अब तक जलाने वाली तेज धूप गर्मी फिर बरसात से मौसम में नमी किन्तु साथ ही होने वाली उमस और पसीने की जलन , कई तरह के संक्रामक रोगों के खतरे का भी संकेत देते हैं। इस मौसम में जरा सी लापरवाही आपके स्वास्थ्य के लिए भारी पड़ सकती है।
पृथ्वी पर भारत ही ऐसी धन्य भूमि है जहां प्रकृति की छः ऋतुओं का आनन्द लिया जा सकता है ।यह मौसम धान्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सनातनी धर्म की मान्यतानुसार चातुर्मास का प्रारम्भ होने के साथ जीवन शैली के जो नियम बताये गए हैं वह वैज्ञानिक दृष्टि से भी बेहद उपयोगी हैं।
सावन की रिमझिम फुहारों के साथ जगह जगह जल भराव एवं उचित प्रबन्धन न होने पर गन्दगी एकत्र होने लगती है और उसके कारण जिस तरह तमाम उपयोगी अनुपयोगी वनस्पतियां पनपने लगती हैं ठीक वैसे ही शरीर में रोगों के पनपने की सम्भावना बढ़ जाती है। अतः इस काल को शरीर और प्रकृति दोनों का संक्रमण काल कह सकते हैं।
मौसम की नमी, उमस और चिपचिपा पसीना यह तीनो कई प्रकार के जीवाणुओं ,फंगस,आदि के पनपने और रोग पैदा कर सकने के लिए सबसे मुफ़ीद वातावरण तैयार कर देते हैं। इस ऋतु में साँस, पाचन,त्वचा, एवं जोड़ो के रोगों में खासी बृद्धि हो सकती है।
पाचन रोग- पल पल बदलते वातावरण के ताप के अनुरूप शरीर को ढलने में समय लगता है इसलिए व्यक्ति की जठराग्नि अपेक्षाकृत मन्द पड़ जाने से अपच, गैस, कब्ज़, दस्त, अतिसार, पेचिश, फ़ूड पॉयजनिंग आदि रोग हो सकते हैं। बासी रखा हुआ या संक्रमित भोजन करने के 2-4घण्टे के भीतर ही व्यक्ति को पेट में मरोड़ व उल्टियाँ हो सकती हैं।
श्वांस रोग-घरों में छतों पर या आस पास एकत्र पानी के कारण होने वाली सीलन साँस के रोगियों की तकलीफ बढ़ा सकती है, जिसमें दमा के रोगियों को अधिक सावधानी बरतनी चाहिए। इस समय होने वाले सर्दी, जुकाम, खांसी में जकड़न बढ़ने की सम्भावना बढ़ जाती है।
त्वचा रोग-त्वचा शरीर का सुरक्षा कवच है , साफ स्वच्छ स्वस्थ त्वचा हमारे उत्तम स्वास्थ्य और सौंदर्य का भी पैमाना है किन्तु बरसात में गन्दे पानी के कारण होने वाले संक्रमण से दाने, फुंसी,फोड़े, त्वचा मोड़ पर होने वाली गीली या सूखी दाद, खाज, खुजली, पीबदार मुंहासे, जलन वाले छाले, घमौरियां, आदि हो सकती हैं। इस मौसम में कुछ बच्चों में नकसीर फूटने की भी शिकायत मिलती है।
बरसात में जहरीले जीव जन्तुओ के डंक या दंश का खतरा भी बना रहता है। कई बार रक्त दूषित होने से कई एलर्जिक लक्षण मिलते है जिनमे पहले हल्की खुजली के बाद त्वचा लाल हो जाती है फिर उभर आती है ऐसा रक्त में मास्ट सेल के बढ़ जाने से होता है इसे पित्ती या अर्टिकेरिया कहते हैं।
संक्रामक रोग- जगह जगह गन्दगी व पानी एकत्र होने के कारण मच्छरों मख्खियों की संख्या उनसे होने वाले संक्रामक रोगों की सम्भावना बढ़ जाती है। जिसमें पीलिया, टायफायड, डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया रोग आदि प्रमुख हैं।
