चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

This is default featured slide 4 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

This is default featured slide 5 title

Go to Blogger edit html and find these sentences.Now replace these sentences with your own descriptions.This theme is Bloggerized by Lasantha Bandara - Premiumbloggertemplates.com.

Tuesday, 19 May 2020

कम होती इम्युनिटी का कारण विद्युतचुम्बकीय संवेदनशीलता तो नहीं

प्रकृति और यांत्रिक प्रगति में मनुष्यता के लिए जरूरी क्या

महापुरुषों, देवी देवताओं, ऋषि-मुनियों के चित्रों के साथ दिखने वाले प्रकाशपुंज या पौराणिक ग्रंथों में योद्धाओं द्वारा प्रयोग किये जाने वाले दिव्य अस्त्रों या अभेद्य सुरक्षा कवच का निर्माण कल्पना है या सम्भावना ?   
विज्ञान सदैव संभावनाओं का क्षेत्र है, अभी कुछ वर्ष पूर्व ही गॉड पार्टिकल की भी खोज हुई ।  हम जानते हैं परमाणु पदार्थ की सबसे सूक्ष्मतम अदृश्य इकाई है, जो परिधि में ऋण आवेशित कण इलेक्ट्रान, व केंद्र में धनावेशित प्रोटॉन, व अनावेशित न्युट्रान से मिलकर बना है। यह दोनों आवेश दो ध्रुव की तरह व्यवहार करते है और उनके बीच आवेश की धाराओं (विद्युत) से व्युत्पन्न आकर्षण बल (चुम्बकीय बल) संतुलन बनाता है इसप्रकार असंख्य परमाणु मिलकर जब एक पदार्थ बनाते हैं तो उसमें अंतर्निहित इस ऊर्जा का संयुक्त प्रभाव कुछ दूर तक किसी दूसरे पदार्थ द्वारा उसकी प्रवृत्ति के अनुरूप आकर्षण या प्रतिकर्षण के रूप में अनुभव किया जा सकता है इस प्रभाव क्षेत्र को उसकी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड या विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र कहते हैं। अर्थात दोनों पदार्थों के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र, एक दूसरे के लिए सुरक्षा घेरे की तरह व्यवहार करते हैं और जो सबल होता है वह दूसरे के प्रतिरोध को नकार कर प्रवेश पा लेता है और स्वेच्छा से व्यवहार करता है।

मनोविज्ञान में "गति" ,जगत में जड़ और चेतन के मध्य के अंतर "जीवन" को एक शब्द में परिभाषित करती है, जो स्वयं ऊर्जा का स्वरूप है और वैज्ञानिक एल्बर्ट आइंस्टीन के ऊर्जा, पदार्थ के द्रव्यमान एवं वेग सम्बन्धी  सिद्धांत के अनुसार विभिन्न स्वरूपों में रूपांतरित होती रहती है। 
इस प्रक्रिया को व्यक्ति के संदर्भ में देखा जाए तो मानव शरीर की सूक्ष्मतम इकाई कोशिका है। बृद्धि के लिए विभाजन होते समय केंद्रक में स्थित डीएनए पहले मध्यरेखा पर अलग सूत्रों में बंट जाता है बाद में दो अलग पोल पर। ऐसे ही मस्तिष्क समस्त अंगों को नर्व्स के द्वारा सूचनाएं इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के रूप में ही प्रेषित या ग्रहण करता है, हृदय निरन्तर गतिशील रहता है और इस क्रिया में एक अति सूक्ष्मविद्युतधारा का प्रवाह होता है, अर्थात प्रकृति के समान ही हमारे शरीर मे भी भिन्न अंगतन्त्रों के सम्यक कार्य के लिए आवश्यकतानुरूप ऊर्जा का रूपांतरण एवं विभाजन होता रहता है, विज्ञान की भाषा मे यही जैवऊर्जा या बायोइलेक्ट्रोमैग्नेटिक एनर्जी है। जिसे आध्यात्मिक जगत (आयुर्वेद व गीता) प्राणशक्ति या प्राण ऊर्जा  और होम्योपैथी के जनक डा हैनिमैन ने अपनी पुस्तक ऑरगेनन ऑफ मेडिसिन (एफोरिज्म 9-11), स्पिरिट या वाइटल फोर्स/जीवनी शक्ति कहा है। पृथक नाम से पहचान के बाद भी सभी इसके  स्वउत्पन्न, स्वशासी, शरीर की समस्त क्रियाओं में संतुलन स्थापित करते हुए नियंता होने के गुण पर एकमत दिखाई देते हैं। इस आधार पर यह कह सकते हैं कि असंख्य कोशिकाओं के संयोजन से बने इस शरीर का भी एक समन्वयित विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र अवश्य होगा, जिसे ही आध्यात्मिक जगत के विद्वान आभामंडल कहते है। इसमे भी ऊर्जा एवं संवेग दोनों होंगे और जो अपने निकट किसी अन्य पदार्थ या जीव के विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र के प्रति उदासीन रहते हुए विरोध अवश्य करता है , यदि वह प्रबल हुआ तो इसे भेद कर शरीर में प्रवेश प्राप्त कर लेगा और अपनी प्रवृति के अनुरूप शरीर की क्रियाओं में विकार उत्पन्न कर सकेगा , जो शरीर पर लक्षणो की भाषा मे प्रकट होता है जिसे सामूहिक रूप से पहचान के लिए एक रोग का नाम दे दिया जाता है।अर्थात यह बायोएलेक्ट्रोमैग्नेटिकफील्ड व्यक्ति के शरीर के बाहर एक सुरक्षा क्षेत्र की लक्ष्मण रेखा और शरीर मे सूक्ष्मतम स्तर  जैव ऊर्जा/जीवनी शक्ति की प्रबलता से सुरक्षातंत्र की कोशिकाओं की सक्रियता मिलकर शरीर मे दोहरा सुरक्षा आवरण बनाती है। अर्थात किसी भी बाहरी जीव जैसे जीवाणु, विषाणु, या अन्य संक्रामक परजीवी को शरीर मे प्रवेश से पहले इस बायोएलेक्ट्रोमैग्नेटिक प्रतिरोध को पार करना होगा फिर शरीर मे सुरक्षातंत्र की सक्रिय कोशिकाओं से लड़कर बचना होगा, साथ ही अपने लिए अनुकूल अंग या वातावरण खोजकर अपनी संख्या व शक्ति बढ़ानी होगी जिससे वह अपने अनुकूल लक्षण उत्पन्न कर सके।अर्थात व्यक्ति की विद्युतचम्बकीय संवेदनशीलता रोगाणुओं को ग्रहण करने या संवेदनशून्यता उनसे रक्षा करने में सहायक होती है।
इतनी प्राकृतिक सुरक्षा से घिरे होने पर भी व्यक्ति रोगग्रस्त हो जाये तो समझना चाहिए आक्रांता रोगाणु के सापेक्ष शरीर की उक्त सुरक्षा व्यवस्था में कहीं विकार है तो सबसे पहले उसे खोजकर दुरुस्त करना चाहिए जिससे शरीर के अंदर की जीवनीशक्ति को शक्तिवर्धित कर रोगाणु के प्रभाव से मुक्त होने योग्य बनाया जा सके, और यह कार्य प्रकृति के समं समे शमयति के सिद्धांत के अनुरूप ही सम्भव है।

रोग के मूल कारण क्या है -

होम्योपैथी के अनुसार व्यक्ति में रोग का मूलकारण व्यक्ति के अंदर ही व्याप्त प्रवृत्तियां सोरा, साइकोसिस, सिफिलिस हैं जिनके प्रभावी होने पर ही स्थूल जीवाणु, विषाणु या अन्य परजीवी के संक्रमण के लिए शरीर मे उर्वरा वातावरण तैयार होता हैं। 

विद्युत चुम्बकीय तरंगे इम्युनिटी को प्रभावित करती हैं -

 हमारा शरीर प्रकृति के कृतियों के सापेक्ष सुरक्षित कर लेता है किंतु समय के साथ यांत्रिकीय विकास,तकनीकी प्रयोगों,  मोबाइल टावरों, आयुधों के निर्माण आदि से निकलने वाली विद्युतचुम्बकीय तरंगे निरन्तर हमारे विद्युतचुम्बकीय क्षेत्र को और जीवनी शक्ति पर आक्रमण करती रहती हैं। कमजोर जीवनीशक्ति से व्यक्ति की  विद्युतचम्बकीय संवेदनशीलता बढ़ जाती है और वह बाहर से रोगाणुओं को सहजता से ग्रहण करने लगता है।
 मोबाइल फोन जहां हमे अपनो से सम्पर्क में लाता है वहीं एक प्रबल विद्युतचुम्बकीय रिसीवर के रूप में सदैव हमारे साथ रहते हुए अनेक बीमारियों के जैसे- सर्दी, जुकाम, खाँसी आदि के रोगाणु को आकर्षित कर सकता है जिनके सम्पर्क में आने से संवेदनशील व्यक्ति के संक्रमित होने की संभावना अधिक रहती है, इसीलिए जनसम्पर्क वाले कार्यालयों व अस्पतालों में मोबाइल के प्रयोग पर प्रतिबन्ध रखा जाता है।
यदि उपरोक्त तथ्यों के आलोक में विश्लेषण करें तो पाएंगे कि मस्तिष्क और मोबाइल दोनों में सूचनाओं का आदान-प्रदान इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों के माध्यम से होता है। मोबाइल के सिग्नल के लिये आती इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे मस्तिष्क की प्राकृतिक तरंगों में बाधा के उत्पन्न कर उसके स्वाभाविक विकास को बाधित कर सकती हैं  जिससे ट्यूमर विकसित होने की सम्भावना अधिक बढ़ जाती है।
यूके के राष्ट्रीय रेडियोलॉजिकल प्रोटेक्शन बोर्ड के अनुसार, मनुष्य मोबाइल माइक्रोवेव ऊर्जा की एक महत्त्वपूर्ण दर को अवशोषित करते हैं जिससे मानव कोशिकाओं के एंटीऑक्सीडेंट डिफेंस मैकेनिज्म क्षमता पर असर होने से कोशिकाओं की प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है।
इण्डियन काउन्सिल ऑफ मेडिकल रिसर्च और काउन्सिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च द्वारा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में चूहों पर परीक्षण में पाया गया कि लम्बे समय तक रेडियोफ्रिक्वेन्सी रेडिएशन के प्रभाव में रहने के कारण द्विगुणित डीएनए स्पर्श कोशिकाओं में टूट जाते हैं, जिससे व्यक्ति की वीर्य गुणवत्ता और प्रजनन क्षमता पर बुरा प्रभाव पड़ता है। 

विद्युत चुम्बकीय संवेदनशीलता से व्युत्पन्न सम्भावित लक्षण -
 मानसिक -एकाग्रता, स्मरणशक्ति व सीखने की क्षमता, दृष्टिकोण में परिवर्तन, जैसे- अवसाद, चिन्ता, क्रोध, अचानक रोना और नियंत्रण खोना
 न्यूरोलॉजिकल समस्याएं - चक्कर आना, जी मिचलाना, बिन मौसम बीमार होना, धड़कन, सीने में अचानक दर्द का अनुभव, साँस की कमी और अस्थिर रक्तचाप, प्रतिकूल प्रतिक्रिया का संकेत हो सकते हैं।आंखों में फड़कना, किरकिरापन और दर्द, मांसपेशियों में कमजोरी और ऐंठन, साथ ही जोड़ों में दर्द, पैरों में ऐंठन और हाथों में कम्पन,मूत्र पथ में गड़बड़ी, अधिक मूत्र, पसीना,भोजन की रुचि एवं भूख में बदलाव या एलर्जी प्रतिक्रियाएं,  मोटापे व कैंसर के जोखिम की सम्भावनाएं हो सकती हैं।

बचाव व उपचार की संभावनाएं

व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले अनेकानेक कारक होते हैं उनमें से विकिरण भी एक कारक है, जिसके स्वास्थ्य पर पड़नेवाले कुप्रभावों पर अध्ययन व शोध निरन्तर चल रहे हैं। उपरोक्त विश्लेषण से यह निश्चित करना कठिन नही कि सुविधाओ का प्रयोग आवश्यकतानुरूप ही करना चाहिए। प्रकृति में अस्तित्व प्राप्त प्रत्येक पदार्थ में उसका विशिष्ट गुण निहित होता है, उसकी प्रयोग की जाने वाली मात्रा उसे औषधि या विष बना सकती है। डा हैनिमैन ने ऑरगेनन ऑफ मेडिसिन में एफोरिज्म 286- 291 में इसी चिकित्सा की इसी पद्धति पर आधारित प्रयोग जिसे प्रथम प्रयोगकर्ता चिकित्सक मैस्मर के नाम पर मेसमरिज्म कहा उसका वर्णन करते हुए बताया है कि एक स्वस्थ व्यक्ति द्वारा किसी अस्वस्थ व्यक्ति को अपने सकारात्मक आत्मबल व सद्भावना पूर्वक पॉजिटिव या निगेटिव पास (हाथ फिराना) देने पर बीमार व्यक्ति की क्षीण हुई जीवनीशक्ति को बल प्रदान किया जाता है। इस पद्धति का मानना है कि हमारे शरीर मे एलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों का प्रवाह उंगलियों की तरफ अधिक होता है जो नियमित योगाभ्यास प्राणायाम से सन्तुलित रहता है, और अन्य व्यक्ति की ऊर्जा के प्रवाह की दिशा को बल प्रदान कर सकता है।

होम्योपैथी में सीपिया व विकिरण स्रोतों से बनी औषधियां एक्स रे, सोलर,लूनर, आदि औषधियां ऐसी स्थितियों को सन्तुलित कर सकती हैं ।यह शक्तिकृत औषधियां हैं जो जीवनीशक्ति के स्तर पर असरकारक हैं और बिना किसी दुष्परिणाम के मनुष्य को रोगों से बाहर आने की क्षमता एवं आरोग्य प्रदान करती है।

सावधानियां-
विकिरणों द्वारा स्वास्थ्य को होने वाली हानि की संभावनाओं पर विचार के साथ उनसे बचने के लिए सचेत रहना अति आवश्यक है। ऑनलाइन स्टडी के नाम पर बच्चों के हाथ मे मोबाइल थमाने से पूर्व उसके हानि लाभ व उपयोगिता पर माता पिता को अवश्य विचार करना चाहिए क्योंकि इन्ही से हमारी भावी पीढ़ी का निर्माण होना है, इसलिए इन्हें विकसित होने के लिए प्राकृतिक वातावरण देना कृत्रिम से बचाना हमारा ही दायित्व है।



डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ
अयोध्या
सहसचिव - आरोग्य भारती अवध प्रान्त
महासचिव- होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ

Friday, 8 May 2020

आयुष : समः समं शमयति ,कोविड19 और होम्योपैथी

(प्रस्तुत आलेख जनसामान्य को ध्यान रखते हुए सामान्य और सरलरूप में कोरोना वायरस की समस्त रोगजनकता व बचाव के तरीके उपचार की संभावनाओं पर एक विचार है, चिकित्सकीय परामर्श के बाद ही औषधीय सेवन करना चाहिए, यहां प्रस्तुत जानकारी से औषधि चयन संभव नही होगा।)


विश्व स्वास्थ्य संगठन को 31 दिसम्बर 2019 में चीन के हुबेई प्रान्त के वुहान शहर में अज्ञातकारण से फैल रहे न्यूमोनिया की जानकारी हुई , जिसकी पहचान बाद में कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) के रूप में की गई अतः बीमारी को विषाणु और उत्पत्ति वर्ष के आधार पर कोविड 19 नाम दिया गया, अपनी अब तक यह विश्व के 190 से अधिक देशों में फैल गया, अतः  वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया है। 

क्या है कोरोना वायरस ?

जन्तुओ के सम्पर्क से मनुष्यों में (जूनोटिक) और मानव से मानव में फैलने वाले कोरोना विषाणु अविभाजित, आवरण युक्त, एक सूत्रीय आरएनए वायरस हैं। 1960 से अब तक इनके 6 प्रकार की पहचान हुई थी जिनमे से 4 (229E,OC43, NL63, HUK1) श्वसनतंत्र सम्बन्धी सामान्य रोग उत्पन्न करते हैं किंतु अन्य दो, सार्स कोव  (SARS-CoV, 2003 में बिल्ली प्रजाति से मनुष्यों में) व  मर्स कोव (MERS-CoV, 2012 में ऊंटों से मनुष्यों में) विषाणु मानव स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन चुके हैं जिनके संक्रमण की मूल प्रवृत्ति नाक से फेफड़ों तक रोगोत्पादन हैं। वर्तमान में जिस नए वायरस की पहचान हुई है उसे सार्स कोव 2 या नॉवेल कोरोना वायरस कहा जाता है, इस प्रकार यह अपने वंश का 7 वां वायरस है।

एपिडेमियोलॉजी
मनुष्यों से मनुष्यों में तेजी से फैलने वाले सार्स कोव 2 विषाणु से अब तक विश्व के  39 लाख से अधिक लोग संक्रमित है, और 2.7 लाख से अधिक मृत्यु हो चुकी है। भारत मे भी संक्रमण का आंकड़ा 59हजार तक पहुंच गया है जिसमे 1800 से अधिक मृत्यु हो चुकी हैं।यद्यपि भारत मे रिकवरी दर अन्य देशों की अपेक्षा बेहतर लगभग 27 प्रतिशत से अधिक है।

कोरोना कितना घातक है ?

संक्रामकता की दृष्टि से नावेल कोरोना वायरस अन्य से दस गुना अधिक है जबकि इसकी मृत्यु दर पूर्व के सार्स (मृत्यु दर 11%), व मर्स (MERS -35%) से बहुत कम  1-4% ही है। अलग अलग देशों में यह आंकड़ा भिन्न है।
 
इन्क्यूबेशन पीरियड -

संक्रमण होने से लक्षणों के प्रकट होने के बीच का समय उदीयमान काल या इन्क्यूबेशन पीरियड कहलाता है। इसके लक्षणों की शुरुआत 2 से 12 -13 दिनों में हो जाती है ।

संक्रमण का प्रसारण कैसे होता है ? 

