विश्व स्वास्थ्य दिवस पर आरोग्य की बात होम्योपैथी के साथ
स्वास्थ्य के महत्व से जनसामान्य को अवगत व जागरूक सचेत करते रहने के लिए प्रतिवर्ष सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस एक वार्षिक थीम के साथ मनाया जाता है। द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका के बाद समस्त विश्वमानवता को स्वस्थ मनःस्थिति में सकारात्मकता एकजुटता के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारियों से अवगत कराते हुए संभावित अस्वास्थ्यकारी कारकों, कारणों से सचेत करने हेतु 1948 में विश्व स्वास्थ्य संगठन की स्थापना की गई और 1950 में पहली बार इसे वार्षिक थीम के साथ मनाने की शुरुआत हुई। हम इसे भी एक आशापूर्ण भविष्य के लिए की गई स्वस्थ शुरुआत कह सकते हैं, इस वर्षकी थीम है स्वस्थ शुरुआत आशापूर्ण भविष्य।
यद्यपि डब्ल्यूएचओ का उद्देश्य लोगों को रोगों की रोकथाम, स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए जनजागरूकता, प्रमुख स्वास्थ्य विषयों पर वार्ता , संगोष्ठी को बढ़ावा देने के साथ सरकारों और लोगों को सभी के लिए सुलभ स्वास्थ्य सेवा को प्राथमिकता देने की याद दिलाता है।
भारतीय अध्यात्म सदैव से स्वस्थ का अर्थ स्व में स्थित होने के भाव को मानता है, जिससे शारीरिक कारकों, कारणों व्याधियों से अधिक मन मस्तिष्क चिंतन और विचार शुद्ध एवं स्वस्थ होने को श्रेयस्कर मानता है । जैसे किसी भी निर्माण का प्रारम्भ यदि सुनिश्चित सुगठित योजना के साथ किया जाय तो उसकी श्रेष्ठता व पूर्णता के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है, ठीक वैसे ही व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र व समस्त विश्व मानवता में स्नेह, सहयोग, समर्थन, सम्मान, समानता, समरसता, सद्भाव व एकता की स्थापना के लिए स्वस्थ मन मस्तिष्क विचारों पर एकमत होना आवश्यक है।
प्रत्येक प्रारम्भ स्वयं से किया जाय तो इससे श्रेष्ठ उदाहरण समाज को नहीं दिया जा सकता, यही स्वस्थ शुरुआत है जिसके आधार पर हम पहले स्वयं के भविष्य के प्रति सकारात्मक आशावादी हो सकते हैं और इसीप्रकार व्यक्ति व्यक्ति की स्वस्थ आशाएं मिलकर समज व राष्ट्र के सुनहरे भविष्य की आशावान और आश्वस्त हो सकते हैं।
स्वास्थ्य के चार प्रमुख आयामो में मानसिक स्वास्थ्य का आयाम सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि एक तरफ यह व्यक्ति के विचार शुद्धि से आहार विहार शुद्धि संयमन से शारीरिक स्वास्थ्य को बल देते हुए जब स्वस्थ आचरण सहज व्यवहृत होता है तो सामाजिक समरसता सद्भावको बढ़ते हुए सामाजिक आयाम को भी संतुलित करता है, तो दूसरी तरफ स्वस्थ चिंतन की तरफ प्रवृत्त होकर आत्मिक उन्नति से जुड़ते हुए आध्यात्मिक श्रेष्ठता को संतुलित करता है। भारत मे ऋषि मनीषी इसे साधने के लिए योग, आसन, अनुसंधान करते रहे और उसे आयुर्वेद में समाहित कर जन सामान्य के लिए जीवनशैली को ही प्रकृति आधारित बना दिया जो हमारे लिए नए प्रशिक्षण का विषय नहीं पूर्वजो से संस्कारों में मिली परम्पराएं, व्रत त्यौहार आदि हैं।कोरोना काल इस तथ्य का अनुभूत उदाहरण है, जिसने विस्मृत की जा रही भारतीय सँस्कृति की जीवनशैली के प्रति समस्त विश्व को आकर्षित किया । विश्व के लिए यह थीम नई स्वस्थ शुरुआत हो सकती है किंतु हम भारतवासियों के लिए अपनी विरासत पर गौरव का विषय होनी चाहिए, किन्तु यह गौरव मात्र अनुभूति के स्तर पर नहीं आचरण और प्रदर्शन के स्तर पर हो तो निश्चित ही हमारी वर्तमान व भावी पीढ़ी स्वस्थ होगी, मन चिंतन शरीर से भी और भविष्य स्वर्णिम सुनिश्चित होगा।










