चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

This is default featured slide 4 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 5 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

Thursday, 30 April 2020

कोरोना में होम्योपैथी की संभावनाएं

होम्योपैथी : प्रकृति प्रवृत्ति के अनुरूप औषधि ही विकृति का निवारण करने सक्षम 

सृष्टि रचनाकाल से मनुष्य का सम्पर्क वातावरण में उपस्थित असंख्य दृश्य अदृश्य रोगाकारकों से रहा है, जो अनुकूल दशाओं में प्रबल होने पर उसे संक्रमित कर सकने या जीवन के लिए संकट पैदा करने में सक्षम हो सकते हैं किंतु मानव ने स्वच्छता, पवित्रता, शैक्षिक जागरूकता एवं स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर या  टीकाकरण /प्रतिरक्षण के माध्यम से उनपर नियंत्रण पाया है।
 समान परिस्थितियों में संक्रमण से प्रभावित होना या न होना व्यक्ति की  संवेदनशीलता (Susceptibility) पर निर्भर करता है। होम्योपैथी में रोगों के तीन मूल कारण है जिन्हें मायज्म कहा जाता है सोरा, सिफिलिस, साइकोसिस। तदनुरूप एक्यूट संक्रामक रोगों का कारण सोरा (Psora) का उद्भवन या सक्रिय होना है जिसमें लक्षणों का प्रदर्शन व प्रसार बहुत तेजी से होता है और रोग अवस्थाएं प्रक्रिया पूरी होने पर या तो व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है अथवा उसकी मृत्यु हो जाती है। जिनका कारण फिक्स्ड मायज्म हैं उनके लिए शरीर मे प्रतिरोधक क्षमता का विकास हो जाता है जिससे वे जीवन मे दुबारा नही होते और जो रोग लक्षण बार बार होते है उनका कारण रेकरेन्ट मायज्म हैं।

कैसा हो होम्योपैथिक हस्तक्षेप -

परिस्थिति का आकलन कर  स्वच्छता व बचाव के उपाय कर संक्रमण के प्रसार को रोकना सर्वप्रथम आवश्यक कार्य है। ऐसे ज्यादातर रोग आत्म सीमित होते है अतः होम्योपैथिक उपचार प्राकृतिक आरोग्य सुलभ
करते हुए जटिलताओं से बचाव कर सकता है।
होम्योपैथी रोग की पहचान (Diagnosis) आधारित चिकित्सा पद्धति नहीं अपितु व्यक्ति आधारित (Individualization) औषधि चयन एवं प्रयोग की पद्धति है।   अतः  किसी बीमारी के ठीक करने या उसकी दवा होने का दावा सैद्धांतिक रुप से संभव नही। महामारी के परिप्रेक्ष्य में बड़े समूह के सामान्य लक्षणों की सम्पूर्णता पर आधारित जिनस एपिडेमीकस का निर्धारण किया जा सकता है। यद्यपि राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में बीमारी विशेष के लिए  वैक्सीन का प्रयोग किया जाता है।

प्राकृतिक सुरक्षा प्रणाली - 

जब कोई संक्रामक रोगाणु किसी व्यक्ति के शरीर मे प्रवेश करता है तो शरीर सुरक्षात्मक प्रतिक्रया करता है जिससे वह रोगाणु हानि पहुँचाने से पूर्व निष्क्रिय हो जाये, समाप्त हो जाये या बाहर कर दिया जाए, फलस्वरूप संक्रमित भाग या अंग में इन्फ्लामेट्री रिएक्शन होते है। प्रभाविता के आधार पर लक्षण जैसे छींक,  बुखार, खांसी, थकान आदि लक्षण संक्रमण की शुरआत की पहचान के हैं, इनके प्रदर्शन के साथ व्यक्ति को सचेत हो जाना चाहिए। किन्तु जिनकी संवेदनशीलता कम और इम्युनिटी अधिक है सम्भव है उनमें रोग के लक्षण न प्रदर्शित हों किन्तु उनसे  अन्य में संक्रमण फैल सकने की संभावना रहती है।यह अवस्था भी समाज के लिए घातक है।

वर्तमान परिदृश्य covid 19 -ज्ञात तथ्य 

वर्तमान समय मे जो विषाणुजनित महामारी विश्व के 190 से अधिक देशों की 29 लाख से अधिक आबादी को संक्रमित कर 2 लाख से अधिक जनसंख्या का जीवन ले चुकी है, विश्व स्वस्थ्य संगठन को उसकी जानकारी 31 दिसम्बर 2019 को चीन के हुबेई प्रान्त के शहर वुहान में अकारण जनित न्यूमोनिया के रूप में हुई जिसे पहचान होने पर कोरोनावायरस जनित होने और उत्पत्ति के वर्ष के आधार पर कोविड 19 (COVID 19) नाम दिया गया।
इस रोग के कारक विषाणु की संरचना चंद्रमा द्वारा सूर्य को ढक लेने पर चन्द्रमा के चारों तरफ निकलती किरणों, जिन्हें कोरोना कहते हैं, जैसे प्रतीत होने के कारण कोरोना नाम दिया गया है। कोरोना अल्फा, बीटा , गामा, डेल्टा वंश के  आरएनए विषाणुओं का बृहद  समूह है, नावेल कोरोना वायरस भी इसी परिवार का सदस्य है जो पशु पक्षियों से मनुष्य (जूनोटिक)
और फिर मनुष्य से मनुष्य के श्वसनतंत्र को संक्रमित करते हुए सामान्य सर्दी जुकाम बुखार, खांसी, संसलेने में तकलीफ जैसे लक्षणो से न्यूमोनिया या मल्टी ऑर्गेनिक फेल्यर जैसे प्राण घातक लक्षण पैदा कर सकते हैं। इनकी रोकथाम के लिए कोई टीका (वैक्सीन) या विषाणुरोधी (antiviral) अभी उपलब्ध नहीं है अतः व्यक्तिगत प्रतिरक्षा तन्त्र की मजबूती व संक्रमण के दायरे से बचाव ही एक मात्र उपाय है।
अध्ययनों में 28 अप्रैल तक प्राप्त जानकारी के अनुसार 3600 से अधिक अध्ययनों के बाद वैज्ञानिकों ने वुहान शहर के O टाइप स्ट्रेन के बाद अब तक कुल 11 प्रकार के स्ट्रेन की पहचान हुई, जिसमे A2a स्ट्रेन को अधिक खतरनाक माना जा रहा है।
बहुत सारे केसेस बिना किसी लक्षण के मिले अर्थात व्यक्ति संक्रमित तो है किंतु बीमार नहीं, अतः ये संक्रमण को तेजी से फैलने  वाले कैरियर हो सकते हैं।

कोई निश्चित उपचार की जानकारी न होने से प्रचलित चिकित्सा पद्धतियों के पास संक्रमित व्यक्ति के शरीर को जीवनरक्षक सहयोग जैसे कि निर्जलीकरण में रिहाइड्रेशन, ज्वर, ऑक्सीजन, वेंटिलेशन आदि से ही उपचार किया जाता है जिससे  संक्रमण से लड़ते हुए शरीर की शक्ति बनी रहे।



प्रहार से पहले शत्रुशक्ति की पहचान जरूरी

रोग लक्षणों के उपचार एवं रोग प्रसार की संभावनाओं पर प्रहार के लिए नावेल कोरोना वायरस 2 की संरचना व रोगोत्पत्ति के तरीके को समझना आवश्यक होगा।
कोरोना ; संरचना
अभी तक ज्ञात जानकारियों के अनुसार 120 नैनोमीटर गोलाई वाले वायरस का आवरण दो परत की लिपिड से बना है जिसमे प्रोटीन की बनी हुई कांटेनुमा संरचनाएं धंसी रहती हैं और अंदर प्रोटीन से बना न्यूक्लियोकैप्सिड होता है जहां RNA होता है यही इसका जीनोम है।
संक्रमण और लक्षणों की उत्पत्ति ; रोगउत्पादन 
अपनी संरचना के कारण यह नाक या मुह के रास्ते जब शरीर मे प्रवेश करता है तो इन्ही स्पाइक से सूखी सतह या म्युकोसा पर चिपकता है, संवेदनशील व्यक्ति जिनकी इम्युनिटी मजबूत है , तुरन्त इन्हें पहचान कर उसी जगह से बाहर करने का प्रयास करती हैं, इसलिए छींक खांसी व बुखार प्रथम पहचान के लक्षण हैं। किन्तु कमजोर क्षमता वालों में विषाणु श्वसन मार्ग में आगे बढ़ते हुए अपनी संख्या द्विगुणित करता जाता है। श्वास नली की अंदर की म्यूकोसा में सिलिएटेड सेल्स होती हैं जो किसी भी संक्रमण को बाहर की तरफ धकेलती है,संभव है  यह विषाणु  साइटोकीन की क्रिया को बढ़ा देता हो जिससे सिलिएटेड सेल्स की सिलिया अलग हो जाएं और शरीर की प्रतिरक्षा के लिए आई डब्ल्यूबीसी की सेल्स की क्रिया विधि बहुत तेज हो जाये जिससे वह अपने शरीर की सिलिएटेड सेल्स व विषाणु दोनों को समानरूप से नुकसान पहुँचाने लगें, फलस्वरूप फेफड़ो की अंदर की सतह पर चिपक कर यह विषाणु वहां के श्रावण को तो बढ़ा देता है किंतु वह स्राव बाहर नही आ पाता वहीं जमा होने लगता है और  फेफड़ो के सिकुड़ने फैलने में दिक्कत होने से विसरण विधि से होने वाला ऑक्सीजन का आदान प्रदान बाधित हो जाए और व्यक्ति का दम घुटने लग जाए। विषाणु की संभावित विषाक्तता से यह गम्भीर लक्षण तेज बुखार, व न्यूमोनिया, फिर ऑक्सीजन की कमी से अन्य अंगों के कार्यो को प्रभावित कर मल्टी ऑर्गन फेल्यर या मृत्यु हो सकती है।
म्यूकोसा को होने वाले नुकसान से ही सम्भवतः व्यक्तियों में स्वाद व सूंघने की क्षमता में कमी के भी लक्षण दिख सकते हैं। 
प्रमुख लक्षण

अ. सामान्य सर्दी जुकाम की तरह छींक से शुरुआत
      थकान, सिरदर्द, बदनदर्द।
ब. सूखी खांसी
     बुखार
     सांस लेने में तकलीफ
    
पिछले 14 दिनों में संक्रमित क्षेत्र की यात्रा अथवा व्यक्ति से सम्पर्क का इतिहास
स. स्वाद व सूंघने की क्षमता में कमी
     दस्त
 
उक्त विवरण से सहज यह अर्थ निकाला जा सकता है कि यह विषाणु शरीर की प्रतिरोधक क्षमता सन्तुलित करने वाली कोशिकाओं को कमजोर करता है और अन्य अंगतन्त्रो को भी नुकसान पहुचता है।

यदि विषाणु द्वारा ऐसे ही रोगोत्पादन हो रहा है तो उपचार व बचाव के लिए अलग अलग स्तरों पर कार्ययोजना करनी चाहिए।


 1. विषाणु के संक्रमण प्रसार रोकने के लिए दूरी बहुत जरूरी -

 संक्रमित व्यक्ति की छींक, खांसी से वातावरण में फैली बूंदे एरोसाल, अथवा व्यक्तिगत सम्पर्क,  या किसी स्पर्श की हुई सतह, वस्तु के स्पर्श आदि से सावधानी पूर्वक कम से कम एक मीटर दूरी बनानी आवश्यक है, जिससे संक्रमण के सम्पर्क में न आएं। क्योंकि स्पर्श में हाथों का उपयोग अधिक है इसलिए बार बार साबुन से या 70% एल्कोहल वाल्व सेनेटाइजर से हाथ धुलना चाहिए जिससे विषाणु की लिपिड का आवरण नष्ट हो जाय।

व्यक्ति के शरीर मे प्रवेश, विषाणु की सँख्याबृद्धि और शरीर के सुरक्षातंत्र से लड़ते हुए विषाक्तता के लक्षण उत्पन्न होने में लगने वाला समय ऊष्मायन अवधि या इन्क्यूबेशन पीरियड कहलाता है जो इसके लिए सामान्यतः 1-14 दिन (माध्य 5-6 दिन) है, किन्तु
इस काल मे संक्रमित व्यक्ति लक्षणहीन होते हुए भी संपर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों को संक्रमित कर सकता है अतः सावधानी के तौर पर  लॉक डाउन, व फिजिकल डिस्टेंसिंग सबसे कारगर उपाय हैं। इसीलिए 14-15 दिनों पूर्व तक संक्रमित जगहों की यात्रा या व्यक्ति के सम्पर्क के इतिहास वाले व्यक्तियों को सबसे अलग कर नियमित उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली जाती है और आवश्यक आर टी पीसीआर टेस्ट कराया जाता है जिससे जीनोम लोड की पहचान की जाती है , 24 घण्टे में दो लगातार नेगेटिव टेस्ट मिलने पर व्यक्ति को छोड़ दिया जाता है। इस प्रक्रिया को ही क्वारंटाइन कहते हैं।
 यदि टेस्ट पॉजिटिव आ जाये तो व्यक्ति को समूह से अलग कर सपोर्टिव उपचार दिया जाता है जिससे उसका सुरक्षातंत्र आसानी से विषाणु का प्रतिकार कर सके। पृथक्करण की इसी प्रक्रिया को आइसोलेशन कहते हैं ।

2. सुरक्षा -
चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों के लिए बचाव हेतु डब्ल्यूएचओ द्वारा घोषित प्रोटोकाल का पालन करते हुए( पीपीई किट मास्क, आदि ) मरीजों की देखरेख करनी चाहिए।

3. उपचार की पद्धति -
लक्षणों की तीव्रता के आधार पर केसेस को माइल्ड, मॉडरेट, और सीवियर श्रेणी में बांटा जा सकता है तदनुरूप ही जीवनरक्षक उपाय किये जाते हैं।

4. औषधीय उपचार का पथ कैसा हो -
अर्थात दवा साईटोकीन की अधिकता को कम करे, और कोरोना बृद्धि को रोकने वाली होनी चाहिए, साथ ही इसका प्रसार रुकना चाहिए।

होम्योपैथी की संभावनाएं --

महामारी में होम्योपैथी की ऐतिहासिक भूमिका --

1799 में स्कारलेट फीवर में बेलाडोना,1813 में कालरा में वेरेटरम अल्बम, व कैम्फर,1918 में स्पेनिश फ्लू, इन्फ्लूएंजा में जेल्सीमियम,1996 में डेंगू में युपेटोरियम, 1999-2003 भारत मे आंध्र प्रदेश में जेई में बीसीटी शेड्यूल,आदि ने बार बार अन्य पद्धतियों के सापेक्ष अपनी उपयोगिता सिद्ध की है किंतु अनुसन्धान व वैज्ञानिक मापदंडों के नाम पर बहुत महत्व नही दिया गया यद्यपि आंकड़े होम्योपैथी का पक्ष रखते हैं।