1. जानवरो से मनुष्य में - अधपके कच्चे मांसाहार से
2. मनुष्य से मनुष्य में-  संक्रमित व्यक्ति से व्यक्तिगत सम्पर्क (कॉन्टेक्ट) हाथ मिलाने, छुए गए या उपयोग किये गए उपकरणों, वस्तुओं , खाद्य पदार्थो, फल,  सब्जियों आदि के प्रयोग, अथवा संक्रमित के शरीर द्रव्यों (एरोसॉल) जैसे छींक, थूक, उल्टी, खून,  मल , मूत्र के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्पर्क के साधनों से।
3. सुपर स्प्रेडर - ऐसे व्यक्ति जिनमे कोई लक्षण न हों और व्यक्तियों से सम्पर्क अधिक हो।

संक्रमण किसके लिए अधिक संभावित है ?

ऐसे संवेदनशील (susceptable) व्यक्ति जिनकी इम्युनिटी कम है या प्रौढ़ या बृद्ध व्यक्ति जो पहले ही  लिवर, फेफड़े, हृदय, रक्तचाप, डायबिटीज, एड्स, की बीमारी से ग्रसित हैं और उपचार ले रहे हैं।
नवजात शिशु, संक्रमित व्यक्तियों का उपचार कर रहे स्वास्थ्य कर्मी, सुरक्षा कर्मी, सफाईकर्मी, मानसिक दबाव महसूस करने वाले व्यक्ति।


संक्रमण का प्रसारण रोकने का सरलतम उपाय -

समाज मे सम्मुख व्यक्ति को संक्रमित मानते हुए उससे 2 मीटर की शारीरिक दूरी, व्यक्तिगत स्वच्छता के सभी उपाय।
पृथक्करण- समाज मे संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए क्वारंटाइन- अर्थात संदिग्ध व्यक्तियों का पृथक्करण,  या आइसोलेशन -अर्थात पुष्ट हुए मरीज का अन्य से पृथक्करण, विधियां प्रयोग की जाती हैं।


रोगउत्पादन -

हिस्टोपैथोलॉजिकल अध्ययन में फेफड़ो में सूजन, खून की नलियों में जमाव, प्रोटीन युक्त गाढ़े स्राव , फाइब्रिन के अंश, बहुकेन्द्रीय बड़ी कोशिकाएं,और फेफड़ो की कोशिकाओं में बृद्धि देखी गयी है।यह परिवर्तन किसी भी संक्रमण के विरुद्ध शरीर की प्राकृतिक सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया के कारण होते हैं।
विषाणु के प्रवेश के साथ ही श्वसनतंत्र की म्यूकोसा की सिलिएटेड सेल्स गति बढ़ाकर इसे बाहर करना चाहती हैं,  किन्तु इसकी संरचना में बाहर की लिपिड खोल में धंसी प्रोटीन की घुंडी का संक्रमण प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण रोल हो सकता है जिससे यह शरीर की म्यूकोसा पर स्थित रिसेप्टर कोशिका से आसानी से चिपक सकता है।शरीर की प्रतिक्रिया के समय संक्रमित भाग में  सइटोकाइन स्रावण बढ़ने से डब्ल्यूबीसी सहित कोशिकीय सक्रियता बढ़ती है, इससे कोशोकाओं के रेशों को भी नुकसान हो सकता है, और विषाणु को चिपकने का पर्याप्त अवसर व समय मिल जाता है,  वह निरन्तर संख्या बृद्धि करता है , यदि संक्रमण श्वसन तंत्र के निचले हिस्से तक पहुच गया है तो स्रवण वहीं जमा होने से फेफड़ो के सिकुड़ने फैलने में दिक्कत हो सकती है जिससे सांस लेने में तकलीफ, सीने में भारीपन, दर्द, तेज बुखार, शरीर मे ऑक्सीजन की कमी होने लगती है।इस प्रकार कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों में यह प्राणघातक हो सकता है।
कोविड 19 के लक्षण क्या हैं ?

नावेल कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति में तेज बुखार, सूखी खांसी, सांस लेने में तकलीफ व सीने में दर्द या भारीपन होने पर चिकित्सकीय पुष्टि करना आवश्यक माना जाता है। एक अध्ययन में बुखार (87.9%, 0-12 दिन में ),सूखी खांसी (67.7%, 0-16-19 दिन में ),थकान (38.1%), बलगम बनना(33.4%),  सांस लेने में तकलीफ(18.6% , 0-7-19 दिन में), गले मे दर्द(13.9%) , सिरदर्द(13.6%), हड्डियों या मांसपेशियों में दर्द(14.8%),  ठंडी(11.4), मितली वमन(5.0%),नाक बंद( 4.8%), डायरिया(3.7%), खूनी उल्टी(0.9%), कजंक्टिवल कंजेशन(0.8%), एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम(3%), सीने के सीटी सकैन में (86%) व एक्स रे में (59%) अपारदर्शी चिन्ह । बाद में कुछ मामलों में स्वाद व सुंगध की क्षमता में भी कमी मिली है । यद्यपि सूंघने की क्षमता में कमी अन्य विषाणुओं के संक्रमण से भी संभव है किन्तु सावधानी की दृष्टि से ,इसे वायरस के प्रमुख लक्षणों में सम्मिलित कर लिया गया।
कुछ मरीजों में त्वचा पर रैसेश या छाले, पैर के तलवों में खून के थक्के आदि लक्षण भी मिल रहे हैं

समय के साथ पैथोलोजिकल डेवलपमेंट होता रहता है जिससे
न्यूमोनिया - यदि बच्चों में है तो  सांस तेज चलती है, वयस्कों में  सांस लेने में दिक्कत से ऑक्सीजन की कमी, (SpO2 90% से कम), इसके बाद 
विषाक्तता या सेप्सिस का लक्षण भी मिल सकता है, जिससे बच्चों में ताप व डब्ल्यूबीसी का बढ़ते जाना, वयस्को में रक्तचाप का कम होना शॉक की अवस्था का सूचक है।

