व्यथा हो या कथा दोनों योग्य श्रोता होने पर कल्याणकारी हो सकती है।
कथा में वक्ता ज्येष्ठ होता है जबकि व्यथा में श्रोता।
श्रोता की तीन श्रेणियां है, प्रथम एक कान से सुने दूसरे से निकाल दे, दूसरा कान से सुने और लोगो से कहता फिरे, और तीसरा सुन ले किन्तु किसी से न कहे।
कथा उसी श्रोता को सुनानी उचित जिसके हृदय में भक्ति, आस्था व समर्पण का भाव हो, जो कथा के मर्म को ग्रहण करने के लिए प्रस्तुत हो, कथा में कोई भी श्रोता हो सकते हैं किंतु दूसरे और तीसरे प्रकार के श्रोता उचित रहते हैं ।
किन्तु व्यथा कहने से पूर्व श्रेष्ठ श्रोता की पहचान कर लेना आवश्यक है, इसमे तीसरे प्रकार का ही श्रोता उचित है जो सुन ले और उचित समाधान के लिए सहयोगी हो सके किन्तु एक कान से सुनकर दूसरे से निकालने वाले या व्यथित की सुनकर जगह जगह उसकी चर्चा करने वाले किसी भी प्रकार उचित नहीं।
रहीम जी ने भी लिखा-
रहिमन निज मन की व्यथा सकुचि न कहियो कोय,
सुनि इठलइहैं लोग सब
बांट न लेइहैं कोय।।
डॉ उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
होम्योपैथ










