कोरोना महामारी ने सभी को आहत किया किन्तु इसकी तीसरी लहर बच्चों के लिए ज्यादा खतरनाक होने के अंदेशे ने चिकित्साजगत व सरकारों की चिंता बढ़ा दी है यद्यपि भारत सरकार ने लगातार जरूरी संसाधनों की तैयारी करनी शुरू कर दी है किंतु दूसरी लहर की भयावहता देखने के बाद भी आमजनमानस में छूट मिलते ही फिजिकल डिस्टेंसिंग, मास्क व हैंड सैनेटीजेशन जैसी जरुरी सावधानियों के प्रति लापरवाही देखी जा सकती है और जानबूझकर खतरे को आमंत्रित करने की यह प्रवृत्ति ही घातक हो सकती है।इतना ही नहीं बचने के लिए वैक्सीन लगवा चुके या कोरोना से ठीक हो चुके मरीजों के स्वास्थ्य को लेकर भी सावधानी बरतने की जरूरत है। सामान्यतः 2 से 3 सप्ताह में कोरोना ठीक हो रहे व्यक्तियों या बच्चों को पूरी तरह ठीक होने में 4-6 सप्ताह का समय लग सकता है यदि इस अवधि के बाद भी लक्षण दिखते हैं तो इसे लांग कोविड या पोस्ट कोविड सिंड्रोम कहते हैं। कोविड के लिए जिम्मेदार विषाणु सार्स कोव 2 शरीर मे एसीई रिसेप्टर के सम्पर्क में आकर अपनी गतिविधियां बढ़ा पाता है, और यह रिसेप्टर श्वास नली, फेफड़ों, हृदय, एवं रक्त नलियों में ज्यादा पाए जाते हैं इसलिए कोरोना वायरस के इनसे संबंधित अंगों में ज्यादा नुकसान पहुँचाने के मामले संभव हैं। प्रभावित व्यक्ति में कोविड लक्षणो की तीव्रता या डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, किडनी, अथवा हृदय रोग पहले से है तो ऐसे कोमॉर्बीडिटी कॉम्प्लेक्स के साथ स्वास्थ्य का ख्याल रखने में ज्यादा सावधानी बरतनी चाहिए। प्रभावित होने पर आइसोलेशन या उपचार के बाद व्यक्ति को बीमारी व जीवन के संकट के सदमे से उबरने में लगने वाला 3-4 सप्ताह का समय रिकवरी पीरियड कहलाता है किन्तु इसके बाद भी यदि अचानक तेज बुखार, दस्त, सांस लेने में दिक्कत, हाथ पैरों में धब्बे या सूजन, सिरदर्द, उल्टियां , धड़कन, खांसी आदि में से कोई भी लक्षण दिखें तो अविलम्ब अपने चिकित्सक से मिलकर उन्हें अपनी पूरी केस हिस्ट्री व वर्तमान लक्षणो से अवगत कराएं जिससे वह आवश्यक विश्लेषण कर उचित जांच करा सकें और आपको सही उपचार पद्धति का मार्गदर्शन कर सकते हैं।यहां पर एक बात महत्वपूर्ण है कि पोस्ट कोविड या लांग कोविड सिंड्रोम में उन्ही अंगों के लक्षणों की प्रभाविता अधिक संभावित होती है जिनसे संबंधित लक्षण रहे हैं।
क्या हो सकते हैं लक्षण ?
कोविड से प्रभावित व्यक्ति में न्यूरोसाइकियाट्रिक विकारों में मस्तिष्क विकार, स्वाद, सुगंध का ह्रास, मस्तिष्कावरण सम्बन्धी विकार हो सकते हैं जिससे लंबी अवधि के बाद भी चक्कर आना, मूड परिवर्तन, नींद अधिक आना या नहीं आना, थकान, सोंचने समझने निर्णय की क्षमता में कमी हो सकती है। इसी प्रकार न्यूमोनिया जैसे लक्षणो के बाद ठीक होने पर भी श्वास कष्ट, व खांसी बनी रह सकती है, सीने में दर्द, धड़कन, किडनी रोग, लिवर कमजोर होने से पाचन सम्बन्धी विकार, मांसपेशियों हड्डियों जोड़ों की कमजोरी, दर्द ,थकान, व क्षय, व बालों का लगातार झड़ना महत्वपूर्ण लक्षण दिखते हैं। एसीई रिसेप्टर व कोरोना वायरस के कारण रक्त वाहिकाओं की आंतरिक दीवारों में क्षति से रक्त के थक्के बन जाते हैं इसे थ्रैम्बोसिस कहते हैं यदि यह एक ही जगह बढ़ता गया तो रक्त प्रवाह को बाधित कर सकता है, और यदि बड़ी नलियों से तैरने लगे तो एम्बोलाई कहलाता है , इस प्रकार हृदय, मस्तिष्क या फेफड़े की पतली निलियों में पहुँच कर वहां की रक्त आपूर्ति को बाधित कर अकस्मात स्थिति उतपन्न कर सकता है। अतः रिकवरी पीरियड में ठीक होने के बाद भी स्वास्थ्य को लेकर सावधानी बरतने की आवश्यकता है।
इसलिए हमें किसी तरह की अन्य क्रॉनिक बीमारियों के साथ कोविड से ठीक हुए रोगी व्यक्ति की घर पर नियमित ब्लड प्रेशर, सुगर, ऑक्सीजन लेवल मापते रहना चाहिए और शरीर के किसी भाग या अंग में भारीपन, सांस में कष्ट, धड़कन,सीने में दर्द अथवा लंबी खांसी बनी रहे तो चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लेना चाहिए जिससे अकस्मात हो सकने वाली फेफड़ों में जमाव, फाइब्रोसिस, हर्ट अटैक, हर्ट फेल्योर, की संभावनाओं का आकलन करते हुए चिकित्सक आवश्यकतानुरूप कम्प्लीट हीमोग्राम, लिवर फंक्शन, रीनल फंक्शन, यूरिन, इलेक्ट्रोलाइट, सी आर पी, फेरेटिन, डी-डाइमर, ईसीजी, सीने का एक्स रे, आदि की जांच कर उचित चिकित्सकीय प्रबंधन एवं उपचार तय कर सकें।तेज बुखार, खांसी आदि के लाक्षणिक उपचार के साथआकस्मिक व द्वितीयक संक्रमण से बचाव एवं उपचार की व्यवस्था कर सकें।
इन सभी के साथ परिवार के सदस्यों को चाहिए कि आइसोलेशन के एकांतजनित मनःस्थिति को अपने आत्मीय, सद्भावनापूर्ण व्यवहार उन्हें जीवन के प्रति आशा , सकारात्मकता का चिंतन विकसित करने में सहयोगी बनें।अनावश्यक मानसिक शारीरिक श्रम से बचें, पौष्टिक प्रोटीनयुक्त संतुलित आहार लें,नियमित पैदल चलें और पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पानी का सेवन अवश्य करें जिससे रक्त संचार अच्छा बना रहे । ताजे मौसमी फल, दालें, दूध , भोजन में सम्मिलित करें। घर मे स्वच्छता पवित्रता रखें, औषधीय पौधों की लकड़ियों से धूपन, करें, पौधरोपण श्रम, मानसिक शांति व पर्यावरण में योगदान का लाभ देता है। प्राणायाम योगासन सूर्य नमस्कार से शरीर के सभी अंगों की क्रियाविधि व प्राणि ऊर्जा संतुलित होती है।
होम्योपैथी में क्या हैं संभावनाएं
होम्योपैथी प्राचीन भारत के आयुर्वेद में वर्णित प्राकृतिक चिकित्सा सिद्धांत समं समे शमयति पर विकसित है , औषधीय स्रोत समान होने पर शक्तिकरण के सिद्धांत प्रयोग से अधिक सहज व उपयोगी भी है।भारतीय सांस्कृतिक जीवनशैली की निकटता के कारण भी भारत मे सर्वाधिक विश्वसनीय व ग्राह्य चिकित्सा पद्धति है। बीते काल मे हुए अध्ययनों में सामने आया है कि होम्योपैथी का उपयोग करने वाले 82 % मामलों में लोग कोरोना से सुरक्षित रहे या प्रभावित होने पर उनकी रिकवरी बहुत अच्छी हुई।
विषाणुजनित तमाम संक्रामक रोग जैसे जे ई, चिकनगुनिया, डेंगू, मस्से, चेचक आदि की रोकथाम व उपचार में सबसे ज्यादा उपयोगी सिद्ध हुई है।
इस पद्धति से उपचार में शारीरिक लक्षणो के साथ मानसिक लक्षणो की होलिस्टिक एप्रोच को महत्व दिया जाता है। कुशल होम्योपैथी चिकित्सक पोस्ट कोविड लक्षणो दर्द,सीआरपी, डी डाइमर बढ़ने पर बेलाडोना, अर्निका, सार्कोलैक्टिक एसिड, लगातार दस्त, उल्टी आदि होने पर कार्बोलिक एसिड, आर्सेनिक, श्वास कष्ट खांसी बने रहने पर ,पिक्स लिक्विडा, सोरिनम, पल्मो वलपिस, लौरेसेरेसस, एस्पीडोस्पेर्मा,बीमारी के बाद की कमजोरी कर्बोवेज, चाइना, लथाइरस, ट्यूबरकुलीनम,नर्वस कमजोरी के लिए काली फास, अवेना,हृदय की दिक्कतों में आइबेरिस,एडोनिस, मैग म्यूर,मांसपेशीय कमजोरी शिथिलता, दर्द, बुखार आदि में चिनियम अर्स, नैट आर्स आदि दवाओं का प्रयोग कर सकते हैं। किंतु होम्योपैथी में औषधि एवं उसकी शक्ति का निर्धारण व्यक्तिगत लक्षणो के आकलन के आधार पर केवल चिकित्सक ही कर सकता है ,और वैसे भी किसी पद्धति में चिकित्सा सदैव कुशल प्रशिक्षित चिकित्सक की देख रेख में ही करनी चाहिए। संचार युग मे तमाम जानकारियों को जागरूकता हेतु ही ग्रहण करना चाहिए, विश्वास से पहले उनकी विषयवस्तु की प्रामाणिकता पुष्ट कर लेनी चाहिए। ऐसे में बहुत से अप्रशिक्षित लोग जल्दी लाभ देने के दावे के साथ अनुपयुक्त तरीके से कई पद्धतियों की दवाईयों व प्रतिबंधित स्टेरॉयड आदि का मिश्रण कर देते हैं जिससे संभव है कभी तुरंत लाभ दिखे किन्तु इसके दूरगामी व नुकसानदायक परिणाम भी हो सकते हैं,यह आपके शरीर की इम्युनिटी को ज्यादा ज्यादा नुकसान पहुँचाता है। अतः ऐसे अप्रशिक्षित प्रयोगधर्मी व आपदा में अवसर तलाशने वाली प्रवृत्ति की मानसिकता के लोगों से भी सतर्क सावधान रहना चाहिए। चिकित्सा के क्षेत्र में बढ़चढ़कर दावे नहीं किये जा सकते क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में संभावनाए अलग होती हैं अतः समय के साथ हमे जागरूकता, प्रचार, व दावे के अंतर को भी समझना चाहिए व अपने व परिवार के स्वास्थ्य के लिए योग्य प्रशिक्षित चिकित्सक से ही परामर्श लेना चाहिए जिससे हमें इस बात की भी सही जानकारी हो सके कि किन मामलों में हमे दवा का सेवन करना है अथवा किन स्थितियों में जीवनशैली का नियमन, क्योंकि प्रत्येक स्थिति में दवा का अंधाधुंध प्रयोग नहीं करना चाहिए।