महामारी के दौरान भी सामान्य जीवन पर प्रतिबंधों के पालन, एवं संक्रमण के भय से अन्यान्य रोगों जैसे एंग्जायटी, बेचैनी, घबराहट, निराशा, ब्लड प्रेशर, चिंता, तनाव, मानसिक अवसाद बढ़ सकता है  व अन्य सायको सोमैटिक डिसऑर्डर बढ़ सकते हैं , ऐसी परिस्थितियों में औषधि चयन हेतु केसटेकिंग के मनोवैज्ञानिक तरीके से संवाद स्थापित कर व्यक्ति को चिकित्सक परामर्श से आशावान बना सकते हैं, होम्योपैथी में औषधि चयन में मानसिक लक्षणों  को केंद्र में रखते हैं।

औषधि चयन

1. होम्योपैथी सिद्धांतों के अनुरूप सामान्य लक्षणों के आधार पर जिनस एपिडेमिक्स का चयन

2. व्यक्तिगत रोग लक्षणों
और रोग की अवस्था पर आधरित व्यक्ति के आकलन व तत्सम चयन

3.होम्योपैथी में स्पेसिफिक प्रतिरोधक औषधि के रूप में रोगभाग से नोसोड बनाई जाती हैं।

उपरोक्त  तरीकों में क्लिनिकल वेरिफिकेशन अध्ययन व अनुभव के आधार पर निम्न होम्योपैथी औषधियां सहायक हो सकती हैं।

कोविड 19 के लिए भी भारत सरकार के अंतर्गत केंद्रीय होम्योपैथी अनुसन्धान परिषद की सलाह पर  आयुष मंत्रालय द्वारा आर्सेनिक एलबम 30 के प्रयोग की एडवायजरी जारी की गई थी।

आर्सेनिक अल्ब - थोड़ी देर पर थोड़ी प्यास, घबराहट, बेचैनी, निराशा, मृत्यु का भय, छींक, बुखार, सांस फूलना, ब्रांकाइटिस, ताप अवस्था मे भी गर्म पीने या ओढ़ने से आराम।

थूजा  - सभी प्रकार के विषाणु संक्रमण रोधी की तरह मानी जाती है।

जेल्सीमियम - ब्रोंकाइटिस,  बुखार, प्यास नही, सूखी खांसी,व सीने पर भारीपन, निगलने व सांस लेने में दिक्कत।

जस्टिसिया - सूखी खांसी, सांस लेने में दर्द,  छींक, सीने में जकड़न, 
एकोनाइट- शुरुआती अवस्था मे, शुष्क सर्दी, सिरदर्द , नाकबन्द, छींके, टान्सिल में दर्द आदि।

एंटीम टार्ट- आवाज में भारीपन, न्यूमोनिया, सीने में जमा कफ घड़घड़ाहट , खांसी, संसलेने में तकलीफ, डकार से आराम, (संक्रमण के तीन चार दिन बाद की प्रथम व द्वितीय अवस्था)

ब्रायोनिया- अत्यधिक प्यास, न्यूमोनिया, सूखी खांसी, रात्रि में बढ़ जाती है,  बुखार सिरदर्द, ऊपरी श्वसन तंत्र का संक्रमण,सांस लेने तकलीफ, गहरी सांस लेने की इच्छा, गले मे दर्द खराश, गर्मी से अचानक सर्द वातावरण में आने पर।

जिंकम म्यूर- स्वाद व सुगन्ध में परिवर्तन होने पर उपयोगी।

कैम्फर- अचानक मौसम बदलने पर , इन्फ्लूएंजा के लक्षण, छींक, जुकाम, सिरदर्द, गैस्ट्रीक अपसेट, नाक बंद होना, संक्रमण की तीनों अवस्थाओं में कुछ चिकित्सक इसकी 1M की एक खुराक को बचाव व उपचार के लिए  उपयोगी पाया है।

ऑससिल्लोकॉक्सीनम - श्वसन तंत्र में संक्रमण की शुरुआती अवस्था मे ही, व्यक्ति को संक्रमित होने या रोग मृत्यु का भय लगता है, बार बार हाथ धोता है,सूखी खांसी, तेज बुखार, छींके, आती हैं, पूरे शरीर मे दर्द।

इंफ्लुएंजिनम -  सभी वायरल संक्रमण में शरीर मे टूटने जैसा दर्द, तेज बुखार, छींक, खांसी, शरीर मे दर्द,।यह नोसोड इन्फ्लूएंजा या इसके जैसे लक्षणों वाले अन्य विषाणुजनित रोगों में प्रथम औषधि के रूप में प्रयोग किया जा सकता है

सार्कोलैक्टिक एसिड - जब इन्फ्लूएंजा महामारी में आर्सेनिक निर्देशित हो किन्तु अपेक्षित परिणाम न मिलें।

सोरिनम - इन्फ्लूएंजा के बाद आई कमजोरी को दूर करने के लिए।
ट्यूबरकुलीनम - लक्षणों की पुनरावृत्ति होने का इतिहास मिलने पर, शरीर की शीत प्रवृत्ति, होने पर शुरुआत में एक खुराक।

उपरोक्त औषधियों के अतिरिक्त रोगी की अवस्था का आकलन कर होम्योपैथ चिकित्सक लक्षणों के आधार पर उचित औषधि व शक्ति का निर्धारण कर प्रयोग कर सकते हैं। इसलिए किसी भी औषधि का प्रयोग केवल चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए, साथ ही व्यक्ति को हल्के भोजन, नियमित व्यायाम, प्रणायाम, सकारात्मक चिंतन व जीवन के प्रति आशावादी दृष्टिकोण विकसित करना चाहिए।




डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ
अयोध्या

मो. 8400003421

Friday, 24 April 2020

कोरोना काल मे सायकोलॉजिकल केयर : अफवाहों से बचे आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं


इन दिनों चर्चा का केंद्र कोरोना बन गया है जिसके रहस्यों की कई परते खुलना अभी बाकी है। किसी सामान्य व्यक्ति से भी इसके बारे में पूछा जाय तो उसका सहज उत्तर कुछ इस तरह से मिलता है, "अरे भैया कोरोना कौनो मायावी वायरस है, बड़ी छुआ छूत की बीमारी है, छींक, खांसी, बलगम, थूक तक के नजदीक जाय से होय जात है, क्या पता किसको है इसीलिए शासन प्रशासन बड़ा सख्त है, सबको घर मे ही रहने को कहे हैं,एक को हुआ तो उसके सम्पर्क में जेतना लोग आए होंगे सबकी जांच होए, सब 14 दिन के लिए समझो नजरबंद, अस्पताल ले गए  तो पता नाय कितने दिन और क्या इलाज चले, कोई इलाज भी नही पता है, अमेरिका जैसी जगह हालत खराब है, यहाँ तो कहो सरकार सुरु से ही इतनी सख्ती करे है तो कुछ काबू में है, अब तो पता चला है कि लक्षण न दिखे तब भी होय सकता है, बचे के इक्के तरीका है सुरक्षित अपने घर मे ही रहो, केहू से न मिलो कुछ दिन।"
उक्त संवाद से दो संकेत स्पष्ट हैं प्रथम तो यह कि प्रचार प्रसार और मीडिया से अधिकांश जनता को कोरोना के बारे यह सामान्य जानकारी है सर्दी, सूखी खांसी, बुखार, व सांस लेनें में अथवा गले मे खराश होना कोरोना हो सकता है, और इसके संक्रमण को रोकने के लिए ही हाथों की सफाई, मास्क, जरूरी है । यद्यपि समय के साथ लगातार हो रहे चिकित्सकीय अध्ययनों में यह बात भी सामने आई कि बिना लक्षणों के व्यक्ति भी संक्रमित पॉजिटिव पाए गए ,यह जटिलता का सूचक है जिसमे अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी ।

इसका दूसरा पक्ष व्यक्ति की मनःस्थिति से जुड़ा है इसलिए अदृश्य किन्तु चिकित्सकों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि समाज को कोरोना और कोरोना जनित भय से बचाने का दायित्व उन्ही पर है।
 टीवी,  मोबाइल, अखबार, व आपसी संवाद में कोरोना पर ही चर्चा आदि से जाने अनजाने हमे स्वयं बीमारी से ग्रसित होने का पहले डर पनपता है फिर तरह तरह की कल्पनाएं डर को बेचैनी में बदल देती है इससे जुड़ी चिंता से भूख प्यास, नींद, डिस्टर्ब हो सकते है जिससे तमाम अन्य शारीरिक दिक्कते,  दर्द व्यवहार में चिड़चिड़ापन , गुस्सा , अवसाद आदि महसूस हो सकते है जिनका कारण मानसिक ही है, इसलिए इन्हें सायकोसोमैटिक डिसऑर्डर कह सकते हैं। 

जानिए क्या है क्वारंटाइन, आइसोलेशन, और लॉक डाउन का मतलब

एक उदाहरण के तौर पर यदि आप किसी अपरिचित व्यक्ति के साथ यात्रा में हों तो दूरी और समय दोनों नही कटते, किन्तु संवाद शुरू होने पर सहजता हो जाती है, ऐसे ही लॉक डाउन, क्वारंटाइन, और आइसोलेशन जैसे शब्दों सही परिचय न होने से इन्हें स्वीकार कर पाने में असहजता होती है।इसलिए आसान शब्दों में इसकी प्रक्रिया को यूं समझें कि यह तीनो ही कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए बैरियर जैसे हैं अंतर इनके लगाये जाने के तरीके में है। पूरे समाज की व्यापक गतिविधि पर प्रतिबंध का अनुशासन है लॉक डाउन, एक ऐसे व्यक्ति को परिवार व समाज से पृथक करना जो किसी संक्रमित व्यक्ति से किसी भी तरह सम्पर्क में आया हो तो यह प्रतिबंध क्वारंटाइन कहलाता है, और किसी संक्रमित व्यक्ति को ही सामान्य आबादी से अलग चिकित्सकीय देखरेख में रखना आइसोलेशन कहलाता है। क्योंकि कोरोना के लक्षणों प्रदर्शन और दो आवश्यक जांच रिपोर्ट के निगेटिव होने की पुष्टि तक इनका समय अलग अलग निर्धारित किया जा सकता है। इस पूरी अवधि में व्यक्ति प्रशासन, स्वास्थ्य कर्मियों या चिकित्सको की निगरानी में रहता है।
यह बात सत्य है प्रत्येक व्यक्ति संक्रमित नहीं, किन्तु वायरस की प्रकृति व प्रवृति ऐसी है कि संकट सभी पर समान रूप से संभावित है और सावधानी और बचाव ही एक मात्र उपाय है, इसलिए स्वयं को, परिवार को, समाज को राष्ट्र को इस संकट से बचाने में यह हमारा योगदान है ऐसा मानकर अपनी मनःस्थिति को सहयोगी भाव से जोड़ना चाहिए।

दीर्घकालिक संघर्ष में दबावयुक्त मनस्थितियाँ सभी मे हो सकती हैं, मरीज पर रोग से मुक्ति और जीवन के संकट, इलाज की अनिश्चितता का दबाव,  समाज , सरकार व शासन को दैनिक कार्यों और अर्थव्यवस्था व प्रगति की चिंता, चिकित्सा कर्मियों व व्यवस्था में लगे कर्मियों पर अतिरिक्त सतर्कता, सावधानी, व्यवस्था नियंत्रण, कार्य की जिम्मेदारी, व जवाबदेही का दबाव बनना अदृश्य पक्ष है।

  

बचाव के लिए क्या करें -
कोरोना काल मे उपरोक्त तथ्यों को समझते हुए सर्वप्रथम तो इस अदृश्य शत्रु से संघर्ष के लिए राष्ट्र के पक्ष में आपकी भूमिका व योगदान क्या होना चाहिए , इस विषय पर सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ चिंतन अवश्य करें तो आपमें सभी अनुशासन के प्रति सहयोग और स्वीकार्यता का भाव पनपेगा।
जीवन के प्रति आशा और विश्वास यही सर्वोत्तम औषधि है, और अप्रमाणिक जानकारी समाचार अफवाहें इस काल में व्याधियों को पोषण है, इसलिये आशावादी दृष्टिकोण अपनाएं और अफवाहों पर ध्यान न दें।
 घर मे परिवार व बच्चों के साथ समय का सदुपयोग सृजनात्मक गतिविधियों लेखन, अध्ययन,  गीत, संगीत, कम्यूटर सीखना, चित्रकारी, पेंटिंग,  बागवानी, घरेलू खेल, सुबह शाम, शारीरिक श्रम, योग, प्राणायाम, व्यायाम में करें। रिश्तेदारों मित्रों से फोन पर इस वीडियो कसन्फ्रेन्सिंग से बात कर उत्साहवर्धन करें, समाज मे आस पास के गरीब जरूरतमंद, पशु पक्षियों की मदद कर सकते हैं। यदि आप क्वारंटाइन या आइसोलेशन में भी हैं तो  देखें और विचार करें कि जहां कोई अपना नही वहां भी आपके जीवन की रक्षा के लिए चिकित्सक व सभी स्टाफ अपनो से दूर होकर लगे है, उनका सम्मान करें, उन्हें सहयोग करें, उन्हें सही जानकारी दें। यदि बच्चे हैं तो उनके प्रश्नों को सुने, उन्हें बोलने का पूरा मौका दें, डाटें नहीं, प्यार से खेल में समझाएं कैसे यह खेल जीतना है।
साथ ही शरीर के पोषण का ध्यान रखें , शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने लिए विटामिन सी युक्त आहार लें, मौसमी फल, हरी सब्जियां, खीरा, टमाटर, नारियल पानी, संतरे, नींबू का जूस,आंवले का रस पियें। नीम की कोपले,तुलसी की पत्ती, गिलोय, हल्दी मिश्रित दूध,ले सकते हैं।अदरक ,तुलसी, काली मिर्च दालचीनी गुड़ का काढ़ा पियें।आयुष मंत्रालय द्वारा जारी सुझावों का पालन करें और कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होने पर घबराएं नही अपने चिकित्सक या शासन के हेल्प लाइन नम्बर पर फोन से पहले जानकारी लें , तदनुरूप ही कोई दवा खाएं।आयुष मंत्रालय ने होम्योपैथी की आर्सेनिक एल्ब दवा की सलाह दी है किंतु दवा चिकित्सक के मार्गदर्शन में हीं लेना चाहिए।
ध्यान रखें कोरोना कलंक नहीं है,  आपकी परीक्षा का प्रश्नपत्र है, जिसमे जीवन के  सही विकल्प का चुनाव आपके हाथों है, इसलिए सजग रहे, सतर्क रहें, जानकारी बढ़ाएं, और स्वस्थ रहें।


डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ
राष्ट्रीय महासचिव- होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ

Thursday, 23 April 2020

कोरोना काल मे सायकोलॉजिकल डिसऑर्डर से कैसे बचेंएक अदृश्य अतिसूक्ष्म विषाणु,

वायरस का संक्रमण कलंक नहीं,जीवन की आशा और विश्वास सर्वोत्तम औषधि 


जो सजीव और निर्जीव के बीच की कड़ी है, किन्तु वर्तमान समय मे विश्व के 25 लाख से अधिक मनुष्यों को अपनी चपेट में ले चुका है, जो समय के साथ सम्भवतः अपने प्रहार व प्रदर्शन के स्वरूप भी बदल रहा है, और वर्तमान में मानव जीवन को सबसे बड़े अदृश्य संकट से कैसे बचाया जाय यह सभी के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। घोषित तौर पर चार महीने की अवधि के बाद इससे मुक्ति के लिए अनिश्चितता का भय, किसी विश्वसनीय उपचार की अनुपलब्धता, और संदिग्ध पाए जाने पर लंबे समय तक एकाकी जीवन (क्वारेंटाईन) के नाम पर मानस पटल पर उभरती जेल की सलाखों में बेड़ियों से जकड़ी जिंदगी की कलंकित तस्वीर मनुष्य को मानसिक स्वास्थ्य के बारे में भी सचेत रहने का संकेत करती है। अभी तक कोरोना की पुष्टि के लिए जांच का संकेत करने वाले शारीरिक लक्षण खांसी, बुखार, व सांस लेनें में अथवा गले मे खराश के रूप में मिलते रहे किन्तु अब कई मामलों में व्यक्ति बिना किन्ही लक्षणों के भी संक्रमित पाए गए यह जटिलता का सूचक है जिसमे अतिरिक्त सावधानी ही बचाव है।

क्या हैं सायकोलॉजिकल डिसऑर्डर
इन परिस्थितियों का प्रभाव समुदाय के सभी वर्गों, मरीज, चिकित्सक, परिवार, समाज, कर्मचारी, बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर आवश्यक रूप से पड़ता है, जिसमे सामान्यतः भय, चिंता, तनाव,  बेचैनी, मानसिक आघात, परिस्थियों या स्वयं के लिए संक्रमण होने की अस्वीकार्यता का भाव, और इस कारण अनुशासन का लम्बे समय तक पालन करने के दबाव के फलस्वरूप क्रोध का विस्फोटक स्वरूप अथवा व्यक्तिगत अपराध बोध व्यक्ति में कुंठा के भाव भर अवसाद की तरफ धकेलने वाले हो सकते हैं।
कुछ परिस्थितियों में माना जा सकता है कि लम्बे लॉकडाउन, क्वारंटाइन,  आइसोलेशन यह तीन शब्दों का सही अर्थ व जानकारी का अभाव आमजनता को कोरोना की तरह डराने वाले ही है जो इस भाव मे प्रदर्शित होता है कि "कोरोना छुआछूत की बीमारी ही नही कलंक है जिसके लग जाने से सगे सम्बन्धी,  भाई, परिवार, मित्र समाज सभी सम्बन्ध तोड़ लेंगे, दुनिया मे अकेले रहना पड़ेगा,  और शासन प्रशासन को पता चलेगा तो कलंकित अपराधी की तरह सबसे अलग थलग कर किसी जगह अकेले बंद कर देंगे, क्योंकि इसकी कोई दवाई चिकित्सकों के पास भी नही है इसलिए वे भी हमारे साथ ठीक बर्ताव नही करेंगे और कुछ दिन में जीवन मिट जाएगा, एक गुमनाम बहिष्कृत अपराधी की तरह मेरा भी लावारिस अंतिम संस्कार कर दिया जाएगा, कोई मुझसे कभी नही मिलेगा ।" यह भाव उस मनःस्थिति की निर्बलता को व्यक्त करते हैं जहां व्यक्ति वर्तमान परिस्थितियों से या तो पूरी तरह अनभिज्ञ है अथवा ज्ञान होते हुए भी भावना की प्रधानता में विवेक का प्रयोग नही कर पाता है। वह संक्रमण को अपराध की तरह, स्वयं को अपराधी की तरह और उसकी जीवन रक्षा में सहयोगी प्रशासन के अनुशासन को सजा के दृष्टिकोण से परखने लगता है।

इस मनोदशा को समझने के लिए लॉक डाउन, क्वारंटाइन और आइसोलेशन की प्रक्रिया के अर्थ को समझना आवश्यक है। तीनों ही शब्दों के अर्थों में एक समान उद्देश्य कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए क्रियात्मक समानता है प्रतिबन्ध, अंतर उसके लागू किये जाने के तरीके में है। पूरे समाज की सामान्य गतिविधि पर प्रतिबंध का अनुशासन का अर्थ है लॉक डाउन, एक ऐसे व्यक्ति को परिवार व समाज से पृथक करना जो किसी संक्रमित व्यक्ति से किसी भी तरह सम्पर्क में आया हो तो यह प्रतिबंध क्वारंटाइन कहलाता है, और किसी संक्रमित व्यक्ति को ही सामान्य आबादी से अलग  देखरेख में रखना आइसोलेशन कहलाता है। इन प्रक्रियाओं की अवधि का निर्धारण कोरोना के लक्षणों के प्रदर्शित होने की अवधि के आधार पर ही न्यूनतम 14 -15 दिन निर्धारित की जाती है, और इस बीच व्यक्ति की न्यूनतम दो  जांच रिपोर्ट 24 घण्टे के अंतर में निगेटिव आने पर व्यक्ति को मुक्त किया जाता है, इस पूरी अवधि में व्यक्ति चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों की गहन देखरेख में रहता है।
समाज मे प्रत्येक व्यक्ति संक्रमित नहीं, किन्तु वायरस की प्रकृति व प्रवृति ऐसी है कि संकट सभी पर समान रूप से संभावित है और सावधानी और बचाव ही एक मात्र उपाय है, इसलिए इस समय सभी  को संभावित परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त करते हुए, सहयोगी योगदान करने की मनःस्थिति का निर्माण करना चाहिए।
अनपेक्षित और अचानक आयी इस आपदा के लिए सामान्य मानव मानसिक रूप से कभी तैयार न थे,  सभी अपने दैनिक, निजी, पारिवारिक या अन्य जिम्मेदारी के कार्यों में सक्रिय थे,  अचानक सभी की गतिशीलता को ब्रेक लग जाने से, लोग इससे स्वयं को सम्बद्ध नही कर पाए जिससे उन्हें लगता है कि उन्हें यह संक्रमण कैसे हो पायेगा, वह तो स्वस्थ है, सजग है, और इसी कारण लॉक डाउन में रहते हुए भी कुछ लोग सरकार की तरफ से बचाव के लिए जारी निर्देशों का जानबूझ कर पालन नही करते, यह मनोवृत्ति डिनायल या अस्वीकार्यता कहलाती है, जो एंग्जायटी का ही व्यवहारिक दोष है, सकारात्मक उद्देश्यों से विरत यदि यह मनोवृत्ति निरन्तर रही तो कुंठा का भाव पनपने लगता है और व्यक्ति के व्यवहार में क्रोध का विस्फोटक प्रदर्शन विरोध के रूप में व्यवहृत होता है, ऐसे में व्यक्ति अनुशासन को तोड़ भागने का प्रयास करता है। यह बात तो सामान्य व्यक्ति पर लागू होती है, जिनका उद्देश्य दूसरों को पीड़ा पहुँचाना नही अपितु स्वयं को कैद से मुक्त करने जैसी मानसिकता से आबद्ध होता है, किन्तु कुछ लोगों का उद्देश्य ही आमजन को पीड़ा पहुँचाने के लिए सामान्य नियमों को तोड़ने का होता है ऐसे लोग उन चिकित्सकों को ही नुकसान पहुँचाने का यत्न करते है जो इनके जीवन को बचाने के लिए अपने जीवन को संकट में डाल रहे हैं ।इस तरह वे चिकित्सक को अपनी चिकित्सा की अनुमति नहीं देते।
क्वारंटाइन या आइसोलेशन की प्रक्रिया में ऐसी मनस्थितियाँ सभी मे हो सकती हैं, मरीज पर रोग से मुक्ति और जीवन के संकट, इलाज की अनिश्चितता का दबाव,  समाज , सरकार व शासन को दैनिक कार्यों और अर्थव्यवस्था व प्रगति की चिंता, चिकित्सा कर्मियों व व्यवस्था में लगे कर्मियों पर अतिरिक्त सतर्कता, सावधानी, व्यवस्था नियंत्रण, कार्य की जिम्मेदारी, व जवाबदेही का दबाव बनाना अदृश्य पक्ष है कोरोना के प्रत्यक्ष संकट का, इसलिए इससे बचने के उपाय भी प्रत्येक स्तर पर अलग अलग करना चाहिए। जिस बीमारी की कोई दवा नही सिर्फ बचाव ही एकमात्र उपाय है उसमें 
 सबसे महत्वपूर्ण है जीवन के प्रति आशा और विश्वास  ,यही सर्वोत्तम औषधि है, और अप्रमाणिक जानकारी समाचार अफवाहें इस काल में व्याधियों के लिए भोजन है, इससे बचना चाहिए।

बचाव के लिए क्या करें -
कोरोना काल मे उपरोक्त तथ्यों को समझते हुए सर्वप्रथम तो इस अदृश्य शत्रु से संघर्ष के लिए राष्ट्र के पक्ष में आपकी भूमिका व योगदान क्या होना चाहिए , इस विषय पर सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ चिंतन अवश्य करें तो आपमें सभी अनुशासन के प्रति सहयोग और स्वीकार्यता का भाव पनपेगा। घर मे परिवार व बच्चों के साथ समय का सदुपयोग सृजनात्मक गतिविधियों लेखन, अध्ययन,  गीत, संगीत, कम्यूटर सीखना, चित्रकारी, पेंटिंग,  बागवानी, घरेलू खेल, सुबह शाम, शारीरिक श्रम, व्यायाम में करें। रिश्तेदारों मित्रों से फोन पर बात करें, उत्साहवर्धन करें, समाज मे आस पास के गरीब जरूरतमंद, पशु पक्षियों की मदद कर सकते हैं। यदि आप क्वारंटाइन या आइसोलेशन में भी हैं तो  देखें और विचार करें कि जहां कोई अपना नही वहां भी आपके जीवन की रक्षा के लिए चिकित्सक व सभी स्टाफ अपनो से दूर होकर लगे है, उनका सम्मान करें, उन्हें सहयोग करें, उन्हें सही जानकारी दें, और यह सोंचे इस संघर्ष में आप भी अपने परिवार, समाज , व राष्ट्र को वायरस के आक्रमण व प्रसार से रोकने में अपना सम्पूर्ण योगदान एक योद्धा की तरह दे रहे हैं जो संक्रमण के दायरे में तो हो सकता है किंतु हार नहीं सकता। वीडियो कसन्फ्रेन्सिंग के जरिये अपने परिवार से संवाद कर उनका भी हौसला बढ़ाएं। हताश या निराश न हों, यूँ समझे जहां जिस परिस्थिति में आपकी भूमिका तय की गई वैसे ही लड़ेंगे मगर जीतेंगे जरूर। यदि बच्चे हैं तो उनके प्रश्नों को सुने, उन्हें बोलने का पूरा मौका दें, डाटें नहीं, प्यार से खेल में समझाएं कैसे यह खेल जीतना है।
साथ ही शरीर के पोषण का ध्यान रखें , शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने लिए विटामिन सी युक्त आहार लें, मौसमी फल, हरी सब्जियां, खीरा, टमाटर, नारियल पानी, संतरे, नींबू का जूस,आंवले का रस पियें। नीम की कोपले,तुलसी की पत्ती, गिलोय, हल्दी मिश्रित दूध,ले सकते हैं।अदरक ,तुलसी, काली मिर्च दालचीनी गुड़ का काढ़ा पियें।आयुष मंत्रालय द्वारा जारी सुझावों का पालन करें और कोई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होने पर घबराएं नही अपने चिकित्सक या शासन के हेल्प लाइन नम्बर पर फोन से पहले जानकारी लें , तदनुरूप ही कोई दवा खाएं।आयुष मंत्रालय ने होम्योपैथी की आर्सेनिक एल्ब दवा की सलाह दी है किंतु दवा चिकित्सक के मार्गदर्शन में हीं लेना चाहिए।
ध्यान रखें कोरोना कलंक नहीं है,  आपकी परीक्षा का प्रश्नपत्र है, जिसमे जीवन के  सही विकल्प का चुनाव आपके हाथों है, इसलिए सजग रहे, सतर्क रहें, जानकारी बढ़ाएं, और स्वस्थ रहें।


डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ
राष्ट्रीय महासचिव- होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ

Wednesday, 22 April 2020

कोरोना पर समन्वितचिकित्सा की समग्र शक्ति से प्रहार का समय


वर्तमान में बहुत सारी बीमारियां जैसे एचआईवी, हेपेटाइटिस, इनफ्लुएंजा, जेई, डेंगू, चिकनगुनियस, इन्फ्लूएंजा, स्वाइन फ्लू आदि जनस्वास्थ्य के लिए बार बार चुनौती बन जाती हैं। विज्ञान ने भी माना है इसका प्रमुख कारण मनुष्य रोग प्रतिरोधक क्षमता में आ रही कमी है जिससे वातावरण के रोगकारक जीवाणु विषाणु निरन्तर प्रहार करते रहते हैं और जिस व्यक्ति की लड़ने की क्षमता कमजोर होती है उसे अपना शिकार बना लेते हैं। चिकित्सा वैज्ञानिकों ने ज्यादातर के लिए टीका या वैक्सीन विकसित कर लिए हैं ।यद्यपि इन सभी बीमारियों से लड़ने की क्षमता हमारा शरीर स्वयं विकसित करता है जिसके लिए भारत के प्राचीनतम चिकित्सा शास्त्र आयुर्वेद में स्वस्थजीवनशैली की दिनचर्या, रितुचर्या, आहार, विहार,व्यवहार की प्रकृति के अनुरूप विधियां बताई हैं जिन्हें अपनाकर व्यक्ति रोगों से लड़ने की अपनी क्षमता को बनाये रख सकता है और स्वस्थ निरोगी दीर्घायु जीवन जी सकता है, वर्तमान परिदृश्य में कोरोना की महामारी से निपटने के लिए भी यही तथ्य सत्य है।
अब तक हम जान चुके हैं कि
चीन के वुहान शहर से निकले कोरोना ने कराल रूप में विश्व के अधिकांश देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इटली, पाकिस्तान, इजरायल आदि की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और संस्थाओं को बौना कर दिया है।
अब तक विश्व मे लगभग 23 लाख से अधिक संक्रमित और लगभग 1 लाख 50 हजार से अधिक मृत्यु दर्ज हो चुकी हैं।भारत मे भी यह आंकड़ा साढ़े 19हजार से अधिक संक्रमित और 600 से अधिक मृत्यु को पार कर गया है।अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति लगातार बेहतर बनी हुई है और अभी हम सामुदायिक संक्रमण का खतरे से बचे हुए हैं, इसका  सबसे प्रमुख कारण निश्चित रूप से भारत सरकार द्वारा लिए गए समयोचित निर्णय , कुशल प्रबंधन, और प्रशासन व नागरिकों के सहयोग व समन्वय ही है। 
तमाम विधाओं के शोधकर्ता व वैज्ञानिक सभी वायरस की पहचान व वैक्सीन बनाने में प्रयासरत हैं, किन्तु इसकी अनिश्चित प्रकृति एक जटिल समस्या है। कुछ मामलों में तो बिना किसी प्रत्यक्ष लक्षण के भी कोरोना के मरीजों की पुष्टि हो रही है यह संकेत है कि वायरस की संरचना अथवा स्वरूप में परिवर्तन भी संभव है।
इसकी संक्रामकता इतनी व्यापक है कि गरीब से लेकर विश्व के तमाम बड़े राष्ट्राध्यक्ष तक इसके असर से न बच सके, यद्यपि सन्तोष की बात यह है कि मृत्यु दर 2-4% ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक महामारी घोषित कर बचाव व उपचार का प्रोटोकॉल घोषित कर दिया है जिसका सभी देश पालन करवा रहे हैं।  अदृश्य शत्रु का सामना सभी संभव विकल्पों के साथ मिलकर ही किया जाना चाहिए ,इसी नीति के तहत ज्यादातर देश जनहानि को न्यूनतम करने के लिए हर संभव उपाय कर रहे है जिसके तहत पारंपरिक पद्धतियों का भी प्रयोग कर रहे हैं।
आयुर्वेद संसार मे सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति है जिसमे चिकित्सा के कई सिद्धांत बताये गए हैं उन्ही में से एक है समं समे शमयति अर्थात औषधि एवं रोग के लक्षणों की समानता के आधार पर चिकित्सा, इसे प्रकृति का चिकित्सा सिद्धांत भी माना गया है ।इसी सिद्धांत पर विकसित होम्योपैथी में औषधीय निर्माण में आयुर्वेद का सूत्र मर्दनम गुण वर्धनम के अनुरूप निष्क्रिय पदार्थों के औषधीय गुणों को शक्तिवर्धित कर मानव को व्याधिमुक्त करने में सहयोग मिलता है , इस दृष्टि से होम्योपैथी व आयुर्वेद में सैध्दांतिक समानता स्पष्ट होती है।
प्रचलित पद्धतियों की औषधियों के हानिकारक दुष्प्रभाव से बचने के लिए आम जनता का विश्वास है कि होम्योपैथी व आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में किसी भी रोग को समूल नष्ट करने की क्षमता है। इन सबके बावजूद होम्योपैथी के प्रयोग सन्दर्भ में जब बात होती है तो तर्क दिया जाता है कि होम्योपैथी में कोरोना के उपचार के  प्रमाण उपलब्ध  नहीं है। क्योंकि यह रोग सभी के लिए नया है और जब किसी भी पद्धति में उपचार उपलब्ध होने के प्रमाण अब तक सामने नहीं आये हैं किन्तु उपचार तो इसी आधार पर किया जा रहा है कि नुकसान कम से कम हो। इस दृष्टि से यह उपचार कम और आपदा काल मे कुशल प्रबंधन अधिक है। इसलिए अकेले होम्योपैथी के लिए प्रमाण न होने का तर्क तर्कसंगत नहीं।होम्योपैथी में रोग के नाम से चिकित्सा का विधान ही नहीं, इसलिए भी होम्योपैथी सैद्धांतिक रूप से कोरोना के इलाज का  दावा नहीं कर सकती। रोगी की अवस्था व लक्षणों के आधार पर चयनित औषधि की न्यूनतम मात्रा के प्रयोग से भी किसी भी तरह की हानि की संभावनाएं अन्य पद्धतियों की अपेक्षा नगण्य हैं। होम्योपैथी के जनक डा हैनिमैन के जीवनकाल में स्कारलेट फीवर , 1831 में कॉलरा,1849 में  यूरोपीय देशों में एशियाटिक कॉलरा में डॉ वोनिंगहसन  द्वारा,जोहान्सबर्ग के डॉ टाइलर स्मिथ एवम शिकागों के डॉ ग्रिमर  द्वारा 1850 में पोलियो के लिए होम्योपैथी दवाओं का होम्योपैथी सिद्धांतो के आधार पर सफलतापूर्वक प्रयोग का उल्लेख होम्योपैथी पुस्तकों में हैं । भारत मे जे ई के लिए वर्ष 1999 में आंध्र प्रदेश सरकार ने भारतीय  चिकित्सा पद्धतियों एवं होम्योपैथी विभाग के सहयोग से वर्ष 2002 तक अभियान चलाकर सफलता दर्ज की थी। और जे ई पर होम्योपैथी की बेलाडोना औषधि के असर की रिपार्ट अमेरिकन जर्नल में प्रकाशित भी हो चुकी है।इसी प्रकार डेंगू ,चिकन पॉक्स, चिकनगुनिया आदि संक्रामक एवं अन्य वायरस जनित रोगों में भी होम्योपैथी औषधियों के प्रभाव से जनता लाभांवित हुई है।
राष्ट्रीय आपदा के समय जब सबके स्वास्थ्य की चिंता करनी हो तो समग्रता का सिद्धांत लागू किया जाना राष्ट्रसेवा का अवसर प्रदान करने जैसा है।
सभी चिकित्सा पद्धतियों का उद्देश्य मानव के स्वास्थ्य को बिना नुकसान पहुचाएं सुरक्षित करना है । अतः सबके स्वास्थ्य की रक्षा के संकल्प की सिद्धि के लिए सभी चिकित्सा पद्दतियों को समन्वितस्वरूप में कुशल प्रबंधन के साथ अपनाने की आवश्यकता है।उपचार के लिए यदि किसी के पास कोई दवा नही हो, नुकसान अवश्यम्भावी हो तो समग्रता  के पालन के साथ सबसे कम नुकसान वाले मार्ग पर चलना ज्यादा श्रेयस्कर है।
उपरोक्त तथ्यों के आधार पर होम्योपैथी चिकित्सकों ने सरकार को भिन्न माध्यमों से कोरोना संकट से मुक्ति के उपायों में होम्योपैथी का भी सहयोग लेने का निवेदन किया सम्भवतः उन सभी पर विचार विमर्श के बाद सरकार ने आयुष पद्धतियों का सम्यक प्रयोग एवं उनके प्रभावों के अध्ययन हेतु वैज्ञानिक मापदंडों पर आंकड़े जुटाने की सहमति जारी कर दी है , यह नितांत सामयिक और प्रशंसनीय कदम है। अभी कुछ दिन पूर्व मध्य प्रदेश राज्य होम्योपैथी परिषद की रजिस्ट्रार डा आयशा अली , दिल्ली सरकार ने होम्योपैथी की दवा का वितरण कराने की अपील की।
भारतीय पारम्परिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार यह विषम सन्तत ज्वर जैसा है, जिसमें तीनों दोष वात पित्त कफ के प्रकोप होने पर सन्निपात की अवस्था उत्पन्न होती है। यद्यपि इसमे कफ दोष का अत्यधिक प्रकोप होता है, जिसका शरीर में स्थान हृदय के ऊपर होता है। व्यक्ति में तापमान , नेत्र, मल, मूत्र का रुक्ष हो जाना सुखना, अंगमर्द, शरीर में चल अचल वेदना, प्यास की अधिकता, शुष्क वमन एवं सूखी खांसी, अरुचि, अपचन, जम्हाई, अतिसार, मूर्छा, पित्त का वमन, प्रलाप, चक्कर आना, भारीपन, मुख से कफ निकलना, मिचली, अतिनिद्रा, सर्दी का होना आदि लक्षण पाए जाते हैं और इन सबका मूल वायु, जल, देश और काल की विकृतियां या प्रदूषण हैं।
इसलिए औषधीय प्रयोग के साथ प्राणशक्ति को बल प्रदान करने के उपाय करने चाहिए। 

अक्सर गुनगुने जल पीने की सलाह दी जाती है क्योंकि यह वायु का अनुलोम कर पेट की अग्नि को तीव्र करता है, शीघ्र ही पच जाता है और कफ का शोषण करता है। इस समय व्यक्ति को अपनी दिनचर्या में उपवास या सुपाच्य अल्पाहार का सेवन करना, किसी भी तेल का नस्य करना, ऋतुचर्या का पालन करना ,गुनगुने  द्रव्यों या संस्कारित भोजन का सेवन करना भोजन के साथ गरम जल का सेवन करना चाहिए।

डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
महासचिव होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ

Tuesday, 21 April 2020

कोरोना से जंग में चिकित्सा पद्धितियों के समन्वितस्वरूप की आवश्यकता

सबके स्वास्थ्य के संकल्प की सिद्धि के लिए सबका साथ जरूरी
            

चीन के वुहान शहर से निकले कोरोना ने कराल रूप में विश्व के अधिकांश देशों अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, इटली, पाकिस्तान, इजरायल आदि की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और संस्थाओं को बौनी कर दिया है।
अब तक विश्व मे लगभग 23 लाख से अधिक संक्रमित और लगभग 1 लाख 50 हजार से अधिक मृत्यु दर्ज हो चुकी हैं।भारत मे भी यह आंकड़ा साढ़े 16 हजार से अधिक संक्रमित और 500 से अधिक मृत्यु को पार कर गया है।अन्य देशों की तुलना में भारत की स्थिति लगातार बेहतर बनी हुई है और अभी हम सामुदायिक संक्रमण का खतरे से बचे हुए हैं, इसका  सबसे प्रमुख कारण निश्चित रूप से भारत सरकार द्वारा लिए गए समयोचित निर्णय , कुशल प्रबंधन, और प्रशासन व नागरिकों के सहयोग व समन्वय ही है। 
तमाम विधाओं के शोधकर्ता व वैज्ञानिक सभी वायरस की पहचान व वैक्सीन बनाने में प्रयासरत हैं, किन्तु इसकी अनिश्चित प्रकृति एक जटिल समस्या है। कुछ मामलों में तो बिना किसी प्रत्यक्ष लक्षण के भी कोरोना के मरीजों की पुष्टि हो रही है यह संकेत है कि वायरस की संरचना अथवा स्वरूप में परिवर्तन भी संभव है।
इसकी संक्रामकता इतनी व्यापक है कि गरीब से लेकर विश्व के तमाम बड़े राष्ट्राध्यक्ष तक इसके असर से न बच सके, यद्यपि सन्तोष की बात यह है कि मृत्यु दर 2-4% ही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक महामारी घोषित कर बचाव व उपचार का प्रोटोकॉल घोषित कर दिया है जिसका सभी देश पालन करवा रहे हैं।  
अदृश्य शत्रु का सामना सभी संभव विकल्पों के साथ मिलकर ही किया जाना चाहिए ,इसी नीति के तहत ज्यादातर देश जनहानि को न्यूनतम करने के लिए हर संभव उपाय कर रहे है जिसके तहत पारंपरिक पद्धतियों का भी प्रयोग कर रहे हैं।
भारत ऐसा बहुसंख्य आबादी वाले देश है जहां आयुर्वेद व होम्योपैथी समुन्नत स्थिति में हैं, अतः जनपेक्षाओं के अनुरूप चिकित्सा सेवा उपलब्ध कराने हेतु भारत सरकार ने आयुष मंत्रालय गठित किया जिसके अंतर्गत मानव के समग्र स्वास्थ्य रक्षा हेतु आयुर्वेद, यूनानी,योग एवं  होम्योपैथी चिकित्सा पद्धतियों की व्यवस्था सुनिश्चित की जाती है।
प्रचलित पद्धतियों की औषधियों के हानिकारक दुष्प्रभाव से बचने के लिए आम जनता का विश्वास है कि होम्योपैथी व आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में किसी भी रोग को समूल नष्ट करने की क्षमता है। आयुष मंत्रालय ने शुरुआत में ही एक एडवायजरी जारी कर कुछ उपायों को अपनाने की सलाह दी थी, जिसमे होम्योपैथी की औषधि का भी उल्लेख था। अभी कुछ दिन पूर्व मध्य प्रदेश राज्य होम्योपैथी परिषद की रजिस्ट्रार डा आयशा अली ने होम्योपैथी की दवा का वितरण कराने की अपील की।फिर भी सरकार का होम्योपैथी में भरोसे को लेकर संशय प्रतीत होता है।
 होम्योपैथी के प्रयोग के सन्दर्भ में जब बात होती है तो तर्क दिया जाता है कि होम्योपैथी में कोरोना के उपचार के  प्रमाण उपलब्ध  नहीं है। यह रोग सभी के लिए नया है और किसी भी पद्धति में उपचार उपलब्ध होने के प्रमाण अब तक सामने नहीं आये हैं ,यद्यपि उपचार तो इसी आधार पर किया जा रहा है कि नुकसान कम से कम हो। इस दृष्टि से यह उपचार कम और आपदा काल मे कुशल प्रबंधन अधिक है। इसलिए अकेले होम्योपैथी के लिए प्रमाण न होने का तर्क तर्कसंगत नहीं।होम्योपैथी में रोग के नाम से चिकित्सा का विधान ही नहीं, इसलिए भी होम्योपैथी सैद्धांतिक रूप से कोरोना के इलाज का  दावा नहीं कर सकती। रोगी की अवस्था व लक्षणों के आधार पर चयनित औषधि की न्यूनतम मात्रा के प्रयोग से भी किसी भी तरह की हानि की संभावनाएं अन्य पद्धतियों की अपेक्षा नगण्य हैं। 
भारत मे अनादि काल से भगवान धन्वंतरि को औषधि का देव माना जाता है और आयुर्वेद पारम्परिक चिकित्सा पद्धति है जिसमे चिकित्सा के कई सिद्धांत बताये गए हैं उन्ही में से एक है समं समे शमयति अर्थात औषधि एवं रोग के लक्षणों की समानता के आधार पर चिकित्सा, इसे प्रकृति का चिकित्सा सिद्धांत भी माना गया है ।इसी सिद्धांत पर विकसित होम्योपैथी में औषधीय निर्माण में आयुर्वेद का सूत्र मर्दनम गुण वर्धनम के अनुरूप दवाईयों को शक्तिवर्धित किया जाता है।  
होम्योपैथी के जनक डा हैनिमैन के जीवनकाल में स्कारलेट फीवर की महामारी , 1831 में कॉलरा,
  1849 में  यूरोपीय  देशों में फैले एशियाटिक कॉलरा में डॉ वोनिंगहसन  द्वारा,जोहान्सबर्ग के डॉ टाइलर स्मिथ एवम शिकागों के डॉ ग्रिमर  द्वारा 1850 में पोलियो के लिए,होम्योपैथी दवाओं का होम्योपैथी सिद्धांतो के आधार पर सफलतापूर्वक प्रयोग का उल्लेख होम्योपैथी पुस्तकों में हैं । जे ई पर होम्योपैथी की औषधि बेलाडोना पर एक रिपोर्ट अमेरिकन जर्नल में भी प्रकाशित हुई थी। मे जे ई के लिए वर्ष 1999 में आंध्र प्रदेश सरकार ने भारतीय  चिकित्सा पद्धतियों एवं होमियोपैथी विभाग के सहयोग से वर्ष 2003 तक अभियान चलाकर सफलता दर्ज की थी। डेंगू ,चिकन पॉक्स, चिकनगुनिया आदि संक्रामक एवं अन्य वायरस जनित रोगों में भी होम्योपैथी औषधियों के प्रभाव से जनता लाभांवित हुई है।राष्ट्रीय आपदा के समय जब सबके स्वास्थ्य की चिंता करनी हो तो समग्रता का सिद्धांत लागू किया जाना राष्ट्रसेवा का अवसर प्रदान करने जैसा है।

सभी चिकित्सा पद्धतियों का उद्देश्य मानव के स्वास्थ्य को बिना नुकसान पहुचाएं सुरक्षित करना है । अतः सबके स्वास्थ्य की रक्षा के संकल्प की सिद्धि के लिए सभी चिकित्सा पद्दतियों को समन्वितस्वरूप में कुशल प्रबंधन के साथ अपनाने की आवश्यकता है।
उपचार के लिए यदि किसी के पास कोई दवा नही हो, नुकसान अवश्यम्भावी हो तो समग्रता के सिद्धांत का पालन करते हुए सबसे कम नुकसान वाले मार्ग पर चलना ज्यादा श्रेयस्कर है।

डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
महासचिव होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ

Monday, 13 April 2020

फिजिकल डिस्टेंसिंग,पर्सनल हाइजीन, सोसल बॉन्डिंग,इम्युनिटी बूस्टिंग और होलिस्टिक मेडिकल एप्रोच :कोरोना से बचाव का मंत्र

फिजिकल डिस्टेंसिंग, पर्सनल हाइजीन, सोसल बॉन्डिंग और होलिस्टिक मेडिकल एप्रोच कोरोना से बचाव का मंत्र
 
रामायण में अंगद का रावण की सभा मे जाने का द्रष्टान्त है जिसमें रावण के दरबार मे वाद प्रतिवाद के बाद प्राणदण्ड दिए जाने पर अंगद ने पैर जमाकर रावण के योद्धाओं को चुनौती दे दी। इस पूरे दृश्यांकन का वर्तमान वैश्विक संकट कोरोना की महामारी के सापेक्ष विश्लेषण करे तो पाएंगे अंगद की तरह प्रत्येक व्यक्ति सार्स कोरोना वायरस 2 (SARS COV 2) या नावेल कोरोना वायरस (Nov.CoV 2) ,जिससे कोविड19 (COVID 19) बीमारी के प्रभाव क्षेत्र में है।किंतु वहां रावण और उसके राक्षस गण दृश्य शत्रु थे जिनकी थाह हनुमान जी पहले ही ले गए थे, किन्तु यह अदृश्य वायरस है, इसलिए जीवन के संकट में विजय की संभावना के लिए हमारे पास अंगद की तरह दो ही तरीके है सजगता सतर्कता और बुद्धिकौशल से संक्रमण के प्रभाव से स्वयं को बचाकर रखें, और दूसरा अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता व आत्मबल को इतना मजबूत रखें कि किसी भी प्रकार का बल प्रयोग या प्रहार असर न कर सके और कोरोना रूपी दशानन चरणों मे तो झुके किन्तु आपको स्पर्श न कर पाए।
यहाँ शत्रु के बारे में यह जानकारी स्पष्ट होनी चाहिए कि विषाणु सजीव व निर्जीव के बीच की कड़ी है, अर्थात यह केवल किसी सजीव कोशिका में ही रहकर सजीव की तरह व्यवहार कर सकता है,इनकी बहुत सी प्रजातियां है, किन्तु सभी का मनुष्यों पर सीधा असर नहीं, ज्यादातर जानवरों से मनुष्यों में संचरित या प्रसारित होती हैं फिर अनुकूल ताप व वातावरण में वहां यह अपनी संख्या बढ़ाते हैं, इस काल मे व्यक्ति में कोई पहचान के लक्षण नही उत्पन्न होते, यह समय इंक्यूबेशन पीरियड कहलाता है, फिर जब इनकी पर्याप्त संख्या हो जाती है तब इनकी विषाक्तता के लक्षण दिखने लगते हैं। हमारे शरीर मे भी लोकल इंटेलिजेंस की तरह सूचना तंत्र होता है जो बाहरी प्रोटीन की पहचान कर तुरन्त सुरक्षा तंत्र  डब्ल्यू बी सी को चिन्हित जगह पर नियंत्रण के लिए भेजता है, इसी सुरक्षात्मक कार्यवाही का नमूना है सर्दी जुकाम या छींक से द्रव में संक्रमण को बाहर फेंकना, या ताप बढ़ाकर, वायरस की गतिविधि को नियंत्रित करना, क्योंकि ज्यादातर प्रकार के वायरस 99 डिग्री फारेनहाइट से अधिक ताप पर सक्रियता नही बढ़ा पाते, साथ ही विषाणु अपनी सुरक्षा में विषाक्तता प्रदर्शित करता है, इस द्वंद में व्यक्ति को बुखार व शरीर में दर्द का अनुभव होता है। व्यक्ति में इनके प्रवेश का सरलतम मार्ग श्वसन तंत्र का ऊपरी हिस्सा अर्थात नाक, या मुंह  सकता है, जहां यह स्थापित हो सकते है, क्योंकि इन अंगों में श्लेष्मिक स्राव की आर्द्रता के कारण तापमान शरीर व वातावरण से एक दो डिग्री कम होता है जो वायरस के रेप्लिकेशन के लिए मुफीद होता है। शरीर का सुरक्षा तंत्र प्रवेश मार्ग के जिस भाग में इनकी पहचान कर रोक पाता है ,इन्हें बाहर करने की प्रतिक्रिया लक्षणों के रूप में शरीर को सूचित करती है जैसे नाक में होने पर नाक से पानी, खुजली, और छींक, आंख से पानी, सिरदर्द,गले के अंदर पहुँचने पर गले मे दर्द, निगलने में तकलीफ, आवाज में भारीपन, सूखी खांसी, या बलगम, थोड़ा नीचे ब्रांकास में होने पर सूखी खांसी, या बहुत कम अथवा गाढ़ा बलगम, फेफड़ों तक पहुँचने पर न्यूमोनिया,  सांस लेने में तकलीफ, बुखार आदि,  व इसके बाद अन्य अंग तंत्रों को प्रभावित कर सकता है।अर्थात लक्षण वायरस की संक्रामकता व प्रभाव के स्तर को भी प्रदर्शित करते हैं। किन्तु वर्तमान में कोरोना की जिस प्रजाति का प्रसार है उसके बारे में  अथवा इसके कारगर उपचार के बारे में अधिक जानकारी वैज्ञानिकों को नहीं हो पाई है ऐसे में अंगद की तरह समय पर सचेत सतर्क रहते हुए स्वयं को वायरस के संक्रमण की संभावनाओं को कम करने लिए संक्रमित व्यक्ति या उस क्षेत्र से बचाये रखने के साथ अंगद की तरह ही मजबूत आत्मबल की तरह अपने शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने के उपाय करना ही श्रेयस्कर है।


संक्रमण से बचाव के क्या हैं उपाय -

कोविड 19 की कोई दवा अभी ज्ञात नही इसलिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बचाव पक्ष को सर्वाधिक महत्वपूर्ण मानते हुए कुछ निर्देश दिए हैं जिनका पालन प्रत्येक व्यक्ति से कराने के लिए कई देशों ने लॉक डाउन घोषित कर रखा है जिससे समाज मे व्यक्तियों का मिलना जुलना कम किया जा सके। इसका कारण है कि यदि कोई व्यक्ति जिसमे शुरुआती कोई लक्षण नही हैं ऐसे में यदि वह संक्रमित हुआ तो सम्पर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों जिनकी इम्युनिटी कम है , उन्हें संक्रमित करता जाएगा और इसप्रकार संक्रमण में गुणात्मक बृद्धि हो सकती है और यही मनुष्यता के लिए सबसे बड़ा संकट और चिंता का विषय है।

इसलिए पहला तरीका है सोशल /फिजिकल डिस्टेंसिंग :  जिससे भीड़-भाड़ वाले स्थानों में लोगों के बड़े समूहों के व्यक्तिगत संपर्क को कम किया जा सके। इसलिए अभिवादन के लिए भारतीय संस्क्रति के अनुरुप  हाथ जोड़कर नमस्ते करना चाहिए, हाथ मिलाने, गले लगने, चुंबन,या अन्य शारिरिक सम्पर्कों को त्यागना चाहिए,                       
फेस मास्क : मास्क विषाणु को रोक देगा ऐसा तो नही कहा जा सकता किन्तु बूदों द्वारा होने वाले संक्रमण को नियंत्रित अवश्य किया जा सकता है।

हाथ की स्वच्छता : बार-बार साबुन और पानी, या 70%एल्कोहल आधारित सेनेटाइजर ,खाँसी या छींकने के बाद, भोजन से पहले, सार्वजनिक जगहों पर दरवाज़े के हैंडल,  बटन, या अपने चेहरे को छूने से पहले हाथ अच्छी तरह धोना चाहिए

खांसी आने पर टिश्यू पेपर या हाथ की कोहनी का प्रयोग करें और टिश्यू पेपर को गड्ढे में ढक दें।
 चेहरे को छूने से बचना: चेहरे को छूने से बचना एक आत्म-सुरक्षा उपाय है, क्योंकि दूषित हाथ म्यूकोसल सतहों से संपर्क कर सकते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते हैं।  
आइसोलेशन या आत्म-अलगाव: आत्म-अलगाव सामाजिक में संक्रमण फैलने से रोकने में आपका स्वयं से किया जाने वाला श्रेष्ठ योगदान है ,यदि आपमे उपरोक्त कोई लक्षण दिखें तो स्वयं को सार्वजनिक मेल मिलाप से पृथक कर लेना चाहिए और आवश्यकतानुसार चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए।
 
इसके अतिरिक्त मांसाहार से 
बचना चाहिए, संक्रमित क्षेत्रों की यात्रा न करें, और यदि कोई ऐसे क्षेत्र से आया है तो उन्हें भी 14 दिनों तक जांच के डायरे में रखना चाहिए क्योंकि नावेल कोरोना वायरस का इंक्यूबेशन पीरियड 2- 14 दिन तक है।

 अफवाहें न फैलाएं - अप्रमाणिक सूचनाओं के प्रसार से अनावश्यक भय का वातावरण बनता है, साथ ही यह सामाजिक विद्वैष को भी बढ़ावा देता है इसलिए किसी भी समाचार या सूचना को अपने स्तर से रोकने का प्रयास करें, संवेदनशील होने पर इसकी जानकारी प्रशासन को दे सकते हैं।

 सार्वजनिक रूप से थूकने से बचें,  साथ ही अपने घर व आस पास साफ सफाई रखें, घर की दीवारों दरवाजे के हैंडल आदि को भी सैनेटइज करते रहना चाहिए।
  
अपनी इम्युनिटी को कैसे बढ़ाएं - शरीर मे विटामिन सी की उपयुक्त मात्रा आपकी इम्युनिटी के लिए आवश्यक है। प्राकृतिक तौर पर माता का दूध नवजात के लिए सर्वोत्तम आहार है। सूर्य का प्रकाश , स्वच्छ हवा, प्राकृतिक सब्जियां , ताजे फल, नींबू , संतरा, मुसम्मी, इस समय खीरा, टमाटर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन सी पाया जाता है। मिनरल साल्ट से भरपूर नारियल पानी भी शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए अच्छा है। 
 घर मे चाय की जगह गुड़, हल्दी, सोंठ या अदरक, काली मिर्च, तुलसी, पिपली, का काढ़ा गर्म पेय के रूप में लेने से भी संक्रमण से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। योग प्राणायाम से श्वसन तंत्र को बल मिलता है। प्राकृतिक चिकित्सा सिद्धांतों पर आधारित होम्योपैथी बिना किसी दुष्परिणाम के आपकी जीवनी शक्ति के स्तर पर इम्युनिटी को बढ़ाकर रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करती है। इसमे दवाओं का चयन रोग आधारित नही अपितु व्यक्ति आधारित किया जाता है अतः कोई भी दवा मात्र चिकित्सक के परामर्श के अनुरुप ही लेना उचित होगा। किसी भी पद्धति में स्वयं चिकित्सा से बचना चाहिए।


डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथी चिकित्सक
सहसचिव
आरोग्य भारती अवध प्रान्त

लॉक डाउन : समय का सदुपयोग स्वास्थ्य के चारो आयामों में संतुलन स्थापित करने में करें

लॉक डाउन सिंड्रोम व अन्य साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर को ऑर्डर में रखने के लिये स्वस्थ जीवनशैली, सकारात्मक चिंतन, सात्विक भोजन, संशयमुक्त शयन और सृजनात्मक विचार ,संयमित संवाद आवश्यक


