कोरोना : भय, भ्रम और भ्रांतियां
स्वस्थजीवनशैली, सकारात्मक चिंतन एवं संक्रमण से बचाव के उपाय की सजगता आवश्यक
विगत वर्ष कोरोना विषाणु की एक प्रजाति के आक्रमण ने महामारी का रूप लेकर सम्पूर्ण विश्व की मानवता के लिए स्वास्थ्य का ऐसा संकट उत्पन्न किया कि समस्त विश्व का जीवन चक्र जैसे थम सा गया। ऐसे संकट के समय जीवन रक्षक दवाओं एवं वैक्सीन का निर्माण, देशवासियों व मित्र देशों को उपलब्ध कराने में भारत की भूमिका की वैश्विक पटल पर सराहना भी हुई। एक समय जब ऐसा लगा कि जीवन सामान्य पटरी पा आ गया तो देश मे पुनः एक बार कोरोना के नए रूप में संक्रमण के मामले तेजी बढ़ने लगे , इसे कोरोना महामारी की दूसरी लहर कहा गया। जांच के बाद वैज्ञानिकों ने अंदेशा जताया इसका कारण वायरस डबल म्यूटेंट है, अभी इसी तरह पश्चिम बंगाल में एक और स्ट्रेन ट्रिपल म्यूटेंट की पहचान की गई है, जिनके कारण वायरस के और अधिक तीव्र व प्रभावी संक्रामता की संभावना बताई जा रही है।
यह परिस्थिति समस्त विश्व के वैज्ञानिकों व चिकित्सा जगत के लिए भी एक नई चुनौती है , आंकड़ों से संक्रमण की भयावहता भले ही अधिक हो किन्तु वैक्सीन के बाद आशा और विश्वास भी बढ़े हैं। आमजन भी इस बार पूर्व अनुभव से अधिक जागरूक व जानकारी युक्त है , रोग से बचने के लिए अपनी प्रतिरोधक क्षमता के महत्व को लोग समझने लगे हैं फिर भी इस बार कोरोना के बदले स्वरूप के आक्रमण की भयावहता और जीवन पर जीवन पर संकट के समाचारों से स्वाभाविक रूप से संभव है कि आम जन के मन मे विश्वास की कमी आए और उसकी जगह तमाम तरह के भ्रम, भ्रांतियां एवं भय ले लें। ऐसे समय आवश्यकता है समाज मे स्वस्थ संवाद स्थापित हो जिससे विश्वास, सहयोग, सुरक्षा एवं जीवन की प्रत्याशा बढ़ाने वाला सकारात्मक वातावरण सृजित हो और लोग घबराने की बजाय जीवन सम्बन्धी उपाय कर स्वस्थ रह सकें।
(इसी पक्ष को ध्यान में रखते हुए होलिस्टिक टेलिकन्सल्टेशन सेवा में आम लोगो के द्वारा बार बार पूछे जाने वाले प्रश्नों को आधार बनाकर उनका सरल समाधान प्रस्तुत करने का प्रयास है)
क्या है डबल या ट्रिपल म्यूटेंट वेरिएंट ?
प्रकृति में प्रत्येक जीव अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए तदनुरूप स्वयं को तैयार करता है, इसी प्रकार वायरस भी स्वयं को दीर्घकाल तक प्रभावी बनाये रखने के लिए अपनी जेनेटिक संरचना ने लगातार परिवर्तन करता सकता है इस प्रकिया को म्यूटेशन कहते है, और जिस वायरस में यह प्रकिया होती उसे वेरिएंट । इस प्रकार डबल म्यूटेंट वेरिएंट का अर्थ है सम्बंधित वायरस में दो जेनेटिक म्यूटेशन , ट्रिपल में तीन जेनेटिक म्यूटेशन एक साथ उपस्थित हैं।वैज्ञानिकों ने डबल म्यूटेंट को बी 1.617 व ट्रिपल म्यूटेंट वैरिएंट को बी-1.618 नाम दिया है।
दूसरी लहर में इस कोरोना के क्या लक्षण है ? क्या यह जानलेवा है ? यह लहर कब तक चलेगी और क्या इसके बाद भी कोई लहर आ सकती है ?
कोरोना संक्रमित व्यक्ति में सर्दी, जुकाम, गले मे खराश, सूखी खांसी, स्वाद सुगन्ध का न होना , दस्त जैसे लक्षण पहले भी थे अब भी पाए जा सकते हैं , साथ ही किसी क्रॉनिक बीमारी से संक्रमित होने पर या अन्य अंगों की क्रियाविधि को प्रभावित कर तदनुरूप लक्षण व्यक्त हो सकते हैं, जैसा कि फेफड़ों में सीधे संक्रमण, पाचन विकार, हृदयरोग आदि। प्रकृति के अनुरूप संक्रामक क्षमता में बृद्धि के लिए जेनेटिक संरचना में परिवर्तन की प्रवृत्ति के कारण वर्तमान या भविष्य की संभावनाओं नकारा नहीं जा सकता। इसके लिए हमे शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार रहते हुए अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली को सुदृढ करने के उपाय अवश्य करने चाहिए।
क्या वैक्सीन की डोज ले चुके व्यक्ति दुबारा संक्रमित हो सकते हैं?
किसी भी वैक्सीन के शत प्रतिशत कारगर होने का न तो दावा है न प्रमाण। अपने जेनेटिक पदार्थ में परिवर्तन के बाद कोरोना वायरस के नए वेरिएंट, उसकी स्पाइक प्रोटीन की संरचना में अलग परिवर्तन व मजबूती प्रदान करने में सक्षम होता है जिससे शरीर में पहले से उपस्थित एंटीबॉडीज को मात देने में आसानी हो सकती है और यह कोशिकाओं से चिपक कर कई गुणा तेजी से बढ़ने लगता है और अंगों को प्रभावित करता है। संभवतः यही कारण है कि एक बार संक्रमण से उबर चुके लोग या वैक्सीन की डोज लेने के बावजूद टेस्ट में पॉजिटिव आ सकते हैं। आप समझ सकते है नया वैरिएंट जितनी आसानी से एंटीबॉडीज को मात देगा, वैक्सीन के लिए संक्रमण को रोकना और हमारे लिए हर्ड इम्युनिटी तक पहुंचना उतना ही मुश्किल होगा। इसके बावजूद वैक्सीनेशन वायरस के खिलाफ अभी उपलब्ध प्रतिरोधक उपाय है जिससे संक्रमण यदि होता भी है तो व्यक्ति गम्भीर स्थितियों से बच जाता है। एक बात का अवश्य ध्यान रखे कि वैक्सीन लेने के बाद भी शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को प्रतिक्रयात्मक मजबूती प्राप्त करने में थोड़ा समय लगता है इसलिए वैक्सिनेशन के बाद हल्के बुखार, दस्त, आदि को सामान्य रूप में लें , निर्देशों का पालन करें, और संभव हो तो कुछ दिन निश्चिंत हो भीड़भाड़ में जाने बचें।
एंटीजेन व आरटीपीसीआर निगेटिव होने पर सीटी स्कैन में कोरोना की पुष्टि हो रही है ऐसा क्यों ?
मुँह या नाक से शरीर मे प्रवेश कर रहे किसी भी संक्रमण को शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र पहचान कर गले से नीचे नही जाने देता अतः सामान्यतः शरीर की प्रतिक्रिया संकेत के रूप में लगभग तीसरे से 6छठे दिन तक हल्की खांसी या बुखार आता है और बलगम के साथ उसे बाहर कर दिया जाता है ।यदि कोई लक्षण नहीं आया और सीधे फेफड़े से जुड़े लक्षण उपस्थित होने का अर्थ है शरीर की इम्युनिटी इतनी कमजोर साबित हुई कि वह संक्रमण को पहचान या रोक नही पाई ऐसी दशा में संभव है कि जांच के परिणाम प्रभावित हो जाएं। भारतीय संस्कृति की दृष्टि से भी यह समय ऋतुओं का परिवर्तन या संक्रमण काल होता है जब दिन बड़े तापमान अधिक व रात छोटी तापमान कम हो रहे होते हैं, इस प्राकृतिक परिवर्तन के सापेक्ष मानव शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली भी अपेक्षाकृत कमजोर होती है और यदि संक्रामक प्रबल हुआ तो व्यक्ति के बीमार होने की संभावना बढ़ जाती है।
ऑक्सीजन लेवल कम होने का क्या कारण है ?
सामान्यतः जब कोई संक्रमण फेफड़ों को प्रभावित करता है तो उसके अंदर की एल्वियोलाई में सूजन आ जाती है आकार व स्रावण बढ़ता है, और वहीं जमा होने लगता है, समय के साथ यह गाढ़ा होता है और सूखने की स्थिति में एक परत सी बना लेता है जो सांस में ली गयी ऑक्सीजन व फेफड़े की दीवार पर खून की नलियों में होने वाले आदान प्रदान में अवरोध उत्पन्न करता है इसलिए सांस का फूलना और ऑक्सीजन के स्तर में कमी हो सकती है। जमा बलगम या कोशिकाओं की क्षति धब्बे के रूप में स्कैन जांच में देखी जा सकती है।
लक्षण दिखने पर घर पर उपचार का कोई उपाय है या सीधे अस्पताल में भर्ती होना चाहिए ?
स्वस्थ होने का अर्थ है स्वयं में स्थित होना ।सकारात्मक स्वस्थ चिंतन एवं स्वस्थजीवनशैली अपनाते हुए, नकारात्मक संदेशों, समाचारों से स्वयं भी बचें व उनके प्रचार प्रसार का माध्यम न बनें। पहले स्वयं को अपने परिवार को जानकारी युक्त करें बचाव के सभी उपाय करें, हल्के लक्षणो में भी बिना चिकित्सक की सलाह के किसी दवा का सेवन न करें, और आवश्यक होने पर चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही अस्पताल एवं जांच के लिए जाएं , वहां भी मास्क ,दूरी व सैनेटीजेशन के नियमो का पालन करें।
क्या यह मान लिया सिर्फ अपनी इम्युनिटी बढ़ाना ही उपाय है, इसका कोई इलाज नहीं ?
यही तो नकारात्मकता है जिसे दूर करने की आवश्यकता है, सामान्यतः भिन्न मीडिया माध्यमों से आ रहे समाचारों का हमारे मन मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि कई बार अधीरता में सारे सामान्य सी स्थिति में जरूरी उपाय छोड़ चिकित्सालयों की तरफ भागने लगते हैं या प्रारंभिक लक्षणो को बिना उचित चिकित्सकीय सलाह के उपेक्षित कर स्थिति को गम्भीर बनने का समय दे देते हैं, दोनों ही स्थितियां नियंत्रण की दृष्टि से व्यवस्था पर असर डालती हैं। इसलिए सबसे जरूरी बात है कि हमारी उपचार की पद्धति का चयन कोई भी हो किन्तु बिना चिकित्सक की सलाह के स्वयं के चिकित्सक बनने की प्रवृत्ति को छोड़ना चाहिए।
हम सभी के लिए यह समझना अत्यंत आवश्यक है कि हमारा शरीर अलग अलग स्थितियों में अलग अलग व्यवहार करता है, उदाहरण के लिए जैसे दुःख, खुशी, भय, क्रोध के समय निकलने वाले आंसुओं या पसीने के कम्पोजिशन में भिन्नता पाई जा सकती है वैसे ही श्वसन की गतियाँ भी अलग अलग हो सकती हैं। इसी प्रकार रोग की स्थिति परिस्थिति के अनुरूप ही उपयुक्त दवा का चयन या प्रयोग किया जाना चाहिए।
रोग हो जाने के बाद उसके उपचार की पद्धति या तरीके का चयन किया जाए इससे बेहतर है हम रोगग्रस्त होने से बचे रहें और स्वस्थ रहें इसलिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्राकृतिक रूप से शक्तिकृत रखने के लिए भारतीय पारंपरिक प्राकृतिक स्वस्थजीवनशैली, योग, प्राणायाम, पौष्टिक शाकाहार, स्वस्थ चिंतन,स्वच्छ जल और वायु के महत्व को समझें स्वीकारें।
आधुनिक या पारंपरिक होने से रोग का क्या सम्बन्ध है, बार बार इस पर क्यो चर्चा होती है ?
