उपवन का फल किसका?
बलराम के पास गांव में कुछ जमीन थी , खेती किसानी से गुजर चल रहा था मगर उसे कुछ नया करने की ललक रहती, आखिर उसने एक योजना बनाई विचारों की खेती की। गांव वालों ने सुना और उसकी हंसी उड़ाते, सो उसने फल देने वाले पौधे लगाना शुरू किए, उनकी देखभाल सिचाई गुड़ाई करता।
गांव वाले कहते मूर्खः है जब ये पेड़ बड़े होंगे तब तक यह मर जायेगा।
लेकिन बलराम को देखकर कुछ बच्चों को भी खेल खेल में पौधे लगाने में आनन्द आने लगा, फिर क्या था कुछ ही वर्षों में आस पास के गांवों शहरों में भी लोग बलराम से बागवानी का हुनर सीखने लगे, उन्हें लाभ भी होने लगा।
बलराम ने जितने भी पेड़ लगाए मगर किसी बगीचे को अपना नही कहा।
समय गुजरता गया बलराम ने हजारों पेड़ो को जीवन देकर अपने जीवन से विदा ले ली, अपने बच्चो से वायदा लिया कि वे उनके इस अभियान को रुकने नही देंगे और न इसका व्यापार करेंगे उनके उपवन के फल उनके सभी परिवारीजन खा सकेंगे ।सब परिवारीजनों ने वचन दिया, और मन वचन कर्म से कार्य करते रहे।
बहुत समय बाद जब नई पीढियां जवां होने लगी तो उन्होंने सोंचा किसी तरह इन बगीचों में आना जाना शुरू हो तो फलों का धंधा चल सकता है, फिर क्या था पहले एक फिर उसके पीछे दूसरा उससे जुड़े अन्य लोगों का बगीचे में आना जाना शुरू हो गया, तो उसमें से कुछ ने फ्लो के बदले बगीचे के लोगों को धन देना शुरू किया पहले तो उन्होंने मना किया फिर जब उन्हें परिवार का होने का वास्ता दिया गया तो उन्हीने सहमति दे दी।
अब बगीचे के फल बाजार तक आने लगे, इसका असर यह हुआ कि जो लोग मेहनत कर रहे थे अच्छे फल उनको या उनके बच्चों को मिलने की बजाय बाजार के लिए रख लिए जाते।
अब बगीचे में खटिया के मचान की जगह एक बढ़िया आफिस भी खुल गया था,
धीरे धीरे उस ऑफिस में आने वाले लोगों को आम लोग भी बगीचे का मालिक समझने लगे और जो उसे बनाते रहे वे मजदूर की पहचान में आते गए।
यह बात कुछ बड़े बुजुर्गों की समझ मे आने लगी लेकिन उन्होंने कुछ बोलना ठीक नही समझा, क्योंकि उन्हें लगा उनके जीवन मे तो कोई दिक्कत है नही , आगे जो होगा वह देखेगा।
अब पेड़ लगने कम हो गए, पुराने भी आंधियों में गिर जाते, या कीमती लकड़ी के लिए बेंच दिए जाने लगे ।
बगीचा कम होने लगा मगर पुराने पेड़ बात कर रहे थे जब तक हम फल देंगे बचे रहेंगे वरना कल हम भी काट दिए जाएंगे
और बागवान सोंच रहा था जमीन हमारी, पौधे की मेहनत हमारी, और जब पेड़ फल देने लगे तो उनका व्यापार करने वाले कोई और मालिक कैसे बनने लगे, हमारे ही बच्चे भूखे क्यों ?
अब वह सोंच रहा था बगीचे के फल का मोह छोड़ अपनी किसानी पर मन लगाया जाय, खाने को रहेगा तो उसी की फसल बेंचकर जब मन करेगा फल खरीद कर खा लेंगे।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी










