प्रकृति और यांत्रिक प्रगति में मनुष्यता के लिए जरूरी क्या
महापुरुषों, देवी देवताओं, ऋषि-मुनियों के चित्रों के साथ दिखने वाले प्रकाशपुंज या पौराणिक ग्रंथों में योद्धाओं द्वारा प्रयोग किये जाने वाले दिव्य अस्त्रों या अभेद्य सुरक्षा कवच का निर्माण कल्पना है या सम्भावना ?
विज्ञान सदैव संभावनाओं का क्षेत्र है, अभी कुछ वर्ष पूर्व ही गॉड पार्टिकल की भी खोज हुई । हम जानते हैं परमाणु पदार्थ की सबसे सूक्ष्मतम अदृश्य इकाई है, जो परिधि में ऋण आवेशित कण इलेक्ट्रान, व केंद्र में धनावेशित प्रोटॉन, व अनावेशित न्युट्रान से मिलकर बना है। यह दोनों आवेश दो ध्रुव की तरह व्यवहार करते है और उनके बीच आवेश की धाराओं (विद्युत) से व्युत्पन्न आकर्षण बल (चुम्बकीय बल) संतुलन बनाता है इसप्रकार असंख्य परमाणु मिलकर जब एक पदार्थ बनाते हैं तो उसमें अंतर्निहित इस ऊर्जा का संयुक्त प्रभाव कुछ दूर तक किसी दूसरे पदार्थ द्वारा उसकी प्रवृत्ति के अनुरूप आकर्षण या प्रतिकर्षण के रूप में अनुभव किया जा सकता है इस प्रभाव क्षेत्र को उसकी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड या विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र कहते हैं। अर्थात दोनों पदार्थों के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र, एक दूसरे के लिए सुरक्षा घेरे की तरह व्यवहार करते हैं और जो सबल होता है वह दूसरे के प्रतिरोध को नकार कर प्रवेश पा लेता है और स्वेच्छा से व्यवहार करता है।
मनोविज्ञान में "गति" ,जगत में जड़ और चेतन के मध्य के अंतर "जीवन" को एक शब्द में परिभाषित करती है, जो स्वयं ऊर्जा का स्वरूप है और वैज्ञानिक एल्बर्ट आइंस्टीन के ऊर्जा, पदार्थ के द्रव्यमान एवं वेग सम्बन्धी सिद्धांत के अनुसार विभिन्न स्वरूपों में रूपांतरित होती रहती है।
इस प्रक्रिया को व्यक्ति के संदर्भ में देखा जाए तो मानव शरीर की सूक्ष्मतम इकाई कोशिका है। बृद्धि के लिए विभाजन होते समय केंद्रक में स्थित डीएनए पहले मध्यरेखा पर अलग सूत्रों में बंट जाता है बाद में दो अलग पोल पर। ऐसे ही मस्तिष्क समस्त अंगों को नर्व्स के द्वारा सूचनाएं इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के रूप में ही प्रेषित या ग्रहण करता है, हृदय निरन्तर गतिशील रहता है और इस क्रिया में एक अति सूक्ष्मविद्युतधारा का प्रवाह होता है, अर्थात प्रकृति के समान ही हमारे शरीर मे भी भिन्न अंगतन्त्रों के सम्यक कार्य के लिए आवश्यकतानुरूप ऊर्जा का रूपांतरण एवं विभाजन होता रहता है, विज्ञान की भाषा मे यही जैवऊर्जा या बायोइलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी है। जिसे आध्यात्मिक जगत (आयुर्वेद व गीता) प्राणशक्ति या प्राण ऊर्जा और होम्योपैथी के जनक डा हैनिमैन ने अपनी पुस्तक ऑरगेनन ऑफ मेडिसिन (एफोरिज्म 9-11), स्पिरिट या वाइटल फोर्स/जीवनी शक्ति कहा है। पृथक नाम से पहचान के बाद भी सभी इसके स्वउत्पन्न, स्वशासी, शरीर की समस्त क्रियाओं में संतुलन स्थापित करते हुए नियंता होने के गुण पर एकमत दिखाई देते हैं। इस आधार पर यह कह सकते हैं कि असंख्य कोशिकाओं के संयोजन से बने इस शरीर का भी एक समन्वयित विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र अवश्य होगा, जिसे ही आध्यात्मिक जगत के विद्वान आभामंडल कहते है। इसमे भी ऊर्जा एवं संवेग दोनों होंगे और जो अपने निकट किसी अन्य पदार्थ या जीव के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति उदासीन रहते हुए विरोध अवश्य करता है , यदि वह प्रबल हुआ तो इसे भेद कर शरीर में प्रवेश प्राप्त कर लेगा और अपनी प्रवृति के अनुरूप शरीर की क्रियाओं में विकार उत्पन्न कर सकेगा , जो शरीर पर लक्षणो की भाषा मे प्रकट होता है जिसे सामूहिक रूप से पहचान के लिए एक रोग का नाम दे दिया जाता है।अर्थात यह बायोएलेक्ट्रोमैग्नेटिकफील्ड व्यक्ति के शरीर के बाहर एक सुरक्षा क्षेत्र की लक्ष्मण रेखा और शरीर मे सूक्ष्मतम स्तर जैव ऊर्जा/जीवनी शक्ति की प्रबलता से सुरक्षातंत्र की कोशिकाओं की सक्रियता मिलकर शरीर मे दोहरा सुरक्षा आवरण बनाती है। अर्थात किसी भी बाहरी जीव जैसे जीवाणु, विषाणु, या अन्य संक्रामक परजीवी को शरीर मे प्रवेश से पहले इस बायोएलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रतिरोध को पार करना होगा फिर शरीर मे सुरक्षातंत्र की सक्रिय कोशिकाओं से लड़कर बचना होगा, साथ ही अपने लिए अनुकूल अंग या वातावरण खोजकर अपनी संख्या व शक्ति बढ़ानी होगी जिससे वह अपने अनुकूल लक्षण उत्पन्न कर सके।अर्थात व्यक्ति की विद्युतचम्बकीय संवेदनशीलता रोगाणुओं को ग्रहण करने या संवेदनशून्यता उनसे रक्षा करने में सहायक होती है।
इतनी प्राकृतिक सुरक्षा से घिरे होने पर भी व्यक्ति रोगग्रस्त हो जाये तो समझना चाहिए आक्रांता रोगाणु के सापेक्ष शरीर की उक्त सुरक्षा व्यवस्था में कहीं विकार है तो सबसे पहले उसे खोजकर दुरुस्त करना चाहिए जिससे शरीर के अंदर की जीवनीशक्ति को शक्तिवर्धित कर रोगाणु के प्रभाव से मुक्त होने योग्य बनाया जा सके, और यह कार्य प्रकृति के समं समे शमयति के सिद्धांत के अनुरूप ही सम्भव है।
रोग के मूल कारण क्या है -
होम्योपैथी के अनुसार व्यक्ति में रोग का मूलकारण व्यक्ति के अंदर ही व्याप्त प्रवृत्तियां सोरा, साइकोसिस, सिफिलिस हैं जिनके प्रभावी होने पर ही स्थूल जीवाणु, विषाणु या अन्य परजीवी के संक्रमण के लिए शरीर मे उर्वरा वातावरण तैयार होता हैं।
विद्युत चुम्बकीय तरंगे इम्युनिटी को प्रभावित करती हैं -
हमारा शरीर प्रकृति के कृतियों के सापेक्ष सुरक्षित कर लेता है किंतु समय के साथ यांत्रिकीय विकास,तकनीकी प्रयोगों, मोबाइल टावरों, आयुधों के निर्माण आदि से निकलने वाली विद्युतचुम्बकीय तरंगे निरन्तर हमारे विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र को और जीवनी शक्ति पर आक्रमण करती रहती हैं। कमजोर जीवनीशक्ति से व्यक्ति की विद्युतचम्बकीय संवेदनशीलता बढ़ जाती है और वह बाहर से रोगाणुओं को सहजता से ग्रहण करने लगता है।
मोबाइल फोन जहां हमे अपनो से सम्पर्क में लाता है वहीं एक प्रबल विद्युतचुम्बकीय रिसीवर के रूप में सदैव हमारे साथ रहते हुए अनेक बीमारियों के जैसे- सर्दी, जुकाम, खाँसी आदि के रोगाणु को आकर्षित कर सकता है जिनके सम्पर्क में आने से संवेदनशील व्यक्ति के संक्रमित होने की संभावना अधिक रहती है, इसीलिए जनसम्पर्क वाले कार्यालयों व अस्पतालों में मोबाइल के प्रयोग पर प्रतिबन्ध रखा जाता है।
यदि उपरोक्त तथ्यों के आलोक में विश्लेषण करें तो पाएंगे कि मस्तिष्क और मोबाइल दोनों में सूचनाओं का आदान-प्रदान इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के माध्यम से होता है। मोबाइल के सिग्नल के लिये आती इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे मस्तिष्क की प्राकृतिक तरंगों में बाधा के उत्पन्न कर उसके स्वाभाविक विकास को बाधित कर सकती हैं जिससे ट्यूमर विकसित होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है।