 रोग की जांच एवं पुष्टि -

1. बुखार के लिए थर्मल सकैनिंग
2. संदिग्ध की सैम्पल जांच-
जांच के लिए व्यक्ति के नासा मार्ग के पीछे नेजोफैरिंजियल, व मुखगुहा के पीछे ऑरोफरिंजियल से स्रावण का स्वाब टेस्ट करते हैं।
इसके अतिरिक्त मल मूत्र व रक्त के सैम्पल भी जांच के लिए लिए जाते हैं।
रक्त जांच -
IL-6, कार्डियक ट्रोपोनिन, बढ़े हुए, लिम्फोपेनिया ,डब्ल्यूबीसी, न्यूट्रोफिल, लिम्फोसाइट्स, प्लेटलेट्स, TNF-अल्फा, इंटरफेरॉन गामा,IGM, IGG एंटीबॉडी की जांच का अध्ययन किया जाता है।

आरटी- पीसीआर (पोलीमेरेज चेन रिएक्शन) -
से आरएनए की पुष्टि की जाती है, जिसका परिणाम 6-48  घण्टों में मिल जाता है।
24 घण्टे के अंतर पर यही टेस्ट लगातार दो बार निगेटिव आने पर व्यक्ति को मुक्त किया जा सकता है।

रैपिड टेस्ट - यह IGM, IGG एंटीबॉडी टेस्ट है, जिससे व्यक्ति में लक्षण होने या न होने की दशा में रक्त में उपस्थित एंटीबॉडी से संक्रमण होने का पता लग जाता है।

रेडियोलॉजिकल टेस्ट -
सीने का एक्स रे - निचले हिस्से में अपारदर्शी
सीने का सीटी सकैन- ग्लास ग्राउंड अपारदर्शिता
फेफड़ों के अल्ट्रासाउंड- डिफ्यूज्ड बी लाइन्स
पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट- फेफड़ों की श्वसन क्षमता।

रोग बढ़ने के संकेत

संक्रमण के बाद पहले सप्ताह में बुखार, सूखी खांसी, मितली, वमन, डायरिया
दूसरे सप्ताह के अन्त तक मरीज को सांस लेने में दिक्कत, सीने पर भारीपन, होने पर चिकित्सालय में एडमिट कराना आवश्यक हो सकता है जहां लक्षणों के  अनुसार उसका सपोर्टिंग ट्रीटमेंट किया जा सकता है।

संक्रमित की गम्भीरता का मापन कैसे करते है ?

संक्रमण की पहचान एवं पुष्टि के साथ उपचार के दृष्टिकोण से रोगियों को श्रेणियों में विभाजित किया जाता है
1 संदिग्ध - वे मरीज जिनमे पिछले दो हफ्ते में संक्रमित व्यक्ति, वस्तु, या क्षेत्र के सम्पर्क की जानकारी के बाद बुखार के साथ श्वसन तंत्र का कम से कम एक लक्षण खांसी, साँसलेने में तकलीफ, डायरिया, आदि का लक्षण पाया जाए।

2. कोविड कन्फर्म केस - संदिग्ध व्यक्ति की लैबोरेटरी जांच के बाद पुष्टि होने पर रोगी को अस्पताल , वार्ड, या घर मे सुरक्षात्मक उपायों के साथ नियमित निगरानी में रखा जाता है।
3.सम्पर्कित - ये वह लोग होते हैं जो किसी पुष्ट हुए रोगी के सम्पर्क में आये हों, जैसे बिना सुरक्षात्मक उपाय के , सम्पर्कित, चिकित्सक, या स्वास्थ्य कर्मचारी,सहकर्मी, परिवार के लोग, सहयात्री ।

4.अधिक खतरे वाले सम्पर्कित व्यक्ति - पुष्ट रोगियों के शरीर द्रव्यों जैसे छींक,खून, उल्टी, थूक, मल, मूत्र , प्रयोग किये कपड़े,  या वस्तुओं के सम्पर्क में आने वाले।

5.कम खतरे वाले रोगी - जिनमे कुछ लक्षण हों किन्तु किसी संक्रमित व्यक्ति,  वस्तु, या क्षेत्र की यात्रा अथवा सम्पर्क की पुष्टि न हो ।

प्रचलित प्रोटोकॉल में जलरल मैनेजमेंट 

प्रचलित चिकित्सा पद्धति में कोविड 19 के इलाज के लिए कोई निश्चित विषाणु रोधी, प्रतिरोधक दवा, वैक्सीन, ज्ञात नहीं है।अतः जीवन रक्षक सपोर्टिंग मैनेजमेंट के साथ संक्रमण से बचाव के रक्षात्मक उपाय ही प्राथमिकता से व्यवहृत हैं जिससे शरीर को स्वतः स्वस्थ होने का समय व शक्ति मिलती रहे।

स्वच्छता के जरिये संक्रमण को फैलने से रोकने के उपाय -
 हाथों को साबुन या एल्कोहल मिश्रित सेनेटाइजर से बार बार साफ करना, खांसी या छींक आने पर हाथों की कुहनी से मुह नाक ढकना, खांसी बुखार वाले व्यक्ति से दूरी बनाए रखना,अधपका भोजन, मांस, या एनिमल प्रोटीन से परहेज, ड्रॉपलेट से बचाव हेतु मेडिकल मास्क या गमछे का प्रयोग, चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पीपीई किट, प्रयोग किये जाने वाले सभी उपकरणों को बार बार सैनिटाइज करना, आदि सम्मिलित है।

संक्रमण को रोकने के अन्य घरेलू उपाय -

स्वस्थ जीवनशैली, नियमित दिनचर्या, नियमित योग, प्राणायाम, गुनगुने पेय- (सोंठ, दालचीनी, पिपली, लौंग, हल्दी गुड़ मिश्रित), इम्युनिटी बढ़ाने वाले विटामिन सी की प्रचुरता वाले फल जैसे संतरा, आंवला, नियमित धूप।

