तथाकथित शिक्षित लोग स्वयं की विद्वता भगवान के अस्तित्व को अपने कुतर्को से सिद्ध करने में ही समझते हैं , वस्तुतः ऐसे लोग अल्पज्ञानी ही होते है किंतु उनकी प्रवृत्ति अधजल गगरी छलकत जाय जैसी ही होती है ....।
ध्यान रहे-
काल कर्म देखता है डिग्री नहीं।...सफलता की ऊँचाई पर संतुलन और धैर्य आवश्यक है,आकाश कितना ही ऊँचा हो,बैठने की जगह किसी को नहीं देता।
डा. उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
होम्योपैथी फ़ॉर आल
अयोध्या






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