यूके के राष्ट्रीय रेडियोलॉजिकल प्रोटेक्शन बोर्ड के अनुसार, मनुष्य मोबाइल माइक्रोवेव ऊर्जा की एक महत्त्वपूर्ण दर को अवशोषित करते हैं जिससे मानव कोशिकाओं के एंटीऑक्सीडेंट डिफेंस मैकेनिज्म क्षमता पर असर होने से कोशिकाओं की प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है।
इण्डियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च द्वारा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चूहों पर परीक्षण में पाया गया कि लम्बे समय तक रेडियोफ्रिक्वेन्सी रेडिएशन के प्रभाव में रहने के कारण द्विगुणित डीएनए स्पर्श कोशिकाओं में टूट जाते हैं, जिससे व्यक्ति की वीर्य गुणवत्ता और प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
विद्युत चुम्बकीय संवेदनशीलता से व्युत्पन्न सम्भावित लक्षण -
मानसिक -एकाग्रता, स्मरणशक्ति व सीखने की क्षमता, दृष्टिकोण में परिवर्तन, जैसे- अवसाद, चिन्ता, क्रोध, अचानक रोना और नियंत्रण खोना
न्यूरोलॉजिकल समस्याएं - चक्कर आना, जी मिचलाना, बिन मौसम बीमार होना, धड़कन, सीने में अचानक दर्द का अनुभव, साँस की कमी और अस्थिर रक्तचाप, प्रतिकूल प्रतिक्रिया का संकेत हो सकते हैं।आंखों में फड़कना, किरकिरापन और दर्द, मांसपेशियों में कमजोरी और ऐंठन, साथ ही जोड़ों में दर्द, पैरों में ऐंठन और हाथों में कम्पन,मूत्र पथ में गड़बड़ी, अधिक मूत्र, पसीना,भोजन की रुचि एवं भूख में बदलाव या एलर्जी प्रतिक्रियाएं, मोटापे व कैंसर के जोखिम की सम्भावनाएं हो सकती हैं।
बचाव व उपचार की संभावनाएं
व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अनेकानेक कारक होते हैं उनमें से विकिरण भी एक कारक है, जिसके स्वास्थ्य पर पड़नेवाले कुप्रभावों पर अध्ययन व शोध निरन्तर चल रहे हैं। उपरोक्त विश्लेषण से यह निश्चित करना कठिन नही कि सुविधाओ का प्रयोग आवश्यकतानुरूप ही करना चाहिए। प्रकृति में अस्तित्व प्राप्त प्रत्येक पदार्थ में उसका विशिष्ट गुण निहित होता है, उसकी प्रयोग की जाने वाली मात्रा उसे औषधि या विष बना सकती है। डा हैनिमैन ने ऑरगेनन ऑफ मेडिसिन में एफोरिज्म 286- 291 में इसी चिकित्सा की इसी पद्धति पर आधारित प्रयोग जिसे प्रथम प्रयोगकर्ता चिकित्सक मैस्मर के नाम पर मेसमरिज्म कहा उसका वर्णन करते हुए बताया है कि एक स्वस्थ व्यक्ति द्वारा किसी अस्वस्थ व्यक्ति को अपने सकारात्मक आत्मबल व सद्भावना पूर्वक पॉजिटिव या निगेटिव पास (हाथ फिराना) देने पर बीमार व्यक्ति की क्षीण हुई जीवनीशक्ति को बल प्रदान किया जाता है। इस पद्धति का मानना है कि हमारे शरीर मे एलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का प्रवाह उंगलियों की तरफ अधिक होता है जो नियमित योगाभ्यास प्राणायाम से सन्तुलित रहता है, और अन्य व्यक्ति की ऊर्जा के प्रवाह की दिशा को बल प्रदान कर सकता है।
सावधानियां-
विकिरणों द्वारा स्वास्थ्य को होने वाली हानि की संभावनाओं पर विचार के साथ उनसे बचने के लिए सचेत रहना अति आवश्यक है। ऑनलाइन स्टडी के नाम पर बच्चों के हाथ मे मोबाइल थमाने से पूर्व उसके हानि लाभ व उपयोगिता पर माता पिता को अवश्य विचार करना चाहिए क्योंकि इन्ही से हमारी भावी पीढ़ी का निर्माण होना है, इसलिए इन्हें विकसित होने के लिए प्राकृतिक वातावरण देना कृत्रिम से बचाना हमारा ही दायित्व है।
डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ
अयोध्या
सहसचिव - आरोग्य भारती अवध प्रान्त
महासचिव- होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ










