एक गांव में बड़ी सभा बुलाई गई, आस सम्पन्न और प्रबुद्ध कहे जाने वाले लोग आए। आज समाज मे एक बड़े परिवर्तन पर संकल्प लेने के लिए सभी ने मन बनाया था। उपयोगिता के अनुरूप कर्म की, श्रेष्ठता और समानता के सम्मान में मंच से आमंत्रित वक्ताओं ने बहुत से आदर्श वचन कहे और जनसमर्थन की बड़ी तालियां बटोरीं। सभा का उत्साह बता रहा था आज परिवर्तन की शुरुआत यहीं से हो जाएगी। सभा के बाद संकल्प को व्यवहार में धारण करने की शुरुआत के लिए समाज के सभी वर्गों ने मिलकर गांव की देसी परिपाटी से साथ मे बैठकर भोजन की व्यवस्था की।मिलकर पकवान बनाये, दोना पत्तल कुल्हड़ में भोज के लिए जमीन पर बैठकर भोजन करने का आह्वान हुआ। लोगों ने आमंत्रित वक्ताओं और अतिथियों को भी निवेदन किया किन्तु वे लोग समय की कमी और कहीं अन्यत्र व्यसतता बताकर चल दिये।
अब भोजन पर बैठे लोग चर्चा कर रहे थे, उनके कुर्ते में जमीन पर बैठने में मिट्टी लग जाती दूसरे ने कहा नहीं भैया दोना पत्तल कुल्हड़ में मिट्टी लगी रहती है साबुन से नहीं धोया जाता न इसलिए कहीं तबियत न खराब हो जाये। तीसरे ने तपाक से चुटकी ली अरे सुना नही कह रहे थे आप लोगों को समाज के वंचित वर्गों के बीच जाना चाहिए अब ऐसे में किसी को तो संचित वर्ग के भी बीच रहना होगा , तो उनमें वो जाएंगे, चांदी के चम्मच काले न पड़ जाएंगे बिना उपयोग किये। एक बाबा सबकी सुन रहे थे फिर बोल ही पड़े बेटा अपने आस पास पड़ोस में सम्बन्ध किसी दूसरे के ज्ञान से नहीं आपसी सामंजस्य से बनते है हमें ऐसे ही अच्छी बातें ग्रहण कर लेनी चाहिए , और ऐसे लोगो को भी पहचान कर उन्हें किनारे कर आगे बढ़ना चाहिए जो अपना उल्लू सीधा करने की मंशा रख कर हमारे बीच आते हैं। एक बालक ने कहा वे समाज को सुधारने वाले है बड़ी जिम्मेदारियां होंगी बड़े लोग हैं। बाबा ने कहा बेटा कोई भी आदर्श की बात करता है, यदि तुम्हारी नजर में वह आदर्श व्यवहारिक है तो उसे ग्रहण करना चाहिए, यदि व्यक्ति के आचरण में नहीं दिखता तो व्यक्ति का त्याग करो आचरण का नहीं।










