गर्मी और बरसात के इन दिनों आंखों की एक संक्रामक बीमारी ने पांव पसारना शुरू किया है जिसमें प्रत्येक आयुवर्ग खास कर बच्चों की आंखों में जलन, लालिमा, सूजन, दर्द जैसे प्रमुख लक्षण देखने को मिल रहे हैं। जनसामान्य की भाषा मे लोग इसे आंख आना या "आंख उठ आई है" कहते है।
चिकित्सकीय भाषा मे इसे आई फ्लू या वायरल कंजक्टिवाइटिस कहते है जिसका मुख्य कारण एडीनोवायरस, हर्पीस, सिंपल्स वायरस, मिक्सोवायरस आदि व अन्य पारिस्थितिक जीवनशैली, वातावरणीय दशाओं के सापेक्ष हमारी शारीरिक प्रतिरोध क्षमता में संतुलन की कमी आदि भी महत्वपूर्ण होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार खट्टे-मीठे, तेल-मिर्च के मसालेदार, अम्लीय खाद्य-पदार्थ खाने तथा मांस-मछली के अधिक सेवन से पित्त विकृत होकर नेत्रों को प्रभावित करता है, अथवा जब कोई व्यक्ति देर तक अधिक तापयुक्त वातावरण से एकाएक शीतल वातावरण में पहुंच जाता है, तो कफ के दूषित होने से भी संक्रमण की संभावनाएं पनपती हैं।
कैसे फैलता है
सामान्यतः हवा से नहीं फैलता किन्तु संक्रमित व्यक्ति की आंखों से आंसू निकलता है वह हाथों से आंखों और फिर आस पास की वस्तुओं, वस्त्र, रूमाल, तौलिए के स्पर्श मात्र से ही उन्हें संक्रमित कर देता है और इस प्रकार ड्रापलेट हवा से भी स्वस्थ लोगों तक पहुंचकर उन्हें रोगी बनाते हैं, अर्थात यह छूत का संक्रामक रोग है।
कैसे विकसित होते हैं लक्षण-
आंख के आगे के हिस्से को ढककर रखने वाली झिल्ली व पलकों की अंदर की श्लैष्मिक-कला संक्रमण से शोथ होने से लालिमा, जलन व रेत के चुभने जैसा दर्द हो सकता है साथ ही पहले पानी से आंसू फिर गाढ़ा स्राव निकलने से पलकों को चिपकाने लगता है। लंबे समय तक अपलक कार्य करने वालों में सूखेपन की समस्या के कारण भी संक्रमण की संभावना बढ़ती है।
पहचान के लक्षण -
आंखों की पलकों में अंदर सूजन, दर्द, लालिमा, सूजन, रेत जैसी चुभन,खुजली, पानी आना, धुंधला दिखना, आंखें खुली रखने मे दिक्कत, रोशनी असहन होना,
पलकों के बाल चिपकना,बाद में आंखों में सूखापन, गाढ़ा स्राव, सिरदर्द,आंखों में दबाव सा महसूस होना।
बचाव कैसे करें
आंखों के संक्रमण की शुरुआत या घर मे किसी सदस्य के प्रभावित होने सभी को बचाव के लिए स्वच्छता के नियमो का पालन करना चाहिए व हाथों को व आंखों को साफ पानी से बार बार धुलते रहना चाहिए।
हमेशा पर्याप्त प्राकृतिक प्रकाश में पढ़ें,कृत्रिम प्रकाश से बचना चाहिए।कम्प्यूटर आदि पर कार्य के समय बार-बार पलक झपकाने की आदत डालना चाहिए जिससे सूखेपन की समस्या न हो।
निजी उपयोग के तौलिया, तकिया, कपड़े, चादर, आंखों का मेकअप, चश्मे और आई ड्रॉप आदि परिवार के अन्य सदस्यों के साथ उपयोग में न लाएं।
विटामिन ए, विटामिन बी और विटामिन सी युक्त आहार का सेवन करें मसालेदार, खट्टे मीठे अचार, एल्कोहल आदि अम्लीय पदार्थो के सेवन से बचें।तेज धूप, ठंड या तेज हवा में चश्मे पहनें।
आंखों को रगड़ें नहीं जल से धोएं,
सात से नौ घण्टे की पर्याप्त नींद लें।
यदि कॉन्टेक्ट लेंस का प्रयोग करते हैं तो हर बार उपयोग करने से पहले रोगाणु मुक्त कर लें और पुराने कॉन्टेक्ट लेंस का प्रयोग न करें।
घरेलू उपचार -
संक्रमित होने पर आंखों को बंद कर बर्फ की पोटली से सेंके।थोड़े धनिया के पत्तों को पानी में उबाल कर पानी को ठंडा कर छान लें और इस पानी के साथ अपनी आंखें धो सकते है।गुलाब जल की बूंदे आंख में डाल सकते हैं। पालक और गाजर के मिक्स जूस का नियमित सेवन करें। करौंदा का जूस भी लाभदायक होता है।
होम्योपैथी में उपचार की संभावनाएं-
आईफ्लू जैसे रोगों में होम्योपैथी की दवाएं अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुई हैं। प्रमुख रूप से एकोनाइट, बेल, पल्स, आर्जेन्टम नाइट्रिकम, बोरेक्स, यूफ्रेशिया, एलियम सिपा, सल्फर आदि दवाओं रोगलक्षणो की समानता के आधार पर कुशल चिकित्सक के मार्गदर्शन में सेवन कर शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
होम्योपैथी परामर्श चिकित्सक
होम्योपैथी फ़ॉर आल
महासचिव- होम्योपैथी चिकित्सा विकास महासंघ
सहसचिव-आरोग्य भारती अवध प्रान्त










