर ‘एपिडेमियोलॉजी ऑफ एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम इन इंडिया: चेंजिंग पैराडाइम एंड इम्प्लिकेशन फॉर कंट्रोल’ में बिहार के मुजफ्फरपुर और वियतनाम के बाक गियांग प्रांत के मामलों के अध्ययन में दोनों जगहों पर पड़ोस में ही लीची या इसके जैसे फलवालेे बाग होने की समानता पाई जिसके बाद ही लीची को चमकी बुखार का कारण माना जाने लगा।
प्राप्त जानकारियों से एक और अवधारणा को बल मिलता है जिसके अनुसार यह सम्भव है कि लींची के बागों में किसानों के साथ काम करते हुए बच्चे जमीन पर गिरी हुई या प्राप्त लीची खाने के बाद पानी कम पिएं या देर तक पानी न पीने से उनके शरीर में सोडियम की मात्रा कम हो गई, अथवा बिना खाना खाए सो जाते होंगे इसके बाद रात के समय लीची में मौजूद विषाक्त पदार्थ मिथाइलीन साइक्लो प्रॉपिल ग्लाइसीन या हाइपोग्लाइसीन ए नामक तत्व के कारण उनका ब्लड शुगर लेवल विशेषकर मस्तिष्क के हिस्से में, कम कर देता है और ये बच्चे सुबह के समय बेहोश हो जाते हैं।
एक तथ्य यह भी सामने आया है कि यह प्रभाव ज्यादातर ऐसे परिवार के बच्चों में देखा गया जहां गरीबी , अभाव , पोषण की कमी के चलते बच्चे कुपोषित रह जाते हैं। दिन में धूप में काम करने से भूख मिटाने के लिए स्वादिष्ट लीची खा लें और फिर थकान मिटाने के लिए सो जाते होंगे जिससे डिहाइड्रेशन का अकस्मात प्रभाव दिमागी बुखार की प्रभाविता के रूप में सामने आता है।
बचाव के लिए जरूरी जागरूकता
माता पिता को जागरूक करना होगा कि बच्चे अनावश्यक धूप में न जाएं, समय समय पर पर्याप्त पौष्टिक भोजन और पानी अवश्य पीते रहें, संक्रमण से बचाव के लिए कोई भी खुला खाद्य ,या पेय पदार्थ न लें, फलों को अच्छी तरह धुलकर ही खाएं,खाली पेट लिची ना खिलाऐ, रात को भोजन अवश्य कराएं बाद में गुड़ भी खिलाकर पानी पिला सकते हैं। मच्छरदानी में सोएं, पूरी बाह की कमीज, पहने, घर में या आसपास पानी जमा न होने दें।
बच्चों को ओआरएस घोल या एक गिलास पानी में एक चम्मच चीनी, एक चुटकी नमक का घोल पिलाएं। बच्चों में कोई भी असामान्य लक्षण नजर आए तो तुरन्त अस्पताल ले जाएं और चिकित्सक की सलाह के बिना अनावश्यक दवा न खिलाएं।
होम्योपैथी में बच्चों के सामान्य लक्षणों के आधार पर एकोनाइट, बेलाडोना, सल्फर,जेल्सीमियम,क्युप्रम मेट, हेलिबोरस, नक्स, ट्यूबरकुलीनम,आदि औषधियां निश्चित उपयोगी हो सकती है किंतु अलग अलग रोगियों में अलग दवाएं कार्य करती हैं इसलिए चिकित्सक को दिखाकर ही दवाएं लें स्वयं किसी भी तरह की दवा न लें। ओआरएस घोल अवश्य पिलाते रहे।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
चिकित्सक होम्योपैथ
अयोध्या










