चिकित्सा, लेखन एवं सामाजिक कार्यों मे महत्वपूर्ण योगदान हेतु पत्रकारिता रत्न सम्मान

अयोध्या प्रेस क्लब अध्यक्ष महेंद्र त्रिपाठी,मणिरामदास छावनी के महंत कमल नयन दास ,अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी,डॉ उपेंद्रमणि त्रिपाठी (बांये से)

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Thursday, 21 January 2021

बर्ड फ्लू : सुरक्षित रहने के लिए दिनचर्या में शाकाहार के साथ जारी रखें कोरोनाकाल की सावधानियां

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डा. उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथ अयोध्या
सहसचिव-आरोग्य भारती अवध प्रान्त
महासचिव- होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ
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विषाणु जनित कोविड19 महामारी की वैक्सीन उपलब्ध होने से जागी उम्मीद के साथ ही एक और विषाणु जनित खतरे बर्ड फ्लू की दस्तक ने मानवता और सरकारों की चिंता अवश्य बढ़ा दी है । यह वायरस भी कोरोना की तरह ही किन्तु पक्षियों में संक्रामक है , संतोष की बात यह है कि कोरोना काल मे अपनायी जा रही सावधानियां और मांसाहार के सेवन से बचकर पक्षियों से मनुष्यों में संक्रमण की संभावना को रोका जा सकता है।
क्या है बर्ड फ्लू
 मनुष्यों की तरह पक्षियों में होने वाला जुकाम को एवियन इन्फ़्लुएन्ज़ा या बर्ड फ्लू कहते हैं। यह इन्फ़्लुएन्ज़ा ए प्रकार के वायरस के संक्रमण से फैलने वाला रोग है जो पक्षियों की कुछ खास प्रजातियों तक या अन्य में भी फैल सकता है।
 यद्यपि यह कोई नई बीमारी नहीं वर्षों से बर्ड फ्लू के मामले अस्तित्व में हैं।
संक्रामकता
सबसे पहले  बतख प्रजाति की पक्षियों से बीमारी के वायरस मुर्गियों और इसके बाद अन्य पोल्ट्री व जंगली प्रजाति के पक्षियों में फ़ैलने की जानकारी हुयी। एशिया में इसकी पहचान सन 2003 और फिर 2005 में अफ्रीका में हुई। इसके लिए जिम्मेदार H5N1 वायरस है जिसने वक्त के साथ अपना स्ट्रेन बदला है और 2013 में चीन में H7N9 के रूप में पहचान में आया।पक्षियों से पक्षियों में इसकी संक्रामकता कोरोना वायरस की तरह ही है।प्रत्येक वर्ष एक से 10 लाख पक्षियों के संक्रमित होने की संभावनाएं रहती हैं।
मनुष्यों में बर्ड फ्लू के संक्रमण की संभावनाएं कम
 समय के साथ अपनी संरचना में परिवर्तन करते रहना विषाणुओं का गुण है। संक्रमित पक्षी के,अंडे, मांसाहार अथवा मृत पक्षी के शरीर द्रव्य के सम्पर्क,या पक्षियों के निकट सम्पर्क में रहने वाले मनुष्यों में इनकी संक्रमकता की संभावना को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि 1997 में हांगकांग में वायरस H5N1 से व्यक्ति के संक्रमित होने का पहला मामला सामने आ चुका है।