जोड़ों के दर्द -नमी के चलते पुरानी चोट मोच या वात रोगों में भी बृद्धि के कारण जोड़ो के दर्द उभर आते हैं।
क्या बरतें सावधानियां
भारतीय सनातन धर्म में सावन महीने में भगवान शिव के अभिषेक का विधान समय, प्रकृति, जीवन, स्वास्थ्य आध्यात्म की दृष्टि से वैज्ञानिक प्रतीत होता है , सावन में होने वाली वनस्पतियां , शाक आदि प्रदूषित और कुछ सीमा तक विषाक्त हो सकती हैं जिन्हें खाने के बाद दुग्ध उत्पादन करने वाले पशुओं का दूध भी स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत उत्तम नही माना जाता इसीलिए मदार, भांग, गांजा, धतूरा आदि विषैली प्रकृति की वनस्पतियों के साथ दूध से भी भगवान शिव का अभिषेक किया जाना तर्कसंगत लगता है क्योंकि शिव में ही विषपान कर सकने की शक्ति की मान्यता है।बहरहाल स्वास्थ्य की दृष्टि से भी इस ऋतु में हरी पत्तेदार शाक सब्जियों का सेवन नहीँ करना चाहिए। स्वच्छ सादे रंग के सूती और ढीले वस्त्र पहने , सिंथेटिक, नायलान,टेरीकॉट, चटख रंगीन और कसे वस्त्रों के प्रयोग से बचें। प्रतिदिन स्नान करें और त्वचा , बालों ,शरीर के अंगों की सफाई का ध्यान रखेँ और उन्हें सूखा रखें। गीले वस्त्र देर तक न पहनें। गरिष्ठ ,तेल ,मसालेदार, बाजार की टिकिया, चाट , बर्गर व अन्य जंक फ़ूड का सेवन न करें। भोजन में नीबू, तुलसी, अदरक, शहद, जामुन का प्रयोग करें। इससे प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है एवं मधुमेह के रोगियों को भी लाभ मिलता है। मच्छरदानी में सोएं और घर व आस पास नाली आदि जगहों पर पानी न इकट्ठा होने दें। यदि ऐसा हो भी तो उसमे समय समय पर मिट्टी का तेल या कीटनाशक का छिड़काव कराते रहें। फल सब्जियां अच्छी तरह धोकर ही खाएं।
क्या है होम्योपैथी में उपचार-
होम्योपैथी स्वयं प्रकृति के चिकित्सा नियम पर आधारित पद्धति है, इस समय प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हो रहे तमाम औषधीय पौधे मनुष्य को संजीवनी भी प्रदान करते हैं। स्वयं के स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता , उचित सावधानी , नियमित दिनचर्या, संतुलित खानपान से हम अनेक प्रकार के संक्रामक रोगों, परजीवियों से होने वाले रोगों, विषैले कीटों के डंक आदि से स्वयं को अस्वस्थ होने से बचा सकते हैं अथवा किसी भी अपरिहार्य स्थिति में कुशल प्रशिक्षित होम्योपैथ के मार्गदर्शन में उचित औषधियों का सेवन कर स्वास्थ्यलाभ प्राप्त कर सकते हैं। वर्षा ऋतु की ज्यादातर समस्याओं के लिए होम्योपैथी की रसटाक्स, डल्कामारा, नेट्रम सल्फ, आर्सेनिक, बेल, युपेटोरियम, जेल्स, ग्लोनीयन, सल्फ, फॉस, लिडम, एपिस, ब्रायोनिया, नाजा, चायना , आदि दवाईयां कारगर होती हैं। औषधियों का चयन चिकित्सक ही कर सकते हैं सुन या पढ़ कर उचित औषधि का चयन नही हो सकता।
डा उपेन्द्र मणि त्रिपाठी
होम्योपैथी फ़ॉर आल
अयोध्या






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