अचानक 21 दिनों का लॉक डाउन, वैश्विक महामारी का भय, भिन्न मीडिया माध्यमों से प्राप्त होती तमाम विश्व मे मानवता पर संकट की सही- गलत सूचनाएं ,समय के साथ सुरसा के मुंह सी फैलती महामारी और काल के गाल में समाती जिंदगियां,व्यक्ति को व्यक्ति से अनजाना भय , जीवन के तमाम गतिविधियाँ,बाजार, विद्यालय, व्यवसाय, उत्पादन, सभी कुछ ऐसे ठप, मानो पृथ्वी की गति रुकती सी प्रतीत हो रही हो ,और इतनी द्रश्यमान विकट स्थितियों के निर्माण का कारण एक अदृश्य सूक्ष्म विषाणु , जिसे प्रयोगशाला का विज्ञान सजीव और निर्जीवों के बीच की कड़ी कहता है।जिसके आगे विज्ञान और तकनीकी तौर पर महायन्त्रों आयुधों से सम्पन्न राष्ट्रशक्तियां घुटने टेक चुकी हैं।ऐसे में विचार करना तर्कसंगत हो जाता है कि यह प्रकृति की व्यवस्था में मानव के अतिक्रमण के विरुद्ध प्रकृति का संकेत तो नहीं? क्योंकि मनुष्य इसी व्यवस्था का एक अंग है इसलिए इसके नियमों से बंधा हुआ है, किन्तु अपने मस्तिष्क का प्रयोग कर उसने प्रकृति की अन्य सभी व्यवस्थाओं को अपनी सुविधा के अनुकूल उपयोग उपभोग का माध्यम बना लिया।
पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश,और वायु इन पंच तत्वों का संतुलन ही प्रकृति में सर्वत्र व्याप्त है  जिसमें जड़ , जीव, पशु, पक्षी, कीट , विटप, पादप वनस्पतियां सभी को अपनी आवश्यकताएं पूरी करनी हैं, अतः सबकी अपनी सीमाएं हैं।किन्तु मनुष्य विकास के नाम परअपने निजी स्वार्थ के लिए अन्य सभी पर अपना अधिकार करता गया जिससे जल, पृथ्वी, आकाश, वायु, अग्नि सभी को प्रदूषित करता गया, सात्विक आहार की मर्यादा लांघ कर सर्वाहारी बन गया, तो इसे सीमाओं का अतिक्रमण न कहा जाए तो क्या कहा जाए।
 और प्रकृति का नियम है अतिक्रमण बिना संक्रमण नहीं हो सकता है। अतिक्रमण का विस्तार ही संक्रमण की रक्षात्मक या आक्रामक भूमिका को तय करता है। 
प्रकृति पक्षपात नहीं करती इसलिए सूक्ष्मतम परमाणु से लेकर बृहत्तर सौरमण्डल तक की मूल रचना एक जैसी है,और इसलिए उसकी तमाम क्रियाविधियों के सकारात्मक या नकारात्मक परिणाम वितरण में समानता के सिद्धांत का पालन करते हैं यद्यपि रचनात्मक एवं कार्य व्यवहार में प्रकृति असमानता के सिद्धांत पर कार्य करती है, अर्थात प्रकृति में अस्तित्व प्राप्त किसी भी रचना या पदार्थ में उसका विशेष गुण उसे अन्य से पृथक बनाता है यद्यपि प्रकृति का उनपर समान नियंत्रण किन्तु प्रभाव अलग अवश्य हो सकते हैं।
प्रकृति में सबसे विकसित रचना मनुष्य ही है जो अपने मस्तिष्क के प्रयोग से प्राकृतिक संसाधनों का जैसे चाहे उपयोग या उपभोग कर सकता है किन्तु प्रकृति के नियमो से बंधे होने के कारण उलंघन की छूट उसे भी नहीं, इसलिए जब कभी उसके द्वारा उलंघन एक लक्ष्मण रेखा से अधिक होने लगता है तो प्रकृति उसे सुधरने के संकेत करती है, जिन्हें अनसुना करना मनुष्य के लिए पीड़ा कारक है।

हमारे मनीषियों ने प्रकृति जीवन और जीव के परस्पर सम्बन्धों में सूक्ष्मतम स्तर पर अध्ययन कर अनेक ग्रंथों में उसे विश्व कल्याण की भावना से स्थापित किया किन्तु समय के साथ हम विकास के नाम पर उन अनुसंधानों के परिचय से दूर होते गए और हमारे विकास की दिशा तकनीकी व आर्थिक महत्व तक सीमित होती गयी। मनुष्य के लिए जीवन, शरीर और स्वास्थ्य सबसे आवश्यक हैं, और इनकी आवश्यकताओं की पूर्ति उसका कर्तव्य, किन्तु समयांतर में प्रकृति से संवाद कर पाने की दिशा का त्याग कर उसने अपने रास्ते बना लिए।
शक्ति संप्रभुता और स्वार्थ की लालसा ने उसे प्रकृति के विपरीत जाने विवश कर दिया और उसने प्राकृतिक संसाधनों का ऐसा दोहन किया कि सभी तत्व प्रदुषित कर डाले, जिससे उसका प्रतिरक्षा जब तक लड़ सकता है लड़ता है जब उसमे न्यूनता आती है तो उस न्यूनता का समान प्रभाब उसके अवयव होने के नाते मनुष्य पर भी पड़ता है, उसकी भी प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) कमजोर होती है  तब प्रकृति की कोई भी शक्ति उसके समन्वय को तोड़ वहां तमाम विकार पैदा कर देती है। प्रकृति में सकारात्मक व नकारात्मक सभी तरह के गुण विद्यमान है  जिनका प्रवाह अधिकता से न्यूनता की तरफ ही होता है। प्रकृति के अवयवों में संतुलन आवश्यक है अन्यथा तमाम क्रियात्मक व संरचनात्मक विकार या उपद्रव उतपन्न होते है। मनुष्य में यह संतुलन ही उसका स्वास्थ्य है जो उसके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, व आध्यात्मिक समन्वय से स्थापित होता है, इनमें कहीं भी असंतुलन व्यक्ति में अन्यान्य क्रियात्मक, व्यवहारिक,  संरचनात्मक विकार उतपन्न करते हैं जिन्हें रोग कहा जाता है।
प्रयोगशाला का जो विज्ञान किसी रोग का कारण किन्ही जीवाणु विषाणु या अन्य कारकों को मानता रहा वह 90% से अधिक रोगों के कारण या कारक ही नही जान पाया इसलिए उसने भी अब स्वास्थ्य के स्पिरिचुअल या अदृश्य आयाम को स्वीकारना शुरू कर दिया है। अन्यान्य मानसिक रोग, अवसाद , आघात आदि इसके उदाहरण हैं।
प्रयोग और गलतियां मनुष्यता का गुण है किंतु गलतियों को स्वीकारना और उनमें सुधार करना उसका कर्तव्य भी किन्तु जो ऐसा नहीं करते वे प्रकृति के दण्ड से बच भी नहीं सकते। इसका सबसे प्रत्यक्ष उदाहरण एक अदृश्य विषाणु द्वारा उत्पन्न 
वर्तमान वैश्विक आपदा भी है जो किसी एक क्षेत्र से धीरे धीरे पूरे विश्व की मानवता के लिए संकट बन गयी, जहां मनुष्य की बनाई सारी भौतिक तकनीकें अक्षम साबित हो रही हैं। विश्व ने इसे कोरोना नाम दिया है जिसने विश्व की सांस अटका रखी है, संक्रामकता इतनी भयावह कि  बचाव का एकमात्र उपाय व्यक्तिगत स्वच्छता, और सामाजिक दूरी बनाकर रखना है। वास्तव में यह विषय गहन चिंतन और शोध का है ।
अभी मनुष्य के स्वास्थ्य व जीवन के लिए जो संकट की परिस्थितियां निर्मित हुई हैं इनके लिए कोई भी देश पहले से तैयार नहीं था। एक अदृश्य शत्रु से बिना किसी हथियार सभी को लड़ना है इसलिए बचाव ही एकमात्र उपाय है । अतः भारत सरकार ने समयानुकूल तत्वदर्शी निर्णय लेते हुए पहले एक दिन जनता कर्फ्यू और फिर 21 दिन का लॉक डाउन घोषित कर दिया। यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि इतनी बड़ी आबादी को अपने निर्णय में सम्मत सहयोगी बनाने के लिए जिस कुटुम्बबोध की आवश्यकता थी जनता कर्फ्यू में इसका समर्थन ताली, थाली, घण्टा, घड़ियाल, बजाकर दी। कुछ आलोचनाएं कटाक्ष आये होंगे कि क्या इससे विषाणु नष्ट हो जाएगा ? इसकी संभावना पर अध्ययन करना  भौतिक विज्ञान के ध्वनि तरंगों के अनुनाद आदि विषय वैज्ञानिकों का क्षेत्र हो सकता है, किन्तु देशवासी संकट से संघर्ष के समय अपने कुटुंब के मुखिया में विश्वास करते है और उसके साथ सहयोगी भाव से खड़े है यह विश्वास द्विपक्षीय आत्मबल को बढ़ाने वाला था तभी जो मनःस्थिति तैयार हुई उसके आकलन के बाद ही राष्ट्रपरिवार के मुखिया आग्रह पर पूरा परिवार 21 दिनों के लिए अपने घरों में रहने को तैयार हो सके। 

देश के जिन नागरिकों को अपने नैतिक कर्तव्य का बोध है वे इसे इन घर मे बंद रहने को सजा के तौर पर नही लेंगे क्योंकि यह देश को संकट से उबरने के लिए उनका योगदान  है। 

यदि हम निरन्तर नुकसान की चिंता करेंगे तो नकारात्मक चिंतन की प्रवृत्ति बढ़ेगी, जिससे अकारण क्रोध, तनाव, विवाद, कलह, घरेलू झगड़े, बीमारी या महामारी का भय, जीवन के संकट का भय, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, आदि मानसिक दिक्कते हो सकती है , होम्योपैथी के अनुसार यह सायकोटिक लक्षण है, जिन्हें काल्पनिक भय या नोसोफोबिया कहते है, इसकी वजह से अन्य  शारीरिक स्वास्थ्य की समस्याएं जोड़ों के दर्द, सुगर, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग ,किडनीरोग आदि की समस्याओं में बृद्धि आदि हो सकते है , जिसे सायकोसोमैटिक डिसऑर्डर कहते हैं,। लक्षणों की तीव्रता व संक्रामकता सोरिक लक्षण है, अनावश्यक सन्देह, मिथ्या भ्रम आदि सयकोटिक व तेजी से कोशिका क्षय एवं मृत्यु सिफिलिटक इस प्रकार यह महामारी होम्योपैथी के अनुसार त्रिदोषों का चरण पूर्ण करती है ।सम्मिलित रूप से इन्हें लॉक डाउन सिंड्रोम का नाम दे सकते हैं

लॉक डाउन सिंड्रोम से बचने के लिए क्या करें


शारीरिक मानसिक सामाजिक एवं आध्यात्मिक संतुलन ही स्वास्थ्य है।
जनस्वास्थ्य के लिए चुनौती का सामना करने के लिए सभी आयामों में सभी संभव तरीकों से समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए। अतः अपने 
शारीरिक स्वास्थ्य --
के लिए विटामिन सी से भरपूर फल जैसे आंवला, संतरा, मुसम्मी,नींबू रस, नारियल पानी, लेना चाहिए। साथ ही पौष्टिक सुपाच्य हल्का आहार, सोंठ या अदरक, तुलसी, पिपली, दालचीनी, हल्दी गुड़ का काढ़ा तरल पेय के रूप में ले सकते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य-- सकारात्मक विचार, प्रसन्नता, परस्पर संवाद, पर्याप्त नींद ,स्वस्थ चिंतन।
सामाजिक स्वास्थ्य-- समाज मे आस पास जरूरतमंद का सहयोग, संवाद, व्यक्तिगत जिम्मेदारी के साथ सभी का उत्साहवर्धन करें।
आध्यात्मिक स्वास्थ्य-- आस्तिक व्यक्ति अपनी धार्मिक आस्था के अनुरूप अपने ईष्ट का ध्यान, प्रार्थना कर सकते हैं व नास्तिक भी योग प्राणायाम, सूर्यनमस्कार मेडिटेशन कर सकते हैं।

मानसिकता के इस द्वंद पर सक्षम विजय प्राप्त करने का सरलतम उपाय है  सकारात्मक चिंतन, संयमित स्वस्थ जीवनशैली, सन्तुलित भोजन, संशयमुक्त शयन,सृजनात्मक विचार, स्वस्थ संवाद जिससे आप अनावश्यक चिंता से भयजनित अवसाद से बच सकते हैं।

अपने समय का सदुपयोग घर परिवार रिश्तेदारों से वार्तालाप कर सम्बन्धों को मजबूती देने में करें, अच्छे साहित्य, धार्मिक ग्रन्थ, का अध्ययन कर बच्चों के साथ समय व्यतीत करें उन्हें परिवार समाज देश की संस्कृति परम्पराओं और सामाजिक व्यवहार सिखाएं, सृजनात्मक खेल, गीत, संगीत , मानसिक शक्तियों के उपयोग के लिए पहेली वाले खेल,परिवार एक साथ बैठे, भोजन करे, वार्ता करे, कुछ खेले आदि सभी  अभ्यास आपको ऊर्जावान ,तनावमुक्त , प्रसन्नचित, व जीवन केप्रति सकारात्मक दृष्टिकोण देने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने वाले प्रयोग हैं, जिनसे परिवार में सहयोग, समर्पण, संयम, स्नेह, विश्वास, संगठन, बढ़ता है।
कहते हैं 21 दिन में आदत पड़ जाती है, तो एक बेहतर प्रयोग हो सकता है कि आप भी तय करे क्या छोड़ना है, क्या जोड़ना है और क्या निरन्तर रखना है। एक परहेज कर सकते हैं
सोसल मीडिया या तकनीकी संसाधनों के उपयोग में प्रमाणिकता की आदत डालें।
व्यक्तिगत दूरी के नियम का पालन करते हुए पूरे देश द्वारा एक साथ किये जाने वाले कार्यों का सबसे सकारात्मक पक्ष यह है कि कुछ दिन घर बैठे उस विषय पर चिंतन ,विश्लेषण, तर्क, विज्ञान, अध्यात्म, उचित अनुचित आदि कारण हानि, लाभ खोजने का एक अवसर मिल जाता है, जिसे रियलिटी शो के दिये गए टास्क जैसा है, जिसकी तैयारी में कुछ समय व्यतीत होगा, फिर उसमें श्रेष्ठतम प्रदर्शन सहभागिता में और उसके बाद उसके आकलन में अर्थात मनोवैज्ञानिक रूप से सकारात्मक  चिंतन, सहयोगी , सांगठनिक, कार्यपद्धति में साथ आने के प्रयोग व उससे प्राप्त होने वाले आनंद व शांति का प्रयोग सिद्ध होता है।
पांच बातें सदैव याद रखने योग्य हैं अपने हाथों को साबुन या 70%एल्कोहल वाले सेनेटाइजर से साफ करें, नाक मुंह, को मास्क से ढककर रखें, किसी भी व्यक्ति से व्यक्तिगतरूप से एक मीटर की दूरी बनाए रखें, बिना धुले हाथों से नाक मुह आंख न छुएं, पुष्टिक्रत सूचनाओं पर ही भरोसा करें,परस्पर सहयोग करें, और अपने आस पास विगत 14 दिनों में किसी बाहर से आये व्यक्ति की सूचना प्रशासन को अवश्य दें ।बुखार, सूखी खांसी, व सांस लेने में तकलीफ हो तो चिकित्सक से तुरन्त जांच करवाएं।

डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी

Tuesday, 7 April 2020

Physical observation with rubrical eyes

Physical examination should be made thoroughly and systematically findings should be recorded. All these points are covered by rubrics in any good repertory and they must be covered by remedy selected.