होम्योपैथी की समग्र संभावनाएं 

होम्योपैथी रोग की डायग्नोसिस पर आधारित चिकित्सा पद्धति नहीं अपितु व्यक्ति के लक्षणों की औषधि की समानता पर आधारित चिकित्सा पद्धति है जो मूलतः आयुर्वेद की चरक संहिता पुस्तक के ज्वर निदान अध्याय के श्लोक संख्या 10, पृष्ठ संख्या 466 में वर्णित  समः समं शमयति सिद्धांत पर विकसित और मर्दनम गुनवर्धनम सूत्र के अनुरूप  निष्क्रिय पदार्थों के भी औषधीय गुणों को शक्तिवर्धित अनुप्रयोग करने में सक्षम हुई है अतः भारत मे विश्वसनीय और जनस्वीकार्य चिकित्सा पद्धति है।

विज्ञान, दर्शन, मनोविज्ञान व तर्क की संयुक्त कसौटियों पर सिद्ध होने के बाद भी प्रयोगशाला की सीमाओं में न प्रमाणित कर पाने की अक्षमता को इसके अप्रमाणिक होने का दोषारोपण कर उपेक्षित किया जाता रहता है फिर भी इतिहास में उपलब्ध आंकड़ों से कॉलरा, स्पेनिश फ्लू, यलो फीवर,  स्कारलेटफिवर, डिप्थीरिया, टायफॉयड आदि महामारी के समय होम्योपैथी की चयनित जिनस एपिडेमिकस औषधियों ने अपेक्षाकृत मृत्युदर में कमी लाकर मानव स्वास्थ्य की रक्षा में अपनी उपयोगिता बार बार सिद्ध की है। सम्भवतः इसीलिए 2014 में इबोला के संक्रमण काल मे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सुझाव दिया था कि " बीमारियों में जहां कोई वैक्सीन या उपचार ज्ञात न हो तो अप्रमाणित कहे जाने वाले  हानिरहित उपचार व बचाव के तरीको का हस्तक्षेप प्रभाविता के आधार पर स्वीकार किया जाना नियमन्तर्गत उचित है" । यह अप्रत्यक्ष रूप से होम्योपैथी की स्वीकार्यता को स्पष्ट करता है।

डा हैनिमैन ने अपनी पुस्तक ऑरगेनन ऑफ मेडिसिन में महामारी विषय मे उपचार के लिए एफोरिज्म 241 में कहा है कि प्रत्येक महामारी सभी व्यक्तियों में कुछ विशिष्ट एवं सामान्य लक्षणों के साथ प्रदर्शित होती है अतः इन सामूहिक लक्षणों की समानता के आधार पर स्पेसिफिक औषधि का चयन व प्रयोग करना चाहिए जिसे उन्होंने जिनस एपिडेमिकस नाम दिया।

भारत मे केंद्रीय होम्योपैथी अनुसन्धान परिषद द्वारा किये गए डेंगू और जापानीज इंसेफेलाइटिस के प्रसार के समय क्लिनिकल ट्रायल में होम्योपैथी औषधियों के प्रयोग से सकारात्मक परिणाम मिले और बिना किसी दुष्परिणाम के मृत्युदर में 15% तक कमी पाई गई।
वर्तमान कोविड 19 के संक्रमण से मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए  28 जनवरी 2020 को सीसीआरएच में हुई बैठक में मंथन के बाद आयुष मंत्रालय को आर्सेनिक एल्ब 30 को कोविड 19 से बचाव के लिए प्रयोग करने की सलाह दी गयी।
आर्सेनिक एल्ब- व्यक्ति में बेचैनी, घबराहट, बीमारी का भय, बेहद कमजोरी, मृत्यु का भय, अकेलेपन से डर,बार बार थोड़ी थोड़ी प्यास, शेलश्मिक झिल्ली नाक , मुह, आंख,गला, पेट, मूत्राशय, आदि से स्राव, जलन, त्वचा पर अल्सर, एलर्जिक कणों से सांस फूलना, स्वच्छता , गन्ध का भ्रम,सूखी खांसी,आधी रात के बाद बढ़ना,न्यूमोनिया के लक्षण,  तेज बुखार, ।

इस औषधि के साथ व्यक्तिगत रोगी के लक्षणों के आधार पर निम्न होम्योपैथी की दवाएं भी उपयोग की जा सकती हैं-

ब्रायोनिया -गर्म दिन के बाद ठंडी रात, श्लेष्मिक झिल्ली में सूखापन, तेज प्यास, सूखी खांसी,  बुखार, गले मे दर्द, न्यूमोनिया, जरा सा भी हिलने डुलने पर दर्द। 

कैम्फोरा ऑफ - बेचैनी, कमजोरी, ठंडी के प्रति संवेदनशीलता, जुकाम,सिरदर्द, नाक बंद, सीने पर भारी पन, संसलेने में तकलीफ, तेज सूखी खांसी, सांस रुकती सी है, अनिद्रा, बुखार।

कार्बोनियम ऑक्सीजनीसेटम - कोविड 19 के अधिकतर पैथॉलॉजिकल लक्षण इस औषधि से समानता रखते हैं। 
क्विल्लाया सपोनेरिया - शुरुआती अवस्था मे सर्दी, खांसी,  जुकाम, बुखार,

सरकॉलेक्टिक एसिड - एपिडेमिक इन्फ्लुएंजा में जब आर्सेनिक असरदायी न हो।

फॉस्फोरस - सायं को गले मे दर्द, खराश, खांसी, सीने पर दबाव,सांस लेने में दर्द, न्यूमोनिया, बाई करवट लेट नहीं सकता, बुखार,।

ट्यूबरकुलीनम-ठंडी से संवेदनशीलता, दम घुटना, सांस लेने में कष्ट, सूखी खांसी, ब्रांको न्यूमोनिया। इसे शुरुआत में या इन्टरकरेंट रेमेडी के रूप में प्रयोग कर सकते हैं।

सोरिनम - निराश, ठीक होने की उम्मीद नही रखता, आत्मघाती विचार, शीत प्रवृत्ति, सांस लेने में कष्ट,सूखी खांसी, 
इंफ्लुएंजिनम- वायरल फीवर की सर्वप्रथम औषधि,शरीर मे दर्द, बुखार,  जुकाम, नाक बंद ,खांसी।

इनके अतिरिक्त ब्लाटा, एस्पीडोस्पर्मा, जस्टिसिया, जेल्स, एकोनाइट, नैट मयूर, एंटीम टार्ट, अरेलिया भी उपयोगी हैं।

कोविड 19 के भय से मानसिक समस्याएं -

रोग की संक्रामकता, कारण, भयावहता व उपचार की ठोस जानकारी न होने से व्यक्ति, परिवार व समाज सभी मे मानसिक स्वास्थ्य की संभावनाएं भी प्रबल होना स्वाभाविक है।

एंग्जायटी - स्वास्थ्य की अनिश्चितता से कम्पन, धड़कन, बेचैनी,
डिप्रेशन-  मूड का बदलना, झुंझलाहट, गुस्सा, दुःखी होना, एकांतवास ,भूख, प्यास का बिगड़ जाना,जीवन के प्रति हताशा,
ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर - शंकालु ,सन्देह,व काल्पनिक भय से बार बार हाथ धोना,
सोंचने समझने की क्षमता में कमी महसूस करना,आदि चिंताजनक अवस्थाओं से सामान्य दिनचर्या में परिवर्तन आने से व्यक्ति का रक्तचाप, या डायबिटीज बढ़ सकता है, वाणी, भाषा,  व्यवहार में उग्रता या अधीरता मिल सकती है।
कई बार तो नकारात्मक विचार इतने प्रबल होने लगते है कि बीमारी का भय व्यक्ति को जीवन पर कलंक की तरह लगता है,  अवसाद की इस अवस्था मे व आत्मघाती या हंता भी बन सकता है।

इनसे बचाव का एक ही मार्ग है अन्यान्य मीडिया स्रोतों से मिल रही जानकारियों व सूचनाओं पर ध्यान देने की बजाय अपने चिकित्सक से परामर्श करें या प्रामाणिक स्रोतों से सही जानकारी प्राप्त करें। स्वजनों से सकारात्मक संवाद आपमे जीवन के प्रति विश्वास जगायेगा। स्वयं को गतिविधियों जैसे गायन, लेखन,  सेवा कार्य, स्वच्छता, अध्ययन , चित्रकारी, आदि कार्यों में जोड़ें।
होम्योपैथी में मानसिक लक्षणों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। उक्त सायकोटिक परिस्थितियां  शरीर क्रिया को डिस्टर्ब कर लक्षण उत्पन्न करती है अतः इन्हें साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर कहते हैं। जिनमे एंटी सोरिक रेमेडीज लाभदायक है। इस प्रकार होम्योपैथी वर्तमान परिदृश्य में भी समग्र स्वास्थ्य प्रदान कर सकती है।सरकार को उचित प्रबंधन एवं  अनुसन्धान के संसाधन उपलब्ध करवा कर  जनहित में स्वास्थ्य के समग्र उपायों पर एकसमान विचार करना चाहिए।

डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ
अयोध्या

Wednesday, 6 May 2020

जानिए विषाणु कैसे कर सकते हैं आपको बीमार

संक्रमण के खतरे के अनुरूप करें बचाव के उपाय 
वायरस क्या है?

 वायरस सामान्य आंखों से न दिखने वाला ऐसा सूक्ष्म जीव है जिसे सजीव और निर्जीव के बीच की कड़ी कहा जाता है, क्योंकि इसकी सक्रियता एवं संख्या बृद्धि मानव, जानवर, या पौधे की सजीव कोशिका पर निर्भर अन्यथा वातावरण में यह निष्क्रिय अथवा निर्जीव पड़ा रहता है। प्राकृतिक रूप से इसमें डीएनए या आरएनए आनुवांशिक कोड के रूप में रहता है। किसी   संक्रमण के समय कोशिका में प्रवेश पाकर वहां अपने इसी आनुवंशिक कोड के द्विगुणन जरिये संख्या बढ़ाता है और इस प्रकार बनने वाले नए वायरस आपके शरीर और पर्यावरण में फैल सकने में समर्थ हो जाते हैं।

वायरस हमें बीमार कैसे बना सकता है ?

जैसा कि मैंने ऊपर बताया मानव शरीर में प्रवेश के साथ ही शरीर की कोशिकाओं एवं संसाधनों का उपयोग वायरस अपनी संख्या बढ़ाने में करने लगता है अर्थात यह शरीर के अंगों की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाने लगता है जिससे बचाव की प्रतिक्रिया स्वरूप  प्रतिक्रिया में, शरीर वायरस से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय करता है,जिसके फलस्वरूप सूजन और बुखार दर्द जैसे लक्षणों के प्रदर्शित होने पर हम  बीमार महसूस करते है।

किसी वायरस के संक्रमण से बचाव कैसे संभव है?

 कोई संक्रमण होने पर शरीर की सुरक्षा प्रणाली उसके प्रोटीन एंटीजेन की पहचान कर उनके विरुद्ध एंटीबॉडी बनाती है, और कृत्रिम रूप से यह कार्य टीकाकरण के माध्यम से भी किया जाता है। वायरस के संक्रमण होने पर यह एंटीबॉडी और सुरक्षा तंत्र की टी-कोशिकाएं मिलकर शरीर में आये वायरस की पहचान कर पर्याप्त सुरक्षा देती हैं। 
 किसी नए संक्रमण में जिसकी वैक्सीन या एंटीबॉडी शरीर मे नहीं है तो शरीर की सुरक्षा प्रणाली को इसे विकसित करने समय लगता है, यदि सुरक्षा प्रणाली मजबूत हुई तो एंटीबॉडी विकसित कर सुरक्षा देती है और यदि आक्रमण तेज हुआ तो व्यक्ति के शरीर को नुकसान होता है।

एक बार विषाणु के संक्रमण से बचने के बाद पुनः बीमार हो सकते हैं क्या?

यदि ऊपर बताई प्रक्रिया के अनुरूप शरीर की इम्युनिटी मजबूत है और बनाई गई एंटीबॉडी दीर्घकालिक हैं तो दुबारा उसी तरह के वायरस के सम्पर्क में आने पर सुरक्षा तंत्र की कोशिकाएं सक्रिय होकर पहले से तैयार एंटीबॉडी के जरिये शरीर को संक्रमण से बचा लेती हैं, और यदि उसमे समय के साथ न्यूनता आ जाये तो प्रभाव कम हो जाता है, इसीलिए कभी कभी कुछ टीके की बूस्टर डोज दी जाती है।
  इस प्रकार अनेक वायरल संक्रमणों के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली व्यक्ति की उम्र, आनुवंशिकी, पिछले टीके और पूर्व संक्रमण के अनुभवों पर निर्भर करती है।

कोविड-19 से इतने लोग संक्रमित क्यों हो रहे है, यह कैसे प्राणघातक हो सकता है ?
 कोविड 19 का विषाणु सार्स कोव 2 नया संक्रमण है अर्थात शरीर मे पहले से कोई एंटीबॉडी नही है, अतःकोई भी व्यक्ति संक्रमित के सम्पर्क में आने से संक्रमित हो सकता है किंतु लक्षणों का प्रदर्शन या प्रभावित उसकी इम्युनिटी पर निर्भर करती है। जिनकी इम्युनिटी अच्छी है उनमें शीघ्र पहचान कर एंटीबॉडी विकसित हो व्यक्ति को सुरक्षित कर सकती हैं। अथवा अन्य में सामान्य तरीके से पहचान होने तक सुरक्षा के क्रमिक उपाय करती है, जिसमे सबसे पहले सिलिएटेड सेल्स गति बढ़ाकर इसे बाहर करना चाहती हैं,  किन्तु यह पर इसकी संरचना में बाहर की लिपिड खोल में धंसी प्रोटीन की घुंडी का संक्रमण प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण रोल हो सकता है जिससे यह शरीर की म्यूकोसा पर स्थित रिसेप्टर कोशिका से आसानी से चिपक सकता है।शरीर की प्रतिक्रिया के समय संक्रमित भाग में  सइटोकाइन स्रावण बढ़ने से डब्ल्यूबीसी सहित कोशिकीय सक्रियता बढ़ती है, इससे कोशोकाओं के रेशों को भी नुकसान हो सकता है, और विषाणु को चिपकने का पर्याप्त अवसर व समय मिल जाता है,  वह निरन्तर संख्या बृद्धि करता है , यदि संक्रमण श्वसन तंत्र के निचले हिस्से तक पहुच गया है तो स्रवण वहीं जमा होने से फेफड़ो के सिकुड़ने फैलने में दिक्कत हो सकती है जिससे सांस लेने में तकलीफ, सीने में भारीपन, दर्द, तेज बुखार, शरीर मे ऑक्सीजन की कमी होने लगती है।इस प्रकार कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों में यह प्राणघातक हो सकता है।

14 दिन के लिए व्यक्ति को लोगों से अलग रखना जरूरी है क्या ?

 शरीर मे संक्रमण के बाद वायरस पहले शरीर की सुरक्षा प्रणाली को तोड़ता है, फिर स्वयं को व्यवस्थित करता है, अपनी पर्याप्त संख्या बढ़ाता है तब उसकी विषाक्तता लक्षणों के रूप में प्रकट होती है, इस अवधि को इन्क्यूबेशन पीरियड कहते है यह औसतन 12-14 दिन होता है , और इसकाल में संक्रमित व्यक्ति लक्षणहीन होते हुए अन्य को संक्रमित कर सकता है अतः सावधानी बरतते हुए 14 दिन अलग रखना आवश्यक है।

 
कोविड 19 के पहचान के लक्षण क्या हैं ?

विषाणु के संक्रमण का नाक से सीने फेफड़ों तक फैल जाना और तत्सम लक्षण ही इसकी मूल बात है। यदि किसी संक्रमित व्यक्ति ,  वस्तु, या क्षेत्र अतः शुरुआत में
छींक ,सर्दी, हल्का बुखार, गले मे खराश,  या खांसी
फिर सूखी खांसी,  तेज बुखार, 
सांस लेने में तकलीफ होने ,या कुछ मामलों में स्वाद और सुगन्ध की क्षमता में कमी, रक्त के थक्के बनाने की प्रवृत्ति, पैरों पर पित्ती जैसे लक्षण भी देखने को मिले हैं।
अतः ऐसे लक्षण दिखाई पड़ने पर चिकित्सकीय सलाह एवं जांच के बाद ही कोई दवा का सेवन करना चाहिए।

उपचार की क्या संभावनाएं हैं ?
अभी तक कोविड19  के उपचार की कोई वैक्सीन ज्ञात नही,  इसलिए जो भी उपचार है वह इस आशा के साथ है कि शरीर को लक्षणों की तीव्रता सहन करने में सहयोग करते हुए स्वयं एंटीबॉडी विकसित कर पाने का समय देना जिससे वह स्वस्थ हो सके।
इसी आधार पर आयुष मंत्रालय ने आयुष पद्धतियों से सुझाव मंगाए जिससे व्यक्ति की इम्युनिटी को पर्याप्त शक्ति प्रदान करने में सहयोग किया जा सके। केंद्रीय होम्योपैथी अनुसन्धान परिषद के वैज्ञानिक सलाहकार समिति ने होम्योपैथी की आर्सेनिक एलबम को जनसामान्य लक्षणों की समानता के आधार पर उपयोगी बताया,  और अब इसे प्रदेश सरकार की तरफ से भी निःशुल्क वितरण के लिए सभी जनपदों के अधिकारियों को पत्र लिखा गया है।
किन्तु बचाव के लिए संक्रमण के दायरे से दूरी , हाथों की सफाई, नाक मुंह को ढक कर रखना आवश्यक है।

डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
महासचिव
होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