मनुष्य जहां भी रहता है वहां की भौगोलिक,प्रकृति, जलवायु, वातावरणीय पारिस्थितिकी के अनुरूप ही उसकी जीवनशैली होनी चाहिए , हमारे ऋषि मनीषियों ने अपने अनुसंधान से अर्जित ज्ञान को ग्रन्थो में ही बंद रखने की बजाय उसे जीवनपद्धति में सम्मिलित करने नियम बना दिये जो हमारी पारंपरिक विरासत है यह हमारे शोध के विषय होने चाहिए थे किंतु समय के साथ हमने उनकी उपयोगिता पर अध्ययन की बजाय उनका त्याग करना ज्यादा उचित समझा और प्रचलित बुराईयों को स्वीकार करते गए । कालांतर में दुष्परिणाम सामने है कि आज तमाम तरह की जेनेटिक बीमारियां है और भविष्य में भी होंगी।
घर पर स्वयं की देखभाल कर पाने का क्या उपाय है ?
संदेह नही सावधानी की दृष्टि से सम्मुख व्यक्ति को संक्रमण वाहक मानते हुए उचित दूरी बनाए रखें,आवश्यक होने पर बाहर निकलते समय मास्क का अवश्य लगाएं, हाथों की नियमित अंतराल पर सफाई का ध्यान रखें, पौष्टिक शाकाहार लें, पर्याप्त मात्रा में पानी पीते रहें और कोई भी स्वास्थ्य समस्या होने पर उसे नजरअंदाज करने की बजाय चिकित्सक से मार्गदर्शन लेते रहें।
बसन्त ऋतु परिवर्तन में अधिक दूध, दही, खट्टे फल, अचार आदि एवं विपरीत आहार का निषेध है। इस समय संस्कारित जल सेवन का तरीका बताया गया है। इसके लिए 2 लीटर जल में अदरक, सेंधा नमक डालकर उबालें जब वह एक लीटर बचे तो इसप्रकार संस्कारित जल का पान करें।
डिब्बा बंद, खाद्य, पेय , मांसाहार, गरिष्ठ भोजन, गर्म -ठंडे का साथ सेवन से बचें। एसी से सीधे धूप या धूप से एसी में न जाएं, नाक, कान ,मुँह, गले पर सीधे पंखे, कूलर की हवा न लगे, इन्हें ढक कर सोएं।
जलनेति करना चाहिए, यह नाक से गले तक सूजन या स्राव से बचाता है। इसी प्रकार एक दो बूंद,नीलगिरी तेल, सरसो का तेल, या नींबू का प्रयोग भी वैद्यजन बताते हैं। तेल तो लगा सकते हैं किंतु क्रियाओं के लिए अभ्यास की आवश्यकता है प्रशिक्षित होने पर ही प्रयोग करना चाहिए।
गले मे खराश, खांसी या बलगम होने पर गरम पानी मे अजवायन,या नीलगिरी, या मेंथायल, कपूर की भाप से दिन में 3-4 बार भाप लें। सेंधा नमक, हल्दी का गरारा कर सकते हैं, मुंह मे सोंठ, मुलेठी, या गुड़ रख सकते हैं।
गुड़ के सेवन की नित्य आदत होनी चाहिए। शुरुआत में बुखार शरीर की इम्युनिटी बढ़ाने का संकेत है यदि हल्का आता है तो तुरन्त उतारने की बजाय ठंडे पानी की पट्टी रख सकते हैं, सुपाच्य तरल आहार लें, मूंग का पानी उपयोगी हो सकता है। तुलसी ग्रीन टी , अथवा गिलोय का काढ़ा ले सकते हैं।
इसबार संक्रमण में ऑक्सीजन की कमी जीवन का संकट उत्पन्न कर रही है , ऐसी परिस्थिति में क्या करना चाहिए ?
ऑक्सीमीटर से ऑक्सीजन स्तर जांचने की सही पद्धति की जानकारी होना चाहिए, जिससे सही स्थिति में सही माप कर सकें, कई बार स्वस्थ लोग भी गलत जांच को देख कर घबरा जाते है और बिना किसी लक्षण के स्वस्थ होते हुए भी भय के कारण उनमें घबराहट, बेचैनी, रक्तचाप आदि की समस्या उत्पन्न हो सकती है,इसलिए बिना चिकित्सक से सही मार्गदर्शन के प्रयोग नही करना चाहिए।यदि रोगी अवस्था मे ऑक्सीजन स्तर 93 तक है तो थोड़ा हवादार स्थान में आगे झुक कर बैठे, या गुड़ खाकर पानी पीएं घबराएं नहीं शांत चित्त हों। एक चम्मच गाय के देसी घी में थोड़ी हल्दी, एक चुटकी काली मिर्च व 8-10 मुनक्के हल्का भूनकर चाट लें। कुछ देर में पुनः जांच करें , स्थिर या सामान्य होने तक जांच करें और चिकित्सालय के सम्पर्क में रहें ।
कभी कभी घबराहट, डिहाइड्रेशन, भय आदि के कारण भी ऑक्सीजन स्तर थोड़ा कम दिखता है। यदि सांस लेने में दिक्कत हो रही है, हांफ रहे हैं ऑक्सीजन स्तर 90 से कम व लगातार नीचे जाता प्रतीत हो तो उचित प्रबंधन एवं उपचार हेतु समय से हॉस्पिटल जाना चाहिए।
होम्योपैथी में उपचार की क्या संभावनाएं हैं ?
होम्योपैथी में किसी भी रोगी का उपचार चिकित्सक द्वारा रोगी के शारीरिक मानसिक लक्षणो की समग्रता का मिलान औषधि से कर , उपयुक्त शक्ति का चयन एवं रोगी की स्थिति के अनुरूप उसके प्रयोग के तरीके पर निर्भर रहता है इसलिए किसी एक दवा पर निर्भरता नही हो सकती। वर्तमान परिस्थितियों में चिकित्सा संसाधनों और संक्रमण की भयावहता को देखते हुए सभी संभव उपायों की होलिस्टिक एप्रोच अपनाने की आवश्यकता है।
होम्योपैथी में सामान्य लक्षणो की समग्रता व रोग की अवस्था के अनुसार आर्सेनिक, ब्रायोनिया, जेल्सीमियम, फॉस्फोरस,फेरम फास, फेरम मेट, युपेटोरियम, जस्टिसिया, एस्पीडोस्पर्मा, टिनोस्पोरा, लॉरोसेरेस, ब्लाट्टा, आदि अनेक दवाएं हैं जो व्यक्ति की अवस्था के अनुरूप चिकित्सक के मार्गदर्शन में प्रयोग किये जाने अत्यंत कारगर हैं।
सोसल मीडिया पर इन दिनों कुछ होम्योपैथिक औषधियों को लेकर ऑक्सीजन स्तर बढ़ाने के दावों में कितना सच है ?
होम्योपैथी और इसकी दवाओं के असर को लेकर कोई संदेह नही किन्तु औषधि एवं उसकी शक्ति का चयन एवं प्रयोग का तरीका चिकित्सक के आकलन के आधार पर ही निश्चित हो सकता है इसलिए इस तरह के दावे का नुकसान यह हो सकता है कि अन्य दवाओं की तरह किसी जरूरतमंद व्यक्ति के लिए इसकी भी उपलब्धता बाज़ार में न रह जाय।होम्योपैथी में कई दवाएं हैं जो श्वासकष्ट , न्यूमोनिया, ब्रोंकाइटिस आदि में बहुत उपयोगी है और ऊतकों को मजबूती प्रदान करते हुए श्वसन केंद्रों को प्रेरित कर श्वसन क्रिया को ठीक कर ऑक्सीजन के गिरते स्तर को सुधारने में महत्वपूर्ण है। सभी पद्धतियों की अपनी संभावना व सीमाएं है अतः बिना चिकित्सक के उचित मार्गदर्शन के प्रयोग में सभी को अपेक्षित लाभ नहीं मिले यह संभव नहीं।
कोविड वैक्सीनेशन के बाद भी यदि लोगों में लक्षण दिखें तो क्या संभावनाएं है ?
कोविड के शुरुआती व मध्यम अवस्था के साथ वैक्सीनेशन के बाद के लक्षणों में होम्योपैथी उपचार अत्यंत उपयोगी है। कुछ लोगों में हल्के लक्षण सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार, सिरदर्द , डायरिया, कमरदर्द, आदि लक्षण यदि प्रदर्शित होते हैं तो होम्योपैथी की हिस्टामिन, क्रोटेलस,पल्मो वलपिस, लैकेसिस, एस्कुलस, कोनियम, आर्सेनिक, वाइपेरा, सीपिया आदि औषधियां लक्षणो की समानता के आधार पर उपयोगी हैं।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
HOMOEOPATHY for All