EXAMPLES FROM KENT’S REPERTORY

HEAD CHAPTER:

  • HEAD – HAIR – gray; becoming
  • HEAD – LICE
  • HEAD – DANDRUFF – white
  • HEAD – DANDRUFF – yellow
  • HEAD – HAIR – baldness
  • HEAD – HAIR – falling – handfuls, in
  • HEAD – HAIR – falling – parturition; after
  • HEAD – HAIR – falling – pregnancy, during LACH.
  • HEAD – HAIR – falling – spots, in
  • HEAD – HAIR – falling – Ears; behind Phos.
  • HEAD – HAIR – gray; becoming
  • HEAD – HAIR – greasy
  • HEAD – HAIR – lusterless
  • HEAD – HAIR – plica polonica
  • HEAD – HAIR – sticks together
  • HEAD – HAIR – tangles easily 

MOUTH CHAPTER: 

  • MOUTH – APHTHAE – Tongue
  • MOUTH – BLEEDING – Tongue
  • MOUTH – CORRUGATED Tongue nat-ar.
  • MOUTH – CRACKED – Tongue fissured
  • MOUTH – DISCOLORATION – Tongue – black
  • MOUTH – DISCOLORATION – Tongue – gray
  • MOUTH – DISCOLORATION – Tongue – white
  • MOUTH – FLABBY tongue
  • MOUTH – INDENTED – Tongue
  • MOUTH – LACERATED Tongue
  • MOUTH – MAPPED tongue
  • MOUTH – PROTRUDING – Tongue
  • MOUTH – RINGWORM – Tongue sanic.
  • MOUTH – SPEECH – difficult
  • MOUTH – VARNISHED; tongue looks as if
  • MOUTH – WARTS – Tongue 

TEETH

  • TEETH – BREAKING off
  • TEETH – CARIES, decayed, hollow
  • TEETH – CUPPED – children; in syph.
  • TEETH – DIRTY looking
  • TEETH – DISCOLORATION – black
  • TEETH – DISCOLORATION – yellow
  • TEETH – DISCOLORATION – brown
  • TEETH – ENAMEL deficient
  • TEETH – CRUMBLING
  • TEETH – SERRATED 

NAILS:

  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – hangnails
  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – ingrowing toenails
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – black
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – blood settles under nails apis
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – blueness
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – dark
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – gray
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – livid
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – purple
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – red
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – white – spots
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers – Nails – yellow
  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – thick nails
  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – thin nails
  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – crippled nails
  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – curved fingernails Nit-ac.
  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – corrugated nails
  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – corrugated nails – transversely
  • EXTREMITIES – NAILS; complaints of – distorted nails
  • EXTREMITIES – KNOBBY – Fingertips Laur. 

FINGERS:

  • MOUTH – FINGERS in the mouth, children put
  • EXTREMITIES – FELON – panaritium
  • EXTREMITIES – EXOSTOSIS – Fingers
  • EXTREMITIES – DISCOLORATION – Fingers 

ABDOMEN:

  • ABDOMEN – ENLARGED – children
  • ABDOMEN – ENLARGED – mothers
  • ABDOMEN – HERNIA; ABDOMINAL – Inguinal
  • ABDOMEN – HERNIA; ABDOMINAL – Umbilical
  • ABDOMEN – HERNIA; ABDOMINAL – Umbilical – children; in – newborns nux-m.
  • ABDOMEN – DROPSY – ascites
  • ABDOMEN – DISTENSION
  • ABDOMEN – BUBO
  • ABDOMEN – PENDULOUS abdomen
  • ABDOMEN – RETRACTION – Umbilicus

SKIN:

  • SKIN – WARTS
  • SKIN – DRY
  • SKIN – WRINKLED
  • SKIN – ULCERS
  • SKIN – SORE – becomes sore
  • SKIN – MOLES
  • SKIN – NEVI
  • SKIN – INTERTRIGO
  • SKIN – FRECKLES
  • SKIN – EXCRESCENCES
  • SKIN – ERUPTIONS – chickenpox
  • SKIN – ERUPTIONS – herpetic
  • SKIN – ERUPTIONS – urticaria
  • SKIN – ERUPTIONS – scabies
  • SKIN – ERUPTIONS – measles
  • SKIN – CICATRICES
  • SKIN – CRACKS
  • HYPERKERATOSIS – SKIN – THICK – scratching; skin becomes thick after
  • TAENIA VERSICOLOR – SKIN – DISCOLORATION – white – spots
  • SKIN – DISCOLORATION – yellow
  • SKIN – DISCOLORATION – bluish
  • SKIN – DISCOLORATION – brown – liver spots
  • SKIN – DISCOLORATION – chloasma 

PERSPIRATION:

  • HEAD – PERSPIRATION of scalp
  • EXTREMITIES – PERSPIRATION – Hand – Palm
  • EXTREMITIES – PERSPIRATION – Foot – offensive 

OBESITY:

  • GENERALS – OBESITY
  • GENERALS – OBESITY – children, in 

EMACIATION:

  • GENERALS – EMACIATION – children; in
  • GENERALS – EMACIATION – children; in – infants; in
  • GENERALS – EMACIATION – Affected parts; of 

EXAMPLES FROM MURPHY’S HOMOEOPATHIC MEDICAL REPERTORY

  • Eyes – CATARACT
  • Hands – FELON, general
  • Perspiration – ODOR, general – aromatic
  • Perspiration – ODOR, general – cadaverous
  • Perspiration – ODOR, general – fetid
  • Perspiration – ODOR, general – honey, like thuj.
  • Perspiration – ODOR, general – garlic, like
  • Perspiration – ODOR, general – onions, like
  • Perspiration – ODOR, general – sour
  • Skin – WARTS, general – bleeding
  • Skin – WARTS, general – brown Sep. Thuj.
  • Skin – WARTS, general – flat
  • Skin – WARTS, general – horny
  • Skin – WARTS, general – large
  • Tongue – BLACK
  • Tongue – BLEEDING
  • Tongue – BLUE
  • Tongue – BROWN
  • Tongue – INDENTED
  • Teeth – DECAYED, teeth, rotten, hollowed
  • Hands – NAILS, fingers, general – brittle, nails
  • Hands – NAILS, fingers, general – cracked, nails
  • Hands – NAILS, fingers, general – chapped, skin, about the nails NAT-M.
  • Hands – NAILS, fingers, general – panaritium, nails
(Guided by masters of homeopathy)

महामारी के भयजनित मानसिक दुष्परिणाम

अपरिचित शब्द काल्पनिक भय और अप्रमाणिक सूचनाएं भ्रांतियों की जनक है ,

 विश्व के अधिकांश देश इनदिनों नए विषाणुजनित बीमारी /महामारी की चपेट में हैं तो ऐसे में लगभग सभी मीडिया माध्यमों में इसी से सम्बंधित खबरें चलती रहती है। महामारी भी ऐसी जिसके कारण, निवारण के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं  ऐसे अज्ञात अदृश्य शत्रु पर विजय पाने रणनीति में सीधी लड़ाई न होकर सिर्फ स्वयं का बचाव ही एकमात्र सर्वश्रेष्ठ तरीका है। और उस बचाव की प्रक्रिया में  लॉक डाउन, आइसोलेशन, कोरण्टाइन, आदि शब्द हैं सुनने को मिलते हैं,जिनकी भी ज्यादा जानकारी जनसामान्य को न होने से उनके बारे में जानने की जिज्ञासा में सूचना तकनीक के अन्यान्य माध्यमो से जो जानकारियां मिलती है यदि वे प्रमाणिक न हो तो भ्रांतियों और भ्रम ही पैदा करती है। इन्ही अफवाहों से गलत जानकारियों और सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिए शासन की तरफ से भी दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। 

कैसे पनपता है भय

 किसी बीमारी या महामारी की सूचना जानने की जिज्ञासा के बीच व्यक्ति की मनःस्थिति का जुड़ाव उससे होने लगता है ,उसकी आक्रामकता के अंदाजे से व्यक्ति के मन मे स्वयं ग्रसित हो जाने या उसके कारण जीवन का संकट उपस्थित होने का डर पनपने लगता है। साथ ही लगातार आंकड़े व अपरिचित सी तकनीकी या मेडिकल भाषा के शब्द उसपर बड़ा बोझ बन सकते हैं, वह उनसे डरता है,  उसके मन की खिन्नता, चिंता और भ्रम उसके व्यवहार में भी परिवर्तन ला सकता है। किसी सामान्य कारण से भी खांसी, या छींक आ जाये तो उसे बीमारी के लक्षणों से जोड़कर देखना, फिर स्वयं उसका आकलन करना, और इसके बाद खबरों से व्युत्पन्न स्थिति की कल्पना से पनपा भय उसे अपने लक्षणों पर चिकित्सक से भी बचने की वृत्ति पैदा होना, क्योंकि उसे लगता है लोग क्या कहेंगे,  उसे कहीं  परिवार से अलग अस्पताल के किसी कमरे में या घर मे कैद कर दिया जायेगा, अथवा वह और उसका परिवार पहरे में आ जायेगा, सामाजिक बहिष्कार हो जाएगा, यहाँ तक कि उसके परिवारीजन भी जिन्हें वह सबसे अधिक प्यार करता है वही उससे दूरी बना लेंगे,  वह अपने परिवार की जिम्मेदारियां नही निभा पायेगा, उसका सम्मान गिर जाएगा, लोग हेय दृष्टि से देखेंगे, उसका अधिकार छीन लिया जाएगा, व्यवसायी है तो सोंचता है व्यवसाय चौपट हो जाएगा, कर्मचारी को लगता है नौकरी से निकाल दिया जाएगा, इसप्रकार की लगातार सोंच उसकी नकारात्मकता को बढ़ाती रहती है और यह मानसिक दबाव धीरे धीरे उसमे बीमारी फैलाने वाले व्यक्ति के कारक होने से अस्पृश्य की कल्पना के अपराधबोध से ग्रसित कर अवसाद की स्थिति की तरफ ले जा सकता है। इस तरह की मनःस्थिति के निर्मित होने का कारण है किसी बीमारी जिसके होने का भय है उसके बारे में जानकारी न होना, इसीलिए खतरे से भय पैदा होता है,  और अप्रमाणिक सूचनाएं व खतरे के नकारात्मक समाचार इस भय को बढ़ाते हैं। इस नकारात्मकता से  एक व्यवहारिक परिवर्तन यह भी आता है कि व्यक्ति अपनी सामान्य समस्या को भी छिपाने का प्रयास करता है, और स्वयं को स्वस्थ दिखाने के चक्कर मे वह आवश्यक स्वास्थ्य सहायता भी नही लेना चाहता न सामान्य परहेज ही करता है, यह उसी तनाव के कारण होता है।

क्या करना चाहिए

सामान्य व्यवहार है कि प्रत्येक योजना के लिए हम सम्बंधित विषय के विशेषज्ञ की राय को प्राथमिकता देते हैं तो स्वास्थ्य के विषय मे भी यही नीति अपनानी चाहिए, बेहतर है अपने किसी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी संशय या जिज्ञासा के लिए चिकित्सक से ही परामर्श लें और उन्ही की बात को सत्य माने, समाचार के प्रकार और चिकित्सक के आपके बारे में ऑब्जर्वेशन में अंतर है इसे समझें।घर मे तनावमुक्त रहने के लिए, बागवानी करें, घर की सज्जा, सफाई, योग, प्राणायाम, ईश वंदना, प्रार्थना, ध्यान, अध्ययन, इनडोर गेम, गीत, संगीत,लेखन, रचना, चित्रकारी, सन्तुलित आहार, नियमित दिनचर्या, स्वस्थजीवनशैली, सकारात्मक चिंतन, जानकर लोगों से वार्ता आदि अनेक तरीके अपनाए जा सकते हैं ।समाचारों का सकारात्मक विश्लेषण करें, यह न देखे सुने कि कितने प्रभावित हुए, या कितनी मृत्यु हुई यह गणना कीजिये कि कितने ठीक हो रहे हैं। स्वयं नित्य चिंतन करें आप और आपका परिवार स्वस्थ है, समाज स्वस्थ है राष्ट्र स्वस्थ है और लोगों से चर्चा भी करें तो निश्चित ही यह आत्मबल आपकी प्रतिरोधक क्षमता में सकारात्मक परिवर्तन लाएगा।

डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ
अयोध्या

Sunday, 5 April 2020

महामारी के भयजनित मानसिक दुष्परिणाम

अपरिचित शब्द काल्पनिक भय और अप्रमाणिक सूचनाएं भ्रांतियों की जनक है ,


 विश्व के अधिकांश देश इनदिनों नए विषाणुजनित बीमारी /महामारी की चपेट में हैं तो ऐसे में लगभग सभी मीडिया माध्यमों में इसी से सम्बंधित खबरें चलती रहती है। महामारी भी ऐसी जिसके कारण, निवारण के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं  ऐसे अज्ञात अदृश्य शत्रु पर विजय पाने रणनीति में सीधी लड़ाई न होकर सिर्फ स्वयं का बचाव ही एकमात्र सर्वश्रेष्ठ तरीका है। और उस बचाव की प्रक्रिया में  लॉक डाउन, आइसोलेशन, कोरण्टाइन, आदि शब्द हैं सुनने को मिलते हैं,जिनकी भी ज्यादा जानकारी जनसामान्य को न होने से उनके बारे में जानने की जिज्ञासा में सूचना तकनीक के अन्यान्य माध्यमो से जो जानकारियां मिलती है यदि वे प्रमाणिक न हो तो भ्रांतियों और भ्रम ही पैदा करती है। इन्ही अफवाहों से गलत जानकारियों और सूचनाओं के प्रसार को रोकने के लिए शासन की तरफ से भी दिशानिर्देश जारी किए गए हैं। 