एक अध्यन  मे प्रोफेसर फोशियर के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने बर्ड फ्लू के वायरस की जैविक संरचना की तुलना इससे पहले इंसानों में महामारी के कारण बनने वाले फ्लू की जैविक संरचना से की तो उन्हें पांच अंतर मिले जो हवा के जरिए इस वायरस को फैलने के काबिल बना सकते हैं।यद्यपि मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण के मामले अभी नहीं मिले किन्तु म्यूटेशन के कारण यदि एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक फैलना संभव हुआ तो यह भी एक गंभीर बीमारी का रूप ले सकता है।  बर्ड फ्लू संक्रमण के कारक
संक्रमित पक्षी के मल, मुँह, नाक या आँखों से स्राव,पंख, चोंच या लार,अंडे या मुर्गी मांस या खुली हवा के बाजार आदि।
पक्षियों में बर्ड फ्लू के संभावित लक्षण 
एवियन फ्लू से संक्रमित पक्षी के मस्तिष्क व अंगों पर नियंत्रण असंतुलित हो जाता है जिससे वह लड़खड़ाता है।
दस्त हो जाना, सिर फूल जाना, आँखो मे सूजन, नाक से पानी और अंडे कम देना,खांसना और छींकना ।
पंजे, चोंच के उपर और नीचे वाटलेस का रंग बदल जाना।
मनुष्यों में बर्ड फ्लू के संभावित लक्षण
 जुकाम,खांसी, गले में खराश, बुखार, सिर,शरीर , मांसपेशियों में दर्द , साँसों की कमी,उबकाई ,उल्टी, दस्त
हल्के नेत्र संक्रमण या कंजक्टिवाइटिस।
आदि लक्षण दिखें तो अविलम्ब  चिकित्सकीय जाँच के लिए जाएँ।
जांच एवं पुष्टि-
व्यक्ति की नाक, या गले के द्रव्य का लैब टेस्ट, सीने के एक्सरे या सीटी स्कैन से फेफड़ों की स्थिति की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
रोग की जटिलताएं
संक्रमित व्यक्ति को समय पर पहचान न होने अथवा लापरवाही से इलाज न मिलने पर रोग बढ़ते हुए, निमोनिया, सांस रुकना, किडनी की खराबी या हृदय सम्बन्धी जटिलताओं को जन्म देकर जीवन के लिए संकट उत्पन्न कर सकता है।
बचाव के लिए बरतें सावधानियां-
संक्रमण की संभावनाओं के बारे में जानकारी से ही बचाव का उपाय खोजने में सबसे उचित मार्ग है। अतः पक्षियों के सम्पर्क व अंडे व मांसाहार के सेवन से बचना ही सर्वप्रथम सावधानी होनी चाहिए। साथ ही इनदिनों कोरोना काल मे अपनायी जा रही स्वच्छता,  शारीरिक दूरी, व मास्क का प्रयोग करना चाहिए। संक्रमित क्षेत्रों , पोल्ट्री, चिड़ियाघरों की यात्रा से बचें, और यदि आप पक्षी पालते हैं, तो उनके पिंजरे व घोसलों से दूर रहें।
पोल्ट्री फार्म्स में भी मुर्गियों को हवादार जगह में रखे उचित दूरी रखें। 
उपचार की संभावनाएं
बर्ड फ्लू के उपचार में एंटीवायरल मेडिसिन का प्रयोग किया जाता है इसकी कोई वैक्सीन उपलब्ध होने की जानकारी नहीं है।रोगी को एकांतवास और पूर्ण आराम की सलाह दी जाती है। घरेलू उपायों में अधिकाधिक लिक्विड डाइट लें। कच्चे पपीता या इसके पत्ते का , तुलसी रस ले सकते हैं। कुछ वैद्य लहसुन, काली  मिर्च, प्याज, अदरक और हरी मिर्च से बने सूप का सेवन की सलाह देते हैं।अथवा आवला, यष्टिमधु, काली मिर्च को मिला कर सेवन कर सकते हैं।
 होम्योपैथी में लक्षणों के आधार पर इंफ्लुएंजिनम, जेल्स, आर्सेनिक एल्ब, बेल,एकोनाइट आदि दवाएं लाभदायक हैं किन्तु किसी भी दवा का सेवन सदैव  चिकित्सकीय परामर्श के अनुसार ही करें और गम्भीर लक्षणों जैसे दस्त,  खून आना, ज्यादा उल्टी ,सांस कष्ट में रोगी को अविलम्ब चिकित्सालय पहुँचाना चाहिए।