हमारा मानव शरीर इस प्रकृति का ही एक घटक है, अतः शरीर के अंदर और बाहर का सापेक्ष सामंजस्य ही हमे प्राकृतिक दृष्टि से सुरक्षा स्वास्थ्य प्रदान करता है। प्रकृति वातावरण जलवायु व अपेक्षित जीवनशैली में परिवर्तन इस सामंजस्य को तदनुरूप ही प्रभावित करता है। हम निरन्तर असंख्य जीवाणु विषाणु धूल रसायनों या रोगकारक तत्वों से भोजन, पान, या स्पर्श के माध्यम से सम्पर्क में रहते हैं किंतु इन सभी के नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा के लिए हमारे शरीर मे एक प्रतिरक्षा तंत्र भी निरन्तर सक्रिय रहता है जिसकी कोशिकाएं शरीर के अंदर की व बाहरी प्रोटीन (एंटीजेन) को पहचान कर उनके विरुद्ध रक्षात्मक संरचनाएं (एंटीबॉडी) निर्मित कर हर पल हमारे शरीर को सुरक्षित और स्वस्थ रखने में लगी रहती हैं।
रोग उत्पत्ति के लिए शारीरिक, मानसिक , वातावरणीय कारणों व कारकों की निरन्तर उपस्थिति व चल रहे इस सूक्ष्मस्तरीय संघर्ष में जब हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली शिथिल हो जाती है या उसमे किसी कारण न्यूनता आ जाती है अथवा कभी ऐसा संयोग या उपयुक्त वातावरण उपस्थित हो सकता है कि शरीर की प्रतिरक्षा कोशिकाएं किसी ऐसे बाहरी प्रोटीन (एंटीजेन) की पहचान करती हैं जो शरीर मे पहले से उपस्थित किसी प्रोटीन से समानता रखता हो या सदृश हो तो ऐसी स्थिति में भी यह स्वाभाविक रूप से सक्रिय हो उसके विरुद्ध रक्षात्मक एंटीबॉडी बनाती हैं , किन्तु इस रक्षात्मक क्रिया में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और बनी हुई एंटीबॉडी सभी सदृश प्रोटीन पर भी समान रूप से हमला करना शुरू कर देती है जिससे उत्पन्न स्वास्थ्य समस्याएं विकसित होती हैं। शरीर की इसी स्वप्रतिरोधी क्रिया से उत्पन्न स्वास्थ्य विकारों को ऑटोइम्यून डिजीज कहते हैं। वर्तमान में लगभग 80 प्रकार हैं ऑटोइम्यून रोग पहचाने गए हैं जिनकी संख्या आज से 40-50 वर्ष पहले बहुत कम थी। इनका प्रमुख निर्दिष्ट लक्षण सूजन या इन्फ्लेमेशन है, किन्तु कोई स्पष्ट कारण अभी तक ज्ञात नहीं है, यद्यपि उत्प्रेरक या स्थायीकारक बहुत से कारक माने जा सकते हैं जैसे हमारी प्रकृति विरुद्ध जीवन शैली, रसायनों का उपयोग, दूषित प्रदूषित खाद्य व पेय, तनावयुक्त जीवन, चिन्तनशैली, दृष्टिकोण, धारणाएं, नकारात्मकता, आदि के साथ पर्यावरण का परिवर्तन, भावनात्मक स्तर का परिवर्तन, मनोवैज्ञानिक स्तर का परिवर्तन हमारे शरीर पर, विशेष रूप से हमारे प्रतिरक्षा अंतःस्रावी तंत्र में, हमारे शरीर पर जबरदस्त नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। हमारी निर्दोष सरल प्रतिक्रियाशील प्रतिरक्षा प्रणाली परेशान हो गई है और असामान्य रूप से कार्य कर रही है जिसके परिणामस्वरूप कई ऑटोइम्यून रोग मानव समाज का निर्माण और विनाश कर रहे हैं।
इस श्रेणी में आने वाले रोगों में अस्थि संधि शोथ,
सफेद दाग धब्बे,सोरायसिस,
एसएलई, आंत्र सूजन रोग,मधुमेह , रक्ताल्पता जैसे घातक रोग जनस्वास्थ्य के लिए चुनौती बन रहे हैं।
उपचारात्मक दृष्टि में होम्योपैथी -
उपचारात्मक दृष्टि से होम्योपैथी व्यक्ति के रोग लक्षण, मनोवैज्ञानिक , शारीरिक स्तर या आनुवंशिक स्तर पर सम्भावित उत्प्रेरक कारकों की पहचान समग्रता के आधार पर उपयुक्त वैयक्तिक औषधि व उसकी मात्रा शक्ति और प्रयोग के तरीके का निर्धारण उचित प्रबंधन के साथ किया जाता है तो ऑटोइम्यून रोगों में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली के संतुलन को सामान्य स्थिति में प्राकृतिक तरीके से वापस लाने में सहायता मिलती है ।