कैसे पनपता है भय

 किसी बीमारी या महामारी की सूचना जानने की जिज्ञासा के बीच व्यक्ति की मनःस्थिति का जुड़ाव उससे होने लगता है ,उसकी आक्रामकता के अंदाजे से व्यक्ति के मन मे स्वयं ग्रसित हो जाने या उसके कारण जीवन का संकट उपस्थित होने का डर पनपने लगता है। साथ ही लगातार आंकड़े व अपरिचित सी तकनीकी या मेडिकल भाषा के शब्द उसपर बड़ा बोझ बन सकते हैं, वह उनसे डरता है,  उसके मन की खिन्नता, चिंता और भ्रम उसके व्यवहार में भी परिवर्तन ला सकता है। किसी सामान्य कारण से भी खांसी, या छींक आ जाये तो उसे बीमारी के लक्षणों से जोड़कर देखना, फिर स्वयं उसका आकलन करना, और इसके बाद खबरों से व्युत्पन्न स्थिति की कल्पना से पनपा भय उसे अपने लक्षणों पर चिकित्सक से भी बचने की वृत्ति पैदा होना, क्योंकि उसे लगता है लोग क्या कहेंगे,  उसे कहीं  परिवार से अलग अस्पताल के किसी कमरे में या घर मे कैद कर दिया जायेगा, अथवा वह और उसका परिवार पहरे में आ जायेगा, सामाजिक बहिष्कार हो जाएगा, यहाँ तक कि उसके परिवारीजन भी जिन्हें वह सबसे अधिक प्यार करता है वही उससे दूरी बना लेंगे,  वह अपने परिवार की जिम्मेदारियां नही निभा पायेगा, उसका सम्मान गिर जाएगा, लोग हेय दृष्टि से देखेंगे, उसका अधिकार छीन लिया जाएगा, व्यवसायी है तो सोंचता है व्यवसाय चौपट हो जाएगा, कर्मचारी को लगता है नौकरी से निकाल दिया जाएगा, इसप्रकार की लगातार सोंच उसकी नकारात्मकता को बढ़ाती रहती है और यह मानसिक दबाव धीरे धीरे उसमे बीमारी फैलाने वाले व्यक्ति के कारक होने से अस्पृश्य की कल्पना के अपराधबोध से ग्रसित कर अवसाद की स्थिति की तरफ ले जा सकता है। इस तरह की मनःस्थिति के निर्मित होने का कारण है किसी बीमारी जिसके होने का भय है उसके बारे में जानकारी न होना, इसीलिए खतरे से भय पैदा होता है,  और अप्रमाणिक सूचनाएं व खतरे के नकारात्मक समाचार इस भय को बढ़ाते हैं। इस नकारात्मकता से  एक व्यवहारिक परिवर्तन यह भी आता है कि व्यक्ति अपनी सामान्य समस्या को भी छिपाने का प्रयास करता है, और स्वयं को स्वस्थ दिखाने के चक्कर मे वह आवश्यक स्वास्थ्य सहायता भी नही लेना चाहता न सामान्य परहेज ही करता है, यह उसी तनाव के कारण होता है।

क्या करना चाहिए

सामान्य व्यवहार है कि प्रत्येक योजना के लिए हम सम्बंधित विषय के विशेषज्ञ की राय को प्राथमिकता देते हैं तो स्वास्थ्य के विषय मे भी यही नीति अपनानी चाहिए, बेहतर है अपने किसी भी स्वास्थ्य सम्बन्धी संशय या जिज्ञासा के लिए चिकित्सक से ही परामर्श लें और उन्ही की बात को सत्य माने, समाचार के प्रकार और चिकित्सक के आपके बारे में ऑब्जर्वेशन में अंतर है इसे समझें।घर मे तनावमुक्त रहने के लिए, बागवानी करें, घर की सज्जा, सफाई, योग, प्राणायाम, ईश वंदना, प्रार्थना, ध्यान, अध्ययन, इनडोर गेम, गीत, संगीत,लेखन, रचना, चित्रकारी, सन्तुलित आहार, नियमित दिनचर्या, स्वस्थजीवनशैली, सकारात्मक चिंतन, जानकर लोगों से वार्ता आदि अनेक तरीके अपनाए जा सकते हैं ।समाचारों का सकारात्मक विश्लेषण करें, यह न देखे सुने कि कितने प्रभावित हुए, या कितनी मृत्यु हुई यह गणना कीजिये कि कितने ठीक हो रहे हैं। स्वयं नित्य चिंतन करें आप और आपका परिवार स्वस्थ है, समाज स्वस्थ है राष्ट्र स्वस्थ है और लोगों से चर्चा भी करें तो निश्चित ही यह आत्मबल आपकी प्रतिरोधक क्षमता में सकारात्मक परिवर्तन लाएगा।

डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ
अयोध्या

Saturday, 4 April 2020

लॉक डाउन : सोसल डिस्टेंस के अंधेरे से इमोशनल बैलेंस के प्रकाश की यात्रा

फोबिया, स्ट्रेस, डिप्रेशन, इनसोम्निया, आदि साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर से बचाव भी जरूरी

स्वस्थ जीवनशैली, संयमित चिंतन, सन्तुलित भोजन, संशयमुक्त शयन और सृजनात्मक विचार ,स्वस्थ संवाद दूर करेंगे सब अवसाद

अचानक 21 दिनों का लॉक डाउन, वैश्विक महामारी का भय, भिन्न मीडिया माध्यमों से प्राप्त होती तमाम विश्व मे मानवता पर संकट की सही गलत सूचनाएं , जीवन की गति स्थिर होकर जैसे घर की चार दीवारों में कैद सी हो गयी है। जीवन के तमाम गतिविधियों पर ब्रेक सा लग गया है, बाजार, विद्यालय, व्यवसाय, उत्पादन, सभी कुछ ठप, ऐसा लगता मानो पृथ्वी की गति रुकती सी प्रतीत हो रही हो ,इन सब दिखने वाली समस्याओं का एक मात्र कारण है एक अदृश्य सूक्ष्म विषाणु , विज्ञान जिसे सजीव और निर्जीवों के बीच की कड़ी कहता है। मनुष्य प्रकृति की व्यवस्था का एक अंग है इसलिए वह भी इसके नियमों से बंधा हुआ है, किन्तु अपने मस्तिष्क का प्रयोग कर उसने प्रकृति की अन्य सभी व्यवस्थाओं को अपनी सुविधा के अनुकूल उपयोग उपभोग का माध्यम बना लिया, संभवतः इसीलिए जब भी प्रकृति का इतना दोहन हुआ कि उसकी गतिशीलता असन्तुलित होने पर आई तो उसके नकारात्मक परिणाम मानवता को प्राकृतिक आपदाओं के रूप में झेलने पड़े।
पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश,और वायु इन्ही पंच तत्वों का संतुलन ही प्रकृति सर्वत्र व्याप्त है  जिसमें जड़ , जीव, पशु, पक्षी, कीट , विटप, पादप वनस्पतियां सभी को अपनी आवश्यकताएं पूरी करनी हैं, अतः सबकी अपनी सीमाएं हैं जब कहीं भी सीमाओं का अतिक्रमण होता है तब वहां संक्रमण होता है। अतिक्रमण का विस्तार ही संक्रमण की रक्षात्मक या आक्रामक भूमिका को तय करता है। प्रकृति पक्षपात नहीं करती इसलिए आपदाओं के निवारण के लिए समं समे शमयति के सिद्धांत पर कार्य करती है और उसका यह सिद्धान्त उसके प्रत्येक अवयव पर समान रूप से लागू होता है। 
मनुष्य भी प्रकृति का एक अवयव है इसलिए उसपर भी प्रकृति के सारे सिद्धांत और नियम लागू होते है यह अलग बात है कि स्वार्थ में सीमाओं का अतिक्रमण वह बार बार करता है, प्रकृति उसे सचेत करती है, सीख देती है किंतु प्रकृति से संवाद कर पाने की अज्ञानता में मनुष्य उसे नकारते हुए पुनः अपनी बनाई लकीर पर चल पड़ता है।

वर्तमान वैश्विक आपदा भी मनुष्य की ही गलतियों का परिणाम है जो किसी एक क्षेत्र से धीरे धीरे पूरे विश्व की मानवता के लिए संकट बन गयी, जहां मनुष्य की बनाई सारी भौतिक तकनीकें अक्षम साबित हो रही हैं, अभी तक तो केवल इसका एक ही मार्ग सुझाई देता है कि व्यक्ति व्यक्ति से दूरी बनाकर रखे। वास्तव में यह विषय गहन चिंतन और शोध का है जिसके आधार पर मनुष्यता को बचाये रखने के लिए सत्य की खोज उसकी पहचान करनी होगी और उसे स्वीकारना होगा। बौद्धिकता आधुनिकता और वैज्ञानिकता के नाम पर केवल प्रयोगशाला के भौतिक दृश्य पर परे भी सूक्ष जीवन का अदृश्य सत्य कैसे भारी है यह स्थितियां संकेत हैं। प्रकृति और इसके वैज्ञानिक रहस्यों के बारे में भारतीय ग्रंथों में बहुत से तथ्य हैं जिन्हें उद्घाटित करना होगा।
अभी जो संकट की परिस्थितियां निर्मित हुई हैं इनके लिए कोई भी देश पहले से तैयार नहीं था। एक अदृश्य शत्रु से बिना किसी हथियार सभी को लड़ना है इसलिए बचाव ही एकमात्र उपाय है अतः भारत मे भी समय रहते सरकार ने दूरदृष्टि अपनाते हुए लॉक डाउन कर लिया। 130 करोड़ की बहुसंख्य आबादी को अचानक किसी निर्णय पर ले जाने की सहमति बनाना बड़ा दुष्कर कार्य है यह तभी सम्भव है जब दूरी अलगाव का भाव मिटे नेतृत्व में परिवार के मुखिया की छवि का विश्वास प्रदर्शित हो और देश मे  समानता, सहयोग, सहभागिता, योगदान, समर्पण का  संयमित संकल्प स्थापित हो सके, यह सब कुशल भावनात्मक बन्धन से ही संभव है, और संवाद इसका सबसे बेहतर माध्यम हैं जिसमें शब्दों का चयन आदेशात्मक न होकर आग्रही हो, सम्भवतः प्रधानमंत्री मोदी की कुशल संवाद शैली देशवासियों में कुटुम्बबोध करा पाने में सफल रही इसीलिए जनता कर्फ्यू की सफलता की सूचना उन्होंने ताली, थाली, घण्टा, घड़ियाल, बजाकर दी। इससे विषाणु नष्ट हो जाए ऐसा होना संभव है या नही यह भौतिक विज्ञान में  ध्वनि तरंगों के अनुनाद के अध्ययन का विषय हो सकता है, किन्तु देशवासी संकट से संघर्ष के समय अपने कुटुंब के मुखिया में विश्वास करते है और उसके साथ सहयोगी भाव से खड़े है यह विश्वास द्विपक्षीय आत्मबल को बढ़ाने वाला हो सकता है।
इससे जो मनःस्थिति तैयार हुई और उसके आकलन के आधार पर ही पुनः जिस भाव भंगिमा में परिवार के सदस्य के रूप में एक देश के नेता ने अपील की तो पूरा देश एक परिवार की तरह साथ खड़ा हो गया। इतने दिनों में सारे काम छोड़ घर मे बंद रहने को सजा के तौर पर लें कि देश को संकट से उबरने के लिए अपने योगदान की तरह यह हम सभी पर निर्भर है, यदि हम निरन्तर नुकसान की चिंता करेंगे तो नकारात्मक चिंतन की प्रवृत्ति बढ़ेगी, जिससे अकारण क्रोध, तनाव, विवाद, कलह, घरेलू झगड़े, बीमारी या महामारी का भय, जीवन के संकट का भय, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, आदि मानसिक दिक्कते हो सकती है , होम्योपैथी के अनुसार यह सायकोटिक लक्षण है, जिन्हें काल्पनिक भय या नोसोफोबिया कहते है, इसकी वजह से अन्य  शारीरिक स्वास्थ्य की समस्याएं जोड़ों के दर्द, सुगर, ब्लड प्रेशर आदि हो सकते है , जिसे सायकोसोमैटिक डिसऑर्डर कहते हैं।
मानसिकता के इस द्वंद पर सक्षम विजय प्राप्त करने का सरलतम उपाय है  सकारात्मक चिंतन, संयमित स्वस्थ जीवनशैली, सन्तुलित भोजन, संशयमुक्त शयन,सृजनात्मक विचार, स्वस्थ संवाद जिससे आप अनावश्यक चिंता से भयजनित अवसाद से बच सकते हैं।

अपने समय का सदुपयोग घर परिवार रिश्तेदारों से वार्तालाप कर सम्बन्धों को मजबूती देने में करें, अच्छे साहित्य, धार्मिक ग्रन्थ, का अध्ययन कर बच्चों के साथ समय व्यतीत करें उन्हें परिवार समाज देश की संस्कृति परम्पराओं और सामाजिक व्यवहार सिखाएं, सृजनात्मक खेल, गीत, संगीत , मानसिक शक्तियों के उपयोग के लिए पहेली वाले खेल,परिवार एक साथ बैठे, भोजन करे, वार्ता करे, कुछ खेले आदि सभी  अभ्यास आपको ऊर्जावान ,तनावमुक्त , प्रसन्नचित, व जीवन केप्रति सकारात्मक दृष्टिकोण देने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालने वाले प्रयोग हैं, जिनसे परिवार में सहयोग, समर्पण, संयम, स्नेह, विश्वास, संगठन, बढ़ता है।
कहते हैं 21 दिन में आदत पड़ जाती है, तो एक बेहतर प्रयोग हो सकता है कि आप भी तय करे क्या छोड़ना है, क्या जोड़ना है और क्या निरन्तर रखना है। एक परहेज कर सकते हैं
सोसल मीडिया या तकनीकी संसाधनों के उपयोग में प्रमाणिकता की आदत डालें।
अभी मोदी जी ने पांच अप्रैल को 9 बजे 9 मिनट के लिए दीपक जलाने की अपील की , इसके अनेक तर्क मीडिया में आने लगे किन्तु इसका जो सकारात्मक पक्ष मुझे नजर आता है वह यह कि अपील के बाद से देश वासियों को घर बैठे चिंतन विश्लेषण, तर्क, विज्ञान, अध्यात्म, उचित अनुचित आदि कारण हानि, लाभ खोजने का एक अवसर मिल गया जिसे प्रत्येक व्यक्ति अपने दृष्टिकोण से देखेगा, यह बिल्कुल रियलिटी शो के दिये गए टास्क जैसा है, जिसकी तैयारी में कुछ समय व्यतीत होगा, फिर उसमें श्रेष्ठतम प्रदर्शन सहभागिता में और उसके बाद उसके आकलन में अर्थात मनोवैज्ञानिक रूप से सकारात्मक  चिंतन, सहयोगी , सांगठनिक, कार्यपद्धति में साथ आने के प्रयोग व उससे प्राप्त होने वाले आनंद व शांति का प्रयोग जैसा भी हो तो निष्क्रिय काल मे ऊर्जा के संचार के लिए कृतिम प्रकाश से कुछ देर अलग अंधेरे से संघर्ष में अपने द्वारा योगदान किये गए प्रकाश के आनन्द का समय है।


डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी