मधुमेह वर्तमान जीवनशैली से व्युत्पन्न चयापचयी क्रियाओं में गड़बड़ी से होने वाला विकार है जिसमें अंगतन्त्रों के व्यापक सामान्य लक्षणों के साथ तीन प्रमुख लक्षण अत्यधिक भूख, प्यास, व मूत्र त्याग के पहचान के लक्षण मिलते हैं और रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाने की पुष्टि को सामान्य जन सुगर के नाम से जानते पहचानते और भयभीत होते हैं। आनुवंशिक , किसी जीर्ण रोग , एकाकी या तनावपूर्ण जीवनशैली आदि के कारण व पुष्टि के बाद तमाम पद्धतियों में उपचार की अपनी सीमाएं व संभावनाओ के बीच सभी इसके उपचार के साथ प्रबंधन पक्ष पर एकमत होते जिसमे व्यक्ति की भारतीय संस्कृति व प्रकृति के अनुरूप दिनचर्या में आहार के साथ योग को अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है यहां तक कि कई बार यदि नियमितरूप से इसका पालन किया जाय तो व्यक्ति की दवाओं पर निर्भरता नही रह जाती।
जीवनशैली का अनिवार्य हिस्सा बनाएं-
एक साथ अत्यधिक भोजन की आदत को त्याग कर 5-6 बार मे हल्का अनुशंसित भोजन लेना चाहिए और प्रातः कम से कम 45 मिनट टहलना चाहिए और सम्भव है तो नंगे पैर हरी घास पर टहलें जहां कोई नुकीली वस्तु न हो, एवं सायँ का भोजन सूर्यास्त के एक से डेढ़ घण्टे में लेकर भोजन के दो घण्टे बाद ही सोएं। सोने से पूर्व चाहे तो एक गिलास गाय के दूध में एक चम्मच हल्दी डालकर ले सकते हैं। दिन में 12-14 गिलास पानी अवश्य पियें।
कैसा हो आहार
साबुत अनाज दालों के साथ आटे में गेहूँ की बजाय चना, ज्वार, बाजरा, जौ सोयाबीन का आटा मिलाकर रोटी बनवाएं।
दालों में साबुत मूंग, मसूर, मोठ, सोयाबीन आदि अंकुरित कर लेना ज्यादा उचित है, धुली हुई पॉलिश दाल न ही लें।
मौसमी फल ही खाएं किन्तु अधिक शर्करायुक्त जैसे आम चीकू लींची, केला, अंगूर, गन्ना जूस, खजूर, शरीफा से परहेज करें व जामुन आंवला, सेब, मुसम्मी, अमरूद, अनार, नाशपाती, पपीता, संतरा, तरबूज, खरबूजा, आदि खट्टे, हल्के मीठे फलों का सेवन कर सकते हैं। हरी मौसमी पत्तेदार सब्जियां विशेषकर जो जमीन के ऊपर उगती हैं जैसे टमाटर, प्याज, बथुआ, शलजम, सहजन, तरोई, मटर, टिंडा, घियां, भिंडी, करेला, कुंदरू, मूली, खीरा, ककड़ी, कमल, सेम व फली वाली हरी सब्जियां खानी चाहिए ।आलू, चुकंदर, कटहल, गाजर शकरकंद का प्रयोग न्यूनतम या नहीं करें।
गाय का दूध, पनीर, नमकीन लस्सी या मट्ठा ले सकते हैं किंतु प्रोसेस्ड पनीर, दही, खोया, मक्खन के प्रयोग से बचना चाहिए। सूखे मेवे, अंजीर कभी कभी ले सकते हैं जबकि किशमिश मुनक्का न लें यद्यपि बादाम का नियमित सेवन करना श्रेयस्कर है।वसीय पोषण के लिए भैंस के दूध से बने घी, मक्खन, तले हुए व रिफाइंड तेल से बचें, जबकि सरसों का तेल व जैतून का तेल प्रोयग कर सकते हैं।
हल्दी, कालीजीरा, मेथी, अजवायन का प्रयोग करना चाहिए।
कुछ पीने की इच्छा हो तो फीकी चाय, नीम के पत्ते, मेथी दाना, सब्जियों के रस, नींबू पानी, आंवला जूस, हल्दी तुलसी का काढ़ा ले सकते हैं किंतु नारियल पानी, फ़ास्ट फ़ूड, मीठी चाय कॉफी, च्यवनप्राश, शर्बत चटनी से परहेज करना चाहिए।
योग
योग ध्यान व्यायाम हमारी जीवनी शक्ति को ऊर्जावान बनाकर अंगतन्त्रों समान प्रवाह को बनाते हैं जिससे उनकी क्रियाएं संतुलित होती हैं। चहलकदमी करते हुए हरी घास पर चलने से स्नायुतन्त्र व पैंक्रियाज की सक्रियता बढ़ती है, सूर्य नमस्कार, मण्डूक आसन, अर्धउष्ट्रासन, ऊष्ट्रासन, योगनिद्रासन व अनुलोम विलोम, भ्रामरी, कपालभाति प्राणायाम व कुछ सूक्ष्म व्यायाम शरीर की ऊर्जाओं का संतुलित संयमन करते हैं जिससे दवाओं का असर भी अच्छा होता है और शीघ्र ही हमारी दवाओं पर निर्भरता कम या शून्य हो सकती है।
डा. उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
सहसचिव - आरोग्य भारती अवध प्रान्त
चिकित्सक- होम्योपैथी फ़ॉर आल
अयोध्या










